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Thursday, December 15, 2011
आज भी कहीं इंसानियत जीवित है-यह मैं ने पहली बार न्याय के मामले में महसूस की
आज भी कहीं इंसानियत जीवित है-यह मैं ने पहली बार न्याय के मामले में महसूस की। आज झारखंड हाई कोर्ट में गिरिडीह डिसटिक कोर्ट से फांसी की सजा सुनाये जीतन मरांडी सहित तीन लोगों को हाई कोर्ट के जज आर के मराठिया की अदालत ने बय इज्जत रिहाई की फैसला सुनायी। विदित हो कि कलाकार जीतन मरांडी सहित चार लोगों को नूनू मरांडी सहित 12 लोगों की हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनायी थी। इसके बाद केस को हाई कोर्ट में न्याय के लिए दायर किया गया था। आज इसकी सुनवाई थी। कोर्ट ना0 2 में दस बजे से सुनवाई होने वाला था लेकिन सुनवाई की प्रकिया आधे घंटे बाद shuरू की गयी। यह मेरा पहला मौका था, कोर्ट के अंदर केस का फैसला सुनने का। मन में हजारों लहरें उठ बैठ रही थी। जज जैसे जैसे फाईल का पेज पलटते जा रहे थे-मन और कान उनके ’ाब्दों को सुनने के लिए बेचैन हो रहा था, उनके shब्दों के साथ न्याय के आsha की किरणें भी टिमटिमाती नजर आ रही थी। समय के साथ फाईल की पेंजों के साथ पनों को चिन्हित किये गये मोटी मोटी किताबों को सेवा में मौजूद कर्मचारी जज के टेबल में बढ़ाते जा रहा थां जज साहब उसे देखकर अपनी राय देते जा रहे थे। करीब अधे घंटे के बाद साफ हो गया था -कि फैेसला हमारे तरफ होने जा रहा है। जज के सामने एक पंक्ति में 9 वकील बैठे हुए थे। पहले मैं पीछे बैठी थी लेकिन सुनाई नहीं दे रहा था तो वकीलों के पीछे वाले लाईन के चेयर में बैठ गयी थी । फैसला हमारे पक्ष में आते देख आगे बैठै वकील राजेन राज ने पीछे हमारी तरफ घुर कर देखे मैं भी देखी, उन्होंने जीत की ओर इ’ाारते हाथेली का मुठी बांध कर ठेपा अंगुली मुझे दिखाये-मैंने मुस्कुराते हुए दोनों हाथेली का मुठी बांध कर दोनों ठेपा अंगुली दिखाई। कोर्ट में फादर स्टेटन स्वामी, जीतन मरांडी की पत्नि अपरना मरांडी एवं तीन साल का बेटा अलोक राज मरांडी, सोनतो और मैं थी। बाहर फैसल दा भी मैजूद थे। कोर्ट ना0 2 में जज आर के मराठिया और डीएन उपाध्ययजी एवं जीतन का केस देख रहे-वकील कृष्णा मुरारी प्रसाद, राजेन राज मौजूद थे। जीतन मरांडी के साथ अनिल राम, छात्रपति मंडल तथा मनोज राजवार को रिहाई की गयी। कोर्ट के दरवाजे के पास सभी वकीलों को बधाई दिये ।हम लोग भी एक दूसरे को बधाई दिये। वकिल मुझे से पुछ रहे थे-वो आप के क्या लगते है-मैले कहा- मैं एक ‘सोसल एकटीभीस्ट हुं- और वो भी एक्टीभिस्ट हैं-तो मैं उनका बहुत कुछ हुं। बाहर जब वाकिलों से हमारी बात हो रही थी-इन्होंने बताया कि-मूलता निम्नि बिन्दुओं पर रिहाई मिली-पहला-जो घटना के गवाह थे उनमें में अधिकांsh स्वंय दायी लोग थे जो पहले ही कई केसों में सरकार के समक्छ सरेंडर किये थंे, दूसरा जो लोग घटना को देखने की बात बोले थे-वे तीस से अस्सी किमी दूर के थे, तीसरा-एक व्यक्ति द्वारा माईक छिनने की बात कही गयी थी-वहां एंगकर तो कोई नहीं था, जो भी गवाह दिये-किसी ने आदमी को पहचाने की बात नहीं की है, तीसरी गांव में घटना घटी थी-लेकिन यहां के एक भी गवाह नहीं थे। इसके साथ एक -दो बिन्दु और हैं-जिनका साक्ष्य नहीं मिला, इसी के आधार पर बयइज्जत रिहाई मिली। वकील बता रहे थे-पिछली सुनवाई के दिन अपरना मरांडी बेटी को लेकर कोर्ट में बैठी रही-जज ने अपने चपरासी से बिस्कुट का पैकेट ला कर दिलवाया था, इस सबको देखकर हमने अंदेजा लगा ही लिये थे-कि जो आदमी खाने के लिए दे रहा है-वह मौत कौसे दे सकता है। वकील का यह बात सून कर मानभर आया।
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