VOICE OF HULGULANLAND AGAINST GLOBLISATION AND COMMUNAL FACISM. OUR LAND SLOGAN BIRBURU OTE HASAA GARA BEAA ABUA ABUA. LAND'FORESTAND WATER IS OURS.
Thursday, February 23, 2023
आदिवासी और प्रकृति के बीच रचे.बसे विशिष्ठ इतिहास को समझना जरूरी है।
आदिवासी और प्रकृति के बीच रचे.बसे विशिष्ठ इतिहास को समझना जरूरी है। सांप, बाघ, भालू, बिच्छू जैसे खतारनाक जानवरों से लड़कर आदिवासी सामुदाय जंगल, झाड़, पहाड़ को साफ कर जमीन आबाद किया, गांव बसायाए खेती लायक जमीन बनया। जंगलीए कंद, मुल, फुल.फल, साग.पात इनका आहार था। पेड़ों का छांव, घने जंगलए पहाड की चोटियों और ढलानें इनका अशियाना बना। खतरनाक जीवए जंतुओं को मित्र बनाया। नदी, झील, झरना इनका जीवन दायीनी स्त्रोत बने। प्रकृति की जीवनशैली ने आदिवासियों के सामाजिकए आर्थिकए सांस्कृतिकए भाषा.सहित्य को जीवंत लय दिया। विश्व भर के आदिवासी.मूलवासी सामुदाय का प्रकृतिक धरोहर के साथ यही जीवंत रिस्ता है। विकास के दौर मेंए प्रकृति और आदिवासी सामुदाय के परंपारिक जीवन अब टुटता जा रहा है। विकास का प्रतिकूल मार ने इनके ताना.बाना की कडी को कमजोर करता जा रहा है। एक तरफ स्टेट पावर और इनकी वैश्वीक आर्थिक नीतियां आदिवासी सामुदाय के परंपरारिक और संवैधानिक आधिकारों के प्रति अपनी उतरदायित्व और जिम्मेदारियों को सीमित करता जा रहा है। दूसरी तरफ वैश्वीक पूंजी बाजार भारत ही नहीं बल्कि विश्व के आदिवासी सामुदाय को जड़ से उखाड़ने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
आदिवासी.मूलवासीए किसानए दलित सहित सभी प्रकृतिकमूलक समुदाय के हक.अधिकारों पर चारों ओर से हमले हो रहे हैं, हमला जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा के लिए बने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियमए संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम को खत्म करने का प्रयास हो याए पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में इस समुदायों के लिए प्रावधान अधिकार होए या संविधान के धारा 335 में प्रावधान सेवाऔ और नौकरियों में विषेश प्रावधान होए सभी पर हमले हो रहे है।
21 सितंबर 2020 को हाइकोर्ट द्वारा झारखंड नियोजन नीति 2016 को एक मामले में खारिज कर देनाए झारखंड के आदिवासी.मूलवासी समुदाय के लिए बहुत ही दुभग्यपूर्ण माना जाएगा। इसलिए कि राज्य के अनुसूचित क्षेत्र के अधिकारों को नकारा गया है। स्थानीयता का मतलब सिर्फ नौकरी में बहाली नहीं है। स्थानीयता का मतल यहां का गैरवशाली इतिहासए आदिवासी.मुलवासी समुदाय के जीवन मूल्य इनकी भाषा.सांस्कृतिक चेतना और पहचान है। एक शिक्षक का स्थानीय स्तर पर नौकरी का मतलब सिर्फ एक पद विषेश पर सेवा देना नहीं है बल्कि जहां वो पदस्थापित होगा वहां के समुदाय के जीवन शैलीए भाषा.सांस्कृति से रूबरू होए बच्चों को शिक्षा से जोड़ना है। जब हम ़़क्षेत्रीय आदिवासी भाषाओं का विकसित करने की वाकालत करते हैंए क्षेत्रीय भाषा .सहित्य को संरक्षित और विकसित करने की बात करते हैए तब निश्चित तौर पर शिक्षकों की बहाली स्थानीय स्तर पर होना चाहिए।
झारखंड को भाषा.सास्कृति के आधार पर अलग.अलग क्षेत्रों में बंाटा गया है। झारखंड में 32 आदिवासी समुदाय ;अनुसूचित जनजातिद्ध और 22 अनुसूचति जाति समुदाय हैं। सबकी अपनी बोली.भाषा है। क्षेत्र के आधार पर कुछ भाषा कोमन बोली.संर्पक भाषा बोली जाती है जैस नागपुरी। जनजातियों की बोली जानी वाली मूल भाषाएं हैं.उरांवए मुंण्डारीए खडियाए होए संतालीए खेरवारीए सदानीए खोरठाए कुडमालीए मालतीए पंचपरगानिया और नागपुरी आदि है। यदि प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने के लिए उरांव भाषी का संथाली भाषा क्षेत्र में पदास्थापित किया जाता है तब निश्चित तौर पर एक संथाली भाषी शिक्षक के तुलना में उरांव भाषी शिक्षक को बच्चों को शिक्षा से जोडने में कठिनाई होगी। इसी तरह मुंण्डारी भाषा क्षेत्र में कुडमाली भाषा को पदस्थापित किया जाए तो उन्हें भी वहीं दिक्कदें होगी। इन बुनियादी जरूरतों के आधार पर स्थानीयता महत्वपूर्ण है। सिर्फ एक व्यक्ति की नौकरी या उनके मौलिक अधिकार का सवाल नहीं हैए बल्कि राज्य के समग्र विकास के साथ सामुदायिक मौलिक अधिकार का सवाल जुड़ा हुआ है।
esi तरह स्थानीय जीवनशैलीए बोली.भाषाए सास्कृतिक मूल्यों पर सभी सेवाओं को सुनिश्चित करने की जरूरत है। 199-.96 के दशक में सरकार ने एक सरकुलर जारी किया थाए उसमें कहा गया था कि जो अधिकार जिस क्षेत्र में पदास्थापित किया जाएगाए उस क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा की जानकारी जरूरी है। इस निर्देश साथ सभी अंचल से लेकर जिलास्तर के पदाधिकारी जहां पदास्थापित हैंए वहां का भाषा सिखने लगे। आखिर एैसा क्यों निर्देश दिया गया इसके पिछे उद्वेश्य था। कारण की अधिकारी जिस क्षेत्र में नौकरी करते हैं वहां के लोगों के परंपरागत अधिकारोंए सामाजिक मान्यओं को समझते हुए प्रशासनिक सेवा बेहतर तरीके से दे सकें।
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