2012 mere jiwan ka mahtwapurn varsh raha---ise mai 5 paart me ki hun...iske bad aap baki 1-4 ko bhi dekhenge...yahi meri aasha hai
2012 मेरे जीवन का महत्वपूर्ण वर्ष रहा--भाग 5
दूसरी ओर सरकार और prashashanik अधिकारी, माफिया, कारपोरेट ताकतें मुझे कमजोर करने की koshish में जुटे। 14 फरवरी 2012 की रात आठ बजे चुटिया थाना के एसआई आये मेरे क्लब रोड़ स्थित होटल में। मेरे पति से सवाल किये-यही दयामनी बरला का होटल है? मेरे पतिजी जवाब दिये-हां यही है। एसआई ने उनसे कई अपातीजनक सवाल करने लगे-दयामनी कहां कहां जाती है, किस के साथ जाती है। आप लोगों पर अरोप है-आप के घर में असामाजिक तत्व आते -जाते हैं और बैठक करते हैं। आप के होटल में भी असामाजिक तत्व आते -जाते हैं और रात को बैठक करते हैं। एसआई के इन बातों से आहत मेरे पति ने मुझे फोन कर होटल में आने के लिए कहा, इस समय मैं अपने डेरा में ही थी। मैं होटल पहुंची, एक पुलिस मोबाईल वेन बाहर खड़ी है। दो पुसिल वाले बाहर खड़े हैं। अंदर एक पुलिस वाला हाथ में एक कागज ले कर खड़ा है। मैं अंदर घुसते ही उसे नमास्कार की। उसने पूछा-आप ही दयामनी बरला हैं? मैंने जवाब दी-जी मैं ही हुं।
मैंने पुलिस वाले को बैठने का अग्राह की-इन्होंने ने बैठने से इंकार किय। उसने पूछना ‘’शुरू किया-आप कहां कहां जाती हैं? आप के साथ कौन कौन लोग जाते हैं? आप किनके किनके बैठक में जाती हैं? उस बैठक में कौन कौन लोग आते हैं? इतना लंबा सवाल का जवाब मुझे देना है-और जवाबों को पुलिस वाले को लिखना हैं। तब मैंने उसे दूवारा अग्राह की बैठने के लिए। इस बार भी वे टालने की में थे-नहीं, नहीं बैठगें। तब मैंने उनसे कहा-आप को मेरा जवाब नोट करना है-तो खड़े खड़े कैसे लिखिएगा-बैठ कर लिखिए। इस बार वे बैठने के लिए तैयार हो गये।
मैंने बताना ’शुरू की-मैं एक दिन में कभी कभी तीन-चार बैठकों में जाती हुं। जहां जरूरतमंद लोग मुझको बुलाते हैं-सभी जगह जाती हुं। सवाल रहा कि-उस बैठक में कौन कौन लोग आते हैं-कौन कौन लोग थे-यह बताना मेरे लिए संभव नहीं हैै। क्योंकि आयोजक मुझे बुलाते हैं वही औरों को भी बुलाते हैं। तब मैं कैसे बता सकती हुं। हां मैंने अभी हाल ही में 8-9 जनवरी को गांव में दो दिनों का कार्यक्रम रखी थी डोम्बारी दिसव के अवसर पर। दोनों दिन हमारे युथों को हाॅकी और फुटबाॅल प्रतियोगिता खेलाये। फाईनल मैंच के बाद संगठन का बैठक हुआ। अब इस बैठक में कौन कौन था-ये पूछियेगा तो मैं नाम नहीं बता सकती हुं-इसलिए कि हमारे संगठन के बैठक में पूरा गांव ही ’शमील होता है।
पुलिस वाले ने पूछा आप का संगठन का क्या नाम है?
मैं ने बतायी-आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
तब मेरे मन में आया-आखिर ये क्यों इतना जिरह कर रहे हैं? क्या कारण है?
तब मैंने उनसे बोली-आप मुझ से क्यों इस तरह पूछ रहे हैं? आप के पास क्या कोई लिखित नोटिस या कोई भी कागजात है? मुझे दिखाईये
मेरे इस सवाल पर -एसआई बोले, मेरे पास कोई कागजात नहीं है। बस मुझे भेजा गया है-आप के बारे जानकारी लेने।
जब मैं जिद करने लगी-अगर आप के पास लिखित कोई कागजात नहीं है-तब आप मुझको क्यों परेशान कर रहे हैं? बिना कारण के मैं आप को नहीं बता सकती हुं।
इसके बाद एसआई बोले-ठीक है, मैं जाता हुं, कहते हुए वे चले गये। मैंने फैसल दा को इसकी जानकारी दी-उन्होंने मुझको बोले-तुम बात करो क्यों ये सब जनना चाहता है। एसआइ जब जाने लगे तो -मैंने उनसे बोली, मैं कोई चोर गुडा, बदमाश नहीं हुं-जिस दिन आप मुझे गिरत्फार करने आएगा-तब भी मैं यहीं मिलूंगी। दूसरे दिन मैं अपने साथियों-श्री प्रका’ाजी, फैसलजी को बुलायी और बोली-मैं एस एस पी के पास जा रही हुं। मुझे एस एस पी से पूछना था-कि आप बताईये कि मेरे पास कौन असामाजिक तत्व आते हैं? कौन असामाजिक तत्व मेरे घर में आते है और वे असामाजिक तत्व कौन हैं? मुझे बताया जाए। और पुलिस क्यों मेरे बारे में इतना जिराह कर रही है-कि मेरे साथ कौन उठता-बैठता हैं। और कौन असामाजिक तत्व मेरे घर में बैठकें करते हैं? एस एस पी साकेत कुमार सिंह आवास में थे। लेकिन आवासीय कार्यालय के कर्मचारी बताये-अभी साहब बोली बोल खेल रहे हैं। वे इतना समय किसी से नहीं मिलते हैं-आप कल आईएगा। मैं बोली-नहीं मैं साहब से मिल कर ही वापस जाऊँगी । मैं वहीं बैठ गयी और इंतजार करने लगी। मैं तत्कालीन उपायुक्त श्री के के सोन को फोन की और बतायी कि मैं एसएसपी से मिलने आयी हुं, आप लोगों ने मेरे उपर अरोप लगा रहे हैे कि मैं असामाजिक तत्वों के साथ उठती-बैठती हुं, असामाजिक तत्व मेरे घर में आते हैं-मेरे घर में असामाजिक तत्वों के साथ बैठक करते हैं। मेरे होटल में असामाजिक तत्व आते-जाते हैं। इसलिए मैं एसएसपी से मिलने आयी हुुं-लेकिन यहां के कार्यचारी बोल रहे हैं-वह इस समय किसी से नहीं मिलते हैं, आप एसएसपी साहब को बोल दीजिए-मैं बिना मिले नहीं जाएउंगी, मैं यहीं धरना पर बैठ रही हुं-रात भर, जब तक एकॉपी सएसपी नहीं मिलेगें।
एसएसपी श्री साकेत कुमार सिंह जी आये-5 मिनट बाद। हमलोगों को कार्यालय में बुलाये। मैंने अपना परिचय दी और मेरा लिखित आवेदन भी उनके हाथ में दी। मैंने अपनी पूरी बात रखी। इस पर उन्होंने कहा-कि आप के बारे कहीं से एक पत्र आया है उसको लेकर आप से पूछताछ के लिए मैं ही आदेश दिया था, इस फाईल को निपटा देना चाहता हूँ -नही तो वह फाईल पेंडिग रह जाएगा, और मेरे बाद कोई दूसरा आएगा-तो वो तो करेगा ही। और कहां से आया है-कौन भेजा है यह तो सिक्यूरिटी का मामला हैं -इसलिए नहीं बता सकते हैं। मैंने पूछी इसकी तो आप थाना भेजे होगें?
एसएसपी बोले हां भेजे हैं
मैं ने जो गया था उसे मैं मांगी लेकिन, उन्होंने नहीं बता, हां जब मैं होटल आयी तब तो उनके हाथ में एक पेज का कागज था, जिससे वो देख रहे थे और बाद में अपना पोकेट मेे रख लिये।
एसएसपी-ठीक है मैं वहां ले (थाना) से दिलवा देता हुं।
मैं -मैं थाना नहीं जाउॅंगी, आप किसी से बोल दीजिए वे खुद ही मेरे पास पहुंचा देगें। उन्होंने मेरे ही सामने चुटिया थाना को फोन किये-बोले दयामनी मैडम को वो कागज आप भेजवा दीजिएगा, जो यहां से भेजा गया है।
दूसरा दिन थाना वाले कागज लेकर मेरा होटल आये थे-लेकिन मैं नहीं थी, इसलिए वे कागज किसी के हाथ में नहीं छोड़े। दूसरे दिन प्रवीण जा कर कागज ले आया। उस कागज में लिखा हुआ है-मेरे सिरोम टोली, क्लब रोड़ स्थित होटल में असामाजिक तत्व आते-जाते हैं, और बैठ भी करते हैं।
मैंने इसका फोटीकापी की और जिस आवेदन को एसएसपी के नाम दी, उसी का एक कोपी आईजी श्री रेजि डुंगडुंगजी को भी उनके आवास में जा कर दी। साथ में जो कागज थाना से मिला था, उसका फोटी काॅपी भी। डुंगडुग साहब बोले-तुम आदिवासियों के लिए क्यों इतना चिंतित रहती हो? मस्त रहो आराम से। लोग नाचते हैं-गाते हैं कोई आता है तो उनके स्वागत में। इतना खुश हैं लोग, फिर तुम क्यों परेशान रहती हो?।
मैंने हंसते हुए बोली-क्या करते, मैं अपना जिम्मेवारी पूरा कर रही हुं। लोग नहीं सोचते हैं तो मैं क्या कर सकती हुं-सिर्फ मैं कोशिश ही कर सकती हुं।
डुंगडुगजी बोली-देख रहे हैं-आज कल तुम नगड़ी में लगी हो।
जी गांव के लोग आये लेने के लिए तो मैं चली गयी। और आप को तो पता है कि नहीं-सरकार ने उस जमीन को अधिग्रहण नहीं किया है। गांव वाले भी जमीन का पैसा सरकार से नहीं लिए है। गांव वाले आज भी जमीन का मजगुजारी दे रहे हैं।
डुगडुग साहब-ठीक है लोग लड़ रहे हैं। लेकिन वहां जिन लोगों के साथ तुम हो, तुम नहीं सकोगी, तुम उन लोगों को नहीं पहचानती हो। मैं 25 साल से लोगों को देख रहा हुं। मैं समझ गयी-वह किन लोगों के बारे बोल रहे हैं।
मैं बोली-ठीक है, नहीं सकेगें तो छोड़ देगे, और आप तो जानते हैं कि मैं किसी गलत लोगों के साथ नहीं खड़ा हो सकती हुं। डुगडुग साहब बोले-देख लो तुम।
इस मामले को लेकिन मैंने ग्रामीण एसपी श्री आशीम विक्रात मिंजजी और डीएसपी श्री अनुरंजन किस्पोटा जी से भी मिली और अपना लिखित आवेदन -एसएसपी को दी थी, इसी को इन अधिकारियों को संबोधित करते हुए दी। दोनों अधिकारियों ने कहा-अगर आप के बार कोई कुछ बोल रहा है-तो हमारा काम है, उसको जांच करना। इसमें परे’ाान नहीं होना चाजिए-इसलिए कि आप तो सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
जिस तरह से सरकार का रवेया नगड़ी के रैयतों के प्रति विपरित रूख था, मुझे समझ में आ रहा था कि-सरकार जरूर मेरे खिलाफ कोई न कोई जाल बिछाएगी। जब अचानक 23 सिंतबर 2012 को चुटिया थाना के एसआई ने मेरे खिलाफ कुर्की जब्ती का वारंट लेकर आया। थाना वाले से मैं पूछी ये किस अरोप के तहत यह कुर्की वारंट है? एसआई भी नहीं बता सके।
एसआई मेरे होटल में ही आये थे। उन्होंने कागज को उपट-पुलट कर देखे, लेकिन नहीं बता सके कि-यह वारंट किस संबंध में है। तब इन्होंने सजेस्ट किये-कि आप इस जीआर ना0 को लिख लीजिए और कोर्ट से पत्ता कीजिए कि-ये कौन सा केस है। इसकी जानकारी मैं अपने साथियों को दी। फैसल दी ने कोर्ट से पत्ता करने की जिम्मेवारी शुशन्तो जी को दिये। शुशन्तो जी दूसरे दिन कोर्ट से पत्ता किये-यह 2006 का केस है, जो अनगड़ा प्रखंड कार्यालय में जोब कार्ड की मांग को लेकर ग्रामीणों ने अबुआ बेंजाई संगी होड़ो के बैनर तले रैली निकाले थे। इस रैली को पुलिस वालों ने रोड़ पर ही रोक लिया था। रोड़ पर ही पुलिस वालों ने गाड़ी को खड़ा कर रोड़ को सामने ब्लाॅक कर दिये थे। इस परिस्थिति में रैली आगे नहीं जा सकती थी। इस कारण रैली रोड़ में रूक गया। इसी मामले को लेकर ब्लाॅक वाले केस कर दिये थे।
मुझे पत्ता नहीं था कि केस हुआ है। एक दिन अनगड़ा थाना के छोटा बाबू श्री कुजूरजी फोन किये और बोले-मैडम आप एक दिन समय निकाल कर आईए हमारे यहां थाना चाय पीने के लिए। मैं पूछी -क्यों थाना में चाय पीने के लिए?
श्री कुजूर बोले-हमेशा आप तो गांव गांव घुमते रही हैं-तो एक दिन मेरे यहां भी आईए। अपने लोग हैं तो मिलना चाहिए। इसके बाद से छोटा बाबू हरदम आने के लिए बोलते रहते थे। एक दिन मैं और अलाका कुजूर गयी थाना। छोटा बाबू चाय-नास्ता भी खिलाये। इसी क्रम में उन्होंने बताये कि-रैली के दिन का केस हुआ है आप कहां कोर्ट-कचहारी जाईऐगा, आप का समय भी नहीं रहता है-सो यहीं बेल दे दे रहे हैं। उन्होंने एक सादा कागज पर लिखा 1000 के मुचुलके पर दयामनी को बेल दे रहे हैं। अलोका इस कागज में साईन की बेललर के रूप में।
इसी केस का कुर्की जब्ती का वारंट आया है। थाना से बेल लेने के बाद मुझे कभी भी न तो किसी साथी ने इस संबंध में बताये कि-यह केस कोर्ट में चल रहा है, न ही कोर्ट से कभी इस संबंध में कोई नोटिस या सूचना, सम्मन, या उपस्थित होने के लिए कोई वारंट नहीं आया। एक ही बार यह कुर्की जब्ती का वारंट आया। कुर्की जब्ती का वारंट लाने के पहले 24 अगस्त को पुलिस मेरे डेरा पर आया थी। मेरे घर मालिक बताये थे कि दा-तीन पुलिस वाले घर आये थे बंदूक के साथ। उस दिन मैं नगड़ी गयी हुई थी। घर मालिक का बात सून कर सोची कोई जानकारी लेना था होगा, इसलिए पुलिस आयी थी।
इसके बाद हर दूसरे -तीसरे दिन पुलिस मेंरे होटल में आ जा रहे थे। पुलिस से दो-तीन दिन का समय मांगें थे बेल लेने के लिए। बेल लेने के लिए दो बार कोर्ट जा कर प्रयास किये एस के माजाराज के कोर्ट में। लेकिन जज साहब बेल नहीं दिये। इस परिस्थिति में दूसरा कोई रास्ता नहीं था बचने का। तब हम लोगों ने निर्णय लिये-कि कोर्ट में फिर से अपील करेगें बेल के लिए और नहीं मिलेगा तब सरेंडर करेगें। छोटा केस से एक -दो दिन के भीतर बेल हो जाएगा। हम लोगों ने यह भी निर्णय लिये कि-इसका खबर किसी को नहीं होने दिया जाएगा-चुपचाप से सरेंडर करेंगें और चुपचाप बेल लेकर निकल भी जाएगें। मीडिया को पता नहीं लगने देगें-ताकि अगर सरकार चाहेगी कि आर केस डालने का तो नहीं कर पाये।
हम लोगों ने 4 अक्टोबर को शरेंदार करने का निर्णय लिये। लेकिन साथियों ने कहा-इस बीच 3-4 दिन कोर्ट बंद है। बेल के लिए कागजात निकालने और बेल लेने में समय लगेगा, इसलिए 4 को सरेंडर नहीं कारेगें। नही ंतो जेल में आठ दिन तक रहना हो सकता है। तब तय किये 11 अक्टोबर को। 11 अक्टोबर को भी साथियोंने बोले कि-इस बीच दो दिन कोर्ट बंद है। 11 अक्टोबर को आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच से 7-8 साथी, नगड़ी से 5-6 लोग सरेंडर के समय साथ कोर्ट जाने के लिए आये थे। कांके के चैडी बस्ती से लोग तय किये थे कि हम लोग 100 तक की संस्खया में कोर्ट पहुंचेगे दीदी जब सरेंडर करेगी। लेकिन 11 को फिर टाल दिया गया। इसके बाद तय हुआ 16 अक्टोबर को सरेंडर करने का।
14 अक्टोबर को आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच का करमा महोत्सव मनाये। 13 अक्टोबर को डैम प्रभावित संघर्ष समिति कर्रा करमा महोत्सय मानाने का निर्णय लिया था। लेकिन मेरा जेल जाने को लेकर गांव वालों न कहा-बाद में ही मनाऐगें। 16 अक्टोबर को सुबह अखबार में देखे-नगड़ी के ग्रामीणा जमीन वापसी की मांग को लेकर अमरणअनशान पर आज से बैठ रहे हैं। इसकी जानकारी नगड़ी से किसी ने पहले नहीं दिये। इस खबर ने हमे चैंका दिया, आखिर लोग क्यों नहीं बताये कि अमरणअनशान का निर्णय लिये हैं। यह हमारे लिए बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो गया।
हम लोगों ने तय किये थे-कि चुपचाप 16 अक्टोबर को सरेंडर करेगें-इस निर्णय में नगड़ी वाले भी ’शमिल थे। लेकिन इन लोगों का अचानक और गुप्त तरीके से अमरणअन’न में बैठने का निर्णय ....। अखबार पढ़ने के बाद मैंने अलोका को फोन की और बतायी कि-नगड़ी वाले आज से अमरणअनशन पर बैठ रहे है-सो समझ नहीं आ रहा है कि आखिर इन लोगों ने आज से ही बैठने का क्यों निर्णय लिया। ऐसी स्थिति में तो चुपचाप सरेंडर करना ठीक नहीं है। अन’शन तो 5-6 दिन चलेगा ही। और इस बीच में मैं गायब हुं, यह मेंरे लिए बहुत बड़ा सवाल है कि आखिर मैं अनशन में भाग क्यों नहीं ले रही हूं।
मैंने तत्काल निर्णय ली-कि चुपचाप सरेंडर नहीं करना है अब, मीडिया को बता कर जाना है कि किन परिस्थिति में मैं सरेंडर हो रही हुं। तब अलोका, फैसल दी और श्रीप्रकाश , सुशानतो और कई मित्र तय किये कि-मीडिया को बोल कर जाना है। तब मैं नेलशन, अलोका नगड़ी अनशन स्थल पहुंचे। अनशनकारियों को माला पहनाये। करीब एक घंण्टा तक वहां रहे। वहां भी मीडिया को बताये कि-किन परिस्थिति में मुझे सरंेनडर करना पड़ रहा है। वहां से सीधे कोर्ट पहुंचे। कोर्ट के पास आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच, डैम प्रभावित संघर्ष समिति कर्रा-खूंटी के करीब 50-60 साथी आ चुके थे। मेरे वाकील ने बेल के लिए फिर से अग्राह किया-लेकिन जज साहब देना नहीं चाहे। तब मुझे वहीं से कस्टडी में लिया गया।
हम लोगों को उम्मीद था कि-दो दिन में बेल मिल जाएगा और तीसरे दिन जेल से बाहर निकल जाएगें। लेकिन सरकार और हमारे विरोधियों की मानसा को समझ नहीं पाये थे। अनगड़ा का केस में मुझे 18 अक्टोबर को बेल मिल गया था। जब मेरी रिहाई की तैयारी हो गयी-गांव से लोग जेल पहुंचे मुझे लेने के लिए -तब तक एक दूसरा केस कर दिया गया। और मेरे उपर वारंट प्रोक्सन लगाया गया। गांव वाले निराश वापस लौटे। इसी तरह अब केस और प्रोडक्नशन वारंट का सिलसिला चलने लगा। जब दूसरे केस मे भी मुझे बेल हो गया और रिहाई आदेश तैयार किया जा रहा है-तब तक तीसरा केस डाल दिया गया। इस तरह से रिहाई-गिरत्फारी-रिहाई-गिरत्फा री का सिलसिला चलता रहा और 68 दिनों तब जेल में रही। 21 दिसंबर को हाईकोर्ट से मुझे बेल मिला। साथी रिहाई के लिए तैयारी में जुटे। 22 दिसंबर को मेरी रिहाई कागज तैयार करने साथी कोर्ट पहुंचे-इसी बीच एक थाना प्रभारी फिर से एक प्रोडक्नशन वरांट लेकर आये। लेकिन इसके पहले ही ......और मुझे 22 की शाम को जेल से निकाला गया। ढाई महिना के अंदर मेंरे उपर अब 9 केस चल रहा है-सभी कोर्ट में ट्रायल में है।
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