1995 के 5 जुलाई को कोयल कारो परियोजना का घोषणा के साथ ही झारखंड के तत्कालीन रांची जिला के तोरपा प्रखंड और तत्कालीन गुमला जिला के कमडारा प्रखंड, बसिया प्रखंड, पालकोट प्रखंड, सिसई प्रखंड और गुमला प्रखंड, प’शिचमी सिंहभूंम के .गांव सहित ...कुल 245 गांवों में विस्थापन का बादल मंडराने लगा था। कोयलकारो जनसंगठन ने नारा दिया-हम जान देगें-जमीन नहीं देगें। कोयलकारो जनसंगठन के साथ विस्थापन के खिलाफ संघर्षरत जनआंदोलनों ने भी आवाज बुलंद किया। मैं धन्यबाद देती हूॅं-कोयलकारो जनसंठन को-जो हम सभी को आंदोलन में अपने साथ खड़ा होने का मौका दिया। लड़ने सिखाया। झारखंड के इतिहास, भाषा-संस्कृति, सामाजिक मूल्यों की रक्षा के लिए समझौताविहीन संघर्ष के अस्तित्व को आगे बढ़ाने सिखलाया। 2 फरवरी 2001 को कोयलकारो जनसंगठन पर पुलिस फायरिगं हुआ-आठ साथी शहीद हुऐ। 23 साथी घायल हो गये। करीब दो माह तक घायलों का इलाज रिम्स में चला। तब पहली बार घायलों के साथ रहने, उनका सेवा करने का मौका मिला।
सरकार के अनुसार 2 फरवरी के गोली कांड में एक पुलिस भी मारा गया था। इसको लेकर जनसंगठन के साथियों पर केस हुआ। केस की वापसी को लेकर जनसंगठन और पुलिस प्रशासन के बीच कई बार वर्ता हुआ। वर्ता में जनसंगठन ने मुझे ग्रामीण एसपी से बात करने की जिम्मेवारी दी। लगातार ग्रामीण एसपी के साथ केस वापसी को लेकर वर्ता चली-मैं एक ही बिंन्दु में अड़ी रही-कि जनसंगठन पर थोपा गया केस बिना वार्ता वापस लिया जाए। लेकिन प्रशासन हमारी शर्त नहीं मानी।
दूसरी ओर जीवन में पहली बार केस लड़ने के लिए कार्ट का दरवाजा भी देखना पड़ां। जनसंगठन के हितौशी साथियों के साथ मिल कर केस रांची कोर्ट के वकील....को दिये। उनको कोयलकारो आंदोलन, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, जल-जंगल-जमीन के साथ आदिवासी -मूलवासी समाज का रिस्ता -इन तमाम पहलू पर वकील के साथ चर्चा किये। इसमें वासवीजी, वरिष्ठ पत्रकार फैसल अनुरागजी, डा. रमेश शरणं जी आदि सक्रिया भूमिंका निभाये।
रांची कोर्ट में वकील साहब ने केस अपील किये। केस के लिए आवश्याक कागजात थाना से लाना कर वकील को देना, विधान सभा में जो चर्चा चला था-उसका प्रति माले विधायक काॅ0 महेंन्द्र सिंह के विधायक आवास जाकर लाना, और इसको वकील को पहुंचाना। हर दिन वाकील के पास जरूरी कागजात को लेकर जाना, साथ ही केस लड़ने के लिए पैसा चंदा करके जनसंगठन को देना, वकील को देना -जिंदगी और संघर्ष को करीब से समझने का मौका था।
जनसंगठन पर थोपा गया केस वापसी, घायलों को मुआवजा दिलाने की लड़ाई, ‘’शहीद परिवार को सरकारी नौकरी देने की मांग लड़ाई -में काॅ0 महेंन्द्र सिंह के साथ लाकर साथ खड़ा कर दिया। क्योंकि मैं लगातार इस मामले को लेकर विधायक महेंन्द्र सिंह के विधायक आवास पर जाती थी। महेंन्द्र सिंह के सहयोग, पे्रम भाव और जुझारूपन से भी इसी दौरन परिचाय हुईं ।
इसके बाद लगातार जनमुदों को लेकर गांव-सामाज से लेकर राज्य से लेकर देश स्तर पर जो भी संघर्ष विभिन्न जनआंदोलनों, जनआंदोलनों के समूहों, एनएपीएम, इंसाफ आदि के बैनरों से देश भर में लड़ी जा रही तमाम जनआंदोलनों में भाग लेने, सिखने, आंदोलन को सहयोग करने, सहयोग लेने का भी मौका मिला। ये सभी अवसर निश्चित रूप से आप सभों ने दी दिया।
2006 से 2010 तक अर्सेलर मित्तल जो वर्तमान खूंटी जिला के तोरपा प्रखंड, रनिया प्रखंड, कर्रा प्रखंड तथा गुमला जिला के कमडारा प्रखंड़ों के करीब 40 गांवों को विस्थापित कर 12 मिलियन टन का स्टील प्लांट लगाना चाहता था-ग्रामीण गांव छोड़ना नहीं चाहते थे। ग्रामीण अपने पूर्वजों का जमीन बचाने के लिए कंपनी के खिलाफ झंण्डा बुलंद कियें। कई बार कंपनी और दलालों ने जान से मारने की धमकी दी। फान पर -बोला-तुम गांव में बैठक करना छोड़ दो, कंपनी के खिलाफ गांव वालों को भड़काना बंद करो-नही ंतो इतना गोली मारेगें कि -शव का ’शिनाख्त नहीं होगा, तुम्हारा लाश को कोई नहीं पहचानेगें। दूसरी बार फिर फोन आया-तुम सुधर नहीं रही हो-वारनिंग दे रहे हैं-गांव में बैठक करना छोड़ दो-नही तो लोगों के बीच से ही उठा लेंगें। आप लोगों का प्यार-सहयोग ने मुझें और मजबूती के साथ खड़ा रखा।
हमने हमारे पूर्वजों की दी विरासत को कंपनी के हाथ-जाने से बचा के अभी तक रखा। 2010 से छाता नदी पर गैर कानूनी तरीके से कंटी जलाशय के नाम पर डैम बनना प्ररंभ्म किया गया थां। विरोध करने पर एक ग्रामीण की हत्या भी हो गयी। इस घटना के बाद मुझे गांव में बुलाया गया। 17 दिसंबर को पहली बार जबड़ा गांव आयी। दो बेगुनाह लोगों को पुलिस पांच दिनों तक अपने कस्टडी में रखी, इन लोगों को पुलिस से मुक्त करवाये। ग्रामीणों के अग्राह पर डैम के विरोध आंदोलन को आगे बढ़ाये। डैम के बारे जानकारी लेने के लिए सरकारी दफतरों में-प्रखंड विकास पदाधिकारी, अंचल अधिकारी, जिला में-एसडीओ, अपर सर्माहर्ता, उपायुक्त खूंटी, राज्य जलसं’ााधन विभाग, वि’ोष भूर्अजन विभाग में आरटीआई से जानकारी मांगी। सरकारी दफतरों से मिली जानकारी के अनुसार जनंआदोलन को तैयार करने की को’शिष की। जनआंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए-डेम प्रभावित जनसंघर्ष समिति बनाये। कई धमकियां आयी, अढचन आये, फिर भी आज तक जमीन, गांव सभी सुरक्षित है।
2012 में नगड़ी में सरकार आईआईएम सहित कई संस्थानों के लिए 227 एकड़ जमीन जबरन अधिग्रहण करना प्ररंभ्म कर दिया था। 227 एकड़ जमीन को चारों ओर से घेराबंद किया जा रहा था। इस भूखंड के चारों ओर पुलिस बल, को उतार दिया था। सरकार का तर्क था-जमीन 1957-58 में ही सरकार खरीद चुकी है। दूसरी ओर गांव वाले दावा कर रहे थे कि हमलोगों ने जमीन नहीं बेची है। दोनों पक्षों के हकिकत को समझने के लिए मैंने भूअर्जन विभाग से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी। जानकारी मिला-1957-58 में 153 रैयत थे, इनमें से 128 रैयतों ने मुआवजा नहीं लिया और वो पेसा रांची ट्रेजरी में जमा है। यह साफ हो गया-कि किसान जमीन का पैसा नहीं लिये हैं-तब सरकार जमीन कैसे खरीदी।
इसकी जानकरी उपलब्ध सरकारी दस्तावेज के साथ 2 मार्च को राज्यपाल को मांग प्रत्र देकर -जबरन अधिग्रहण को रोकने का आग्रह किये। 2 मार्च से 4 जूलाई तक नंगड़ी के खेत में दिन-रात धरना ग्रामीणों ने दिया। पूरा आंदोलन में साथ रहे। धरना के साथ सभी मोरचों पर आंदोलन चला। सरकार ने हल निकालने के लिए पांच आइएस अधिकारियों का एक उच्चस्तरीय समिति बनायी। इस हाईलेबल समिति का अध्यक्ष भूराजस्व मंत्री श्री मथुरा महतो को बनाया गया था। जमीन मालिको और हाईलेबल समिति के बीच तीन बार बैठक हुई। तीनों बार ग्रामीणों ने बताया कि-जमीन बिका नहीं है, और न ही बेचना चाहते हैं। श्री महतो जी बोलते रहे-जमीन मालिकों की भावनाओं का ख्याल रखा जाएगा।
सरकार को सुकुरहूटू का जमीन -जहां 1900 एकड़ बंजर भूमि हैं-लगातार विकल्प के रूप में बताते रहे। लेकिन सरकार अपने जिद पर अड़ी रही। दूसरी ओर सरकार मुझे जेल भेजने की तैयारी में जुट गयी। 2006 के मानरेगा में ग्रामीणों को जोब कार्ड दिलाने के लिए रैली निकाली गयी थी-इसी मामले में मेरे नाम पर वारंट निकाला गया और जेल भेज दिया। जेल से तब तक बाहर नहीं निकलने दिया-जब तक कि लाॅ यूनिर्वसिटी के लिए 70 एकड़ जमीन पूरी तरह से घेराबंदी और कब्जा में लिया। मेरे जेल जाने के बाद आंदोलन को किसी ने आगे नहीं बढ़ाया, यह दुखद रहा। फरवारी 2013 को तत्कालीन केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश जी प्रभात खबर आये थे। तब प्रभात खबर के प्रधान संपाद श्री हरिवंश जी के अमंत्रण में मैं भी जयरामजी के छोटी मुलाकात में गयी थी। साथ में जयरामजी के नाम नगड़ी का जमीन वापस करने और इसके लिए विकल्प में सूकुरहूट में जमीन देखने के लिए मांग पत्र बना कर दिये। इस मुददे पर 35 मिनट तक मंत्री जी से बात हुई। दो माह के बाद जयराम रमे’ाजी के पहल पर नगड़ी से आई आई एम सहित अन्य संस्थानों को सूकूरहूटू स्थानंत्रित करने का फैसला लिया गया। जो मेरे लिए सुखद रहा।
2011 से ही खूंटी जिला के तजना नदी पर डैम बनाने की सुगबुगाहट हो रही है। लेकिन डैम के खिलाफ आंदोलन 2013 से ज्यादा सक्रिया हुआ है। सरकारी अधिकारी भी 2013 में डैम बनाने के लिए पूरी ताकत के साथ जनसुनवाई कराने की कोशिश किये। लेकिन सरकार असफल रही।
मेरा मनना है-जींदगी में जितने भी उतार-चढ़ाव हम लोगों ने देखा-सामना किये, हर कदम में आप सभों का सहयोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रहा है। आप के प्रेम -दुलार ने ही हर कदम को मजबूती से आये बढ़ाया। आज गर्व के साथ कह सकते हैं-कि हमन बिरसा मुंडा के विरासत के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया। कोयल नदी, कारो नदी, छाता नदी और तजना नदी का बहता पानी इसका साक्षी है।
इस लबें संघर्ष के कडुआ अनुभवों ने एक कदम आगे बढ़ने का निर्णय लिया। जिस जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं-इसको संरक्षित करने, पूंजीपतियों, कारपोरेट के हाथें निलामी करने का कानून -नीति लोक सभा में और विधान सभा में ही बनाया जाता है। पालन भी इन्हीं संस्थानों के द्वारा किया जाता है। इस लिए सभों ने आंदोलन के साथियों ने निर्णय लिये कि-हम लोगों को राजनीतिक हस्तक्षेप में जाना चाहिए-जहां कानून और नीतियां तय की जाती हैं।
चुनाव की तैयारी आप लोगों ने जनआंदोलन के तर्ज पर किये। नामंकन के पहले सभी अपने देवी-देवता, शत्कि के प्रतिक भगवानों को नमन-दर्’शन करते हैं। आप लोगों ने झारखंड के समझौताविहीन ’शहादती बिरसा मुंडा के उलगुलान को याद करके-झारखंड की विरासत की हिफाज के लिए बिरसा मुंडा के शहादती आंदोलन के साथ राजनीतिक शत्कि को बनाने का संकल्प डोम्बारी बुरू में लिये। और तय किये कि हमारा रास्ता बिरसा का रास्ता होगा।
खूंटी लोक सभा क्षेत्र चार जिलों के 6 विधान सभा क्षेत्र में फैला है। इसमें खूुटी जिला में तोरपा विधान सभा, और खूंटी विधान सभा है। सिमडेगा जिला में कोलेबिरा विधान सभा और, सिमडेगा विधान सभा है। रांची जिला में तमाड़ विधान सभा है, और खरसंवा जिला में खरसंवा विधान सभा है। पूरा देश -दुनिया जानता है कि-पूरा खूंटी लोक सभा क्षेत्र में माओवादी, पीएलएफआई से लेकर दर्जनों छोटे-बड़े उग्रवादी समूह सक्रिया हैं। यह भी सभी जानते हैं-इसमें से कई विधान सभा पर उग्रवादी संगठनों का शतप्रतिशत वर्चास्व है। इन उग्रवादि संगठनों के इच्छा के बिना कई क्षेत्रों में पता भी डोल नहीं सकता है।
पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान तोरपा विधान सभा क्षेत्र में उग्रवादी संगठन ने फरमान जारी किया था-कि हमारा आदमी को वोट नहीं करोगे तो -हम रात में आएगें, और वोट करोग तो दिन में आएगें। इस फरमान से पूरा तोरपा विधान सभा क्षेत्र आतांक में डुब गया। चाहते-ना चाहते हुए भी लोागों ने भय से उनका उम्मीदवार को भारी मतों से जितवाया।
2014 के लोक सभा चुनाव में सभा उग्रवादी संगठनों ने अपना अपना उम्मीदवार खड़ा किया था। जो अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया-वो संगठन उम्मीदवारों से भारी राशि लेकर उनके पक्ष में वोट डालवाने का जिम्मेवादी उठाया। मेरे साथियों से सीधे तौर पर कहा-दयामनी को वोट करोगे तो-पूरा गांव जला देगें। नामांकन के दिन से ही मेरे साथियों को खूंटी नामांकन के लिए आने से रोकना शुरू किया। मेरे समर्थकों को कहा गया-दयामनी को वोट करोगे तो अंजाम ठीक नहीं होगा। नामांकन के दिन से लगातार -दिन-रात हर गांव में मेरे साथियों को प्रचार करने से रोकते रहे। धमकियां देते रहे।
7 अप्रैल को बिरबांकी में हमारे साथियों को बंधक बनाया, गाड़ी की चाभी छीन लिये। चार घंण्टा तक बंधक रखने के बाद शाम सात बजे साथी वहां से किसी तरह भाग निकले। सातों साथी रात भर बिरबांकी के जंगल में भटकते रहे। 18 घंण्टा के बाद साथी खूंटी पहुंचे। चलते चलते पैरों पर छले ओ गये थे। पूरा देह में जंगल झाडी -कांटों का खंरोच, देख कर मन सिहर जाता था। सात साथियों की जिंदगी हमारे लिये कीमती था। हमलोगों ने प्रशासन को रिपोर्ट देर से ही लिखवायी, कारण की पहले हमारे साथियों के वापस आने का इंतजार कर रहे थे।
9 अप्रैल को कर्रा थाना के बिकवादाग में पीएलफआई ने हमारे साथियों को मारा-पीटा, गाड़ी का चाबी छीन लिया। बाद में हमारे नेतृत्वकारी साथी को कैद में लिया और बाकी छह को वहां से भागने को कहा, उन लोगों को हिदायत दी गयी कि कोई पिछे मुडकर नहीं देखेगा-जितना जल्दी हो भागो यहां से। जिस साथी को छह बंदूकधारियों ने कैद में रखा-उनसे वहां खड़े ब्रहम्णों का पैर छू कर प्रणाम करके हाथ जोड़कर कहलवाया-एनोश एक्का को वोट दो। पुलिस वहां पहुंची, इस कारण उनका जान बच गया।
एक बुजूर्ग साथी से इसी संगठन के लोगों ने पूछा-तुम दयामनी का काम कर रहे हो? उस सज्जन ने जवाब दिया-हां काम कर रहे हैं। तब उन लोगों ने धमकाया-दयामनी को वोट कराओगे तो अंजाम ठीक नहीं होगा। भयमुक्त उस सज्जन ने जवाब दिया-यदि सचाई और समाज के लिए आप लोग मार भी दीजिएगा-तो इतिहास बनेगा, कि हमारी जान समाज की रक्षा के लिए गयी।
एक दूसरा व्यक्ति ने हिम्मत दिखायी-17 अप्रैल को चुनाव के दिन-उसी संगठन के लोग मातदाताओं को अपने तरफ वोट करवाने के लिए खाने-पिने का आयोजन किये थे। वहां सभी को जाना था। वहां निर्देष दिया गया-सिर्फ झारखंड पार्टी के एनो’श को ही वोट करना है, प्रत्यक्षदशिर्यों के अनुसार-एक बुजुर्ग ने जवाब दिया-हम तो दयामनी को ही वोट देगें। इतना सूनना था-कि उक्त बुजुर्ग को लोगों ने खूब पीटा। इसी रात को वोट के बाद कर्रा थाना क्षेत्र के एक गांव के हमारे मूख्य अगुवा साथी के घर लोग पहुंचे-और यह कहते पीटा की तुम लोग दयामनी को वोट किये हो।
केलेबिरा विधान सभा क्षेत्र में मेरा परचा बांट रहे युवक के उपर गोली चलायी गयी। जैसे ही गोली चलाया-परचा बांट रहा युवक सिर झुका दिया। बाल बाल बच गया।
मैं आप लोगों को यह भी बताना चाहती हुं-कि मुझे भी बोला गया कि-5 लाख रूपया दो, नही ंतो गांव में घुसने नहीं देगें। मैं ने एक ही जवाब दी-जब गांव बचाने का लड़ाने मैंने भी लड़ा है , तब गांव बचा है-आज इसी गांव में घुसने के लिए 5 लाख रूप्रया मांग रहे हो। हमने सीधा कहा-हम नहीं दे सकते हैं।
मित्रो-राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ यह एक बड़ी लड़ाई थी। जहां कहीं भी हमारे लोगों से वोट करने के लिए पैसा मांगा-हमारे साथियों ने हाथ जोड़ कर सीधा अनुरोध करते हुए कहा-यदि आप को वोट के लिए पैसा चाहिए तो आप हम को वोट मत दीजिए। हमारी टीम ने चुनाव प्रचार में यह भी नहीं कहा-कि आप हम को ही वोट करो, हाॅ आप अपना वोट पैसों से, लालच से मत बेचो, आप का एक वोट ही इस राज्य और दे’ा को बना सकता है और विगाड सकता है।
मुझे गर्भ है-कि जिस उदे’य के साथ राजनीति में कदम रखे थे-हम उस उदे’य को हाशिल कर लिए हैं। हमारा उद्देश्य था- जल-जंगल-जमीन-भाषा-संस्कृति, अस्तित्व-पहचान की लड़ाई को राजनीतिक प्लेटफाॅम में लाना, जहां दूसरे राजनीतिक पार्टीयों के यह हमारी अस्तित्व-विरासत मुददा के रूप कभी नहीं देखा गया। हम ने घोषणा भी किया हे-कि इसकी रक्षा के लिए अंतिम स्वांस तक हम आप लोगों के साथ रहेगें।
हमारी टीम उन तमाम साथियों को भी धन्यवाद देना चाहती है-जिन्होंने मार खा कर, जुल्म सह कर भी समाज-व्यवस्था बदलने और अपने हक-अधिकार, जल-जंगल-जमीन और विरासत के लिए वोट किये। हमारी टीम धन्यवाद करती है-आप लोगों ने एक-एक मुठा चावल, एक-एक फड़ा लकड़ी, पातल, दाल, सुखा साग-सब्जी जमा कर चुनाव लड़ने का जजबा का आगे बढ़ायें। हम आप तमाम साथियों को भी धन्यवाद देना चाहते हैं, ,जिन्होंने दूर रह कर भी हमारी टीम के बहुत करीब हर कदम में, हर दुख-सुख में साथ रहे। हम आप सभों को भी धन्यवाद देना चाहते हैं-जिन्होंने अपने चिंतन में हमशा हम लोगों के साथ रहे। हमारी टीम मीडिया के सभी साथियों को धन्यवाद देती है-कि आप ने हमारे प्रति अपनी जिम्मेवारी निभाते हुए -राज्य और देश को हमारे चिंतन और कामों से हमेशा अवगत करने का काम किये। हमारी टीम आप सभी अपील करती हे-कि इस लड़ाई को हम अकेले लड़ नहीं सकते हैं-आप सभी से सहयोग की अपील करती है।
1995 के 5 जुलाई को कोयल कारो परियोजना का घोषणा के साथ ही झारखंड के तत्कालीन रांची जिला के तोरपा प्रखंड और तत्कालीन गुमला जिला के कमडारा प्रखंड, बसिया प्रखंड, पालकोट प्रखंड, सिसई प्रखंड और गुमला प्रखंड, प’शिचमी सिंहभूंम के .गांव सहित ...कुल 245 गांवों में विस्थापन का बादल मंडराने लगा था। कोयलकारो जनसंगठन ने नारा दिया-हम जान देगें-जमीन नहीं देगें। कोयलकारो जनसंगठन के साथ विस्थापन के खिलाफ संघर्षरत जनआंदोलनों ने भी आवाज बुलंद किया। मैं धन्यबाद देती हूॅं-कोयलकारो जनसंठन को-जो हम सभी को आंदोलन में अपने साथ खड़ा होने का मौका दिया। लड़ने सिखाया। झारखंड के इतिहास, भाषा-संस्कृति, सामाजिक मूल्यों की रक्षा के लिए समझौताविहीन संघर्ष के अस्तित्व को आगे बढ़ाने सिखलाया। 2 फरवरी 2001 को कोयलकारो जनसंगठन पर पुलिस फायरिगं हुआ-आठ साथी शहीद हुऐ। 23 साथी घायल हो गये। करीब दो माह तक घायलों का इलाज रिम्स में चला। तब पहली बार घायलों के साथ रहने, उनका सेवा करने का मौका मिला।
सरकार के अनुसार 2 फरवरी के गोली कांड में एक पुलिस भी मारा गया था। इसको लेकर जनसंगठन के साथियों पर केस हुआ। केस की वापसी को लेकर जनसंगठन और पुलिस प्रशासन के बीच कई बार वर्ता हुआ। वर्ता में जनसंगठन ने मुझे ग्रामीण एसपी से बात करने की जिम्मेवारी दी। लगातार ग्रामीण एसपी के साथ केस वापसी को लेकर वर्ता चली-मैं एक ही बिंन्दु में अड़ी रही-कि जनसंगठन पर थोपा गया केस बिना वार्ता वापस लिया जाए। लेकिन प्रशासन हमारी शर्त नहीं मानी।
दूसरी ओर जीवन में पहली बार केस लड़ने के लिए कार्ट का दरवाजा भी देखना पड़ां। जनसंगठन के हितौशी साथियों के साथ मिल कर केस रांची कोर्ट के वकील....को दिये। उनको कोयलकारो आंदोलन, सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, जल-जंगल-जमीन के साथ आदिवासी -मूलवासी समाज का रिस्ता -इन तमाम पहलू पर वकील के साथ चर्चा किये। इसमें वासवीजी, वरिष्ठ पत्रकार फैसल अनुरागजी, डा. रमेश शरणं जी आदि सक्रिया भूमिंका निभाये।
रांची कोर्ट में वकील साहब ने केस अपील किये। केस के लिए आवश्याक कागजात थाना से लाना कर वकील को देना, विधान सभा में जो चर्चा चला था-उसका प्रति माले विधायक काॅ0 महेंन्द्र सिंह के विधायक आवास जाकर लाना, और इसको वकील को पहुंचाना। हर दिन वाकील के पास जरूरी कागजात को लेकर जाना, साथ ही केस लड़ने के लिए पैसा चंदा करके जनसंगठन को देना, वकील को देना -जिंदगी और संघर्ष को करीब से समझने का मौका था।
जनसंगठन पर थोपा गया केस वापसी, घायलों को मुआवजा दिलाने की लड़ाई, ‘’शहीद परिवार को सरकारी नौकरी देने की मांग लड़ाई -में काॅ0 महेंन्द्र सिंह के साथ लाकर साथ खड़ा कर दिया। क्योंकि मैं लगातार इस मामले को लेकर विधायक महेंन्द्र सिंह के विधायक आवास पर जाती थी। महेंन्द्र सिंह के सहयोग, पे्रम भाव और जुझारूपन से भी इसी दौरन परिचाय हुईं ।
इसके बाद लगातार जनमुदों को लेकर गांव-सामाज से लेकर राज्य से लेकर देश स्तर पर जो भी संघर्ष विभिन्न जनआंदोलनों, जनआंदोलनों के समूहों, एनएपीएम, इंसाफ आदि के बैनरों से देश भर में लड़ी जा रही तमाम जनआंदोलनों में भाग लेने, सिखने, आंदोलन को सहयोग करने, सहयोग लेने का भी मौका मिला। ये सभी अवसर निश्चित रूप से आप सभों ने दी दिया।
2006 से 2010 तक अर्सेलर मित्तल जो वर्तमान खूंटी जिला के तोरपा प्रखंड, रनिया प्रखंड, कर्रा प्रखंड तथा गुमला जिला के कमडारा प्रखंड़ों के करीब 40 गांवों को विस्थापित कर 12 मिलियन टन का स्टील प्लांट लगाना चाहता था-ग्रामीण गांव छोड़ना नहीं चाहते थे। ग्रामीण अपने पूर्वजों का जमीन बचाने के लिए कंपनी के खिलाफ झंण्डा बुलंद कियें। कई बार कंपनी और दलालों ने जान से मारने की धमकी दी। फान पर -बोला-तुम गांव में बैठक करना छोड़ दो, कंपनी के खिलाफ गांव वालों को भड़काना बंद करो-नही ंतो इतना गोली मारेगें कि -शव का ’शिनाख्त नहीं होगा, तुम्हारा लाश को कोई नहीं पहचानेगें। दूसरी बार फिर फोन आया-तुम सुधर नहीं रही हो-वारनिंग दे रहे हैं-गांव में बैठक करना छोड़ दो-नही तो लोगों के बीच से ही उठा लेंगें। आप लोगों का प्यार-सहयोग ने मुझें और मजबूती के साथ खड़ा रखा।
हमने हमारे पूर्वजों की दी विरासत को कंपनी के हाथ-जाने से बचा के अभी तक रखा। 2010 से छाता नदी पर गैर कानूनी तरीके से कंटी जलाशय के नाम पर डैम बनना प्ररंभ्म किया गया थां। विरोध करने पर एक ग्रामीण की हत्या भी हो गयी। इस घटना के बाद मुझे गांव में बुलाया गया। 17 दिसंबर को पहली बार जबड़ा गांव आयी। दो बेगुनाह लोगों को पुलिस पांच दिनों तक अपने कस्टडी में रखी, इन लोगों को पुलिस से मुक्त करवाये। ग्रामीणों के अग्राह पर डैम के विरोध आंदोलन को आगे बढ़ाये। डैम के बारे जानकारी लेने के लिए सरकारी दफतरों में-प्रखंड विकास पदाधिकारी, अंचल अधिकारी, जिला में-एसडीओ, अपर सर्माहर्ता, उपायुक्त खूंटी, राज्य जलसं’ााधन विभाग, वि’ोष भूर्अजन विभाग में आरटीआई से जानकारी मांगी। सरकारी दफतरों से मिली जानकारी के अनुसार जनंआदोलन को तैयार करने की को’शिष की। जनआंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए-डेम प्रभावित जनसंघर्ष समिति बनाये। कई धमकियां आयी, अढचन आये, फिर भी आज तक जमीन, गांव सभी सुरक्षित है।
2012 में नगड़ी में सरकार आईआईएम सहित कई संस्थानों के लिए 227 एकड़ जमीन जबरन अधिग्रहण करना प्ररंभ्म कर दिया था। 227 एकड़ जमीन को चारों ओर से घेराबंद किया जा रहा था। इस भूखंड के चारों ओर पुलिस बल, को उतार दिया था। सरकार का तर्क था-जमीन 1957-58 में ही सरकार खरीद चुकी है। दूसरी ओर गांव वाले दावा कर रहे थे कि हमलोगों ने जमीन नहीं बेची है। दोनों पक्षों के हकिकत को समझने के लिए मैंने भूअर्जन विभाग से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी। जानकारी मिला-1957-58 में 153 रैयत थे, इनमें से 128 रैयतों ने मुआवजा नहीं लिया और वो पेसा रांची ट्रेजरी में जमा है। यह साफ हो गया-कि किसान जमीन का पैसा नहीं लिये हैं-तब सरकार जमीन कैसे खरीदी।
इसकी जानकरी उपलब्ध सरकारी दस्तावेज के साथ 2 मार्च को राज्यपाल को मांग प्रत्र देकर -जबरन अधिग्रहण को रोकने का आग्रह किये। 2 मार्च से 4 जूलाई तक नंगड़ी के खेत में दिन-रात धरना ग्रामीणों ने दिया। पूरा आंदोलन में साथ रहे। धरना के साथ सभी मोरचों पर आंदोलन चला। सरकार ने हल निकालने के लिए पांच आइएस अधिकारियों का एक उच्चस्तरीय समिति बनायी। इस हाईलेबल समिति का अध्यक्ष भूराजस्व मंत्री श्री मथुरा महतो को बनाया गया था। जमीन मालिको और हाईलेबल समिति के बीच तीन बार बैठक हुई। तीनों बार ग्रामीणों ने बताया कि-जमीन बिका नहीं है, और न ही बेचना चाहते हैं। श्री महतो जी बोलते रहे-जमीन मालिकों की भावनाओं का ख्याल रखा जाएगा।
सरकार को सुकुरहूटू का जमीन -जहां 1900 एकड़ बंजर भूमि हैं-लगातार विकल्प के रूप में बताते रहे। लेकिन सरकार अपने जिद पर अड़ी रही। दूसरी ओर सरकार मुझे जेल भेजने की तैयारी में जुट गयी। 2006 के मानरेगा में ग्रामीणों को जोब कार्ड दिलाने के लिए रैली निकाली गयी थी-इसी मामले में मेरे नाम पर वारंट निकाला गया और जेल भेज दिया। जेल से तब तक बाहर नहीं निकलने दिया-जब तक कि लाॅ यूनिर्वसिटी के लिए 70 एकड़ जमीन पूरी तरह से घेराबंदी और कब्जा में लिया। मेरे जेल जाने के बाद आंदोलन को किसी ने आगे नहीं बढ़ाया, यह दुखद रहा। फरवारी 2013 को तत्कालीन केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश जी प्रभात खबर आये थे। तब प्रभात खबर के प्रधान संपाद श्री हरिवंश जी के अमंत्रण में मैं भी जयरामजी के छोटी मुलाकात में गयी थी। साथ में जयरामजी के नाम नगड़ी का जमीन वापस करने और इसके लिए विकल्प में सूकुरहूट में जमीन देखने के लिए मांग पत्र बना कर दिये। इस मुददे पर 35 मिनट तक मंत्री जी से बात हुई। दो माह के बाद जयराम रमे’ाजी के पहल पर नगड़ी से आई आई एम सहित अन्य संस्थानों को सूकूरहूटू स्थानंत्रित करने का फैसला लिया गया। जो मेरे लिए सुखद रहा।
2011 से ही खूंटी जिला के तजना नदी पर डैम बनाने की सुगबुगाहट हो रही है। लेकिन डैम के खिलाफ आंदोलन 2013 से ज्यादा सक्रिया हुआ है। सरकारी अधिकारी भी 2013 में डैम बनाने के लिए पूरी ताकत के साथ जनसुनवाई कराने की कोशिश किये। लेकिन सरकार असफल रही।
मेरा मनना है-जींदगी में जितने भी उतार-चढ़ाव हम लोगों ने देखा-सामना किये, हर कदम में आप सभों का सहयोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रहा है। आप के प्रेम -दुलार ने ही हर कदम को मजबूती से आये बढ़ाया। आज गर्व के साथ कह सकते हैं-कि हमन बिरसा मुंडा के विरासत के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया। कोयल नदी, कारो नदी, छाता नदी और तजना नदी का बहता पानी इसका साक्षी है।
इस लबें संघर्ष के कडुआ अनुभवों ने एक कदम आगे बढ़ने का निर्णय लिया। जिस जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं-इसको संरक्षित करने, पूंजीपतियों, कारपोरेट के हाथें निलामी करने का कानून -नीति लोक सभा में और विधान सभा में ही बनाया जाता है। पालन भी इन्हीं संस्थानों के द्वारा किया जाता है। इस लिए सभों ने आंदोलन के साथियों ने निर्णय लिये कि-हम लोगों को राजनीतिक हस्तक्षेप में जाना चाहिए-जहां कानून और नीतियां तय की जाती हैं।
चुनाव की तैयारी आप लोगों ने जनआंदोलन के तर्ज पर किये। नामंकन के पहले सभी अपने देवी-देवता, शत्कि के प्रतिक भगवानों को नमन-दर्’शन करते हैं। आप लोगों ने झारखंड के समझौताविहीन ’शहादती बिरसा मुंडा के उलगुलान को याद करके-झारखंड की विरासत की हिफाज के लिए बिरसा मुंडा के शहादती आंदोलन के साथ राजनीतिक शत्कि को बनाने का संकल्प डोम्बारी बुरू में लिये। और तय किये कि हमारा रास्ता बिरसा का रास्ता होगा।
खूंटी लोक सभा क्षेत्र चार जिलों के 6 विधान सभा क्षेत्र में फैला है। इसमें खूुटी जिला में तोरपा विधान सभा, और खूंटी विधान सभा है। सिमडेगा जिला में कोलेबिरा विधान सभा और, सिमडेगा विधान सभा है। रांची जिला में तमाड़ विधान सभा है, और खरसंवा जिला में खरसंवा विधान सभा है। पूरा देश -दुनिया जानता है कि-पूरा खूंटी लोक सभा क्षेत्र में माओवादी, पीएलएफआई से लेकर दर्जनों छोटे-बड़े उग्रवादी समूह सक्रिया हैं। यह भी सभी जानते हैं-इसमें से कई विधान सभा पर उग्रवादी संगठनों का शतप्रतिशत वर्चास्व है। इन उग्रवादि संगठनों के इच्छा के बिना कई क्षेत्रों में पता भी डोल नहीं सकता है।
पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान तोरपा विधान सभा क्षेत्र में उग्रवादी संगठन ने फरमान जारी किया था-कि हमारा आदमी को वोट नहीं करोगे तो -हम रात में आएगें, और वोट करोग तो दिन में आएगें। इस फरमान से पूरा तोरपा विधान सभा क्षेत्र आतांक में डुब गया। चाहते-ना चाहते हुए भी लोागों ने भय से उनका उम्मीदवार को भारी मतों से जितवाया।
2014 के लोक सभा चुनाव में सभा उग्रवादी संगठनों ने अपना अपना उम्मीदवार खड़ा किया था। जो अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया-वो संगठन उम्मीदवारों से भारी राशि लेकर उनके पक्ष में वोट डालवाने का जिम्मेवादी उठाया। मेरे साथियों से सीधे तौर पर कहा-दयामनी को वोट करोगे तो-पूरा गांव जला देगें। नामांकन के दिन से ही मेरे साथियों को खूंटी नामांकन के लिए आने से रोकना शुरू किया। मेरे समर्थकों को कहा गया-दयामनी को वोट करोगे तो अंजाम ठीक नहीं होगा। नामांकन के दिन से लगातार -दिन-रात हर गांव में मेरे साथियों को प्रचार करने से रोकते रहे। धमकियां देते रहे।
7 अप्रैल को बिरबांकी में हमारे साथियों को बंधक बनाया, गाड़ी की चाभी छीन लिये। चार घंण्टा तक बंधक रखने के बाद शाम सात बजे साथी वहां से किसी तरह भाग निकले। सातों साथी रात भर बिरबांकी के जंगल में भटकते रहे। 18 घंण्टा के बाद साथी खूंटी पहुंचे। चलते चलते पैरों पर छले ओ गये थे। पूरा देह में जंगल झाडी -कांटों का खंरोच, देख कर मन सिहर जाता था। सात साथियों की जिंदगी हमारे लिये कीमती था। हमलोगों ने प्रशासन को रिपोर्ट देर से ही लिखवायी, कारण की पहले हमारे साथियों के वापस आने का इंतजार कर रहे थे।
9 अप्रैल को कर्रा थाना के बिकवादाग में पीएलफआई ने हमारे साथियों को मारा-पीटा, गाड़ी का चाबी छीन लिया। बाद में हमारे नेतृत्वकारी साथी को कैद में लिया और बाकी छह को वहां से भागने को कहा, उन लोगों को हिदायत दी गयी कि कोई पिछे मुडकर नहीं देखेगा-जितना जल्दी हो भागो यहां से। जिस साथी को छह बंदूकधारियों ने कैद में रखा-उनसे वहां खड़े ब्रहम्णों का पैर छू कर प्रणाम करके हाथ जोड़कर कहलवाया-एनोश एक्का को वोट दो। पुलिस वहां पहुंची, इस कारण उनका जान बच गया।
एक बुजूर्ग साथी से इसी संगठन के लोगों ने पूछा-तुम दयामनी का काम कर रहे हो? उस सज्जन ने जवाब दिया-हां काम कर रहे हैं। तब उन लोगों ने धमकाया-दयामनी को वोट कराओगे तो अंजाम ठीक नहीं होगा। भयमुक्त उस सज्जन ने जवाब दिया-यदि सचाई और समाज के लिए आप लोग मार भी दीजिएगा-तो इतिहास बनेगा, कि हमारी जान समाज की रक्षा के लिए गयी।
एक दूसरा व्यक्ति ने हिम्मत दिखायी-17 अप्रैल को चुनाव के दिन-उसी संगठन के लोग मातदाताओं को अपने तरफ वोट करवाने के लिए खाने-पिने का आयोजन किये थे। वहां सभी को जाना था। वहां निर्देष दिया गया-सिर्फ झारखंड पार्टी के एनो’श को ही वोट करना है, प्रत्यक्षदशिर्यों के अनुसार-एक बुजुर्ग ने जवाब दिया-हम तो दयामनी को ही वोट देगें। इतना सूनना था-कि उक्त बुजुर्ग को लोगों ने खूब पीटा। इसी रात को वोट के बाद कर्रा थाना क्षेत्र के एक गांव के हमारे मूख्य अगुवा साथी के घर लोग पहुंचे-और यह कहते पीटा की तुम लोग दयामनी को वोट किये हो।
केलेबिरा विधान सभा क्षेत्र में मेरा परचा बांट रहे युवक के उपर गोली चलायी गयी। जैसे ही गोली चलाया-परचा बांट रहा युवक सिर झुका दिया। बाल बाल बच गया।
मैं आप लोगों को यह भी बताना चाहती हुं-कि मुझे भी बोला गया कि-5 लाख रूपया दो, नही ंतो गांव में घुसने नहीं देगें। मैं ने एक ही जवाब दी-जब गांव बचाने का लड़ाने मैंने भी लड़ा है , तब गांव बचा है-आज इसी गांव में घुसने के लिए 5 लाख रूप्रया मांग रहे हो। हमने सीधा कहा-हम नहीं दे सकते हैं।
मित्रो-राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ यह एक बड़ी लड़ाई थी। जहां कहीं भी हमारे लोगों से वोट करने के लिए पैसा मांगा-हमारे साथियों ने हाथ जोड़ कर सीधा अनुरोध करते हुए कहा-यदि आप को वोट के लिए पैसा चाहिए तो आप हम को वोट मत दीजिए। हमारी टीम ने चुनाव प्रचार में यह भी नहीं कहा-कि आप हम को ही वोट करो, हाॅ आप अपना वोट पैसों से, लालच से मत बेचो, आप का एक वोट ही इस राज्य और दे’ा को बना सकता है और विगाड सकता है।
मुझे गर्भ है-कि जिस उदे’य के साथ राजनीति में कदम रखे थे-हम उस उदे’य को हाशिल कर लिए हैं। हमारा उद्देश्य था- जल-जंगल-जमीन-भाषा-संस्कृति, अस्तित्व-पहचान की लड़ाई को राजनीतिक प्लेटफाॅम में लाना, जहां दूसरे राजनीतिक पार्टीयों के यह हमारी अस्तित्व-विरासत मुददा के रूप कभी नहीं देखा गया। हम ने घोषणा भी किया हे-कि इसकी रक्षा के लिए अंतिम स्वांस तक हम आप लोगों के साथ रहेगें।
हमारी टीम उन तमाम साथियों को भी धन्यवाद देना चाहती है-जिन्होंने मार खा कर, जुल्म सह कर भी समाज-व्यवस्था बदलने और अपने हक-अधिकार, जल-जंगल-जमीन और विरासत के लिए वोट किये। हमारी टीम धन्यवाद करती है-आप लोगों ने एक-एक मुठा चावल, एक-एक फड़ा लकड़ी, पातल, दाल, सुखा साग-सब्जी जमा कर चुनाव लड़ने का जजबा का आगे बढ़ायें। हम आप तमाम साथियों को भी धन्यवाद देना चाहते हैं, ,जिन्होंने दूर रह कर भी हमारी टीम के बहुत करीब हर कदम में, हर दुख-सुख में साथ रहे। हम आप सभों को भी धन्यवाद देना चाहते हैं-जिन्होंने अपने चिंतन में हमशा हम लोगों के साथ रहे। हमारी टीम मीडिया के सभी साथियों को धन्यवाद देती है-कि आप ने हमारे प्रति अपनी जिम्मेवारी निभाते हुए -राज्य और देश को हमारे चिंतन और कामों से हमेशा अवगत करने का काम किये। हमारी टीम आप सभी अपील करती हे-कि इस लड़ाई को हम अकेले लड़ नहीं सकते हैं-आप सभी से सहयोग की अपील करती है।
जय झारखंड
जय भारत
जिंदगी के लंबे और चुनौति भरा सफर में आप लोग मेरी ताकत बन कर, दोस्ता बनकर, सहयोगी बन कर, चिंतक बनकर, मेरा प्रशासक बन कर, ’शुभ चिंतक बन कर हर कदम, हर स्वांस में मेरे साथ निरंतर रहे और आशा है-आगे कई वैचारिक मत भेदों के बावजूद हम-आप साथ रहेंगे
जय भारत
जय झारखण्ड
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