Friday, October 23, 2020

वो बारूद की गाड़ी

 


वो बारूद की गाड़ी


मेरा अरहरा गंाव से शहर आयी थी। आठवीं क्लास पास कर नवीं क्लास में दाखिला ली, संत माग्रेटस 

बालिका उच्च विद्यालय में। गांव में हर साल करम त्योहार के दिन अपने परिवार के तरफ से मैं ही करम राजा के लिए रोटी-दातून, तेल, धूप और सिंदूर चढाती थी। कारण की मां तो जब मैं चैथा क्लास में पढ़ रही थी, तभी घर से रांची शहर आकर आया का काम करने लगी थी। मां के जगह मैं करमा का सेवा करती थी। रात भर मंदर की थाप पर पूरा गांव करमा गीत के साथ अखाड़ा में सराबोर रहता था। सबके घर में दूर-दराज के कुटूम आते थे। 

गांव में 15 दिनों से करम परब की तैयारी चलती थी। उपसिन 15 दिन पहले ही उपवास कर गंगाई, मकई, धान, गेंहूं का जावा उठाती थी। हर दो तीन दिन में हल्दी पानी  देती थी। ताकि जावा तंदूरस्त रहे। रात को रोज पूरा गांव अखाड़ा में नाचता गाता था। शहर का वातावरण मेरे लिए बिलकूल नया था। गांव से बिलकूल अलग।

अक्टोबर माह था। मैं नावीं क्लास में पढ रही थी, स्कूल में नवाही परीक्षा चल रहा था। जिस दिन हमारी परीक्षा समाप्त हुई, उसी दिन रात को मेरा गांव अरहरा में करम का त्योहार था। स्कूल से परीक्षा लिखकर घर लौटे और शाम को बड़ा भाई सुशील को गांव करम परब मनाने गांव जाने की जिद की। हम दोनों गांव के लिए निकले। हम दोनों रांची से खूंटी तक एक टेकर से गये। खूंटी में पता चला कि अब सिमडेगा रूट में गाड़ी नहीं मिलेगा। सब गाड़ी निकल चुका है। फिर भी हम दोनों बहुत देर तक गाड़ी के इंतजार में रोड़ पर खड़े रहे, अगर कोई गाड़ी पोकला तरफ जाने वाला मिल जाएगा तो, उसमें बात कर के निकल जाएंगें। अब अंधेरा होने लगा था। 

थोड़ी दूर तक हम दोनों पैदल गये। सूरज का प्रकाश अंधकार में बदल चुका था। हमदोनों पिछे मुंड मुंडकर रोड़ की ओर देखते जा रहे थे कि कोई तो नहीं आ रहा है। एक घंण्टा चलने के बाद पिछे से गाड़ी का लाईट दिखाई दिया। हमदोनों खुश होने लगे कि-चलो एक गाड़ी ता आ रहा है। 

गाड़ी पास पहुंचने वाला था, तभी हमलोगों ने रूक कर गाड़ी को हाथ देकर रोकने के लिए कहा। गाड़ी रूकी। वो एक ट्रक था। बारूद वाला ट्रक। चारों तरफ से बंद था, उस पर आदमी का कंकालनुमा चित्र बना था, लिखा था-अंग्रेजी में -क्।छळम्त्ं। डाइ्रवर पूछा-कहां जाना है? हम दोनों बोले पोकला। हम दोनों बोलेे-हमदानों को पोकला जाना है, गाड़ी नहीं मिल रही है, आप लेते जाइए, हमदोनों भाड़ा ही देगें। 

पहले गाड़ी वाला बोला-कैसे ले जाएंगा, जगह भी नहीं है। फिर तुरंत ही बोला-ठीक है चलो, बैठो। हम दोनों गाड़ी पर चढें, ड्राईवर के पास ही। सुसील दादा दरवाजा के बगल में, और मैं ड्र्राइवर के ठीक पीछे वाले सीट पर। ड्राइवर के बगल में खलासी स्टुल पर बैठा था। हमदोनों चुपचाप बैठे थे। ड्राइवर और खलासी भी कभी कभार आपस में बात कर लेते थे, ज्यादा समय चुप ही रहे। हम दोनों के पैर के नीचे दो बड़ा-बड़ा पत्थर और  साथ में बड़ा बड़ा तीन-चार तलवार रखा हुआ था। हम दोनों उन दोनों चुपचाप इन चिजों को निहारते रहे। जिज्ञसा हुई तोे पूछे-इसको यहां क्यों रखे हैं? दानों ने जवाब दिया-हम लोग रात को सफर करते हैं, बदमाशा सब मिलते हैं-तब इसका प्रयोग करते हैं। 

करीब 12 बजे रात को गाड़ी किसी लाईन होटल में जा कर रूकी। चालक उतरे हुए बोला, हमदोनों खाना खा लेते हैं, चलो तुम दोनों भी खा लो। हमदोनों बोले-भूख नहीं लगी है। थोडी देर के बाद हमदोनों घर पहुंच जाएंगे। खलासी और चालक दोनों गाड़ी से उतर गये। करीब एक-डेढ घंण्टे के बाद एक आदमी हम दोनों को खाने के लिए बुलाने आया। हम दोनों नहीं खाने की बात बोल कर गाड़ी में ही बैठे रहे। कुछ देर बाद एक आदमी दो प्लेट लेकर आया। उसमें रोटी और मुर्गा मांस था। हम दोनों फिर से नहीं खाने की बात बोल कर प्लेट नहीं लिए। इसके करीब एक घंण्टा बाद दोनों वापस गाड़ी पर आये। 

चालक आधेड उम्र का था। खलासी जवान था। चालक गाड़ी को होटल से थोड़ा दूर लेकर अचानक रोकते हुए खलासी से बोला-लो अब तुम गाड़ी चलाओ, हमसे नहीं होगा। गाड़ी रूक गयी। खलासी चालक के ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। चालक मेरे बगल में आकर बैठा। खलासी गाड़ी चलाने लगा। चालक अभी तक उनको नशा आ चुका था, मेरे शरीर के उपर हाथ फेरने लगा। हम दोनों उनकी नीयत समझते, तब तक चालक सुशील से बोला-अब तुम अपनी बहन को मेरे हवाले कर दो कहते हुए खलासी को गाड़ी रोकवाया। बोला अब गाड़ी यहां से आगे नहीं बढेगी। 

यह सुनते हमदोनों के रोंगटे ,खड़े हो गये। दादा दरवाजा से सट कर बैठा था। उसके दहिने ओर अंदर तरफं मै बैठी थीं। मेरे दहिने बगल में चालक आकर बैठ गया था। दादा बोले-दोलारे डेगावेलांग( चलो गाड़ी से छलागं लगाकर उतरेगें)। मेरे बगल में चालक बैठा था। दादा के दिमाग में आया अगर हम पहले उतरते हैं-तो ये बहन को पकड कर रख लेगें, यह सोचते दादा बोले-चलो तुम पहले उतरो कहते हुए-वह मेरी तरफ सरक गया, और मैं दरवाजा की तरफ सरकते हुए दरवाजा से बाहर छालांग लगा दी। 

अंधकार था। रास्ता ठीक से दिख भी नहीं रहा था। हम दोनों रोड़ रोड़ सीधे भागने लगे। आगे आगे दादा भाग रहा था, पीछे पीछे मैं। थोडी दूर भगने पर मुझे लगा-हमदोनों रोड़ रोड़ भागेंगें तो-गाड़ी से दौड़ा कर हमदोनों को पकड़ लेगें। मन में यह आते ही मैं दादा को आवाज दी-रोड़ रे कलंग निरा-जोम पड लोयोंग रे अडगुनमें। ( रोड़ पर नहीं भागेगें-दहिनी ओर खेत में उतर जाओ)। हम दोनों रोड़ के दहिनी ओर धान के खेत में छलांग लगा दिये। अब तक उन लोगों गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ने लगे, गाड़ी की रोशनी फैलने लगी। मन में डर होने लगा कि, हम दोनों को पकड़ ना ले।  गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। 

खेत रोड़ से सटा हुआ है लेकिन रोड़ से बहुत नीचे है। मैं धान के खेत में छलांग तो लगायी, लेकिन मेरा सिर नीचे पानी में और पैर उपर खेत के आड़ सहारे उपर रह गया। मेरा सिर खेत के माटी-पानी में छाती तक डुब गया। लेकिन दिमाग चल रहा था। सोचने लगी, गाड़ी पीछे से आ रही है-मेरा पैर मेंड़ पर अटका है-वो देख लेगें। यह सोचते धान के पैधों के सहारे मैं अपने को सीधा करने की कोशिश की और धान खेत में खड़ी हो गयी। धान का पैधा मुझ से बहुत उपर था। धान खेत में छाप-छाप करते मैं आगे बढ़ते गयी और रोड़ से दूर खेत के दूसरे मेंड़ पर आ गयी। दो-तीन खेत पार करते गयी ।तब दादा का आवाज आया-कोतेरेमा रे..,? तुम किधर हो  ....?

मैं जवाब दी-इधर हुं। तक दोनों एक खेत के आड़ में आकर मिले। धान खेत में बहुत पानी था। खेतों के मेंड़ पर कई जगह डोभा था, पानी बहने की तेज आवाज आ रही थी।  , जहां से पानी की धारा हाद-हाद हाद करते, छींटा मारते बह रहा था। हमदोनों एक टांड पर निकले। टांड रोड़ से दूर था। मेरा एक पैर का चप्पल धान खेत के माटी में घुस गया भागने के समय। एक ही पैर में चप्पल रह गया था। उस चप्पल को हाथ में लेकर घांस के टांड से आगे निकलेे। तब तक आसमान में चांद निकल आया। चांद की रोशनी इतना साफ था कि-खेत का छोटा छोटा आड़ भी आसानी से दिखने लगा था। 

हमदोनों किस जगह हैं, अब किस दिशा में जाना है, किधर से जाना है-कुछ भी पता नहीं था। थोड़ी देर टांड-टांड चलते रहे। फैले हुए टांड में एक बड़ा सा पेड़ दिख रहा था।  सामने उतर दिशा में बगिचा जैसा पेंड़ा का छुण्ड दिखाई दे रहा था। हमदोनों अनुमान लगा रहे थे-जरूर वहां कोई गांव होगा। इसी उम्मीद में हमदोनों उस ओर जाने लगे। बगिचानुमा पेड़ों के छुंण्ड के पहले एक छोटा नाला मिला। हम दोनों नाला पार करने के लिए उतरे नाला में उतरे। नाला में घुटना था। पानी से पार निकल कर नाला के बड़ा ढ़लान-धसना पर चढ़ने लगे। धसना -ढ़लान  उचां था। वहां लाल गंुडगुड माटी था। धसना पर चढते समय बार बार मैं पिछल कर नीचे गिर जा रही थी, गुडगुड कंकड....से फिसल फिसल जा रही थी। धसना में कांसी का पैधा था......मैं कांसी पैधा का सहारा से उपर चढने की कोशिश में थी। कांसी पैधा के धारदार पत्ता से हाथ कट-कट जा रहा था। बहुत मेहनत के बाद उपर हम दोनों चढ़ पायंे। 

हम दोनों रोड़ की ओर सिर घुमा-घुमा कर बार बार देखते जा रहे थै। एक गाड़ी कमडारा की ओर से रोड़ में बहुत धीमे धीमे आ रही है। हम दोनो आपस में बात करने लगे, शायद वही गाड़ी वाले हम दोनों को ढूढने के लिए वापस आ रहे है। लेकिन अब हम दोनों रोड़ से बहुत दूर थे। हम दोनों चांद की रोशनी में आगे बढ़ते गये। आगे आम का बड़ा बगिचा था। वहां घर का तो कोई पता नहीं चला। अब पेड़ो का घना कतार मिलने लगा। इसे उम्मीद जाग रही थी कि गांव पास में होगा। थोड़ी देर चलने के बाद हम दोनों एक जगह पहुंचे-जहां बाजार में लगाने वालों दुकानों का छपरी-छपर था। यहां से थोडी दूर में एक दो घरनुमा दिखाई देने लगा था। 20-30 कदम आगे बढे, तब आम का पेड देखकर पहचान गये-हमदोनों पोकला गांव पहुंचे हैं। अब गांव के एक-दो कुत्तों के भौंकने की आवाज भी आ रही थीं 

अब हमदोनों के  जान में जान आ गयी थी। हमदोनों पोकला गांव में थे तभी मुर्गा बांग दे रहे थे। हमदोनों आपस में फूस फूस बात कर रहे थे-यह पहली मुर्गी बोली है यह दूसरी। शायद पहली होगी-चलो अब डर नहीं लगेगा। हमदोनों पोकला रेल स्टेशन होते हुए रेललाईन लाईन सोनमेर होते हुए अरहरा गांव की ओर बढे। सोनमेर गांव के पास से ही अरहरा में करम अखड़ा का मंदर की गुंज सुनाई देने लगा। हमदोनों कोटबो गडहा तक पहुंचे-अब तो मंदर और गीत की गुंज और तेज हो गयी है। 

हमदोनों करीब चार बजे गांव पहुंचे। करम अखड़ा में लोग गीत के साथ झुम रहे थे। हमदोनों घर पहुचें। हमदोनों के घर पहुंचने की खबर पा कर अखड़ा से जोलेन दादा भी अपने साथियों के साथ घर आया। बिजय दादा भी घर से बाहर निकला था, वो भी घर आ गया। इसके बाद सभी भाई बहन मिलकर करम नाचने अखड़ा चले गये। सुबह बड़ी मां, और गांव भाभी, चाची, बहन सब अपने घर से करम के लिए लोटा में पानी, दतवन, तेल, सिंदूर और पीठा-धान की रोटी ला रहे थे, मैं भी लेकर करम को लोटा पानी दी।  रात की घटना के बारे दूसरे दिन हमदोनों ने घर-बाहर सबको बता दिये। तब घटनास्थल का पता चला-वो जगह टुरूंडू है वहां रोड़ के उस पार एक बड़ा तलाब है रोड़ के बाईं ओर, इसी तलाब के नीचे वाले खेत में छलांग लगाये थे। 

सच्ची घटना-जब मैं नौवीं क्लास में थी। प्रत्येक वर्ष करम के दिन मुझको याद आता है, वो चांद की रोशनी में तय करते कदम....

दयामनी बरला 

23 अक्टोबर 2020

1 comment:

  1. जितना आप के बारे में जानता जाता  हूँ आदर से मन भर जाता है 

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