Wednesday, May 21, 2014

वो सिर्फ मुस्कुराया केवल। लेकिन मै जान नहीं सकी कि-कोंन्दा के आंख से बह रहा पानी -आंख की बीमारी के कारण नहीं बह रहा था-बल्कि घायल हृदय का आंशुं था।

25 मार्च 2014
11.30 बजे हम लोग डोम्बारी बुरू से खूुटी कचहरी पहुंचे। वहां नमांकन फर्म लेकर वकील धनिक गुडि़या, वकील शंकर कुशवाहा, वकील श्री ठाकुर मौजूद थे। मेरे प्रस्तावकों के साथ नमांकन लीगल प्रक्रिया पूरा करने में लग गये। गांवों से आये लोगों की भीड़ थी। मैं सबसे मिलने की कोशिश  कर रही थी। महिलाएं भी आयी हुई हैं। सभी साथी एक दूसरे सुे मिल रहे हैं। कई लोग बातों में व्यस्त हैं।
                                           डा शिलाश  हेम्रोम के साथ
                                              ग्रामीण साथ
                                              कोट परिसर में साथी
                                              एडवोकेट -धनिक गुड़िया और एडवोकेट शंकर कुशवाहा
                               एडवोकेट -धनिक गुड़िया, एडवोकेट शंकर कुशवाहा  और विनय भट           

वहीं एक साथी हल्का पीला कमीज पहने अकेले चुपचाप खड़ा है। मैं उनके पास गयी। सामने खड़ा होकर उनसे बात करने लगीं, मैं हाल-चाल पुछने लगी। उनकी आंखे एक टक मेरी ओर निहार रही है। उनके दोनों आंख में अंशुं  डब-डबा रहा है। अब अंशुं  आंख से बहते हुए उनके गाल पर लुढक रहा है। तब मैं पूछी-आप के आंख में अंशुं क्यों है??
कोंन्दा कुछ भी बोल नहीं रहा है। मैं दुबारा पूछी-आप के आंख में अंशुं  क्यों है? तब कोन्दा मुस्कुराने की कोशिश  करते हुए बोला-हां कुछ हो गया है, ऐसा ही पानी निकलते रहता है। मैं फिर पूछी-आंख वाला डाक्टर को आपने ने दिखाया कि नहीं?? उन्होंने ने जवाब दिया-नहीं । तब मैं बोली-अच्छा ठीक है, इस चुनाव को पार होने दीजिए-17 अप्रैल के बाद आप रांची आइए-आंख डाक्टर से दिखवा लेते हैं। वो सिर्फ मुस्कुराया केवल। लेकिन मै जान नहीं सकी कि-कोंन्दा के आंख से बह रहा पानी -आंख की बीमारी के कारण नहीं बह रहा था-बल्कि घायल हृदय का आंशुं  था।
ये बात हो ही रही थी-तब पुष्पा और सावना करीब आये। पुष्पा बोली-दीदी ये लोग बहुत दुखित हैं-आज ये लोग गांव से छह मैजिक ओटो गाड़ी बुक किये थे यहां आने के लिए। यहां आने के लिए निकले थे-लेकिन सबको गाड़ी से उतार दिये जंगल वाले, (क्षेत्र में सक्रिये उग्रवादी संगठन ) आने नहीं दिये, गांव के लोग जैसा चाहते थे-नहीं आ सके, इसीलिए दुखित हैं।
इनकी बातों को सुन कर मेरा भी मन भर आया। हाॅ गांव इस गांव के कल भी फोन किये थे दो तीन बार, और बोले थे-दीदी हम लोग गांव से छह गाड़ी बुक कर लिये है-खूंटी आने के लिये। आज सुबह भी इन लोगों ने फोन किये थे-आप लोग रांची से निकले कि नहीं-यह जानने के लिये। मैं हुडमा टोली के इन साथियों को एक टक निहारते रही, फिर अपने को समेटते हुए इन लोगों को समझायी कि-किसी के रोकने से हम लोग कभी रूके नहीं हैं-आज भी आप लोग यहां पहुंच गये -रोकने के बावजूद, कल भी आप लोग आगे ही बढ़ेगें।



                                         डी सी सेमसन को नामांकन परचा देते हुऐ
                                            नामांकन के बाद साथियों से लड़ाई का संकल्प

                                            आदिवासी समाज के हक़ अधिकार के प्रखर पत्रकार  श्री फैसल  अनुराग 

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