kuch दिनों से तकनिकी दिकतें आ रही है...इससे समझने की कोशी कर रही हूँ...
VOICE OF HULGULANLAND AGAINST GLOBLISATION AND COMMUNAL FACISM. OUR LAND SLOGAN BIRBURU OTE HASAA GARA BEAA ABUA ABUA. LAND'FORESTAND WATER IS OURS.
Sunday, April 29, 2012
Tuesday, April 17, 2012
लोग मुझ से पूछते हैं-तुम कब इस लाईन याने सामाजिक सेवा में हो, कैसे इस लाइन में आने की सोची, तुम्हारा जन्म कब हुआ है ? इन तीन सवालों का जबाव मेरे पास न
लोग मुझ से पूछते हैं-तुम कब इस लाईन याने सामाजिक सेवा में हो, कैसे इस लाइन में आने की सोची, तुम्हारा जन्म कब हुआ है ? इन तीन सवालों का जबाव मेरे पास नहीं हैं। कब से ? मैं नहीं जानती । इसलिए की जब से मैं होश संभाली मैं कभी अपने परिवार को लूटाते देखी, कभी पूरा समाज को लूटाते तो कभी पूरा राज्य को लूटाते देखते आ रही हूँ । 10-12 साल की उम्र की मैं थी तब अपने माता-पिता को लूटाते देखी। मेरे अनपढ़ पिताजी को सादा कागज में अंगुठा का निशान लगवा कर पिता जी को मिला मझियस जमीन को गुमला कोर्ट में गुमला जिला के कमडारा प्रखंड के सालेगुटू के साहू के नाम कर दिया गया। मेरा परिवार जमीन वापस पाने के लिए कई सालों तक अरहारा गांव से गुमला कोर्ट दो दिनों तक पैदल चल कर लड़ते रहे। साहू परिवार और ओहदार परिवार ने गांव वालों को इतना धमकी दे रखा था कि मेरे पिता के तरफ से एक भी गवाही देने कोर्ट खड़ा नहीं हो सके।
मेरे माता-पिता 10-12 एक जमीन के मालिक थे। अब भूमिंहीन हो गये ।साल भर खूद खाते और दूसरों को भी खिलाते थे-अब पूरा परिवार दूसरों का नौकर बन गये। चैथा क्लास में ही मैं परिवार विलीन हो गयी। पिता जी दूर दूसरे गांव में धांगर, मझिला बडा+ भाई, अपने ही गांव में दूसरों घर नौकर, माँ रांची में अमीरों के घर दाई, मझिला बड़ा भाई रांची में कुली। मैं और मुझसे बड़ा भाई अपने घर में। जो खाली घर रह गया था। गाय-बैल-भैंस, बकरी, सुवर सभी केस सभी केस लड़ते लड़ते बिक चुके।
१२-१३ साल की उम्र से दूसरों के खेत-टांड में मजदूरी कर जिंदगी नयी यात्रा शुरू की। महुआ, लाह, करंज, आम, कटहल, इमली, डुमर, पाकर, बर, साग-पात तोड़ कर चुन-बिन कार जीना जीवन का एक हिस्सा बन गया। लेकिन जाने-अनजाने अंगुलियों ने जो कलम-कागज थाम लिये थे, वो हमेशा साथ रहा। चिलचिलाती धूप, मूसलाधर पानी, गरती बिजली, कड़कती ढंड ने हमेशा लड़ने और जीने का हौसला बुलंद किया।
पता नहीं चला कब मिडिल स्कूल पास की। अब हाई स्कूल -ग्लोशॉप मेमोरियल हाई स्कूल भी पास की। माँ रांची में दाई-नौकरानी, भाई कुली कर रहे हैं। पता नहीं वो कहां रहते हैं-लेकिन अब वहीं खुद भी पढ़ने की इच्छा है। हाथ में आठवीं पास सर्टिफिकेट लिये रांची अकेले आ गयी। सभी नया था। एक गोलाह में गाय के साथ एक कोने में रहना, अमिरों के दाई-नौकर, धोबी, कुली-रेजा मेरे दोस्त बने।
संत मरग्र्रेट हाई स्कूल रांची की नौवीं क्लास की छात्रा भी अब मैं थी। गांव का स्कुल और यहां का जमीन और आसमान का अंतर। अपने सहपठियों का और सिक्चाकों का भरपूर प्यार और सहयोग मिला। जीने के लिए मेन रो+ड़ सुजाता चैक के पुलिस छावनी में दाई-नौकरानी का नौकरी मिला। यहां से केवल खर्च नहीं चलने लगा-तो शहर के कई घरों में स्कूल जाने के पहले और स्कूल से लौट कर वर्तन साफ करने का मौका मिला।
मन में एक ही सवाल था-परीक्षा पास करना है। काॅलेज जाना है। यह अवसर भी मिला। कई संस्थानों में पार्ट टाईम काम करके, बच्चों को टूय’ान पढ़ा कर एम कम पास भी कर गयी। जिंदगी में दो साल एक एनजीओ में काम की। यहां भी वही छलावा, झूठ-फरेब। विद्रोह कर नौकरी से बाहर। मेरे सामने दो रास्ते थे। अपना जिंदगी के लिए नौकरी के रास्ते को चुनना यह फिर आदिवासी-मूलवासी, किसानों, दलितों, और जरूरतमंदों के साथ जीना। मैं सिर्फ संघर्षपूर्ण जिंदगी ही देखी, इसके अलावे और कुछ होता होगा तो मुछे नहीं पता।
मुझे दूसरा रास्ता अच्छा लगा-जहां से आज मैं आप के बीच हूं। 1995 में वर्तमान खूंटी जिला और गुमला जिला में बह रही कोईल और कारो नदी को बांध कर 710 मेगावाट का बिजली बनाने की सरकार ने घोषणा की। इस डैम के बांध जाने से 256 गांव डैम में डूब जाते। ढ़ाई लाख की आबादी अपने रहवास-धरीहर से उजड़ जाते। कुल 55 हजार एकड़ जमीन जलमग्न हो जाता जिसमें 27 हजार एकड़ जंगल भी डूब जाता। आदिवासियों के धार्मिक-सांस्कृतिक, इतिहासिक स्थल में 107 सरना, हजारों ससन दिरी भी जलमग्न हो जाता। एक ही नारा था-जान देगें लेकिन जमीन नहीं देगें। 2000 में आठ साथियों के शहादत के बाद आंदोलन बिजय हशील किया। 1993-94 में गुमला चैनपूर और पलामू जिला के नेतरहाट के पाठ में 245 गांवों को हटा कर फील्ड फायरिंग रेज बनाने की योजना केंन्द्र सरकार की थी। 30 सालों तक फयरिंग अभ्यास यहां चलता रहा। इस दौरान 60 महिलाएं सैनिकों के सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई।
1996 से वरिष्ठ पत्रकार श्री फैसल अनुराग और पत्रकार श्री वासवी किडो के मार्ग दर्शन में 7-8 आदिवासी युवाक-युवातियां मिलकर हम लोगों ने जनहक पत्रिका निकलाना प्ररंभ किये। जिम्मेवारी बढ़ी, गांव गांव की बातों का लेखन के मध्यम में राजतंत्र और जिम्मेदार व्यक्तियों ने सामने लाना। साथ ही पत्रिका के लिए पाठक तैयार करना। आदिवासियों के इतिहास, भाषा-संस्कृति और वर्तमान चुनौतियों पर लेखन को आगे बढ़ाने का अवसर प्रभात खबर ने दिया। 2000 में वरिष्ठ पत्रकार श्री पी साईनाथ जी की ओर से ग्रामीण पत्रकारिता के लिए काउंटर मीडिया पुरस्कार मिला। पुरस्कार में 10 हजार रू, एक कैमरा, एक टेपरेकाॅडर मिला। इसे मेरी जिम्मेवारी समाज के प्रति और अढ़ गयी। क्योंकि यह सम्मान-आदिवासी, मूलवासी, दलित, बंचित और दबे-कुचलों के आवाज को मिला।
राज्य के आदिवासियों के अपने हक अधिकार के संघर्ष में रहते हुए पहली बार 2000 में बंगला देश के आदिवासियों के बीच जाने का मौका मिला। वहां कई देशों के आंदोलन के प्रतिनिधि आये हुए थे। देश के हर कोने में चह रहे आंदोलनों को समझने का मौका मिला। साथ ही अंग्रेजों के समय झारखंड से कुली काम करने के लिए जे जाए गये आदिवासियों के बं’ाजों से मिलकर उनके पिड़ा को भी समझने का मौका मिला। 2000 अगस्त में ही झारंखड से दक्षिण अफ्रीका 5 लोगों की टीम एक्सपोजर के लिए गयी थी। उसी समय डरबन में रेशिजम पर सम्मेलन हो रहा था। उस सम्मेलन में विशव के आदिवासी मूददों को समझने का मौका तो मिला ही, साथ ही अंगे्रजी में अपनी अपना सवाल भी रखी। 25 दिनों का अफ्रीका प्रवास के दौरान ही पानी का नीजिकरण, बिजली का निजीकरण, टेलिफोन को निजीकरण आदि के वास्तविक प्रभाव को लोगों के जीवन में देखने-समझने का मौका मिला। अन्य गतिविधदियँा
1-जल, जंगल- जमीन रक्षा आंदोलन में भागीदारी- 1993 से 1994 तक नेतरहाट-फील्ड
फायरिंग आंदोलन में भागीदारी ।
1995 से आज तक कोयलकारो जल विद्युत
परियोजना के खिलाफ आंदोलन में भागीदारी
कर महिला नेतत्व खडा करना ।
2-विस्थापितों के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक स्थिति का अघ्ययन-
(क)-एच ई सी विस्थापितों का-जिला रांची- 1999-2000 ई में
(ख)- चांडिल डैम विस्थापितों का-जिला सराईकेला खरसंवा-2000 ई में
(ग)- तुरामडीह विस्थापितों का यूसीईएल कंपनी-से विस्थापित-पूर्वी सिंहभूम-2003 ई में
(घ)- तेनुघाट डैम विस्थापितों का-जिला बोकारो- 2006 ई में
(ड.)-बोकारो स्टील प्लांट विस्थापितों का- 2006 ई में
(च)-राउरकेला स्टील प्लांट विस्थापितों का-2008 ई में-उडिसा
3-महिला हक-अधिकार- वर्तमान खूंटी जिला, गुमला जिला तथा सिमडेगा जिला के कई प्रखंडों के
गाँव गाँव में बैठक, सेमिनार, सभांए करना@ स्त्री अधिकारों पर बहस करना, स्त्री स्वास्थ्य
पर चर्चा एवं क्तव्य रखना
(क) -गांव सभा में महिलाओं की भागीदारी के लिए महिलाओं को संगठित करना
(ख)-ग्राम सभा में महिलाओं की भागीदारी के लिए
(ग)- जनआंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी के लिए
(घ)- विकास योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी के लिए
(ड.)-राजनीति में महिलाओं के भागीदारी के सवाल का पर
1998 से 2000 तक स्त्री स्वास्थ्य एवं परंपरागत चिकित्सा पद्वति को लेकर तोरपा
प्रखंड के गाँंवों में कार्य ।
5- 1996 के 73वें संसोधन के पंचायत विस्तार कानूने पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद-चले स्वसा’ान आंदोलन में सक्रिया भागीदारी-आज तक
लेखन- 1995 से स्वतंत्र पत्रकार के रूप में प्रभात खबर के लिए गांवों के समस्याओं पर रिपोटिग -शुरू की
1ः विषय महिला हिंसा, अत्याचार और शोषण के विरूद MAHILAON ं
को आवाज देना
2ः महिलाओं को हक, अधिकार और न्याय की पहचान
कराना ।
3ः विस्थापितों की स्थिति पर
4ः आदिवासियों के इतिहास, झारखंड का इतिहास, झारखंड की वर्तमान स्थिति, नयी बाजार व्यवस्था में झारखंडी आदिवासी समाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, इतिहासिक पहचान पर मंडराता खतरा पर
5ः ग्रामीण आदिवासी महिलाओं, युवातिायों के पलायन पर अध्ययन परक लेख
6ः ग्रामीण इलाकों में विकास योजनाओं स्थिति पर अध्ययन परक लेख
7ः पी डी एस -ग्रामीणों इलाकों में इसकी स्थिति पर अध्ययन परक लेख
8ः नरेगा की स्थिति पर अध्ययन परक लेख
5ः पत्र-पत्रिकाएं, जिनमें लेख
रिपोर्ट आदि प्राकाशित हुए
1996 में हिन्दी दैनिक अखबार ”प्रभात खबर“ -हिन्दी एवं मुणडारी में
1996 से 1999 तक हिन्दी मासिक पत्रिका ”जनहक“ ।
1999 से 2001 तक हिन्दी दैनिक अखबार ”झारखंड जागरण“ ।
1997 से अब तक हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका ”अभियान“ ।
1997 से अब तक महिलाओं के लिए हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका
”आधी दुनिया“ ।
1998 से अब तक हिन्दी पत्रिका ”नारी संवाद“ ।
2000 से 2001 तक हिन्दी मासिक पत्रिका ”जनहूल“ ।
2001 से अब तक हिन्दी में प्रकाशित पत्रिका ”युद्वरत आम आदमी “ ।
2003 से अब तक हिन्दी ”घर बंधु“ पत्रिका में ।
समय समय पर हिन्दुस्तान, दैनिक जगरण, डाईणीख़ भास्कर आदि को भी लेख
6ः एन एफ आई डिसंबर 2003 से जून 2004 तक
(नेशनल फाउंडेशन फाॅर विषय-परंपरागत व्यवस्था में महिलाओं की स्थिति,
इंण्डिया) फेलोशिप पंचायकती राज तथा संसादीय राजनीति में
महिलाओं की स्थिति पर अध्यायन ।
7ः नरंेगा योजना में मजदूरों पर हो रहे शोषण के खिलाफ गुमला जिला के बसिया प्रखंड में आंदोलन-2006-7 में
8 -जनसूचना अधिकार के तहत गुमला जिला तथा खूंटी जिला के प्रखंडों से विकास जोयनाओं की जानकारी निकालकर ग्रामीणों का देना-
1ः बसिया प्रखंड- 2006-7 में -नरेगा योजनाओं की जानकारी
2ः सिसई प्रखंड-2007 में- नरेगा योजनाओं की जानकारी
3ः कमडारा प्रखंड-2006 - अंत्योदय, अन्नपूर्ण, बीपीएल सूची की जानकारी तथा पुरे प्रखंड के लाभुकों का मिलने वाले कुल रा’ान की जानकारी
4.ः कमडारा प्रखंड -नरेगा योजना 2006-7, 2008 की जानकारी
खूंटी जिला-1ः कर्रा प्रखंड -नरेगा योजना -2006-7 की जानकारी
2ः तोरपा प्रखंड- नरेगा योजना-2006-7 की जानकारी
3ः रनिया प्रखंड- रनेगा योजना-2006-7 की जानकारी
9- गुमला जिला और खूंटी जिला में कृर्षि का विकास के क्षेत्र में सरकार द्वारा किये गये -सिंचाई संबंधित कार्यो की जानकारी -जनसूचना कानून के तहत निकला कर ग्रामीणों को इसकी जानकारी देना-जारी है
10- संगठनों से जुड़ाव- 1ः सभी विस्थापितों के आंदोलनों के साथ-बोकारो बेरमो अनुमंडल विस्थापित समिति-बोकारो, एचईसी विस्थापित संयुक्त मोर्चा, तेनुघाट विस्थापित समिति
2ः आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
3ः भूमि सुरक्षा समिति
4ः विस्थापन विरोधी नव निर्माण मोर्चा-झारखंड
5ः इप्टा-झारखंड
6ः नेशनल एलांश आफ वीमेन-नावो
7ः इंडियन सोशल एक्शान फाॅरम-इंसाफ
11- पुरस्कार- 1ः बेहतर ग्रामीण पत्रकारिता के लिए 8 जून,2000
को काउंटर मीडिया पुरस्कार ।
2ः बेहतर पत्रकारिता के लिए 2003 में मांझी सम्मान
3ः नेशनल मीडिया एवाड- 2003-4
4ः चिनगारी एवाड-2008
12- विदश यात्राएं- 1ः 2000 में- ढाका-बंगला दश - विस्थापन, आदिवासी सवालों पर सम्मेलन में
स्वराज फाउनडेशन गोवा के साथ
2ः 2000 में -दक्षिण अफ्रीका- एक्सपोजर वीजिट-आदिवासियों के बीच
बिरसा चाईबासा-झारखंड के साथ
3ः 2003 में- थईलैंड- बडे डैम के सवाल पर सम्मेलन में भाग
4ः 2004 में- फीलिपिंस- आदिवासी महिलाओं के सवालों पर सम्मेलन
5ः 2007 में -हेलसिंकी-फिनलैंड- विस्थापन एवं आदिवासी सवाल पर सम्मेलन
आदिवासी कोडिनेशन फिनलैंड के आमंत्रण पर
6ः 2007 में-अमेरिका-एआईडी के साथियों के आमंत्रण पर
7‘ 2008 में-फिनलैD - आदिवासी एवं विस्थापन के सवाल पर-
आदिवासी कोडिनेशन के आमंत्रण पर
8ः 2009 में -फिलिपिंस- खनिजों का दोहन एवं विस्थापन पर सम्मेलन
9ः 2009 में- जर्मनी- आदिवासी एवं विस्थापन के सवाल पर
आदिवासी कोडिनेशन जर्मनी के आमंत्रण पर
१०- फिलिपींस...ग्लोबल वार्मिंग
११- डरबन--ग्लोबल वार्मिंग--
14ः पुस्तिका- 1-1998 मे ”उलगुलान की औरतें“ पुस्तिका का संपादन ।
2-2007 में विस्थापन का दर्द
3-एक इंच जमीन नहीं देगें
4-2009 में स्वीट पोयजन
5-2009- दो दुनिया-अमेरिका यात्रा संस्मरण
13- जीविका का आधार-चाय की दुकान, होटल-क्लब रोड़ रांची
आज देश की सरकार पूरी तरह से देश -विदेश के पूंजिपतियों के समर्थन में उत्तर आयी है। किसानों के हाथ से एक एक इंच जमीन छीन कर पूंजिपतियों को मुनाफा कमाने के लिए सौंप रही है। पूरे देश के आदिवासी मूलवासी, किसान आंदोलित हैं। केंन्द्र सरकार अपने जजबात-हक अधिकार के से संघर्षरत आदिवासी मूलवासी, किसानों को गोलियों से भून रही है। झारखंड अलग राज्य बने ग्यारह साल हो गये। दस साल में राज्य सरकार ने 104 कंपानियों के साथ एम ओ यू किया हैं। इसमें मित्तल कंपनी भी एक बड़ी कंपनी है। जो खूंटी जिला और गुमला जिला कमडारा प्रखंड, तोरपा, रनिया और कर्रा प्रखंड के 38 कई दर्जन गांवों को उजाड़ कर स्टील प्लांट लगाना चाहती थी। 2006 से गांव गांव घूम कर लोगों को इसके बारे जानकारी देने, गोलबंद करने में सफल हुए। लगातार छह सालों तक दिन-रात आंदोलन चला। इस दरमियान दिन कहां बिताये, शाम कहां और रात कहां-पता भी नहीं चला। 2010 में मित्तल कंपनी को कहना पड़ा-कि इस इलाके में जनआंदोलन बहुत मजबूत है, इस कारण जमीन अधिग्रहण करना संभव नहीं है, हम दूसरा जगह देखेगें। ये जनता की
जीत रही।
२००६ से २०१२ के बीच जल-जंगल-जमीन की रक्छा का संघर्ष जीते..
१- खूंटी -गुमला जिला में मित्तल कंपनी १२ मिलियन टन का स्टील कारखाना लगाना चाहता था ४० गांवों को उजाड़ कर. इसके खिलाफ २००६ से संघष शुरू किये. २०१० के फ़रवरी महिना में मित्तल कंपनी ने कहा- खूंटी ओउर गुमला जिला में बिरोध के करना जमें अधिरहण संभव नहीं है, अपना प्रस्तावित प्रोजेक्ट के लिए दूसरा साईट देखेंगे..
२- खूंटी जिला के कर्रा ब्लाक के जबड़ा और घोर्पेंदा के बिच झट नदी में काँटी जलाशय के नाम पर १०३ करोड़ का बांध नन्ने वाला था..इसे १२ गाँव बिस्थापित होते..इसके खिलाफ संघर्ष शुरे किये १७ दिसंबर २०१० से- १२ जनवरी को कर्रा अंचल अधिकारी ने ग्रामीणों को बुला कर ..ग्रामीणों का बयां दर्ज किया..की ग्रामीण जमीन देना नहीं चाहते हैं..इस रिपोर्ट को जिला उपायुक्त के पास भेजा..
Saturday, April 14, 2012
WE DON'T WANT TO GIVE OUR ANCESTERAL LAND FOR DAM...ITS REALY..DESTRYED OUR RIGHT..LIVELIHOOD, CULTURE , HISTROY AND IDENTIRY.
MEETING AT SHILADON VILLAGE..ON 14 APRIL 12...ABOUT TAJNA DAM PROPOSED BY STATE GOVERNMENT...BY PER THE EXCT...ENGINEER SHRI BACNESWAR ...JAL SANSADHAN BIBHAG KHUNTI...THIS PROJECT WAS PROPOSED BEFORE 28 YEARS AGO..BUT ITS APROVED ON 7-8 FINANCIAL YEAR..ITS BUDGEDED..ABOUT 58 CRORE . GOVT. GAVE THE TENDAR TO CONTRACTOR SHREE PANCHAM SHING ..IN 2008. EXCT..ENGENEER TOLD..THE CONTRACTOR MAKE HIS BUDGET ABOUT 68 CRORE..HE ADDING EXTRA..20% ON BUDGET. THAT SWHY GOVT..REJECTED HIS TENDAR ON GOVERNER RULE IN 2010 IN STATE. AFTER REJECTING HIS TENDAR CONTRATOR LODGE THE CASE ON HIGH COUT TO COUTINUE THEIR RIGHT OF CONTRACT ON THIS PROJECT. HE CALLED SUPRICE COURT LAWER TO DEBETE ON SUCH CASE..BUT HE FAILED ..AND GOVT. WAS WINNE
AFTER TAHT GOVT. GAVE TENDAR TO AWANTIKA CONSTRUCTION BELONG BY HYDRABAD...ON 2010. NOW THEY STATED THE SUVREY WORK AT GROUND WITHOUT ANY TAKEING CONCENT BY THE LOCAL PEOPLES. VILLAGER TELL..WE DON'T KNOW WHAT IS GOING HERE..SOME PEOPLES CAME HERE AND ..THEY SHEARCHING SOTINK ON REVER BANK..MR..TADKAN HERENJ OF DHANAMUNJI VILLAGE..TOLD ..ONE I SAW THREE -FOUR PEOPLES ARE DOING SOME THING ON REVER BAND..WHEN I CAME CLOSE THEM AND ASKED...WHAT ARE YOU DOING HERE...LET ME KNOW..AND WHO ARE U..? TADKAN TOLD..WHEN I HAVE ASKED..THEY DID'T REPLED...AND RUN AWAY...
VILLEGER TELLING ...WE ARE THE SON OF SOIL...WHY GOVT...HIJECED OUR RIGHT...WE DON'T WANT TO GIVE OUR ANCESTERAL LAND FOR DAM...ITS REALY..DESTRYED OUR RIGHT..LIVELIHOOD, CULTURE , HISTROY AND IDENTIRY...
Friday, April 6, 2012
विकास के नाम पर सरकार हम आदिवासी-मूलवासियों को उजाड़ कर कंगाल बनाना चाहती है।
विकास के नाम पर आदिवासी-मूलवासियो को उजाड़ना बंद करो
23 अप्रैल 2012 को महासभा
विकास के नाम पर सरकार हम आदिवासी-मूलवासियों को उजाड़ कर कंगाल बनाना चाहती है। जिस तरह से एसईसी के विस्थापित, बोकारो स्टील प्लांट के विस्थापित, चंडिल डैम के विस्थापित सहित तमाम खदानों से उजाड़े गये लोगों को ,आज बेघार द्वार, बेरोजगार, भूंमिहीन, गरीब-कंगाल बना दिया गया है। ये विस्थापित आज एक बेला की रोटी के लिए, एक ग्लास पानी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। आज राज्य सरकार कांके इलाके के आदिवासी-मूलवासी, किसानों को भी नयी रांची के नाम पर 35 गांवों को उजाड़ने की तैयारी कर रही है। यही नहीं कांके-नगड़ी के किसानों का 227 एकड़ जमीन जबरजस्ती आई आई एम और लाॅ कालेज के लिए पुलिस के बल पर कब्ज कर रही है। नगड़ीवासी सरकार के इस गुंडाराज के खिलाफ कई वर्षों से संघर्षरत हैं। नगड़ीवासियों ने संकल्प लिया है-हम किसी भी कीमत पर अपने पूर्वजों का एक इंच जमीन नहीं देगें।
हम ग्रामीण अपने पूर्वजों का जमीन किसी भी कीमत पर बेचना नहीं चाहते हैं। क्योंकि जमीन हारी man हैं, हमारा इतिहास है, हमारा पहचान है। हम जब तक जमीन के साथ जुड़े हुए हैं-हम आदिवासी-मूलवासी किसान हैं। जमीन से उजड़ने के बाद हमारा अस्तित्व-पहचान, भाषा-संस्कृति और इतिहास अपने आप मिट जाएगा। जमीन ही हमारा जीविका का एक मात्र साधन भी है। इसलिए जमीन और गांव को हर हाल में हमें बचाना होगा।
अब सरकार नयी रांची बनाने के नाम पर 35 गांवों को उजाड़ने की तैयारी कर रही है। अगर ऐसा होता है-तो इस इलाके के हम आदिवासी-मूलवासी किसानों का नमानिshaन मिट जाएगा। इस इलाके में पूंजिपतियों, बाहरियों का राज कायम होगा। इससे हम खूद तो खत्म हो जाएगें ही-साथ ही हमारा सामाजिक, संस्कृतिक पहचान भी पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
आजादी के बाद विभिन्न विकास योजनाओं से 2 करोड़ से ज्यादा झारखंडी आदिवासी- ं-मूलवासी विकास के नाम से उजड़ चुके हैं। आज ये विस्थापित कहां हैं, किस हाल में हैं, जिंदा हैं या मर गये, इसकी जानकारी न तो सरकार को है और न ही राजनेताओं को। यही कारण है कि -झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या दिनों-दिन घटते जो रही है। एक दिन एैसा आएगा-कि राज्य में आदिवासियों और मूलवासियों, किसानों का नमानिshaन नहीं बचेगा। हम आदिवासी-मूलवासियों का जमीन, घर-द्वार सभी लूटा जा रहा है। बाहरी लोग भी लूट रहे हैं, और सरकार भी, और deshi -विदेshi कंपनियां भी। इतिहास हमें बताता है कि हमारा इस जमीन को हमारे पूर्वजों ने सांप-भालू-बिच्छू से लड़कर बनाया है और आज तक हमारे लिए इससे सुरक्षित रखा। अब हम लोगों का जिम्मेवारी है इस जमीन का रक्षा करना।
इसी उद्वे’य से 23 अप्रैल 2012 को नगड़ी चैंवरा-धरनास्थल में 11 बजे से विshaल महासभा रखा गया है। आप सभी इसमें आमंत्रित हैं। ताकि हम सभी मिल कर झारखंड को उजड़ने से बचा सकें। हमारा खेत-जमीन, टांड-जंगल-पहाड़ ही हमारा सीएनटी एक्ट है-इसलिए सीएनटी बचाना को बचाना है तो गांव-समाज, खेत-खलिहान को भी बचाना होगा।
आपील-भारी से भारी संख्या में 23 अप्रैल को महासभा में अपना परंपारिक ढोल-नागाड़ा, मंदर, और झंडा के साथ आयें।
निवेदक-कांके प्रखंड के 35 गांव
२७ मार्च २०१२ की डायरी ...सी एन टी एक्ट--खूंटी तजना नदी -तजना डैम
27 मार्च 2012
आज आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच की ओर से सीएनटी एक्ट को लेकर खूंटी जिला मूख्यालय में रैली और सभा का आयोजन किया गया है। रैली 10 बजे से तोरपा रोड़ दयासागर के समीप से निकलेगी। गरर्मी तेज होते जा रही है। इसलिए साथियों ने कहा-कि गांव से लोग जल्दी निकलें, ताकि हमलोग धुप तेज होने के पहले रैली निकाल सकें। मैंने रांची से खूंटी निकलने के पहले ही तय की -आज मुझे खूंटी में क्या क्या करना है, मैंने जलसंसाधन विभाग खूंटी के नाम एक आरटीआई आवेदन -तजना नदी में प्रस्तावित डैम के बारे में जानकारी मांगने के लिए लिखी हूं। मैं 4 मार्च को इस आवेदन के साथ कदमा स्थित जलसंसाधन कार्यालय भी गयी थी। उस दिन एक्जक्यूटिव इंजिनियर श्री बच्नेशेश्वर बुंडू मंत्री सुदेश महतो का कार्यक्रम के लिए गये थे। उनके कर्मचारियों के साथ डेम के संबंध में बातें हुर्ए, आरटीआई आवेदन के बारे भीं। लेकिन श्री बचनेशेश्वर जी ने मुझे मना किया आवेदन देने से। बोले-मेडम आप को जो भी सूचना चाहिए, मैं आप को दे दुंगा। मैं रांची में आप के बगल ही रहता हैं-रविवार को कापी आप के घर पहुंचा दुंगा। मैंने बिश्वाश किया और आवेदन छोड़ कर नहीं आयी।
लेकिन आज तक संबंधित डैम संबंधित जानकारी कोई भी कागजात मुझे नहीं मिला। आज खूंटी जाना है। मैंने जाते समय इंजिनियर श्री बचनेशावर जी से फोन की-बोली आज मैं आप के पास आ रही हुं-आप को डैम से संबंधित जानकारी की कापी मांगी थी-फोटो कापी करके रखे रहिएगा-मैं आ रही हूँ । जवाब में श्री बच्नेशावार्जी ने कहा-मैडम आप को मिल जाएगा लेकिन मैं अभी रांची में एक बैठक में हुं। दूसरी बेला ही खूंटी जा सकता हूं। मैं ने कहा-ठीक है-मैं इंतजार करूंगी। आज खूंटी का रैली के लिए मेरे साथ कांके-नगड़ी में आईआईएम और लव कालेज के लिए सरकार किसानों का 227 तकड़ जमीन पुलिस के बल पर कब्जा करने जा रही हैं। इसके खिलाफ में संघर्षरत ग्रमीण 3 मार्च 2012 से अपने खेत में सत्यग्रह आंदोलन में बैठे हैं। इन लोगों के बीच से सविता और मंजुला मेंरे साथ आज खूंटी जा रहे हैं।
11.3.0 बजे तक आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के तोरपा के कई गांवों के साथी आ पहूंचे हैं। कर्रा में कांटी जलशय के खिलाफ संघर्षरत-डैम प्रभावित संघर्ष समिति से भी जबड़ा से आ चुके हैं। कुलड़ा और कनकलोया के साथी रास्ते में हैं पहुंचे नहीं हैं। इन सभी साथियों का इंतजार कर रहे हैं-क्योंकि सभी रैली के लिए निकले हैं। 5 मिनट के भीतर ही कोरको टोली का ट्रक पहुंच गया। इसमें महिला, पुरूष, नवजवान तथा बच्चे हर उम्र के लोग आये हैं। बंधना और बुधवा ने बताया-दीदी कुलड़ा वालों को ड्राईवर नहीं मिल रहा था-हमलोग अपना गांव का लड़का को कुलड़ा वालों का गाड़ी चलाने के लिए लाये हैं। वो लोग हम लोगों के पीछे थे-पहुंच ही रहे हैं। जैसे ही कुलडा वाले पहुंचे-रैली निकल गयी।
रैली में एक माईक आगे आगे रिक्सा में था। दूसरा माईक बीच में पुरूषों के साथ था। लोग साईकिल में बैटरी को बांधे हुए थे और चोंगा को एक पुरूष साथी कंधा पर ढ़ोया हुआ था। रैली में नारा बहुत बुलंदी के साथ साथी लगा रहे थे। नारा दूर दूर तक गुंज रहा था। रैली की अगुवाई कोई आगे आगे चल कर नहीं कर रहे थे-आगे बैनर वाले थे। लेकिन रैली किधर के गुजरेगी-यह स्वत अगुवाई आगे चल रहे साथी कर रहे थे। इतना गंभीर और अनुशाषित , मैं इसे देख बहुत गर्भ महसूस कर रही हुं। कि जो मेहनत मैंने लोगों को तैयार करने में की -वह आज दिखाई दे रहा है।
रैली जब दयासागर से चल दी थी- मैंने मोटर साईकिल में मार्शल बरला को शहर की ओर जाते देखी। नीचे चैक पहुंचत ही वह रैली में बैनर के आगे आगे चलने लगा-लग रहा था, वह स्वंय इस रैली की अगूवाई कर रहे हैं। वह इसी तरह कचहरी मैंदान तक पहुंचा। खूंटी बाजार टांड पार किये ही थे-कि ई टी वी के शैलेंदारजी , हिन्दुस्तान के संवाद दाता और एक दो लोग पहुंचे। कचहरी मैंदान में पहले से एक टेंन्ट में लोग भाषण दे रहे थे। सामने दूर में ही कुछ ग्रामीण पेड़ की छाया में बैठे बाते सुन रहे थे।
जैसे ही रैली मंच के करीब पहुंचने लगी-नारा और बुलंद होने लगा।
नारा-सी एन टी एक्ट की मूल धारा 46 को कड़ाई से लागू करो-लागू करो,
सी एन टी एक्ट के मूल धारा 46 में किसी तरह का संशोधन मंजूर नहीं-मंजूर नहीं।
हमारे पूर्वजों का जमीन मत लूटो-मत लूटो,
विकास के नाम पर आदिवासी मूलवासियों का विस्थापन बंद करो-बंद करो,
सी एन टी एक्ट के मूलधारा 46 में किसी तरह का छेड़-छाड़ बरदस्त नहीं -बरदस्त नहीं
, झारखंड के दलालों होश में आओ-होश में आओ,
जमीन दलाल होश में आओ-होश में आओ,
दूध मांगों तो खीर देगें-जमीन मांगों तो चीर देगें के गगन भेदी नारा गूंज रहा था।
सभा का संचलान का अध्यक्षता के लिए आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के अध्यक्ष श्री रेजन तोपनो ने किया तथा संचालन का भार सेरनुस तोपनो को सौंपा गया। सभा को बोनिफस तोपनो, सुखनाथ सिंह, पुष्पा आइंद, शिवशरण मिश्र, बिरसा तोपनो, ने मंच की ओर से संबोधित किये। खूंटी के वकील श्री धनिक गुडि़या ने-सभा को संबोंधित करते हुए कहा-सी एन टी एक्ट कानून झारखंड के आदिवासी मूलवासियों के जंगल-जमीन के साथ इनके भाषा-संस्कृति का सुरक्षा कवच है, इसको कड़ाई से लागू करना होगा, इसके लिए हम लोगों का सरकार पर दबाव क बनाने की जरूरत हैं। इस कानून के रहते हुए-हमारा जंगल-जमीन खूले आम छीना जा रहा है-अगर यह कानून खत्म हो जाएगा, तो हम हर हालात में खत्म हो जाऐगें।
धनामुंजी से आये जोसेफ ने कहा-हम तो यहां आप लोगों को अपना दुख बांटने आये हैं। एक सप्ताह पहले एक अखबार में खबर छापा था-कि तजना नदी में जिला का सबसे बड़ा डैम बनेगा। कई गांवों का खेती का जमीन पूरी तरह से डूब जाएगा। हम लोगों का जीने का मात्र आधार सिर्फ खेत-टांड ही है। आप लोग तो लड़ाई लड़ रहे हैं-ंअब हम लोगों को भी साथ दिजीएगा। हम लोग अभी नये लोग हैं लड़ाई लड़ने के मामले मेंं । अभी हम लोग बैठ करना शुरू कर दिये हैं-आप लोगों को भी बुलाएगें। कांके-नगड़ी से आयी मंजूली जी ने भी बात रखी-कांके -नगड़ी के किसानों की जमीन को सरकार पुलिस के बल पर आई आई एक और लो कालेज के लिए कब्जा कर रही है। जमीन को घेराबंदी कर रही है। हम लोग 3 मार्च से अपना जमीन बचाने के लिए सत्यग्रह आंदोलन प्ररंभ कर दिये हैं। आप लोगों से अग्राह है कि आप लोग भी हम लोगों को साथ दिजीएगा ताकि हम सभी मिलकर हमारा जमीन छीना जा रहा है-इसको रोकेगें।
सभा को कोयलकारो जनसंगठन के साथि अमृत गुडि़या ने संबोधित करते हुए कहा-हम किसी भी कीमत में सी एन टी एक्ट के साथ किसी तरह का खिलवाड़ होने नहीं देगें। यह बिरसा मुंडा के खून से हमारो जमीन -जंगल की रक्षा के लिए लिखा गया कानून है। इसकी रक्षा करना हमारा -पहला जिम्मेवारी है। बसंत सुरिन को अपनी बात रखने के लिए कहा गया-इन्होंने माईमक थामते ही -नारा देने लगा-मीडिया की राजनीति बंद करो, मीडिया वाले-सी एन टी एक्ट पर गलत लिखना बंद करो, मीडिया वाले होश में आओ। मैं समझ नहीं पर रही थी कि ये क्या कह रहा है। लेकिन दो मिनट के बाद मैंने खड़ी होकर बसंत को रोकने की कोशिश की, इसके बाद वह गलत नारा देना बंद किया। इसे आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने महसूस किया -यह हमारे सिद्वांत के खिलाफ है-हमारी मीडिया से नहीं है, हमारी लड़ाई तो उन से है-जो विकास के नाम पर हमें उजाड़ना चाहते हैं-इसमें सरकार ही क्यों न हों। मंच ने महसूस किया कि-नये लोगों को आदिवासी - मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के मंच में किसी भी नये साथी, जो हमारे अन्य गतिविधियों में शामिल न रहा हो यह सिरियस नहीं है-उसे हमारे मंच में जगह नहीं देना चाहिए। केरको टोली के साथियों ने बिरसा मुंडा के उलगुलान के दो गीत गाये। सभा के अंतिम में खूंटी उपायुक्त को दिये जाने वाले मांग पत्र को सभा में पढ़ा गया-एक स्वर में इसे पास किया गया। इसके बाद एक प्रतिनिधि मंडल उपायूक्त कार्यालय जाकर मांग पत्र सौंपा।
शाम 5 बजे मैने जलसंशाधन विभाग के एक्जक्यूटिव इंजिनियर श्री बचनेशावर जी को फोन किये कि आप कार्यालय में हैं-मैं आ रही हूं। करीब 5.30 बजे हम लोग खूंटी बाजार निकट स्थित स्वस्थ्य पेय जल संसाधन विभाग कार्यालय में पहुंचे। मैंने श्री बचनेशावर जी से तजना नदी में प्रस्तावित डैम के डी पी आर के बारे में जानकारी मांगी थी, इस के संबंध में बातें की। श्री बचनेशावर जी ने एक 5 पेज का रिर्पाट मुझे दिये। इस रिर्पोट को मैं पलट देखने लगी। लेकिन इसे बहुत कुछ समझ में नहीं आ रहा था। श्री बचनेशावर जी ने कहा-यह रिर्पोट करीब 40 साल पहले बना हुआ है, इसका आज कुछ महत्व नहीं है। परियोजना के लिए नये सिरे से सर्वे रिर्पोट बनेगा। इसके लिए हैदराबद की कंपनी मेसर्स अवंतिका कंस्ट्रक्नशान को टार्रनकी बेसिस पर ठेका दिया गया है।
श्री बचनेशावर जी न बताया कि-दिये गये ठेका के आधार पर कंपनी ही सर्वे करेगा, नक्सा बनाएगा और डिजाईन भी करेगा। इन्होंने बताया कि कंपनी न एक सर्वे टीम हैदराबाद से लेकर आया था। सर्वे किया, रिर्पोट भी तैयार कर दिया, लेकिन इसमें कुछ खामियां है। इसलिए फिर से सर्वे करने का निर्देश दिया गया है। हम लोग चाहते हैं कि एक भी घर विस्थापित न हो। अगर एक-दो घर भी डूबेगा तो उसके लिए बेहतर-पुनर्वास किस तरह किया जा सकता है-इसकी कोशिश की जाएगी।
इंजिनियर के अनुसार कंपनी के द्वारा सर्वे करने के बाद ही पता चलेगा कि -किन किसानों का कितना जमीन डैम से प्रभावति होगा या डूबेगा। सर्वे रिर्पोट तैयार करने के बाद, नाक्सा और डिजाइंनिग के बाद -यह भू-अर्जन विभाग को भेजा जाएगा। जमीन का कीमत दक्षिणी छोटानागपुर के आयुक्त तय करेगें। यह काम अभी नहीं हुवा है, लेकिन काम शुरू करने की घोषणा तो आप लोग कर दिये हैं। जबाव दिये-जी सर्वे तो हो गया। काम का प्रक्रिया भी प्ररंभ कर दिया गया है।
श्री बचनेशवरजी के अनुसार योजना के वित्तीय वर्ष 7-8 के पत्रांक संख्या 23, प्रशाशनिक स्वीकृति दिनांक 22 फरवरी 08 को मिली है। उस समय स्वीकृत बजट 74.42 करोड़ की थी। इसका टेंडर 2008 में श्री पंचम सिंह को दिया गया था। इससे 2010 में राष्ट्रपति शासन के समय इसे रदद किया गया। रदद करने का कारण पूछने पर श्री सिंह ने बताया- पंचम सिंह का प्रक्कलित बजट 18.2 प्रतिशत अधिक था। उस समय सरकार का प्रक्कलित बतट 58 करोड़ था, इसमें लगभग 20 प्रतिशत अतिरिक्त था। याने कुल 68 करोड का था। इन्होंने बताया कि-श्री पंचम सिंह का टेंडर रदद किये जाने के बाद पंचम जी ने सरकार पर केस किया हाई कोर्ट में। बहस के लिए इन्होंने सुप्रीम कोर्ट से वकील लाया था। लेकिन वह केस हर गया। इसके बाद सरकार ने दिसंबर 2010 में फिर से नया टेंडर निकाला। इस नये टेंडर में हैदराबाद की कंपनी अवांतिका को टेंडर मिला।
ग्रामीण बताते हैं-हम लोगों को पता भी नहीं था, कि हमारे यहां तजना नदी में डैम बनने वाला है। हम लोग अखबार में पढ़े -जिसमें लिखा हुआ था-जिला का सबसे बड़ा डैम तजना नदी पर बांधने वाला है। कहते हैं-कुछ दिन पहले कहां से कुछ लोग आये थे-क्या सब नाप-जोख रहे थे-कुछ पुछने पर कुछ जवाब भी नहीं देते थे, हिन्दी भी नहीं बोल पाते थे। विदित हो कि उक्त परियोजनो को लेकर ठेकेदार और सरकार के बीच केस भी हुआ-लेकिन जिन किसानों के जमीन पर उत्क परियोना बननी है, उन किसानों को पता भी नहीं है कि उनके खेत-टांड, जमीन-जंगल में डैम बनाने के लिए किसी ठेकेदार को टेंडर भी दिया जा चूका है और उसने-किसानों के जमीन पर डैम बनाने के लिए हाई कोर्ट में केस भी चल रहा है। यह अपने आप में अजीब सी बात है कि जिनके खेत-खलिहान को निलामी की जा रही है। अखिर सरकार अपने ग्रामीण जनता के प्रति किस तरह और कितना इमान और जिम्मेवार एवं जवाबदेह है। यह झारखंड के आदिवासी-मूलवासी किसानो के लिए सबसे बड़ा सवाल हैं
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