Saturday, March 1, 2025

एैसी स्थिति में ट्राइबल एडवाईजरी काउंसिल के साथ हमारी अबुआ सरकार की जिम्मेवारी बनती है आदिवासी समुदाय को न्याय देने का।

 भारतीय संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत देश में झारखंड सहित 10 राज्यों को पांचवी अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है। इन राज्यों में ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल का गठन किया जाता है। जो राज्य के अनुसूचित जनजातियों के कल्याण, विकास योजनाओं एवं समस्याओं पर सरकार को सलाह देने का काम करती है। झारखंड सरकार  में इण्डिया गठबंधन की हेमंत सरकार है। आदिवासी सलहाकर परिषद में 19 सदस्यों की सूचि अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ावर्ग कल्याण विभाग ने 21 /2/2025 को जारी कर दिया है। इन मुख्यमंत्री श्री सोरेन पदेन अध्यक्ष होगें। चमरा लिंण्डा विभागीय मंत्री अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक एंव पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग- पदेन उपाध्यक्ष होगें। 

सदस्यों में राज्य के दो पुर्व मुख्यमंत्री सहित वर्तमान मुख्यमंत्री के साथ तीन मुख्यमंत्री हैं।  प्रथम एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल मरांडी वर्तमान में भाजपा में हैं साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरने ये भी वर्तमान भाजपा में हैंें। परिषद में तीन विधायक जो पहली बार चुनकर विधानसभा पहुंचे हैं मनोहरपुर से जगत मांझी, खूंटी से राम सूरर्य मुंण्डा एवं तोरपा से सुदीप गुंडिया को भी शामिल किया गया है।  साथ ही जेएमएम के वरिष्ठ नेता प्रो0 स्टीफन मरांडी, भाजपा के शासनकाल में महिला एवं बाल विकास मंत्री रही लुईस मरांडी वर्तमान मे ंजेएमएम, संजीव सरदार, सोनाराम सिंकु, श्री राजेश कच्छप, दशरथ गगराई, जिगा सुसारन होरो, नमन विकसल कोनगाडी, रामचंद्र सिहं है। दो मनोनित सदस्य रांची के नाराण उरांव और पांटका के गोसाई मार्डी हैं। परिषद के सभी नवनिर्वाचित सदस्यों को शुभकामना और बधाई देते हैं कि राज्य के अनुसूचित जनजातियों समुदाय के हित रक्षक बन कर उनकी आकांक्षाओं में खरा उतरेगें जिस उम्मीद से अबुआ सरकार बनाने का काम किये हैं। 

अदिवासी सलहाकर परिषद एक मिनी एसेंबेली है। संविधान में जनजातीय सलाहकार परिषद का काम बहुत ही व्यापक एवं महत्वपूर्ण है। जिसमें विकास योजनाओं के पर्यवेक्षण, नीति निधारण करना भी है। इसके साथ ही अनुसूचित क्षेत्रों में प्रभावी शासन के लिए भी जिम्मेदार है। जनजातीय मामलों में कोई भी मुददा परिषद में विचार के लिए आता है-तब उस पर परिषद सुझाव देगा । जनजतीय सलाहकार परिषद का दायित्व बनता है कि ऐसे सभी मामलों में जो राज्य अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति से संबंधित जानकारी राज्यपाल को भेजेंगे तथा जब तक राज्यपाल जनजातीय परिषद से विचार-विमार्ष न कर लें, वह किसी भी प्रकार का विनियम बनाने को सक्षम नहीं होगें।

जनजातिय सलहाकार परिषद का गठन भारतीय सवंधिान की पांचवी अनुसूचि के तहत किया जाता है और इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की शक्तियां राज्यपाल के पास था। राज्य में 2019 में महागठबंधन की सरकार बनी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जनजातिय सहलाकर परिषद के गठन की प्रक्रिया के लिए नये कानून बनाये। इस नये कानून के तहत अब परिषद के सदस्यों का चुनाव का अधिकार राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया गया है । इसी नये नियमावली के तहत वर्तमान में भी परिषद सदस्यों का चयन किया गया है। 

2000 में झारखंड अलग राज्य का पूर्नगठन हुआ है। अब राज्य ने 24 साल का सफर पूरा कर लिया है। राज्य में अभी तक 14 मुख्यमंत्रियों ने राज्य को संभालने का काम कर चुके हैं। नियमता हर विधानसभा के कार्यकाल में जनतातिय सलहाकर परिषद का गठन होता है। इसके तहत बहुत सारे विधायकों के साथ मनोनित सदस्यों को भी अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं विकास, उनकी उन्नति के लिए अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। झारखंड का दुरभग्या है कि आज भी हम कहते हैं कि जिन उम्मीदों को लेकर अलग राज्य के गठन के लिए संधर्ष किया गया था-वह सपना या उद्वेश्य पूरा नहीं हो सका है। 

आज अबुआ सरकार की जिम्मेवारी है कि अलग राज्य के सपनों में जान डालने की। 2024 में देश में लोक सभा चुनाव हुआ। झारखंड के अनुसूचित क्षेत्र /आदिवासी आरक्षित सीटों में 5 लोकसभा सीट को भारी बतों से जिताकर इंण्डिया गठबंधन को आदिवासी समुदाय ने दिया है। इसी तरह झारखंड विधानसभी चुनाव 2024 में भी 28 आदिवासी आरक्षित सीटों में 26 सीट जनजातियों ने जीत दर्ज कर इंण्डिया गठबंधन को दिया है। खूंटी विधान सभा 25 सालों से भाजपा ने कब्जा जमा रखा था,। इंण्डिया गठबंधन समर्थकों ने भाजपा का 25 साल का खूंटा उखाड़ फेंका है।  तोरपा विधानसभा  भी भाजपा के हाथ में था। इसे भी निकालकर इंण्डिया गठबंधन को सौंपा गया। 

झारखंड आदिवासी किसाना समुदाय चारों ओर कई समस्याओं से घिरा हुआ है। जमीन-जंगल लूट का मामला चरम पर है। ऑनलाइन जमीन को लूट का समस्या 2016 के बाद आदिवासी समुदाय को त्रास्त कर दिया है। प्रत्येक गांव में 80 प्रतिशत किसानों का जमीन ऑनलाइन गायब हो रहा है। लगान रसीद नहीं कटा रहा है। विस्थापन और पलायन तेजी से हो रहा है। आदिवासी समुदाय के जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पांचवी अनुसूचि के तमाम अधिकार हैं। 5वीं अनुसूचि में पेसा कानून 1996 में पास हुआ है लेकिन इसे भी कड़ाई से लागू नहीं किया जा रहा है लेकिन इसे कडाई से लागू नहीं किया जा रहा है। विकास योजनाओं में भारी भ्रष्टाचारी है। किसी भी विकास योजना का सही लाभ समुदाय को नहीं मिल पा रहा है। एैसी स्थिति में ट्राइबल एडवाईजरी काउंसिल के साथ हमारी अबुआ सरकार की जिम्मेवारी बनती है आदिवासी समुदाय को न्याय देने का।