कोरोना महामारी के कारण देश भर में हुए लाॅकडान ने पहली बार देश के राजनीतिक ं गलियारे में चर्चा हो रही है। इन मजदुरों के महत्व, अहमियत को कभी राज्यकीय व्यवस्था और समृद्व सामुदाय ने नहीं समझ पाया । ये प्रवासी मजदूर, सिर्फ मजदूर नहीं हैं, यह हमारे राज्य और देश को सजाने-संवारने वाले कस्तकार, और राज्य के निमार्ण करने वाले मजबूत पिलर हैं। ये अपनी क्षमता-दक्षता अनुसार विभिनन क्षेत्रों में अपनी सेवायें दे रहे हैं। याद है एक गीत-जब मैं छोटी थी तो, सुनती थी-रांची शहर को कौन? कौन बनाया? सरकार नहीं बनाया, रेजा-कुली बनाया,.... सरकार नहीं बनाया...रेजा-कुली बनाया। पंजाब -हरियाणा के खेतो में दिन-रात हरियाली, सोना उपजाने वाले हमारे ही राज्य के बेटे-बेटियां, भाई-बहन हैं। जो रोटी की तलाष में प्रवासी मजदूर बन कर गये हैं। विकास के नाम पर विकसित रियलस्टेट का अर्थव्यस्था एवं व्यवसाय का रीढ हमारे ही प्रवासी भाई-बहन जो देश भर के ईंट भठों में उनके खून-पसीना से सने ईटों से रियलस्टेट की इमारातें उंची की जाती हैं। जिंन्हें निर्माण मजदूर कहा जाता हैै। देश के हर क्षेत्र में लघु उद्योग, कुटीर उद्योर, जुट मिल, कपड़ा मिल, से लेकर ईट भठा, पत्थर खदान, भवन निर्माण सहित सौंकड़ो छोटे-मझोले उद्योग, व्योपार इन्हीं मेनपावर के बदौलत देश की अर्थव्यवस्था टिका है। प्रवासी मजदूर भले ये नीति निर्धारक नहीं हो सकते, लेकिन इस राज्य और देश की तकदीर बदलने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। यदि ये अपनी सेवाएं देना बंद कर दें, तो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ ध्वस्त हो जाएगी।
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