Tuesday, February 11, 2014

यही तो है जिंदगी का बसंत, जो हम में जीने की उम्मीदें भरता है। चहकते चिडियों को देख कर गीत गा रहे हैं-छोटे-मोटे पिपाइर गछे -कौआ, मैंना, सुगा भरी गेलैं-कहे-कहे सुगा, मौना से भेलाएं झारगरा, कहे-कहे कौआ, सुगा से भेलायं झागरा


अगघन माह में धन कटनी-मिसनी का काम अंतिम चरण में होता है। पुस माह के कनकनी में चार बजे भोर से बदन में हल्का चादर ओढे खलिहान में बैल-भैंस के साथ दौंरा धान दौंरी करने के आनंद को कोई भी किसान का बेटा जो आज इंजिनियर हैं-उस दिन को याद करते ही मन-बदन में शीतलता  लता का अहसास जरूरता करता है। खलिहान के बगल में धान की भूस की बोरसी में बैल खेदते कनकनी हाथों को सेंकने का याद से ही मन गरम होने लगता है। खलिहान में धान का गांज खत्म होते ही -मदाइत लगाकर पुवाल को गांव के बगल में पुटकल पेड़ पर बने मचान पर चढ़ाने के बाद अब किसान रिलैक्स महसूस करने लगते हैं। कनकनी कम होने लगा है। पुस खत्म होते ही माघ चढ़ गया। ग्रामीण क्षे+त्रों में कई इलाकों में माघ जतरा भी शुरु  होने वाला है। जतरा देखने के लिए पैसे का इंतजाम में ग्रामीण  जुट रहे हैं। पुटकल, कोयनार, कचनार, महुआ, कुसुम, जाम, पलाश   पेड के हरे पत्ते  अब पीले नजर आने लगे हैं। अब सुबह -शाम केवल हल्की ठंड महशुस हा रही है। दिन को सूरज अब अपनी गरमी का अहसास कराने लगा है। 
गांव के इमली पेड़ में अब इमली फल ही ज्यादा नजर आ रहा है। गांव के टोली-महला और टांड में बेर के पेड़ों पर पीला, लाल बेर गांव के बच्चों के साथ गाय-बैल, बकरी, सुवर को भी अपनी ओर खिच रहा है। खेत में अभी काम कम है। जो रवि की फसल लगाये हैं, वे अभी भी खेतों में व्यस्त हैं। पुस माह की ठंड और हल्की बारिस ने जमीन को अभी नमी ही रखा है। ग्रामीण महिलाएं अब आने वाले बरसात के लिए नजदीक के जंगल से लकड़ी-झूरी में जुट जा रही हैं। क्योंकि कुछ दिन के बाद गरमी तेज होने वाली है। साथ ही आने वाले बरसात के में खेती-बारी के लिए खेत-टांड में मांईद भी डालना है। ताकि बरसात शुरू होते ही खेत की जोताई-कोड़ाई हो सके। गड़हा खेत में कहीं कहीं छिपिर छिपिर पानी है-जहां खेसारी का लरंग अभी पचपन से बाहर निकल रहा है। लगता है फूलने की तैयारी में है। गढ़हा-नाला के किनारे किनारे बुट -मटर , आलू, गेहुं, बेलाइंती, बैगन, फूल गोफी, पोटोम कोबी, सलगम मुराइ लहलहा रहा है। इसके बीच बीच में चिमटी साग, दाइल साग भी मन को अपनी ओर खिंच ले रहा है। 
इसी बीच गांव में शादी-विवाह, लगन, नया कुटुब सभी निभाना भी है। परिवारिक, सामाजिक व्यस्त जिंदगी को हमारे प्रकृतिक जीवन सैली ने अपने जिंदगी के साथ हमारे सामाजिक, संस्कृतिक जिम्मेदारियों के साथ बांधता जा रहा है। आम पेड के पुराने पत्ते माघ माह ही झड़ना शुरू हुए। पलाश  के हरे पत्तों में भी अब पीलापन अब गया है। इन पीले पत्तों के बीच काला-काला नुकीली कोमलें निकलने लगी हैं। जंगल की हरियाली भी पीलेपन में तब्दील हो गयी है। हल्की-हल्की पछुवा हवा के झोंके से पेड़ों के पीले पत्ते गिरने लगे हैं। करीब सभी पेड़ों के पुराने पत्ते गिरने लगे हैं-’ाायद इसीलिए लोग अब कहने लगें हैं कि पतझड आ गया है। 
हां -जैसे जैसे पेंड़ों से पत्ते झडने लगें हैं-पूरी प्रकृति -पर्यावरण में नयी जिंदगी की आशाओं की कोंपले भी अपना रूप लेने लगा है। गांव के अगल-अगल के सेमल पेड़ लाल फूलों से लद गया है। किसान अपने आंगन में चरती मुर्गी को देख सोचने लगा है कि-ये अभी अंण्डा नही तो तो अच्छा है-क्योंकि अभी सेंमल फूल के समय घुरनी से चुचा निकालेगी तो -चुचा जिंदा नहीं रह पायेंगे। यह ग्रामीणों में आम सोच बनी हुई है। देखते देखते गांव के आम बागीचा मंजर से ढंक गया है। महुंआ पेड़ में भी रूचू हो चुका है। ढेलकटा, कोरेया और साल के पेड़ दूधिया फूलों से ढ़क चुका है। जगल में लाल -बैगनी पत्तों से लदे कुसुम, महुआ, जाम पेड़ लोगों को संघर्ष करने और जीने का संदेश  देने लगा है। कोयल की  कुहू-कुहू की मधुर आवाज आम के मंजरियों में मंडरा रहे मधु-मखियों में नयी जोश  भर रहा है। कई ऐसे पेड़ हैं-जिसमें नयी पतियों के साथ ही फूल भी खिलने लगे है।
प्रकृतिकमूलक आदिवासी-मूलवासी सामाज की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक जिंदगी भी प्रकृति के जीवनचक्र के साथ ही आग बढ़ता है। प्रकृति-पर्यावरण में नये पत्ते, नये फूलों के साथ ही आर्थिक समृद्वी का भी सहसास होने लगता है। पुटकल साग कोयनार साग साथ साथ निकल आया है। बर, पाकर, पीपल, जाम, डुमाईर पकने लगा हैं। लोग इन पेड़ों के नीचे दिखने लगे हैं, जबकि कुआ, मैना, सुगा पके फलों से लदे डालियों में चहकने लगे हैं। नये पत्ते-फूलो से सजी प्रकृति ने -आदिवासी-मूलवासी सामाज को सरहूल परब मनाने का न्योता भी दिया है। यही तो है जिंदगी का बसंत, जो हम में जीने की उम्मीदें भरता है। चहकते चिडियों को देख कर गीत गा रहे हैं-छोटे-मोटे पिपाइर गछे -कौआ, मैंना, सुगा भरी गेलैं-कहे-कहे सुगा, मौना से भेलाएं झारगरा, कहे-कहे कौआ, सुगा से भेलायं झागरा

दूसरी ओर राज्य पिछड़ रहा है-विकास नहीं हो रहा है, यह दलील देते हुए नेता- मंत्री राज्य को विषेश दर्जा दिलाने का नाटक कर राज्य की जनता को गुमराह किया जा रहा है।

झारखंड अलग राज्य की मांग न सिर्फ भौगालिक रूप से राज्य पूर्नगठन की मांग थी, न सिर्फ सरकारें बनाने की। लेकिन अलग राज्य की लड़ाई झारखंड के इतिहास, पहचान, जल-जंगल-जमीन, की रक्षा के साथ आदिवासी-मूलवासियों के भाषा-सांस्कृति के साथ कृर्षि-पर्यावरण, जलस्त्रोंतों, शिक्चा -स्वास्थ्य, मानव संसाधनों का विकास, विज्ञान-प्रावैधिकी की समुनत विकास के लिए था। झारखंड का दुरभग्य है-कि राज्य बनने के बाद राज्य में 9 मुख्यमंत्री बने, दर्जनों उप मुख्य मंत्री बने। सौकड़ों मंत्री और विधायक बने, लेकिन राज्य के जनमुखी -स्सटेनेबल डबलपमेंट के दिशा  में राज्य को एक कदम भी नहीं बढ़ा सके। राज्य के जनअधिकारों, प्रकृतिक संसाधनों को लूटाने, लुटने, कमीशन बनाने के लिए बारी बारी से नेताओं ने एलांश  करते रहे। लेकिन भ्रष्ट अपराधिक राजनीतिक-प्रशसनिक गंठजोड़ ने राज्य हित में न तो सोचा न ही काम किया। यह मैं नहीं बल्कि सरकार की आॅडिट रिपोर्ट बता रही है। विकास के नाम पर विभागों को जो राशी  आबंटित की जा रही हैं उसको सरकार खर्च नहीं कर पा रही है। दूसरी ओर नेता, मंत्री राज्य में धन की कमी का रोना रोते हैं। जो धन रा’िा राज्य के विकास के नाम पर विभिन्न विभागों को आबंटित की गयी-उसको किस तरह खर्च किया जाए, इस पर नेता-मंत्रियों को कोई रूचि नहीं है। दूसरी ओर राज्य पिछड़ रहा है-विकास नहीं हो रहा है, यह दलील देते हुए नेता- मंत्री  राज्य को विषेश  दर्जा दिलाने का नाटक कर राज्य की जनता को गुमराह किया जा रहा है। 
अलग झारखंड गठन के बाद से विगत 11 वर्षों में विभिन्न विभागों के पास विकास योजनाओं के 146.52 करोड़ रूपये पड़े हुए हैं। आॅडिट रिपोर्ट में 36 विभागों के पास पड़ी हुई इस राशी  को ट्रेजरी में जमा करना जरूरी बताया गया है। 
यह राशी  ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, राजस्व, एवं भूमि सुधार, मानव संसाधन, पंयायती राज, उद्योग, पशुपालन, ग्रामीण कार्य, सूचना एवं जनसंपर्क, परिवहन, समाज कल्याण, कल्याण, वित, कृर्षि, गृह, खेलकूद, निबंधन, विज्ञान-प्रावैधिकी, कार्मिक प्रशासनिक सुधार, श्रम नियोजन, सांख्यिकी विभाग, खाद्य आपूर्ति, सहायता एवं पुनर्वास विभाग की ओर से कोषागार में जमा नहीं करायी गयी है। 
जनकारी के अनुसार 11 सालों में 10 से अधिक विभागों में 15.46 करोड़ रूपये की गड़बडी का मामला भी उजागार हुआ हैं यह राशी  योजनाओं को पूरा करने के लिए संबंधित विभागों को दी गयी थी। विभागों में की गयी वित्तीय अनियमितता के संदर्भ में 139.01 करोड़ रूपयें सरकार वसूल नहीं पायी है। यह आंकडे विभिन्न विभागों के अंकेछण प्रतिवेदन के आधार पर वित बिभाग  की ओर से तैयार किये गये हैं। 
जनकारों के अनुसार इस राशी  से 58 हजार  टयूबवेल और 45 हजार से अधिक इंदिरा आवास बनाये जा सकते थे। 
वित विभाग की रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक राशी  ग्रमीण विकास विभाग  में पड़ी हुई है। सबसे कम राशी  निबंधन विभाग की है।
ग्रामीण विकास विभाग के 73.98 करोड़ रूपये और श्रम विभाग के पास 500 रूपये पड़े हैं। सहायता एवं पुनर्वास विभाग का 23.70 करोड़, राजस्व एवं भूमिं सुधार विभाग का 12.44 करोड़, कल्याण विभाग का 12.99 करोड़, कृर्षि विभाग का 14.31 करोड़, मानव संसाधन विभाग का 4.66 करोड़ रूपय बेकार पड़े हैं। 
अधिक वसूली योग्य राशी  ग्रामीण विकास में
सरकार की ओर से गत 11 वर्षों में ग्रामीण विकास विभाग से सबसे अधिक वसूली योग्य राशी  35.89 करोड़, रूपये ली जाना है, इसी प्रकार कल्याण विभाग से 21.84 करोड़, मानव संसाधन विभाग से 17.25 करोड़, राजस्व एवं भूमिं सुधार विभाग से 24.06 करोड़, परिवहन विभाग से 9.31 करोड़, समाज कल्याण से 1.36 करोड़, गृह विभाग से 14.06 करोड, वन एवं पर्यावरण विभाग से 3.28 करोड़, पथ निर्माण से 2.74 करोड़, कार्मिक विभाग से सरकार को 3.28 करोड़ की वसूली की जानी है। 
अधिक गड़बड़ी पंचायती राज विभाग में-
विगत 11 वर्षों में सबसे अधिक सरकारी रा’िा की गडबड़ी पंचायती राज विभाग में हुई है। वित विभाग की रिपोर्ट के अनुसार पंचायती राज विभाग में 13.42 करोड़, की गडबड़ी हुई है। इसके अलावा समाज कल्याण विभाग में 36.99 लाख, ग्रामीण विकास में 60.64 लाख, राजस्व एवं भूमिं सुधार विभाग में 28.88 लाख, वित विभाग में 33.92 लाख और कृर्षि विभाग में 24.41 लाख की गड़बड़ी है।