Saturday, October 11, 2014

बस शर्त इतना ही है कि-अपने भीतर व्यप्त बेईमानी और भ्रष्ट मानसिकता को खुद धों दें

आज देश  के हर नेता, मंत्री, आॅफसर, कार्मचारी, सामाजिक कार्यकर्ता, संस्था-संगठन सभी  हाथ में झाडू लेकर कोई रोड़ पर झाड़ू लगा रहे  है, कोई अपने कार्यालय के कैम्पस में, कोई चैक-चैराहों पर तो और कहीं। सभी अपने साथ में झाड़ू लेकर समाज, राज्य और देश  को स्वच्छ बनाने का संकल्प ले रहे हैं, दूसरों को भी संकल्प दिला रहे हैं। यह बहुत ही अजीब लगता है-क्योंकि शहर-नगर, और पूरे राज्य की सफाई के लिए हर साल करोड़ो रूपया सरकार खर्च करता हे। सफाई के लिए नगर निगम करोड़ो राषि खर्च कर रहा है। इसके लिए कई एनजीओ को ठेका दिया है। सभी विभाग के सभी दफतरों में सफाई के लिए कार्मचारी पदस्थापित हैं। हर विभाग इन कार्मचारियों में हर माह रूपया खर्च कर रही है। लेकिन फिर भी न गली, महला, गांव, शहर की गांदगी को साफ नहीं कर सके।  अगर हर व्यत्कि अपना जिम्मेवारी ईमानदारी के साथ निभाए। हर कदम में व्यप्त बेईमानी और भ्रष्टाचार की गंदगी को साफ कर दे ंतो सामाज, गली, महला, गांव, शहर की गंदगी भी अपने आप साफ हो जाएगा बिना हाथ में झाड़ू उठाये। बस शर्त इतना ही है कि-अपने भीतर व्यप्त बेईमानी और भ्रष्ट मानसिकता को खुद धों दें

Friday, October 10, 2014

जिस धरती में कभी आदिवासियों ने अंग्रेज-जमींदारों के शोषण -दमन से मुक्ति के लिए बिरसा मुंडा, गया मुडा, डोका मुंडा, नरसिंग मुंडा, भरमी मुंडा, सुगना मुंडा, माकी मुंडा जैसे हजारों नायकों की अगुवाई में उलगुलान किया था। इसका गवाह चलकद, उलीहातू, डोम्बारी बुरू, सिंबुआ बुरू, साईल रकब, कोंचांग, सिंजुड़ी जैसे इतिहासिक गांव हैं। मुंडा आदिवासियों के उलगुलान ने ही राज्य में छोटानागपुर काष्तकारी कानून को बनवाया यही नहीं मुंडारी खूंटकटी अधिकार को भी स्थापित करवाया। आज इसी धरती में अपना बरचस्व स्थापित करने के लिए...एक आदिवासी अपने ही भाई-बहनों के खिलाफ हथियार उठा रहा है। आदिवासी-मूलवासी एक दूसरे के खून पी रहे हैं। गांव-गांव में आतंक है। गांव खाली होता जा रहा है। इस लडाई में अरोपी बन कर हजारों लोग जेल में बंद जिंदगी जी रहे हैं। जहारों जेल भेजे जा रहे हैं।. सबसे बड़ा सवाल है-आज जिनको गांव-समाज और राज्य में सामाजिक, आर्थिक, संस्कृतिक, राजनीतिक विकास में लीडरषीप देना था चाहे तो उनकी हत्या की जा रही है, या वो जेल की जिंदगी काट रहे हैं। इस लड़ाई में हजारों बेकसूर भी जेल में बंद हैं और बंद होते जा रहें हैं।

झारखंड अलग राज्य की मांग सिर्फ जिलों के सीमाओं से बने एक मात्र राज्य की परिकल्पना नहीं थी। परंतु यहां के आदिवासी-मूलवासी समूदाय के हमारे गांव में हमारा राज , जंगल-जमीन, नदी-पहाडों सहित अपने भाषा-संस्कृति और इतिहास पर अपना परंपारिक स्वाषसन अधिकार की मांग थी। 15 नवंबर 2000 को 18 जिलों  का झारखंड अलग राज्य बना। झारंखड के नक्से में खूंटी इलाके के मुंडा आदिवासियों के अबुआ राइज के संघर्ष का अपना इतिहास रहा है। यह वह धरती है -जब देश  अंगे्रज हुकूमत के जंजीरों से जकड़ा हुआ था, और देष आजादी के लिए छटपटा रहा था। तब 1800 के दशक में मुंडा सरदारों ने अंगे्रज हूकूमत और जमीनदारी लूट के खिलाफ जंग छेडा था। 15 नबंमर 1875 में उलीहातू में वीर बिरसा मुंडा पैदा हुआ। बड़ा हुआ, अंग्रेजों और जमींदरों के शोषण  और दमन को महसूस किया। जमीन-जंगल की लूट, बेटी-बहूओं पर हो रहे शोषण  के खिलाफ उलगुलान का हथियार थामा। उलगुलान के बिंगूल से समुचा मुंडा इलाका डोल उठाा। 9 जनवारी को अंग्रेज सैनिकों ने डोम्बारी में गोलियों की बैछावार की, इस रक्तरंजित संघर्ष में हजारों आदिवासी स्त्री-पुरूष, बच्चे और युवा डोम्बारी बुरू में शहिद हुए। उलगुलान के वीर नायक वीर बिरसा मुंडा के जयंती दिवस के दिन को राज्य का पूर्नठन किया गया-इसलिए कि झारखडं में आदिवासियों का अपना इतिहास है, जिनका संबंध जल-जंगल-जमीन, भाषा-संस्कृतिक, नदी और पहाड़ों है।  
 राज्य के ग्रामीण इलाकों का सपंूर्ण विकास के लिए राज्य पूर्नगठन के बाद कई जिले बने। इसी क्रम में बिरसा मुंडा जन्म और उलगुान की धरती खूंटी को भी 12 सितंबर 2007 को जिला के रूप में स्थापित किया गया। खूंटी जिला पूरी तरह कृर्षि प्रधान जिला है। यहां की आबादी 5,30,299 है।  जिला में अड़की प्रखंड, मूरूहू प्रंखड, रनिया प्रखंड पूरी तरह से जंगल से पटा हुआ है। इस क्षेत्र से लाखों -करोड़ों का वनोउपज हर साल बाहार जाता है। माइनर मिनिरल्स के रूप में करोड़ों के सैकड़ों पत्थर के खदान चलाये जा रहे हैं, । लाखों-करोंडो के कई दर्जन बालू घाट बाम्बे की कंपनी को बेची जा चूकी है। खूंटी, मुरूह का इलाका लाह की खेती के लिए देश  प्रसिद्व है। लेकिन दुखद बात तो यह है कि इन वनोपजों, माइनर मिनिरल्स के मारकेटिंग से जोड़ने के लिए स्थानीय समुदाय की कोई कोपरेटिब आज तक नहीं बनायी गयी। न ही कोई फूड प्रोसेशिग यूनिट खड़ी की गयी। वनसमंपदा आधारित कोई कुटीर उद्योग नहीं खड़ा किया गया। ताकि जिला का जनमुखी एवं पर्यावरणीय आधारित विकास हो।
जिला बनने के पहले और आज भी षिक्षा, स्वास्थ्य, कृर्षि, कुटीर उद्योग, के क्षेत्र में कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है। केंन्द्र की विकास योजनाएं भी जमीनाी स्तर पर कहीं दिखाई नहीं देती हैं। मनरेगा योजना सहित तमाम विकास योजनाएं सरकारी अधिकारियों, माफियाओं, ठेकेदारों का लूट का अखाडा  बन गया है। विकास के नाम पर जिला ने कितना कदम आगे बढ पाया है यह नहीं, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है, लेकिन जिला में सरकार के समान्तर चलने वाले कई उग्रवादी संगठनों का विकास और विस्तार खूब हुआ है। अपना वरचस्व कायम करने के लिए सभी संगठन अपनी ताकत का खूब विस्तार किया है। प्रषासन और विधि व्यवस्था जिला के नागरिकों को सुरक्षा देने और षांति व्यचस्था बनाये रखने दंभ भरते रही हैं जबकि हत्याओं, अपराधिक घटनाओं और उग्रवादी हिंसाओं से बिरसा मुंडा की धरती लाल होते जा रही है। कोई एैसा दिन नहीं, जिस दिन जिला के किसी गांव क्षेत्र में हत्या और कोई अपराधिक घटना न हो। जिला बने सात साल हुए। इस सात साल में जिला में जमीन विवाद, उग्रवादी हिंसा, डायन हत्या तथा अन्य घटनाओं में हजारों लोगों की हत्या हो चुकी
जिस धरती में कभी आदिवासियों ने अंग्रेज-जमींदारों के शोषण  -दमन से मुक्ति के लिए बिरसा मुंडा, गया मुडा, डोका मुंडा, नरसिंग मुंडा, भरमी मुंडा, सुगना मुंडा, माकी मुंडा जैसे हजारों नायकों की अगुवाई में उलगुलान किया था। इसका गवाह चलकद, उलीहातू, डोम्बारी बुरू, सिंबुआ बुरू, साईल रकब, कोंचांग, सिंजुड़ी जैसे इतिहासिक गांव हैं। मुंडा आदिवासियों के उलगुलान ने ही राज्य में छोटानागपुर काष्तकारी कानून को बनवाया यही नहीं मुंडारी खूंटकटी अधिकार को भी स्थापित करवाया। आज इसी धरती में अपना बरचस्व स्थापित करने के लिए...एक आदिवासी अपने ही भाई-बहनों के खिलाफ हथियार उठा रहा है। आदिवासी-मूलवासी एक दूसरे के खून पी रहे हैं। गांव-गांव में आतंक है। गांव खाली होता जा रहा है। इस लडाई में अरोपी बन कर हजारों लोग जेल में बंद जिंदगी जी रहे हैं। जहारों जेल भेजे जा रहे हैं।. सबसे बड़ा सवाल है-आज जिनको गांव-समाज और राज्य में सामाजिक, आर्थिक, संस्कृतिक, राजनीतिक विकास में लीडरषीप देना था चाहे तो उनकी हत्या की जा रही है, या वो जेल की जिंदगी काट रहे हैं। इस लड़ाई में हजारों बेकसूर भी जेल में बंद हैं और बंद होते जा रहें हैं।
हिंसा और अपराधिक घटनाओं का इतिहास देखा जाए तो राज्य बनने के बाद से लगातार बढ़ता जा रहा है। हर साल घटनाओं का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। इस इलाके की जनता नेता, मंत्री, विधायक, संसद, शासन-प्रशसन से सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर आप गांव-समाज सहित इस इलाके को  कहां जो रहे हैं?  आम जनता को भी सोचना है कि हम अपना गांव-समाज को कहां ले जा रहे हैं? किन लिए गांव खाली कर रहे हैं?
जिला बनने के बाद हुई पुलिस के अनुसार उग्रवादी हिंसा में हुइ हत्या इस तरह से है
क्ब संख्या/घटना आदिवासी-हत्या गैरआदिवासी/मूलवासी
2007 6-------            1 ---------------6
2008 4------ -   -----              ----4
2009 8--------------     7 ---------        5
2010 13 -------------14           -------3
2011 20 -------------12     -----------11
2012 37 -------------32      ----------10
2013 26 ----------    17 -------------12
2014.मई तक --10  --------2                 ----
2014-सिर्फ जून में -   15 ---------------2
नोट-इस घटना में 10 अज्ञात है
अन्य मामलों हुई हत्या
कब स्ंाख्या-घटना आदिवासी---- गैर आदिवासी अज्ञात
2007 84                   9       -----         --67
2008 61            50                  14             --5
2009 69                    35                    17        -----15
2010 66 -                  46 -                  11 -      -----18
2011 101-                    66 -                  29 -          --12
2012 89 --                 65 --                 13 -            -11
2013 75 --                  53           --12     --12
2014-मई तक 40 --          26             --4       --9

अन्य मामलों में हत्या का प्रखंडवार अंकडा
प्रखंड ----2007--- 2008 2009 -2010 -2011 -2012 -2013 -2014
तोरपा 15          ---5         --7   --6          --8          --14           --10 --6
रनिया 8           ---9         ---3  ---6          --5            --7           --11 --2
कर्रा -----21            --4       --15 --16           --19   --13   --17 --9
खंूटी 10 --          13 --14 --19            --35    --23    --16 --10
मूरहू --     26           --18 --25 --13           --21    --19    --19 --11
अड़की 5             --9 --5    --6             --13    --13       --2    --2

नोट-अज्ञात घटनाएं है जो यहां अंकित किया गया है, इसमें प्रत्येक घटना में कितने लोगों की हत्या की गयी है यह स्पस्ट नहीं किया गया है। हो सकता है किसी घटना में ण्क की हत्या हुई और किसी घटना में एक साथ दो-तीन लोगों की हत्या हुई हो।
डायन हत्या -2007-2014 मई तक-कुल 20 घटनाएं हुई, इसमें 10 लोगों के नाम के जिक्र है जबकि 10 अज्ञात हैं।
जमीन विवाद में हुइ्र हत्या-2007 से 2014 मई के बीच खूंटी थाना में सिर्फ एक, कर्रा थाना में एक तथा मुरूहू थाना क्षेत्र में की हुई।
                                         दयामनी बरला

आखिर आप गांव-समाज सहित इस इलाके को कहां जो रहे हैं?

झारखंड अलग राज्य की मांग सिर्फ जिलों के सीमाओं से बने एक मात्र राज्य की परिकल्पना नहीं थी। परंतु यहां के आदिवासी-मूलवासी समूदाय के हमारे गांव में हमारा राज , जंगल-जमीन, नदी-पहाडों सहित अपने भाषा-संस्कृति और इतिहास पर अपना परंपारिक स्वाषसन अधिकार की मांग थी। 15 नवंबर 2000 को 18 जिलों  का झारखंड अलग राज्य बना। झारंखड के नक्से में खूंटी इलाके के मुंडा आदिवासियों के अबुआ राइज के संघर्ष का अपना इतिहास रहा है। यह वह धरती है -जब दे अंगे्रज हुकूमत के जंजीरों से जकड़ा हुआ था, और देष आजादी के लिए छटपटा रहा था। तब 1800 के दशक में मुंडा सरदारों ने अंगे्रज हूकूमत और जमीनदारी लूट के खिलाफ जंग छेडा था। 15 नबंमर 1875 में उलीहातू में वीर बिरसा मुंडा पैदा हुआ। बड़ा हुआ, अंग्रेजों और जमींदरों के शोषण  और दमन को महसूस किया। जमीन-जंगल की लूट, बेटी-बहूओं पर हो रहे शोषण  के खिलाफ उलगुलान का हथियार थामा। उलगुलान के बिंगूल से समुचा मुंडा इलाका डोल उठाा। 9 जनवारी को अंग्रेज सैनिकों ने डोम्बारी में गोलियों की बैछावार की, इस रक्तरंजित संघर्ष में हजारों आदिवासी स्त्री-पुरूष, बच्चे और युवा डोम्बारी बुरू में शहीद  हुए। उलगुलान के वीर नायक वीर बिरसा मुंडा के जयंती दिवस के दिन को राज्य का पूर्नठन किया गया-इसलिए कि झारखडं में आदिवासियों का अपना इतिहास है, जिनका संबंध जल-जंगल-जमीन, भाषा-संस्कृतिक, नदी और पहाड़ों है।   
 राज्य के ग्रामीण इलाकों का सपंर्ण विकास के लिए राज्य पूर्नगठन के बाद कई जिले बने। इसी क्रम में बिरसा मुंडा जन्म और उलगुान की धरती खूंटी को भी 12 सितंबर 2007 को जिला के रूप में स्थापित किया गया। खूंटी जिला पूरी तरह कृर्षि प्रधान जिला है। यहां की आबादी 5,30,299 है।  जिला में अड़की प्रखंड, मूरूहू प्रंखड, रनिया प्रखंड पूरी तरह से जंगल से पटा हुआ है। इस क्षेत्र से लाखों -करोड़ों का वनोउपज हर साल बाहार जाता है। माइनर मिनिरल्स के रूप में करोड़ों के सैकड़ों पत्थर के खदान चलाये जा रहे हैं, । लाखों-करोंडो के कई दर्जन बालू घाट बाम्बे की कंपनी को बेची जा चूकी है। खूंटी, मुरूह का इलाका लाह की खेती के लिए देष प्रसिद्व है। लेकिन दुखद बात तो यह है कि इन वनोपजों, माइनर मिनिरल्स के मारकेटिंग से जोड़ने के लिए स्थानीय समुदाय की कोई कोपरेटिब आज तक नहीं बनायी गयी। न ही कोई फूड प्रोसेषिंग यूनिट खड़ी की गयी। वनसमंपदा आधारित कोई कुटीर उद्योग नहीं खड़ा किया गया। ताकि जिला का जनमुखी एवं पर्यावरणीय आधारित विकास हो। 
जिला बनने के पहले और आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य, कृर्षि, कुटीर उद्योग, के क्षेत्र में कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है। केंन्द्र की विकास योजनाएं भी जमीनाी स्तर पर कहीं दिखाई नहीं देती हैं। मनरेगा योजना सहित तमाम विकास योजनाएं सरकारी अधिकारियों, माफियाओं, ठेकेदारों का लूट का अखाडा  बन गया है। विकास के नाम पर जिला ने कितना कदम आगे बढ पाया है यह नहीं, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है, लेकिन जिला में सरकार के समान्तर चलने वाले कई उग्रवादी संगठनों का विकास और विस्तार खूब हुआ है। अपना वरचस्व कायम करने के लिए सभी संगठन अपनी ताकत का खूब विस्तार किया है। प्रषासन और विधि व्यवस्था जिला के नागरिकों को सुरक्षा देने और शांति  व्यचस्था बनाये रखने दंभ भरते रही हैं जबकि हत्याओं, अपराधिक घटनाओं और उग्रवादी हिंसाओं से बिरसा मुंडा की धरती लाल होते जा रही है। कोई एैसा दिन नहीं, जिस दिन जिला के किसी गांव क्षेत्र में हत्या और कोई अपराधिक घटना न हो। जिला बने सात साल हुए। इस सात साल में जिला में जमीन विवाद, उग्रवादी हिंसा, डायन हत्या तथा अन्य घटनाओं में हजारों लोगों की हत्या हो चुकी 
जिस धरती में कभी आदिवासियों ने अंग्रेज-जमींदारों के शोषण  -दमन से मुक्ति के लिए बिरसा मुंडा, गया मुडा, डोका मुंडा, नरसिंग मुंडा, भरमी मुंडा, सुगना मुंडा, माकी मुंडा जैसे हजारों नायकों की अगुवाई में उलगुलान किया था। इसका गवाह चलकद, उलीहातू, डोम्बारी बुरू, सिंबुआ बुरू, साईल रकब, कोंचांग, सिंजुड़ी जैसे इतिहासिक गांव हैं। मुंडा आदिवासियों के उलगुलान ने ही राज्य में छोटानागपुर काष्तकारी कानून को बनवाया यही नहीं मुंडारी खूंटकटी अधिकार को भी स्थापित करवाया। आज इसी धरती में अपना बरचस्व स्थापित करने के लिए...एक आदिवासी अपने ही भाई-बहनों के खिलाफ हथियार उठा रहा है। आदिवासी-मूलवासी एक दूसरे के खून पी रहे हैं। गांव-गांव में आतंक है। गांव खाली होता जा रहा है। इस लडाई में अरोपी बन कर हजारों लोग जेल में बंद जिंदगी जी रहे हैं। जहारों जेल भेजे जा रहे हैं।. सबसे बड़ा सवाल है-आज जिनको गांव-समाज और राज्य में सामाजिक, आर्थिक, संस्कृतिक, राजनीतिक विकास में लीडरषीप देना था चाहे तो उनकी हत्या की जा रही है, या वो जेल की जिंदगी काट रहे हैं। इस लड़ाई में हजारों बेकसूर भी जेल में बंद हैं और बंद होते जा रहें हैं। 
हिंसा और अपराधिक घटनाओं का इतिहास देखा जाए तो राज्य बनने के बाद से लगातार बढ़ता जा रहा है। हर साल घटनाओं का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। इस इलाके की जनता नेता, मंत्री, विधायक, संसद, षासन-प्रशासन से सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर आप गांव-समाज सहित इस इलाके को  कहां जो रहे हैं?  आम जनता को भी सोचना है कि हम अपना गांव-समाज को कहां ले जा रहे हैं? किन लिए गांव खाली कर रहे हैं? 
जिला बनने के बाद हुई पुलिस के अनुसार उग्रवादी हिंसा में हुइ हत्या इस तरह से है
क्ब संख्या/घटना आदिवासी-हत्या गैरआदिवासी/मूलवासी
2007 - 6               --1                                 -  6
2008 -4                 -                                    -4
2009 8                  -7                                    -5
2010 13               -14                                    -3
2011 20              -12                                  -11
2012 37               -32                                  -10
2013 26                -17                                  -12
2014.मई तक -
2014-सिर्फ जून में 11   -15                            ------ 2
नोट-इस घटना में 10 अज्ञात है
अन्य मामलों हुई हत्या
कब स्ंाख्या-घटना आदिवासी गैर आदिवासी अज्ञात
2007 84              -            -9         -67
2008 61            -50        -14                - 5
2009 69           -35          -17                -15
2010 66 -         -46 -       -11                -18
2011 101 -          -66 -29                -12
2012 89 -         -65         -13                -11
2013 75 -        -53         -12                -12
2014-मई तक          - 40    -26       -4 -9

अन्य मामलों में हत्या का प्रखंडवार अंकडा
प्रखंड     2007 200  -200 - 2010-  2011- 2012- 2013-2014
तोरपा-    15-     -       7       -6 -8 -14 -10        -6
रनिया 8 9 3 6 5 7 11          2
कर्रा        21   15     16    19 13  17   9
खंूटी 10 13 14 19 35 23 16      10
मूरहू        26 18 25 13 21 19 19      11
अड़की 5 9 5 6 13 13 2 2

नोट-अज्ञात घटनाएं है जो यहां अंकित किया गया है, इसमें प्रत्येक घटना में कितने लोगों की हत्या की गयी है यह स्पस्ट नहीं किया गया है। हो सकता है किसी घटना में ण्क की हत्या हुई और किसी घटना में एक साथ दो-तीन लोगों की हत्या हुई हो।
डायन हत्या -2007-2014 मई तक-कुल 20 घटनाएं हुई, इसमें 10 लोगों के नाम के जिक्र है जबकि 10 अज्ञात हैं।
जमीन विवाद में हुइ्र हत्या-2007 से 2014 मई के बीच खूंटी थाना में सिर्फ एक, कर्रा थाना में एक तथा मुरूहू थाना क्षेत्र में की हुई।
                                         दयामनी बरला

आदिवासी समुदाय को अपने सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक राजनीतिक और ऐतिहासिक अधिकारों से बंचित करने की कोशिश की जा रही है



 सेवा में,
उपायुक्त महोदय                               दिनांक-23/9/2014
जिला-खूंटी                                    पत्रांक-01

विषय-खूंटी जिला आदिवासी बहुल जिला है, लेकिन जिला की आदिवासी आबादी की संख्या को गलत तरीके से हाईकोर्ट में कम दिखाकर, जिला को ननषिडयूल एरिया बताया जा रहा है, पर हस्तक्षेप किया जाए।
12 सितंबर 2014 के प्रभात खबर में प्रकाषित समाचार से जानकारी मिली है कि प्राथी मो आषिक अहमद, उपेंन्द्र नाथ महतो व कर्नल लाल ज्योतिंद्र देव व अन्य ने हाईकोर्ट में षिडयूल एरिया निर्धारण के मामले में सवाल उठाया है कि जिलों में आदिवासी आबादी 50 प्रतिषत से कम है, एैसे जिलों को भी किस आधार पर षिडयूल एरिया घोषित किया गया है। इसमें खूंटी जिला को भी षामिल किया गया है, जिसमें रांची और खूंटी जिला दोनों को मिलाकर आदिवासी आबादी 41.81 दिखाया गया है। जिसकी अगली सुनवाई 25 सिंतबर को होने वाला है। 
12 सिंतबर 2007 को खूंटी को जिला बनाया गया। खूंटी जिला में 6 प्रखंड हैं। ये सभी प्रखंड़ों में आदिवासी बहुल है। अब खूंटी जिला का अपना अस्तित्व है। 2001 की जनगणा कें आधार पर खूंटी जिला की आबादी 5,30,299 है।
2001 के आधार -जिले में प्रखंडवार आदिवासी आबादी का प्रतिषत है-
1-आड़की प्रखंड--------------79.36
2-खूंटी प्रखंड---------------65.91
3-मुरहू प्रखंड---------------80.64
4-कर्रा प्रखंड---------------73.08
5-तोरपा प्रखंड--------------69.26
6-रनिया प्रखंड--------------70.71
भारत सरकार का 2011 का सेंस्स के आधार पर खूंटी जिला की आदिवासी आबादी 73 प्रतिषत है।
केंन्द्र सरकार के नियम के अनुसार जिन क्षेत्रों में आदिवासी आबादी 50 प्रतिषत यह 50 प्रतिषत से अधिक है, एैसे क्षेत्रों को षिडयूल एरिया के अतंर्गत रखा है। उपरोक्त आंकड़े बताते हैं-कि खूंटी जिला पूरी तरह आदिवासी बहुल है, और षिडयूल एरिया के अतंर्गत आता है। 
हम यहां यह भी बताना चाहते हैं कि झारखंड में खूंटी जिला ही एक मात्र मुंडा आदिवासी बहुल क्षेत्र है। राजनीति में खूंटी जिला से खूंटी विधानसभा और तोरपा विधानसभा में मुंडा आदिवासी समुदाय हमेषा से नेतृत्व देते आ रहे हैं। यही नहीं खूंटी जिला के आदिवासी समुदाय ने भारत के स्वतं़त्रता संग्राम में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में अग्रेजो के खिलाफ उलगुलान कर देष के इतिहास में अपना परचम हलराया है। 
परंपरागत से खूंटी जिला आदिवासी बहुल ़क्षेत्र रहा है। इ़स क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के जल-लंगल-जमीन पर परंपरागत हक-अधिकार को खूंटकटी अधिकार और सीएनटी एक्ट में प्रावधान किया गया है। यहां के आदिवासी समुदाय के परंपरागत अधिकार  के आधार पर ही इस क्षेत्र को पंाचवी अनुसूची क्षेत्र में रखा गया है। 
हम खूंटी जिला के आदिवासी-मूलवासी आप से अग्राह करते हैं-कि आदिवासी समुदाय को अपने सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक राजनीतिक और ऐतिहासिक अधिकारों से बंचित करने की कोषिष की जा रही है, इस पर जिला प्रषासन हत्सक्षेप करे, ताकि आदिवासी समुदाय का हम-अधिकारों की रक्षा की जा सके। 
                                                 निवेदक-
 संयोजक-                                    आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
                                    अध्यक्ष-
                                    सचिव--
काॅपी-
मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेनजी
राज्यपाल महोदय-
कष्मिनर महोदय-
मुख्य सचिव---






















सेवा में,
डपायुक्त महोदय                               दिनांक-23/9/2014
जिला-खूंटी                                    पत्रांक-01

विषय-खूंटी जिला आदिवासी बहुल जिला है, लेकिन जिला की आदिवासी आबादी की संख्या को गलत तरीके से हाईकोर्ट में कम दिखाकर, जिला को ननशिडयूल  एरिया बताया जा रहा है, पर हस्तक्षेप किया जाए।
केस संख्य ..........................................................................................में प्रार्थी ने हाईकोर्ट में षिडयूल एरिया निर्धारण के मामले में सवाल उठाया है कि जिलों में आदिवासी आबादी 50 प्रतिशत से कम है, एैसे जिलों को भी किस आधार पर शिडियुल  एरिया घोषित किया गया है। इसमें खूंटी जिला को भी शामिल किया गया है, जिसमें रांची और खूंटी जिला दोनों को मिलाकर आदिवासी आबादी 41.81 दिखाया गया है। जिसकी अगली सुनवाई 25 सिंतबर को होने वाला है। 
12 सिंतबर 2007 को खूंटी को जिला बनाया गया। खूंटी जिला में 6 प्रखंड हैं। ये सभी प्रखंड़ों में आदिवासी बहुल है। अब खूंटी जिला का अपना अस्तित्व है। 2001 की जनगणा कें आधार पर खूंटी जिला की आबादी 5,30,299 है।
2001 के आधार -जिले में प्रखंडवार आदिवासी आबादी का प्रतिशत है-
1-आड़की प्रखंड--------------79.36
2-खूंटी प्रखंड---------------65.91
3-मुरहू प्रखंड---------------80.64
4-कर्रा प्रखंड---------------73.08
5-तोरपा प्रखंड--------------69.26
6-रनिया प्रखंड--------------70.71
भारत सरकार का 2011 का सेंस्स के आधार पर खूंटी जिला की आदिवासी आबादी 73 प्रतिषत है।
केंन्द्र सरकार के नियम के अनुसार जिन क्षेत्रों में आदिवासी आबादी 50 प्रतिशत यह 50 प्रतिषत से अधिक है, एैसे क्षेत्रों को शिडयूल एरिया के अतंर्गत रखा है। उपरोक्त आंकड़े बताते हैं-कि खूंटी जिला पूरी तरह आदिवासी बहुल है, और शिडयूल एरिया के अतंर्गत आता है। 
हम यहां यह भी बताना चाहते हैं कि झारखंड में खूंटी जिला ही एक मात्र मुंडा आदिवासी बहुल क्षेत्र है। राजनीति में खूंटी जिला से खूंटी विधानसभा और तोरपा विधानसभा में मुंडा आदिवासी समुदाय हमेशा  से नेतृत्व देते आ रहे हैं। यही नहीं खूंटी जिला के आदिवासी समुदाय ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में अग्रेजो के खिलाफ उलगुलान कर देश  के इतिहास में अपना परचम हलराया है। 
परंपरागत से खूंटी जिला आदिवासी बहुल क्षेत्र रहा है। इ़स क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के जल-लंगल-जमीन पर परंपरागत हक-अधिकार को खूंटकटी अधिकार और सीएनटी एक्ट में प्रावधान किया गया है। यहां के आदिवासी समुदाय के परंपरागत अधिकार  के आधार पर ही इस क्षेत्र को पंचवी अनुसूची क्षेत्र में रखा गया है। 
हम खूंटी जिला के आदिवासी-मूलवासी आप से अग्राह करते हैं-कि आदिवासी समुदाय को अपने सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक राजनीतिक और ऐतिहासिक अधिकारों से बंचित करने की कोशिश  की जा रही है, इस पर जिला प्रशासन हत्सक्षेप करे, ताकि आदिवासी समुदाय का हम-अधिकारों की रक्षा की जा सके। 
                                                 निवेदक-
 संयोजक-                                    आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
                                    अध्यक्ष-
                                    सचिव--
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राज्यपाल महोदय-
कष्मिनर महोदय-
मुख्य सचिव---

हम बाल मजदूर नहीं-देश की सम्मानित नागरिक हूँ


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