विकास के नाम पर आदिवासी-मूलवासियो को उजाड़ना बंद करो
23 अप्रैल 2012 को महासभा
विकास के नाम पर सरकार हम आदिवासी-मूलवासियों को उजाड़ कर कंगाल बनाना चाहती है। जिस तरह से एसईसी के विस्थापित, बोकारो स्टील प्लांट के विस्थापित, चंडिल डैम के विस्थापित सहित तमाम खदानों से उजाड़े गये लोगों को ,आज बेघार द्वार, बेरोजगार, भूंमिहीन, गरीब-कंगाल बना दिया गया है। ये विस्थापित आज एक बेला की रोटी के लिए, एक ग्लास पानी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। आज राज्य सरकार कांके इलाके के आदिवासी-मूलवासी, किसानों को भी नयी रांची के नाम पर 35 गांवों को उजाड़ने की तैयारी कर रही है। यही नहीं कांके-नगड़ी के किसानों का 227 एकड़ जमीन जबरजस्ती आई आई एम और लाॅ कालेज के लिए पुलिस के बल पर कब्ज कर रही है। नगड़ीवासी सरकार के इस गुंडाराज के खिलाफ कई वर्षों से संघर्षरत हैं। नगड़ीवासियों ने संकल्प लिया है-हम किसी भी कीमत पर अपने पूर्वजों का एक इंच जमीन नहीं देगें।
हम ग्रामीण अपने पूर्वजों का जमीन किसी भी कीमत पर बेचना नहीं चाहते हैं। क्योंकि जमीन हारी man हैं, हमारा इतिहास है, हमारा पहचान है। हम जब तक जमीन के साथ जुड़े हुए हैं-हम आदिवासी-मूलवासी किसान हैं। जमीन से उजड़ने के बाद हमारा अस्तित्व-पहचान, भाषा-संस्कृति और इतिहास अपने आप मिट जाएगा। जमीन ही हमारा जीविका का एक मात्र साधन भी है। इसलिए जमीन और गांव को हर हाल में हमें बचाना होगा।
अब सरकार नयी रांची बनाने के नाम पर 35 गांवों को उजाड़ने की तैयारी कर रही है। अगर ऐसा होता है-तो इस इलाके के हम आदिवासी-मूलवासी किसानों का नमानिshaन मिट जाएगा। इस इलाके में पूंजिपतियों, बाहरियों का राज कायम होगा। इससे हम खूद तो खत्म हो जाएगें ही-साथ ही हमारा सामाजिक, संस्कृतिक पहचान भी पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
आजादी के बाद विभिन्न विकास योजनाओं से 2 करोड़ से ज्यादा झारखंडी आदिवासी- ं-मूलवासी विकास के नाम से उजड़ चुके हैं। आज ये विस्थापित कहां हैं, किस हाल में हैं, जिंदा हैं या मर गये, इसकी जानकारी न तो सरकार को है और न ही राजनेताओं को। यही कारण है कि -झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या दिनों-दिन घटते जो रही है। एक दिन एैसा आएगा-कि राज्य में आदिवासियों और मूलवासियों, किसानों का नमानिshaन नहीं बचेगा। हम आदिवासी-मूलवासियों का जमीन, घर-द्वार सभी लूटा जा रहा है। बाहरी लोग भी लूट रहे हैं, और सरकार भी, और deshi -विदेshi कंपनियां भी। इतिहास हमें बताता है कि हमारा इस जमीन को हमारे पूर्वजों ने सांप-भालू-बिच्छू से लड़कर बनाया है और आज तक हमारे लिए इससे सुरक्षित रखा। अब हम लोगों का जिम्मेवारी है इस जमीन का रक्षा करना।
इसी उद्वे’य से 23 अप्रैल 2012 को नगड़ी चैंवरा-धरनास्थल में 11 बजे से विshaल महासभा रखा गया है। आप सभी इसमें आमंत्रित हैं। ताकि हम सभी मिल कर झारखंड को उजड़ने से बचा सकें। हमारा खेत-जमीन, टांड-जंगल-पहाड़ ही हमारा सीएनटी एक्ट है-इसलिए सीएनटी बचाना को बचाना है तो गांव-समाज, खेत-खलिहान को भी बचाना होगा।
आपील-भारी से भारी संख्या में 23 अप्रैल को महासभा में अपना परंपारिक ढोल-नागाड़ा, मंदर, और झंडा के साथ आयें।
निवेदक-कांके प्रखंड के 35 गांव
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