Friday, June 2, 2017

नन्हे पौधों को अपने नयनों से पलता है , अपने हाथों से सहलाता है ,,,,,झाड़ियां काट कर घेरा डाल उसकी रखवाली करता है---यही है पर्यावरणीय आदिवासी मूलवासी समाज।

आदिवासी मूलवासी किसान समाज --  पर्यावरण के सचे संरछक , सच्चे दोस्त , आदिवासी समाज पर्यावरण से जितना लेता है --उससे दो गुना उससे देता है।  यही कारण है की शादियों से आदिवासी समाज जल जंगल जमीन के साथ रहते आ रहा है , अपने जरुरत के हिसाब से जंगल से लेता है, जरुरत से ज़्यदा वह बटोरता नहीं है, पेट से जरुरत भर फल तोड़ता है , बाकि जंगल के पशु -पक्छियों के लिए छोड़ देता है, जितना पेड़ काटता है --उससे दूना पेड़ लगता है।  नन्हे पौधों को अपने नयनों से पलता  है , अपने हाथों से सहलाता है ,,,,,झाड़ियां काट कर घेरा डाल उसकी रखवाली  करता है---यही है पर्यावरणीय आदिवासी मूलवासी समाज।  इतिहास गवाह है शादियों से आदिवासी वंही बस्ते आये हैं --जंहा जंगल है , नदी है , पहाड़ है , झरना है , झील है ,,,,आज के कथित बिकास के इस दौर में , भी जंगल , नदी , झरना , पहाड़ वंही पर अपने अस्तित्वा में हैं --जंहा आदिवासी ात मूलवासी किसान समाज है ,,,,आदिवासी मूलवासी समाज के सामाजिक मूल्यों , सांस्कृतिक मूल्यों से देश के तथाकथित सभ्य समाज को सिखने की  जरुरत है ---सामूहिक जीवन शैली क्या है ---सिखने की जरुरत है ----
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                                                          अपने गॉंव में प्रकृति की गोद में ----

                                           प्राकृतिक धरोहर ----वनोपज से सजी पर्यावरण
      अपने खेत -जमीन , जंगल से उपजाए धन -चावल , अपने साल के पेड़ के नए पत्तों  की थाली
शादी समारोह ---जंगल के साल पतियों से सजा मंडवा , संधियों के साथ दुःख -सुख बतियेते --बेटे -बेटी के नई जिंदगी की सुखद कामना करते --सागे समनधी -----

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