वर्ष 2020 का यह साल पूरे विश्व के लिए चूनौती का वर्ष रहा है
कोरोना महामारी ने विश्व के जनमानस को झकझोर कर रख दिया है। ऐसे संक्रामण काल में जल, जंगल, जमीन, पर्यावरण सहित आदिवासी, मूलवासी, किसान, दलितों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का आवाज उठाने वाले झारखंड राज्य के मानव अधिकार कार्यकर्ता 83 वर्षीय स्टेन स्वामी की 8 अक्टोबर की रात राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा आतंकवादी होने के आरोप में गिरफतारी करना, केंन्द्र सरकार द्वारा देश के लोकतंत्र पर हमला की एक कड़ी ही माना जाएगा। इस गिरफतारी का झारखंड समेत देश के कई हिस्सों में देश के लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी सहित जन समुदायों के संवैधानिक अधिकारों पर विश्वास करने वाले आम आदमी एवं जनसंगठन विरोध कर रहा है। साथ ही केन्द्र की मोदो सरकार द्वारा 2019 में 1967 के न्।च्। न्दसवूनिस ।अजपअपमे च्तमअमदजपवद ।बज में संशांेधन कर लाये न्।च्। न्दसवूनिस ।अजपअपमे; च्तमअमदजपवद द्ध ।उमदकउमदज ।बजण् 2019 (गैर कानूनी गतिविधि प्रतिषेध संशोधन कानून 2019 ) को रदद करने की मांग कर रहे हैं। यही नहीं इस काले कानून के तहत फा0 स्टेन स्वामी सहित 16 मानव अधिकार कार्याकर्ताओं की रिलाई की मांग कर रहे हैं।
गैर कानूनी गतिविधि प्रतिषेध कानून 1967 को 2020 के पहले कभी पढ़ी नहीं थीं-इस कानून के विशेषताओं के बारे 2019 में पहली बार सुनी थी, जब 2018 में भीमा कोरेगांव के मामले में देश के सामाजिक कार्याकर्ता, पत्रकार, वकील, कवि सहित कई सामाजिक जनमुददों पर काम करने वाले 16 लोगों के उपर केस किया गया। इनमें से कई लोगों को घरों में ही कैद में रखा गया। इसके बाद उनलोगों को जेल भेज दिया गया। इन मामलों पर चर्चा में इस कानून के बारे सुने और समझने की कोशिश किये। 2019 में जब इस कानून में कई जनपक्षिये धाराओं को संशोधन कर कानून के रूप में पारित किया गया, उस समय पढ़े थे कि नये कानून के तहत एनआइए अब किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर आतंकवादी घोषित कर सकती है। लेकिन उस समय तक इतना गहराई समझ में नहीं आया था। जब फा0 स्टेन की गिरफतारी हुई, तब इस कानून की असलियत समझ मे आयी।
1995 में मैं सक्रिया रूप से सामाजिक काम में, या जल, जंगल, जमीन, पर्यावरण की रक्षा में सक्रिया जनआंदोलनों से जुड़ी। 1995 में पूरे विश्व में जीत का परचम लहराने वाले, विस्थापन के विरोध में लड़ी गयी लड़ाई, जो कोइलकारो जनसंगठन ने 710 मेगावट की क्षमता वाले कोयलकारो हाईडल पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ लड़ा था। इस जनआंदोलन में शामिल होकर, अपने धरोहर को रक्षा के लिए जनशक्ति की गांेलबंदी के मूलमंत्र को सीखने-समझने का मौका मिला। जो पूरी तरह परंपरगात सामूहिक नेतृत्व पर लड़ी गयी। जिसका अध्याक्ष पड़हा राजा पौलुस गुडिया थे। साथ ही पलामू-गुमला में पर्यावरण की रक्षा एवं विस्थापन के खिलाफ 245 गांवों के आदिवासी, मूलवासी, किसान, दलित, मेहनतकश, शोषित, बंचितों के सामूहिक जनतंत्रिक शक्ति को समझने का मौका मिला। जिस सामूहिक शक्ति ने तत्कालीन बिहार सरकार और केंन्द्र की सरकार के 245 गांवो को उजाड़ने वाली विकास नीति को रोकने का काम किया।
1995 के बाद 2020 तक राज्य के साथ देश भर के जनआंदोलन जो पर्यावरण की रक्षा, विस्थापन करने वाली नीतियों के खिलाफ संघर्ष, आदिवासी, मूलवासी, किसानो, दलितो, महिलाओं, अल्पसंख्याकों, मेहनतकश वर्गो के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए संषर्धरत आंदोलनों को देखने-सुनने-समझने का मौका मिला। इस दौरान झारखंड के आदिवासियों के, जल, जंगल, जमीन, समाज, भाषा, संस्कृति की रक्षा के लिए 1908 में बने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1949 में बने संताल परगाना काश्तकारी अधिनियम, 1947 के बाद बने पांचवी अनूसूची तथा छटवी अनूसूची के प्रावधानों, पेसा कानून-1996, नारेगा कानून 2006, वन अधिकार कानून 2006, राईट टू इनफोरमेशन कानून-2006, जमीन अधिग्रहण कानून-1894, जमीन अधिग्रहण कानून-2013, समता जजमेंन्ट सहित दर्जनों संविधान प्रादत कानूनों को पढ़ने और समझने की कोशिश किये। साथ ही दर्जनों जनआंदोलनों में शामिल होने को मौका भी मिला। कई आंदोलनों का नेतृत्व संभालने का मौका मिला, जीत भी हाशिल हुई। कई बार सरकारी काम में बाधा डालने, नजायज मजमा, भीड़ जमा करने का मामला भी हमारे उपर दर्ज हुआ। कई वर्षो तक केस लड़े, बेल मिला, इस दौरान कोर्ट की प्रक्रियाओं को भी देखने समझने का मौका मिला। इस उतार-चढ़ा से न्यायालय पर मेरा विश्वास और भरोसा और मजबूत हुआ है। मैने महसूस किया है-न्यायालय सिर्फ आरोप लगाने वाली की ही नहीं सूनता, लेकिन जिन पर आरोप लगाया जाता है-उनकी भी न्याय करता है।
देशप्रेम, लाकतंत्र और देश की गारिमा आखिर क्या है? मैं सोचते रहती हुं-गांव -समाज की रक्षा करना, जंगल, जमीन, पानी, नदी-नाला की रक्षा करना क्या देशप्रेम नहीं है? यह सवाल मेरे मन में हमेशा उठते रहता है। पहले भारत का संविधान की उद्वेशिका को सिर्फ 26 जनवरी गणतंत्र दिवस और 15 अगस्त स्वतंत्र दिवस के दिन पढ़ा जाता था, लेकिन अब हर कमद म नही मन दुहराते हैं-हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथ-रिपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों कोः सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गारिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुत्व बढ़ाने के लिए बच्चनबद्व हैं, यह भाव भीतर से उद्वेलित करता है। शायद इसलिए एैसा महसूस होता है क्योंकि आज जल, जंगल, जमीन, पहाड, नदी, झील-झरनों और मानवता को प्रेम करने वाले, अन्याय के खिलाफ मुंह खोलने वाले, लिखने वाले, दबे-कुचले, शोषित-बंचितों के न्याय का वकालत करने वाले आज देश द्रोही, आतंकवादी माने जाते हैं।
आज लोेकतत्र का मतलब क्या है?
शायद लोकतंत्र का अर्थ है सब की वात को सुनना और यहां तक कि परस्पर विरोधी विचारों को भी सुनना ही लोकतत्र है। यही बाबा साहब और गाधीं जी बोले हैं-लोकतन्त्र मंे आखरी आदमी के आख से आसू पोछना है। जनता की आवाज बनना लोकतत्र को सशक्त करना होता है और ये मैने अपने जीवन में कर के देखा जंल जंगल जमीन और पर्यावरण की रक्षा की लडाई को लडते हुए। नेतरहाट फिल्डफायरिंग रेंज, कोयल कारो जलविद्यत परियोजना, यूरेनियम रेडियेशन और विस्थापन को लेकर जादुगोडा का संर्धष इसका जिता जगाता उदाहरण है। लोहीया कहते थे सडके सुनी होगी तो संसद बेलगाम हो जायेगी। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के लोकतंत्र और असंतोष विषय पर नई दिल्ली में आयोजित व्याख्यान में एक माननीय जज साहब ने कहा-असाहमति की आवाज को देश विरोधी या लोकतंत्र विरोधी करार देना संवैधानिक मूल्यों पर चोट है। अगर आप अलग राय रखते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि आप देशद्रोही हैं या राष्ट्र के प्रति सम्मान भाव नहीं रखते।
2014 के पहले हमले कभी नहीं सुना था-देशद्रोह शब्द
2014 के पहले हमने कभी नहीं सुना था, या देखा भी नहीं था कि, किसी सामाजिक कार्याकर्ता, या मानव अधिकार कार्यकर्ता को, या जनआंदोलन मे शामिल कार्याकर्ताओं पर देशद्रोह, शहरी नक्सली या आंतकवादी का मामला दर्ज हुआ हो। 2016 के बाद झारखंड लगातार तत्कालीन रघुवर सरकार द्वारा कई आंदोलनों में शामिल नेताओं को राष्ट्रविरोधी, देशद्रोही और शहरी नाक्सली आदि शब्दों से संबोधित करने की खबरे अखबारों में प्रकाशित होते रहे। 2016 में तत्कालीन रघुवर सरकार ने सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट में संशोधन प्रस्ताव लाया था। इसका कड़ा विरोध राज्य भर में हुआ। झारखंडी जनता को सफलता भी मिली। इसी दौरान राज्य सरकार विश्व के कई देशों में झारखंड में पूंजीपितयों को निवेश के लिए आमंत्रित करने के लिए राज्य का करोड़ों धन राशि खर्ज कर विदेशों में रोड़शो का आयोजन किया।
देश की जनता को हजारों करोड़ रूपया लेकर भागने वाला और उनको भागने में साथ देने वाले पर क्या देशद्रोह का मामल बनता है या नहीं?। दूसरी तरफ भूतपूर्व कोयला मंत्री को कोयला आबंटन में घोटाला के लिये तीन साल की सजा हुई, लेकिन जिन गांवों के नदी, नाला, खेत-जंगल, पर्यावरण सहित हजारों -लाखों आदिवासियों की जिंदगी देश भक्ति के नाम पर उजाड़ फेंका गया, इनको कौन सा संज्ञा दिया जाएगा?
विदेशों में रोड़ शो का आयोजन के बाद राज्य सरकार ने राज्य में 16-17 फरवारी क 2017 को पहला मोमेंटम झारखंड का आयोजन किया। जिसमें खबर के अनुसार 11000 विदेशी मेहमान शामिल हुए। इस आयोजन के दौरान सरकार ने 250 कंपनियों के साथ एमओयू साईन किया। इस तरह से सरकार ने 4 मोमेंटम झारखंड किया था। सभी देशी-विदेशी कंपनियों से सरकार ने बिना किसी दिक्कत के, बिना देर किये, जहां निवेशक जमीन चाहेगें, सरकार जमीन उपलब्ध करायेगी। इसके लिए सरकार ने किसानों, जमीन मालिकों, आदिवासी समुदाय से बिना किसी तरह के चर्चा के उनके गांवों के जमीन से भूमि बैंक तैयार कर पूंजिपतियों के सामने रखा। रघुवर सरकार ने पूजिंपतियों के सामने एलान किया, सरकार आप के लिए 21 लाख एकड़ जमीन भूमि बैंक बनायी है। इसके लिए सिंगल विंण्डों सिस्टम भी तैयार किया।
दूसरी ओर गांव के किसानों में दहशत फैलने लगा कि इतने सारे कंपनियों को सरकार किसकी जमीन देगी? कहां की जमीन को देगी? निश्चित तौर पर हमारी जमीन ही, जबरन हमसे छीन के पूंजिपतियों को देगी। इससे रोकने के लिए खूंटी जिला के आदिवासियों ने अपने परंपरा और इतिहास को याद करते हुए गांवों में पांचवी अनूसूची क्षेत्र के प्रावधानों का शिलालेख हर गांव में गाडने का अभियान चलाया। लेकिन सरकार इसको लेकर तरह तरह की भा्रंतियां फैलाते हुए , ग्रामीणों पर देशद्रोह, का फर्जी मामल दर्ज करवाया। कई दर्जन गांव के ग्राम प्रधानों को जेल में डाला। अल्पसंख्यक समुदाय को राष्ट्रद्रोह करार दिया गया। रांची शहर के 20 सामाजिक कार्यकताओं, जिसमें पत्रकार, लेखक, बुद्विजीवि, मानव अधिकार कार्याकर्ता हैं, पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया। इसमें फा0 स्टेन स्वामी को भी शामिल किया गया।
कोयल कारो आंदोलन के मोजेस, राजा पौेलूस गुडिया, सेामा मुंडा, आलफ्रेड आईद, नेतरहाट आदोलन के अन्थोनी लकडा, हेनरी तिक्र्री हो या जादुगोडा के चरण मुर्मू ने जनता की अवाज को नेतृत्व किया और अन्याय व पीड़ा कोे समाज के सामने रखा। पर वहीं छत्तिसगढ का एक मोडल रहा जहां सोनी सोरी जैसे कार्यकताओ को नक्सली बता कर सारे जनआदोलन को दबाने की क्रू्रुरतम कार्यवाही की गयी । लेकिन बिरसा मुंडा की धरती पर ये मोडल उस तरीके से नही चल पाया ।
झारखंड मे भी वही दमन चक्र चलाया गया, पर झारखंडी जनता सजग रही अब नये खनिज के दोहन के लूट पर होने वाले विरोध के बैचारिक आधार को चुप करने के लिये स्टेन दा का चुनाव किया गया । झारखंड देश को 40 से 50 प्रतिशत खनिज का रोयल्टी देता है, लेकिन विडंम्बना है यहां की जनता सबसे गरीब है। विस्थापितों की सूधी लेना तो भूल जाइये, राज्य सरकार को आज मोदी सरकार रोयल्टी तक नहीं दे रही है। पिछले तीन वर्षों से राज्य में भूख से होने वाली मौतों की संख्या बढ गयी है। 2017-19 के बीच करीब 24 लोगों की भूख से मौत हो चुकी है।
स्टेन स्वामी जी लेखन के साथ मैदान में भी सवाल उठाते रहे
फा0 स्टेन स्वामी झारखंड में तीस वर्षो से आदिवासी, मूलवासी, दलित, किसानों के बीच जल, जंगल, जमीन, पर्यावरण की रक्षा तथा उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए काम करते रहे। सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून और पांचवी अनुसूचि में प्रावधान अधिकारों को लेकर लोगों को जागृत करते रहे। इन कानूनों का सरकार की नीतियों द्वारा हनन होने पर सवाल भी उठाते रहे। रघुवर सरकार द्वारा पूंजिपतियों के लिए तैयार भूमि बैक पर भी स्टेन स्वामी ने सवाल उठाये, कि पांचवी अनूसूचि क्षेत्र में ग्राम सभा के अधिकार और रैयतों के अधिकारों को खारीज करके सरकार ने मनमाने तरीके से भूमि बैक बनाया है, या पेसा कानून का भी हनन है इस पर स्टेन जी की तीखी कलम चहते रहती थी।
केंन्द्र की मोदी सरकार ने कोविड महामारी के बीच देश के 41 कोयला खदानों की नीलामी की थी। जिसमें झारखंड के 9 कोयला खदान, छतीसगढ के 9, आडिसा के 9 और मध्य प्रदेश के 11 हैं। स्टेन जी ने सवाल उठाया कि इसमें अधिकांश कोयला खदान आदिवासी बहुल इलाकों में हैं इस तरह की नीलामी से रैयतों को क्या मिलेगा। इसे केवल उनके अधिकार ही छीने जाऐगें। इस मुददे पर सवाल के साथ इन्हेंने अपनी रिपोट में सरकार को सलहा भी दिये कि राज्य का कर्तव्य बन जाता है कि वह सहकारी संस्थाओं के निर्माण और पंजीकरण में सहायता करे और प्रारंभिम संसाधन जैसे आवश्यक पूंजी, तकनीकी विशेषज्ञता, पं्रबंधन कौशल, विपणन मार्ग आदि मुहैया कराये, ताकि वे बाधा रहित काम कर सकें और पूरे समुदाय लाभ उठा सके, जहां चाह है, वहां राह है।
राज्य बनने के 12 साल बाद इन्होंने झारखंड के विकास एवं विस्थापन पर एक विस्तृत अध्ययन के साथ विभिन्न परियोजनाओं से आज तक हुए विस्थापित आंकड़ो का एक बड़ा कैलैंडर इन्होने छपवाये थे, जो बहुत सारी जानकारी देता था। बगैइचा संस्थान परिसर का सभी जगह तरह तरह की जानकारियांे से लैस करता है। 2006 में केंन्द्र सरकार द्वारा लाया राईट टू इंनफोरमेशन एक्ट 2006, वन कानून 2006, भोजन के अधिकार कानून, केंन्द्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की सूची, पलायन और ट्राफिकिंग रोकने की अपील जैसे कई जानकारियां मिलती हैं दिवारों में लगे पोस्टरों और आर्टस से।
बहुत दिन हो गया, एक प्रोग्राम में पहली बार मैं फादर को देखी तो मेरा नजर उन पर टिका रहा।
प्रोग्राम का लांच बे्रक का समय था। मैं साथियों से खाने में व्यस्त थी। तीन-चार टेबल दहिनी ओर फादर के साथ और लोग बैठकर खा रहे थे। स्टेन जी का दहिना हाथ थाली के उपर कांपत-कांपतेे इधर-उधर हो रहा था। कुछ छणों बाद हाथ भात के थाली में रखे और कांपते हाथ से अंगुलियों से भात को समेटने का कोशिश करने लगे। भात उठाकर सीधे मुंह तक ले जाने में कठिनाई हो रही थी। मेरी नजर वहीं टिका रहा। उन्होंने ने दोनों हाथ से पानी का ग्लास को कस कर पकड़ा और पीने के लिए उपर उठाने लगे, लेकिन पानी का ग्लास मुंह तक लेजाने में दिक्कत हो रही थी, हाथ कांपते-कांपते इधर-उधर हो रहा था। मैं इस क्षण को नहीं भूल सकती हुं।
उनके रांची आने के बाद करीब-करीब सभी कार्याक्रमों में फादर स्टेन जी से मुलाकात होने लगी। मैं उन्हे फादर कह कर संबोधित करती-तो वे कहते, दयामनी मैं तुम्हारे लिए फादर नहीं हुं, मैं तुम्हारा बड़ा भाई हुं, तुम मुझको दादा पुकारो। जब भी मुलाकात होती, मैं उनकी बात याद कर-दादा से ही संबोधित करती हुं। जब कभी छोटी बैठक बुलाने का हुआ, हमलोग पैसे देकर बैठक स्थल बुक नहीं कर सकते, तब सीघे दादा को बोलते, हम लोगों को फलां तिथि को 10-20 लोगों के बैठने के लिए जगह चाहिए, अगर पहले से बुक नहीं हुआ हो, तो दादा कभी ना नहीं बोले। हां बोलते थे-ठीक है जगह मिल जाएगा, लेकिन खाना नहीं खिला पाऐगें। हम लोग स्वंय आपस में चंदा एकत्र कर केनटीन में 30 रू0 में खिचड़ी खा लेते थे।
नामकोम क्षेत्र के बच्चों को नौकरी के लिए कम्पीटीसन की तैयारी के लिए लाईब्रेरी एवं पढ़ने के लिए जगह दे रखी है। जहां बच्चे आकर कम्पीटीसन की तैयारी करते हैं। बगैइचा परिसर झारखंड के जल, जंगल, जमीन, भाषा-सांस्कृति के इतिहास एवं संघर्ष का अहसास दिलाता है। यहां साल के दर्जनों नन्हें पौधों को सिंच कर बड़ा किया गया, आज यहां साल जंगल का दृश्य मिलेगा। साथ ही अंग्रेजों के खिलाफ भारत की स्वतंत्रता संग्राम के नायक वीर बिरसा मुंडा के उलगुलान का प्रतिक डोम्बारी बुरू पर हाथ में तीर-धनुष और मशाल लिए बिरसा की प्रतिमा आदिवासियों के संर्घष का याद दिलाता है। परिसर के बीच गांव सभा, ग्राम सभा की बैठकों और विभिन्न अवसरों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए परंपरागत अखडा भी बनाया गया है। अखड़ा के पीछे झारखंड की अमर शहीदों के नामों का बड़ा शिलालेख है। जिसमें राज्य के जंगल, जमीन, भाषा-सांस्कृति की रक्षा के संघर्ष में हुए शहीदों के नाम दर्ज किये जाते हैं।
परिसर में कई पपिता फलों से लदे पेड़, अमरूद, कटहल, जामुन पेड़, नींबू, नेंवा, , डाहू पेड़, अरहर, आलू, धन मिर्चा, तुलसी के खेत, कुंदरी और अदरक आदि की खेती राज्य के खेती-किसानी को विकसित करने को प्रेरित करता है। राज्य में 245 गांवों को विस्थापित होने से बचाने का संघर्ष कोइलकारो जनसंगठन ने जीत हाशिल किया है। प्रत्येक वर्ष 5 जुलाई को संकल्प दिवस और 2 फरवरी को शहादत दिवस कोइलकारो जनसंगठन मनाता है। इन दोनों कार्यक्रमों में स्टेन स्वामीजी प्रत्येक वर्ष जाते हैं। तपकारा जाने के लिए स्टेन जी हमेशा मिनीडोर-ओटो बुक करते थे, और फोन करके पूछते थे, अगर किसी को मेरे साथ जाना है तो, ओटो में जगह है। जबकि हमलोग दूसरी गाड़ी टाटा सूमो आदि बुक कर जाते हैं, सच बात है कि अब हमलोगों की मानसिकता बदल चुकी है।
राज्य में करीब 3000 निर्दोष आदिवासियों को विभिन्न अरोप लगा कर जेल में वर्षों से बंद रखा गया है। स्टेन स्वामी हमेशा इन निर्दोषों को रिहा करने की मांग को लेकर अपनी लेखन के साथ कार्यक्रमों में सवाल उठाते रहे हैं। यहां विशेष ध्यान देने की जरूरत है कि-एक तरफ राज्य की रघुवर सरकार खूंटी क्षेत्र के आदिवासियों पर तरह-तरह के अरोप लगा कर उन्हें परेशान किया, जेल में भेज दिया। दूसरी ओर 2019 में राज्य में आयी महागठबंधन की सरकार ने 29 दिसंबर 2019 को घोषणा किया कि पत्थलगाड़ी आंदोलन के सभी फर्जी केस वापिस किये जाऐगें। इसको लेकर भाजपा विरोध भी किया-कहा कि हेमंत सरकार अरोपियों को बचाने का काम कर रही है। हेमंत सरकार के आदेश के साथ ही राज्य के मुख्य सचिव ने जिला के उपायुक्त को कारईवाई करने के लिए पत्र भी लिखा। कुल 30 केसों में से 16 केसों को वापस लेने की अनुशांसा भी कर दी गयी, बाकी पर समीक्षा चल रहा है।
स्टेन स्वामी सहित देश के 16 सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं की Giraftari देश के आंदोलनरत जनसंगठनों, उनसे जुड़े नेताओं को भयभीत कर जनआंदोलनों को कमजोर करने की केंन्द्र सरकार की कोशिश है। स्टेन स्वामी को आतांकवादी घोषित करना एवं उनकी गिरफतारी करना इसी का एक कड़ी है।
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