Tuesday, April 17, 2012

लोग मुझ से पूछते हैं-तुम कब इस लाईन याने सामाजिक सेवा में हो, कैसे इस लाइन में आने की सोची, तुम्हारा जन्म कब हुआ है ? इन तीन सवालों का जबाव मेरे पास न

लोग मुझ से पूछते हैं-तुम कब इस लाईन याने सामाजिक सेवा में हो, कैसे इस लाइन में आने की सोची, तुम्हारा जन्म कब हुआ है ? इन तीन सवालों का जबाव मेरे पास नहीं हैं। कब से ? मैं नहीं जानती । इसलिए की जब से मैं होश संभाली मैं कभी अपने परिवार को लूटाते देखी, कभी पूरा समाज को लूटाते तो कभी पूरा राज्य को लूटाते देखते आ रही हूँ । 10-12 साल की उम्र की मैं थी तब अपने माता-पिता को लूटाते देखी। मेरे अनपढ़ पिताजी को सादा कागज में अंगुठा का निशान लगवा कर पिता जी को मिला मझियस जमीन को गुमला कोर्ट में गुमला जिला के कमडारा प्रखंड के सालेगुटू के साहू के नाम कर दिया गया। मेरा परिवार जमीन वापस पाने के लिए कई सालों तक अरहारा गांव से गुमला कोर्ट दो दिनों तक पैदल चल कर लड़ते रहे। साहू परिवार और ओहदार परिवार ने गांव वालों को इतना धमकी दे रखा था कि मेरे पिता के तरफ से एक भी गवाही देने कोर्ट खड़ा नहीं हो सके।
मेरे माता-पिता 10-12 एक जमीन के मालिक थे। अब भूमिंहीन हो गये ।साल भर खूद खाते और दूसरों को भी खिलाते थे-अब पूरा परिवार दूसरों का नौकर बन गये। चैथा क्लास में ही मैं परिवार विलीन हो गयी। पिता जी दूर दूसरे गांव में धांगर, मझिला बडा+ भाई, अपने ही गांव में दूसरों घर नौकर, माँ रांची में अमीरों के घर दाई, मझिला बड़ा भाई रांची में कुली। मैं और मुझसे बड़ा भाई अपने घर में। जो खाली घर रह गया था। गाय-बैल-भैंस, बकरी, सुवर सभी केस सभी केस लड़ते लड़ते बिक चुके।

१२-१३ साल की उम्र से दूसरों के खेत-टांड में मजदूरी कर जिंदगी नयी यात्रा शुरू की। महुआ, लाह, करंज, आम, कटहल, इमली, डुमर, पाकर, बर, साग-पात तोड़ कर चुन-बिन कार जीना जीवन का एक हिस्सा बन गया। लेकिन जाने-अनजाने अंगुलियों ने जो कलम-कागज थाम लिये थे, वो हमेशा साथ रहा। चिलचिलाती धूप, मूसलाधर पानी, गरती बिजली, कड़कती ढंड ने हमेशा लड़ने और जीने का हौसला बुलंद किया।

पता नहीं चला कब मिडिल स्कूल पास की। अब हाई स्कूल -ग्लोशॉप मेमोरियल हाई स्कूल भी पास की। माँ रांची में दाई-नौकरानी, भाई कुली कर रहे हैं। पता नहीं वो कहां रहते हैं-लेकिन अब वहीं खुद भी पढ़ने की इच्छा है। हाथ में आठवीं पास सर्टिफिकेट लिये रांची अकेले आ गयी। सभी नया था। एक गोलाह में गाय के साथ एक कोने में रहना, अमिरों के दाई-नौकर, धोबी, कुली-रेजा मेरे दोस्त बने।

संत मरग्र्रेट हाई स्कूल रांची की नौवीं क्लास की छात्रा भी अब मैं थी। गांव का स्कुल और यहां का जमीन और आसमान का अंतर। अपने सहपठियों का और सिक्चाकों का भरपूर प्यार और सहयोग मिला। जीने के लिए मेन रो+ड़ सुजाता चैक के पुलिस छावनी में दाई-नौकरानी का नौकरी मिला। यहां से केवल खर्च नहीं चलने लगा-तो शहर के कई घरों में स्कूल जाने के पहले और स्कूल से लौट कर वर्तन साफ करने का मौका मिला।

मन में एक ही सवाल था-परीक्षा पास करना है। काॅलेज जाना है। यह अवसर भी मिला। कई संस्थानों में पार्ट टाईम काम करके, बच्चों को टूय’ान पढ़ा कर एम कम पास भी कर गयी। जिंदगी में दो साल एक एनजीओ में काम की। यहां भी वही छलावा, झूठ-फरेब। विद्रोह कर नौकरी से बाहर। मेरे सामने दो रास्ते थे। अपना जिंदगी के लिए नौकरी के रास्ते को चुनना यह फिर आदिवासी-मूलवासी, किसानों, दलितों, और जरूरतमंदों के साथ जीना। मैं सिर्फ संघर्षपूर्ण जिंदगी ही देखी, इसके अलावे और कुछ होता होगा तो मुछे नहीं पता।

मुझे दूसरा रास्ता अच्छा लगा-जहां से आज मैं आप के बीच हूं। 1995 में वर्तमान खूंटी जिला और गुमला जिला में बह रही कोईल और कारो नदी को बांध कर 710 मेगावाट का बिजली बनाने की सरकार ने घोषणा की। इस डैम के बांध जाने से 256 गांव डैम में डूब जाते। ढ़ाई लाख की आबादी अपने रहवास-धरीहर से उजड़ जाते। कुल 55 हजार एकड़ जमीन जलमग्न हो जाता जिसमें 27 हजार एकड़ जंगल भी डूब जाता। आदिवासियों के धार्मिक-सांस्कृतिक, इतिहासिक स्थल में 107 सरना, हजारों ससन दिरी भी जलमग्न हो जाता। एक ही नारा था-जान देगें लेकिन जमीन नहीं देगें। 2000 में आठ साथियों के शहादत के बाद आंदोलन बिजय हशील किया। 1993-94 में गुमला चैनपूर और पलामू जिला के नेतरहाट के पाठ में 245 गांवों को हटा कर फील्ड फायरिंग रेज बनाने की योजना केंन्द्र सरकार की थी। 30 सालों तक फयरिंग अभ्यास यहां चलता रहा। इस दौरान 60 महिलाएं सैनिकों के सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई।

1996 से वरिष्ठ पत्रकार श्री फैसल अनुराग और पत्रकार श्री वासवी किडो के मार्ग दर्शन में 7-8 आदिवासी युवाक-युवातियां मिलकर हम लोगों ने जनहक पत्रिका निकलाना प्ररंभ किये। जिम्मेवारी बढ़ी, गांव गांव की बातों का लेखन के मध्यम में राजतंत्र और जिम्मेदार व्यक्तियों ने सामने लाना। साथ ही पत्रिका के लिए पाठक तैयार करना। आदिवासियों के इतिहास, भाषा-संस्कृति और वर्तमान चुनौतियों पर लेखन को आगे बढ़ाने का अवसर प्रभात खबर ने दिया। 2000 में वरिष्ठ पत्रकार श्री पी साईनाथ जी की ओर से ग्रामीण पत्रकारिता के लिए काउंटर मीडिया पुरस्कार मिला। पुरस्कार में 10 हजार रू, एक कैमरा, एक टेपरेकाॅडर मिला। इसे मेरी जिम्मेवारी समाज के प्रति और अढ़ गयी। क्योंकि यह सम्मान-आदिवासी, मूलवासी, दलित, बंचित और दबे-कुचलों के आवाज को मिला।

राज्य के आदिवासियों के अपने हक अधिकार के संघर्ष में रहते हुए पहली बार 2000 में बंगला देश के आदिवासियों के बीच जाने का मौका मिला। वहां कई देशों के आंदोलन के प्रतिनिधि आये हुए थे। देश के हर कोने में चह रहे आंदोलनों को समझने का मौका मिला। साथ ही अंग्रेजों के समय झारखंड से कुली काम करने के लिए जे जाए गये आदिवासियों के बं’ाजों से मिलकर उनके पिड़ा को भी समझने का मौका मिला। 2000 अगस्त में ही झारंखड से दक्षिण अफ्रीका 5 लोगों की टीम एक्सपोजर के लिए गयी थी। उसी समय डरबन में रेशिजम पर सम्मेलन हो रहा था। उस सम्मेलन में विशव के आदिवासी मूददों को समझने का मौका तो मिला ही, साथ ही अंगे्रजी में अपनी अपना सवाल भी रखी। 25 दिनों का अफ्रीका प्रवास के दौरान ही पानी का नीजिकरण, बिजली का निजीकरण, टेलिफोन को निजीकरण आदि के वास्तविक प्रभाव को लोगों के जीवन में देखने-समझने का मौका मिला। अन्य गतिविधदियँा
1-जल, जंगल- जमीन रक्षा आंदोलन में भागीदारी- 1993 से 1994 तक नेतरहाट-फील्ड
फायरिंग आंदोलन में भागीदारी ।
1995 से आज तक कोयलकारो जल विद्युत
परियोजना के खिलाफ आंदोलन में भागीदारी
कर महिला नेतत्व खडा करना ।

2-विस्थापितों के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक स्थिति का अघ्ययन-
(क)-एच ई सी विस्थापितों का-जिला रांची- 1999-2000 ई में
(ख)- चांडिल डैम विस्थापितों का-जिला सराईकेला खरसंवा-2000 ई में
(ग)- तुरामडीह विस्थापितों का यूसीईएल कंपनी-से विस्थापित-पूर्वी सिंहभूम-2003 ई में

(घ)- तेनुघाट डैम विस्थापितों का-जिला बोकारो- 2006 ई में

(ड.)-बोकारो स्टील प्लांट विस्थापितों का- 2006 ई में

(च)-राउरकेला स्टील प्लांट विस्थापितों का-2008 ई में-उडिसा

3-महिला हक-अधिकार- वर्तमान खूंटी जिला, गुमला जिला तथा सिमडेगा जिला के कई प्रखंडों के
गाँव गाँव में बैठक, सेमिनार, सभांए करना@ स्त्री अधिकारों पर बहस करना, स्त्री स्वास्थ्य
पर चर्चा एवं क्तव्य रखना
(क) -गांव सभा में महिलाओं की भागीदारी के लिए महिलाओं को संगठित करना
(ख)-ग्राम सभा में महिलाओं की भागीदारी के लिए

(ग)- जनआंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी के लिए

(घ)- विकास योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी के लिए

(ड.)-राजनीति में महिलाओं के भागीदारी के सवाल का पर

1998 से 2000 तक स्त्री स्वास्थ्य एवं परंपरागत चिकित्सा पद्वति को लेकर तोरपा
प्रखंड के गाँंवों में कार्य ।

5- 1996 के 73वें संसोधन के पंचायत विस्तार कानूने पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद-चले स्वसा’ान आंदोलन में सक्रिया भागीदारी-आज तक

लेखन- 1995 से स्वतंत्र पत्रकार के रूप में प्रभात खबर के लिए गांवों के समस्याओं पर रिपोटिग -शुरू की

1ः विषय महिला हिंसा, अत्याचार और शोषण के विरूद MAHILAON
को आवाज देना

2ः महिलाओं को हक, अधिकार और न्याय की पहचान
कराना ।

3ः विस्थापितों की स्थिति पर

4ः आदिवासियों के इतिहास, झारखंड का इतिहास, झारखंड की वर्तमान स्थिति, नयी बाजार व्यवस्था में झारखंडी आदिवासी समाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, इतिहासिक पहचान पर मंडराता खतरा पर

5ः ग्रामीण आदिवासी महिलाओं, युवातिायों के पलायन पर अध्ययन परक लेख
6ः ग्रामीण इलाकों में विकास योजनाओं स्थिति पर अध्ययन परक लेख

7ः पी डी एस -ग्रामीणों इलाकों में इसकी स्थिति पर अध्ययन परक लेख
8ः नरेगा की स्थिति पर अध्ययन परक लेख

5ः पत्र-पत्रिकाएं, जिनमें लेख
रिपोर्ट आदि प्राकाशित हुए
1996 में हिन्दी दैनिक अखबार ”प्रभात खबर“ -हिन्दी एवं मुणडारी में

1996 से 1999 तक हिन्दी मासिक पत्रिका ”जनहक“ ।

1999 से 2001 तक हिन्दी दैनिक अखबार ”झारखंड जागरण“ ।

1997 से अब तक हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका ”अभियान“ ।

1997 से अब तक महिलाओं के लिए हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका
”आधी दुनिया“ ।

1998 से अब तक हिन्दी पत्रिका ”नारी संवाद“ ।

2000 से 2001 तक हिन्दी मासिक पत्रिका ”जनहूल“ ।

2001 से अब तक हिन्दी में प्रकाशित पत्रिका ”युद्वरत आम आदमी “ ।

2003 से अब तक हिन्दी ”घर बंधु“ पत्रिका में ।

समय समय पर हिन्दुस्तान, दैनिक जगरण, डाईणीख़ भास्कर आदि को भी लेख

6ः एन एफ आई डिसंबर 2003 से जून 2004 तक
(नेशनल फाउंडेशन फाॅर विषय-परंपरागत व्यवस्था में महिलाओं की स्थिति,
इंण्डिया) फेलोशिप पंचायकती राज तथा संसादीय राजनीति में
महिलाओं की स्थिति पर अध्यायन ।



7ः नरंेगा योजना में मजदूरों पर हो रहे शोषण के खिलाफ गुमला जिला के बसिया प्रखंड में आंदोलन-2006-7 में
8 -जनसूचना अधिकार के तहत गुमला जिला तथा खूंटी जिला के प्रखंडों से विकास जोयनाओं की जानकारी निकालकर ग्रामीणों का देना-

1ः बसिया प्रखंड- 2006-7 में -नरेगा योजनाओं की जानकारी
2ः सिसई प्रखंड-2007 में- नरेगा योजनाओं की जानकारी

3ः कमडारा प्रखंड-2006 - अंत्योदय, अन्नपूर्ण, बीपीएल सूची की जानकारी तथा पुरे प्रखंड के लाभुकों का मिलने वाले कुल रा’ान की जानकारी

4.ः कमडारा प्रखंड -नरेगा योजना 2006-7, 2008 की जानकारी

खूंटी जिला-1ः कर्रा प्रखंड -नरेगा योजना -2006-7 की जानकारी

2ः तोरपा प्रखंड- नरेगा योजना-2006-7 की जानकारी

3ः रनिया प्रखंड- रनेगा योजना-2006-7 की जानकारी

9- गुमला जिला और खूंटी जिला में कृर्षि का विकास के क्षेत्र में सरकार द्वारा किये गये -सिंचाई संबंधित कार्यो की जानकारी -जनसूचना कानून के तहत निकला कर ग्रामीणों को इसकी जानकारी देना-जारी है

10- संगठनों से जुड़ाव- 1ः सभी विस्थापितों के आंदोलनों के साथ-बोकारो बेरमो अनुमंडल विस्थापित समिति-बोकारो, एचईसी विस्थापित संयुक्त मोर्चा, तेनुघाट विस्थापित समिति

2ः आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच

3ः भूमि सुरक्षा समिति

4ः विस्थापन विरोधी नव निर्माण मोर्चा-झारखंड

5ः इप्टा-झारखंड

6ः नेशनल एलांश आफ वीमेन-नावो

7ः इंडियन सोशल एक्शान फाॅरम-इंसाफ

11- पुरस्कार- 1ः बेहतर ग्रामीण पत्रकारिता के लिए 8 जून,2000
को काउंटर मीडिया पुरस्कार ।

2ः बेहतर पत्रकारिता के लिए 2003 में मांझी सम्मान
3ः नेशनल मीडिया एवाड- 2003-4

4ः चिनगारी एवाड-2008


12- विदश यात्राएं- 1ः 2000 में- ढाका-बंगला दश - विस्थापन, आदिवासी सवालों पर सम्मेलन में
स्वराज फाउनडेशन गोवा के साथ
2ः 2000 में -दक्षिण अफ्रीका- एक्सपोजर वीजिट-आदिवासियों के बीच
बिरसा चाईबासा-झारखंड के साथ
3ः 2003 में- थईलैंड- बडे डैम के सवाल पर सम्मेलन में भाग
4ः 2004 में- फीलिपिंस- आदिवासी महिलाओं के सवालों पर सम्मेलन
5ः 2007 में -हेलसिंकी-फिनलैंड- विस्थापन एवं आदिवासी सवाल पर सम्मेलन
आदिवासी कोडिनेशन फिनलैंड के आमंत्रण पर

6ः 2007 में-अमेरिका-एआईडी के साथियों के आमंत्रण पर

7‘ 2008 में-फिनलैD - आदिवासी एवं विस्थापन के सवाल पर-
आदिवासी कोडिनेशन के आमंत्रण पर

8ः 2009 में -फिलिपिंस- खनिजों का दोहन एवं विस्थापन पर सम्मेलन

9ः 2009 में- जर्मनी- आदिवासी एवं विस्थापन के सवाल पर
आदिवासी कोडिनेशन जर्मनी के आमंत्रण पर
१०- फिलिपींस...ग्लोबल वार्मिंग
११- डरबन--ग्लोबल वार्मिंग--

14ः पुस्तिका- 1-1998 मे ”उलगुलान की औरतें“ पुस्तिका का संपादन ।

2-2007 में विस्थापन का दर्द
3-एक इंच जमीन नहीं देगें

4-2009 में स्वीट पोयजन

5-2009- दो दुनिया-अमेरिका यात्रा संस्मरण
13- जीविका का आधार-चाय की दुकान, होटल-क्लब रोड़ रांची

आज देश की सरकार पूरी तरह से देश -विदेश के पूंजिपतियों के समर्थन में उत्तर आयी है। किसानों के हाथ से एक एक इंच जमीन छीन कर पूंजिपतियों को मुनाफा कमाने के लिए सौंप रही है। पूरे देश के आदिवासी मूलवासी, किसान आंदोलित हैं। केंन्द्र सरकार अपने जजबात-हक अधिकार के से संघर्षरत आदिवासी मूलवासी, किसानों को गोलियों से भून रही है। झारखंड अलग राज्य बने ग्यारह साल हो गये। दस साल में राज्य सरकार ने 104 कंपानियों के साथ एम ओ यू किया हैं। इसमें मित्तल कंपनी भी एक बड़ी कंपनी है। जो खूंटी जिला और गुमला जिला कमडारा प्रखंड, तोरपा, रनिया और कर्रा प्रखंड के 38 कई दर्जन गांवों को उजाड़ कर स्टील प्लांट लगाना चाहती थी। 2006 से गांव गांव घूम कर लोगों को इसके बारे जानकारी देने, गोलबंद करने में सफल हुए। लगातार छह सालों तक दिन-रात आंदोलन चला। इस दरमियान दिन कहां बिताये, शाम कहां और रात कहां-पता भी नहीं चला। 2010 में मित्तल कंपनी को कहना पड़ा-कि इस इलाके में जनआंदोलन बहुत मजबूत है, इस कारण जमीन अधिग्रहण करना संभव नहीं है, हम दूसरा जगह देखेगें। ये जनता की
जीत रही।
२००६ से २०१२ के बीच जल-जंगल-जमीन की रक्छा का संघर्ष जीते..
१- खूंटी -गुमला जिला में मित्तल कंपनी १२ मिलियन टन का स्टील कारखाना लगाना चाहता था ४० गांवों को उजाड़ कर. इसके खिलाफ २००६ से संघष शुरू किये. २०१० के फ़रवरी महिना में मित्तल कंपनी ने कहा- खूंटी ओउर गुमला जिला में बिरोध के करना जमें अधिरहण संभव नहीं है, अपना प्रस्तावित प्रोजेक्ट के लिए दूसरा साईट देखेंगे..

२- खूंटी जिला के कर्रा ब्लाक के जबड़ा और घोर्पेंदा के बिच झट नदी में काँटी जलाशय के नाम पर १०३ करोड़ का बांध नन्ने वाला था..इसे १२ गाँव बिस्थापित होते..इसके खिलाफ संघर्ष शुरे किये १७ दिसंबर २०१० से- १२ जनवरी को कर्रा अंचल अधिकारी ने ग्रामीणों को बुला कर ..ग्रामीणों का बयां दर्ज किया..की ग्रामीण जमीन देना नहीं चाहते हैं..इस रिपोर्ट को जिला उपायुक्त के पास भेजा..

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