2011 की जनगणना के अनुसार देश की आबादी का 8.6 प्रतिशत देश में आदिवासी जनसंख्या है। जो लगभग ग्यारह करोड़ है। पहले देश के आदिवासी समुदाय को जनगणना के विभिन्न धर्म कोड के तहत गनणना किया जाता था। वर्ष 1871, 1881, 1891 के जनगणना में आदिवासी समुदाय को अबोरिजनल काॅलम रख कर गणना किया गया था। 1901, 1911 और 1921 में इन्हें एनिमिस्ट काॅलम में दर्ज किया गया। 1931 और 1941 में ट्राइबल रिलिजन काॅलम में दर्ज किया था। 1951 में शिडयूल ट्राइबस काॅलम में रखा गया। लेकिन 1961 के जनगणना में हिंन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौध, जैन और अन्य काॅलम रखा गया। इस तरह से आदिवासी समुदाय के पहचान को खत्म कर दिया गया, इस तरह तब से आदिवासी समुदाय को मजबूरन अन्य या दूसरे धर्म कोड में शामिल करना पड़ रहा है।
झारखंड में आदिवासी आबादी
2011 के जनगणना के अनुसार झारखंड की कुल आबादी 3 करोड़, 29 लाख, 88 हजार, 134(3,29,88,134) है। इसमें आदिवासियों की संख्या 86,45,042 है। जिसमें ईसाई लिखने वाले आदिवासियों की संख्या 14,18,608 लाख और सरना लिखने वाले 42,35,786 हैं। अगर दोनों को मिला दिया जाए, तो ईसाई औ सरना आदिवासियों की कुल संख्या 56,54,394 है। इसे कुल संख्या से घटा दिया जाए, तो 30,09,256 लाख कहां गए, या तो इन्हे हिंदू धर्म में दर्ज कराया या फिर अन्य में। 2011 में सरना कोड की मांग उठी, तो आदिवासियों ने जनगणना में फार्म में खुद ही सरना धर्म अंकित कर दिया था। इसलिए जनगणना रिपोर्ट में सरना धर्मावलंबियों का अंकडा 42 लाख आ सका। आदिवासियों की सही जनसंख्या का आकलन करने एवं उनके अस्तित्व को पहचान देने के लिए सरना कोड जरूरी है। इसीलिए 2001 से सरना कोड की मांग को लेकर आंदोलन तेज होता जा रहा हैं ।
Samuhita Adivsi Samaj ka phachan hai- Jal, Jangal, Jameen hi Samaj ka bhsha- Sanshkriti hai
2020 के अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के अवसर पर राज्य प्रबुद्व नागरिकों और राजनेताओं ने आदिवासी धर्म कोड की मांग के लिए एकजुट होकर आंदोलन करने का संकल्प लिया। इस अवसर पर राज्य के वितमंत्री सह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डाॅ रामेश्वर उरांव जी ने आदिवासी दिवस सम्मारोह को संबोधित करते घोषण किया कि-जल्द ही गठबंधन की सरकार विधान सभा से सरना कोड लागू करने के लिए प्रस्ताव पारित कर केंन्द्र सरकार को भेजेगी। उन्होनंे बताया कि इस संबंध में हमारी बात मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन जी से भी हो गयी है।
रघुवर दास की सरकार 2014 से 2019 तक सत्ता में रही। केंन्द्र में भी 2014 से भाजपा की सरकार रही। राज्य की रघुवर सरकार अपने कार्यकाल में कई नये कानून लेकर आये। सबसे पहले आदिवासी-मूलवासी जनविरोधी स्थानीयता नीति 2016 लाया। गो रक्षा कानून, झारखंड धर्म स्वतंत्र विधेयक 2017, जमीन अधिग्रहण संशोधन विधेयक 2017, भूमिं बैक भी बनाया। निवेशकों को झारख ड में आमंत्रित करने के लिए कई विदेशों में रोड़ शो किया। निवेशकों को झारखंड में बुलाया, इसके लिए राज्य में चार मोमेंन्टम झारखंड को आयोजन किया। लेकिन आदिवासी सामुदाय को पहचान देने के लिए विधानसभा में सरना कोड का प्रस्ताव नहीं ला सका। जब कि मुख्यमंत्री रहते हुए रघवर दास जी ने कई बार बयान भी दिया कि , सरना कोड जल्द लाया लाएगा।
इन सभी कानून को विधानसभा में बिना बहस किये, जनता से बिना विमार्श किए एक छण भर में राज्य का कानून का रूप दिया गया। तब सरना समुदाय के लिए सरना धर्म कोड क्यों नहीं लाया गया? इस साजिश का समझने की जरूरत है। जबकि राज्य के 14 संासदों में 12 संसद बीजेपी के, 4 राज्यसभा सदस्यों में 3 बीजेपी के थे, और राज्य में भी उन्हीं की सरकार थी। तब सरना कोर्ड को कानूनी रूप देने में कोई बाधा थी ही नहीं, सिर्फ इच्छा शक्ति होना चाहिए था।
झारखंड के कई कदावर आदिवासी नेता भाजपा के साथ है। श्री अर्जुन मुंडाजी केंन्द्र जनजाति मंत्री हैं, जो हमेशा आदिवासियों के अस्तित्व की बात करते रहते हैं। साथ ही श्री बाबूलाल मरांडी जी भाजपा विधायक दल के नेता हैं, आप भी भाजपा के बाहर थे, तो लगातार सरना कोड लागू कराने की बात करते थे। यदि सचमुच आदिवासी समुदाय के हितचिंतक हैं, तो गृहमंत्रालय से स्वीकृति दिलाना चाहिए। भाजपा जानती है कि यदि सरना कोड दे दिया जाए तो, उनका अंकड़ा में भारी कमी आएगी, तब सरना कोड़ दे कर अपना पैर पर कुल्हाडी नहीं मारेगा। सच्चाई है कि भाजपा सरना आदिवासियों के हितौसी बन कर सिर्फ राजनीतिक कार्ड खेलते रहना चाहती है। क्योंकि जाति और धार्मिक आंकडा पर ही सभी खेल खेला जाता है।
No comments:
Post a Comment