Saturday, September 26, 2020

हाइकोर्ट ने सुनाया फैसला-हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति विज्ञापन व सरकार की नियोजन नीति को हाइकोर्ट में दी गयी थी चुनौती को झारखंड हाइकोर्ट ने अवैध व असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया है। साथ ही 13 अनुसूचित जिलों के हाइस्कूलों में हुई शिक्षकों की सभी नियुक्तियों की भी निरस्त करने का आदेश दिया है।

 21 सितंबर 2020

प्रभात खबर रांची

हाइकोर्ट ने सुनाया फैसला-हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति विज्ञापन व सरकार की नियोजन नीति को हाइकोर्ट में दी गयी थी चुनौती को झारखंड हाइकोर्ट ने अवैध व असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया है। साथ ही 13 अनुसूचित जिलों के हाइस्कूलों में हुई शिक्षकों की सभी नियुक्तियों की भी निरस्त करने का आदेश दिया है। हाइकोर्ट न इन जिलों में नये सिरे से विज्ञापन निकाल कर बहाली करने का आदेश दिया है। यह भी कहा है कि जो अभ्यर्थी इस चयन प्रक्रिया के हिस्सा थे, उनकी उम्र अथवा अन्य बांछित आहर्ताओं को बरकरार रखते हुए नये सिरे से बहाली की जाये। हाइकोर्ट ने गैर अनुसूचित 11 जिलों में हुई शिक्षकों की नियुक्तियों को सुरक्षित रखा है। हाइकोर्ट की लाॅजर बैंच ने एकमत से सोबवार को उत्क फैसला सुनाया। र्लाजॅर बेंच में जस्टिस एचसी मि़श्र, जास्टिस एस चंन्द्रशेखर और जस्टिस दीपक रोशन शामिल थे। र्लाजॅर बेंच ने कहा कि किसी भी नियोजन में केवल “स्थानीयता या जन्मस्थान“ के आधार पर 100 प्रतिशत सीटें आरक्षित नहीं की जा सकती है। यह सुप्रीम कोर्ट के “ इंदिरा साहनी एवं चेबरूलु लीली प्रसाद राव (सुप्रा)“ पारित आदेश के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित किया था कि किसी भी परिस्थिति में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। 

पीठ ने कहा कि शिडयूल -5 के तहत शत प्रतिशत सीट आरक्षित करने अधिकार न तो राज्यपाल के पास है और न ही राज्य सरकार के पास। यह अधिकार सिर्फ संसद को है। इसलिए सरकार की अधिसूचना संख्या 5938/14.7.2016 तथा आदेश संख्या -5939/14.7.2016 को पूर्णतः असंवैधानिक पाते हुए रिस्त किया जाता है। 

13 जिलों में 3684 शिक्षकों की नियुक्तियां होंगी प्रभावित-

हाइकोर्ट के आदेश के बाद राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में नियुक्त 3684 हाइस्कूल शिक्षकों की नियुक्ति प्रभावित होगी। हाइस्कूलों में पिछले चार वर्ष से 17, 572 शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है। नियुक्ति के लिए वर्ष 2016 में झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा विज्ञापन निकाला गया था। इस विज्ञापन में 24 जिलों को दो कोटि (13 जिले अनुसूचित जिला व 11 जिले गैर अनुसूचित जिला) में बांटा गया था। अनुसूचित जिलों के पद उसी जिले के स्थानीय निवासी के लिए आरक्षित कर दिये गये थे, वहीं, गैर अनुसूचित जिले में बाहरी अभ्यर्थियों को भी आवेदन करने की अनुमति दी गयी थी। अनुसूचित जिलों में कुल 8423 पदों पर शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आवेदन लिये गये थे। इनमें से लगभग 3684 शिक्षकों की नियुक्ति की गयी थी। ये शिक्षक वर्तमान में विद्यालयों से पदस्थापित हैं। 

वहीं गैर अनुसूचित जिलों में 9149 पदों पर नियुक्ति के लिए आवेदन लिया गया था। परीक्षा वर्ष 2017 के अंत में हुई थी जबकि रिजल्ट 2019 में जारी किया गया था, शिक्षकों को नियुक्ति पत्र भी 2019 में दिया गया था। रिजल्ट प्रकाशन के बाद 8371 अभ्यर्थियों की नियुक्ति की अनुशंसा आयोग द्वारा की गयी थी। जिसमें वर्तमान में इसमें से 8082 शिक्षक विभिन्न जिलों में कार्यरत हैं, कुछ जिलों को छोड़कर अधिकार जिलों में सभी विषयों में नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं हो पायी थी। इतिहास व संस्कृत विषय में अधिकतर जिलों में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुइ है। 

रांची में 475 शिक्षकों की हुई है नियुक्ति-रांची नियोजन नीति के तहत अनुसूचित जिला में शामिल है। रांची के हाइस्कूलों में 475 शिक्षकों की नियुक्ति की गयी थी। हाइकोर्ट के आदेश से रांची शिक्षकों को नियुक्ति भी प्रभावित होगी-

2012 में रद हुआ था 8000 के सफल अभ्यर्थियों का रिजल्ट-वर्ष 2011-12 में प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में शिक्षक नियुक्ति के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा ली गयी थी। राज्य में प्राथमिक शिक्षकों के 12 हजार पद रिक्त थे, जबकि शिक्षक पात्रता परीक्षा में 8000 अभ्यर्थी ही सफल हुए। शिक्षक पात्रता परीक्षा में रिक्त पद से कम अभ्यर्थियों के चयनित होने पर सरकार ने इनकी सीधी नियुक्ति का निर्णय लिया। सिके खिलाफ असफल अभ्यर्थियों ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की, परीक्षा की प्रक्रिया शुरू होने के बाद इसमें बदलाव के कारण कोर्ट ने विज्ञापन रद कर दिया। 

छोड़कर आये थे प्राथमिक शिक्षक की नौकरी-हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति में 25 फीसदी पद प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के लिए आरक्षित किये गये थे। झारखंड का कर्मचारी चयन आयेाग द्वारा प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत 215 सफल शिक्षकों की हाइस्कूल में नियुक्ति के अनुसंसा की गयी थी। इनके से लगभग आधे शिक्षक 13 अनुसूचित जिलों में कार्यरत हैं। 

प्रार्थी का पक्ष

सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता ललित कुमार सिंह व राजस्थान हाईकोट्र के अधिवक्ता विज्ञान शाह ने लार्जर बेंच को बताया कि झारखंड में राज्यपाल ने पांचवी अनुसूचि के तहत अनुसूचित जिलों में 10 वर्षों के लिए तृतीय व चतुर्थ वर्गीय पदों पर नियुक्ति में स्थानीय के लिए शत-प्रतिशत सीट रिजर्व कर दी है। जाति, क्षेत्र या स्थान आदि के नाम पर नियुक्ति में शत-प्रतिशत सीट आरक्षित नहीं की जा सकती है। यह अधिकार राज्यपाल को भी नहीं है। यह संविधान के अनुच्छेद-13, 14, 16, 19 (1जी), 21 व 35एक का उल्लंघन है। नियुक्ति का मामला पार्ट-थी्र का है, जिस पर संसद, कानून बनाती है। 

सरकार का पक्ष

महाविक्ता राजीव रंजन ने प्रार्थियों की दलील का विरोध करते हुए बेंच कोबताया था कि आंध्र प्रदेश का मामला अलग था। झारखंड का अलग है। राज्यपाल को पांचवी अनुसूची के तहत अधिसूचना जारी करने को अधिकार है। राज्य सरकार को पाॅलिसी बनाने का अधिकार है। स्थान व शिडयूल -5 के तहत पाॅलिसी बनायी गयी है। जो विधिसम्मत है। किसी को शत-प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया गया है। उन्होनें बताया  िकइस नीति के अनुसार हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति के अलावा भी अन्य विभागों में नियुक्तियां की गयी है। 


लार्जर बेंच ने कहा-गलत होने पर हम मुकदर्शक बने नहीं रह सकते हैं-हाइकोर्ट

झारखंड हाइकोर्ट ने कहा है कि गलत होने पर कोर्ट मुकदर्शक बनकर नहींरह सकती है। इसलिए गलती सुणरना जरूरी है। राज्य सरका की नियोजन नीति समानता के अधिकार अनुच्छेद -14, सरकारी नौकरियों में समान अवसर के अधिकार अनुच्छेद -16 का उल्लंघन है। नीति से मौलिक अधिकार का हनन होता है। राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2016 में लागू नियोजन नीति अल्ट्रा वायरस है। निवास के आधार पर किसी को उसके मौलिक अधिकार से बंचित नहीं किया जा सकता है। 

कुल पद-17572 था

11 गैर अनूसूचित जिला में 4591 पदों की अनुशंसा

13 अनूसूचित जिलों में 4398 की नियुक्ति

इन जिलों में आरक्षित था

जिला-----पद----

रांची-----1013

खूंटी-----387

गुमला----696

सिमडेगा--427

लोहरदगा--333

पू0सिंहभूम--972

प0 सिंहभूम--1187

सरायकेला---709

लातेहार----573

दुमका---959

जामताड़ा---539

पाकुड----486

साहिबगंज--589


Asthaniyate Neeti ka Matlab..yanha ka Gaourawsali Itihash, Adivasi Mulvasi Samuday ke Jiwan Mulyon, Inki Bhasah-Sanshkritik Chetna aur Pahchan hai.

 आदिवासी और प्रकृति के बीच रचे-बसे विशिष्ठ इतिहास को समझना जरूरी है। सांप, बाघ, भालू, बिच्छू जैसे खतारनाक जानवरों से लड़कर आदिवासी सामुदाय जंगल, झाड़, पहाड़ को साफ कर जमीन आबाद किया, गांव बसाया, खेती लायक जमीन बनया। जंगली, कंद, मुल, फुल-फल, साग-पात इनका आहार था। पेड़ों का छांव, घने जंगल, पहाड की चोटियों और ढलानें इनका अशियाना बना। खतरनाक जीव, जंतुओं को मित्र बनाया। नदी, झील, झरना इनका जीवन दायीनी स्त्रोत बने। प्रकृति की जीवनशैली ने आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, भाषा-सहित्य को जीवंत लय दिया। विश्व भर के आदिवासी-मूलवासी सामुदाय का प्रकृतिक धरोहर के साथ यही जीवंत रिस्ता है। विकास के दौर में, प्रकृति और आदिवासी सामुदाय के परंपारिक जीवन अब टुटता जा रहा है। विकास का प्रतिकूल मार ने इनके ताना-बाना की कडी को कमजोर करता जा रहा है। एक तरफ स्टेट पावर और इनकी वैश्वीक आर्थिक नीतियां आदिवासी सामुदाय के परंपरारिक और संवैधानिक आधिकारों के प्रति अपनी उतरदायित्व और जिम्मेदारियों को सीमित करता जा रहा है। दूसरी तरफ वैश्वीक पूंजी बाजार भारत ही नहीं बल्कि विश्व के आदिवासी सामुदाय को जड़ से उखाड़ने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। 

आदिवासी-मूलवासी, किसान, दलित सहित सभी प्रकृतिकमूलक समुदाय के हक-अधिकारों पर चारों ओर से हमले हो रहे हैं, हमला जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा के लिए बने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम को खत्म करने का प्रयास हो या, पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में इस समुदायों के लिए प्रावधान अधिकार हो, या संविधान के धारा 335 में प्रावधान सेवाऔ और नौकरियों में विषेश प्रावधान हो, सभी पर हमले हो रहे है।

21 सितंबर 2020 को हाइकोर्ट द्वारा झारखंड नियोजन नीति 2016 को एक मामले में खारिज कर देना, झारखंड के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के लिए बहुत ही दुभग्यपूर्ण माना जाएगा। इसलिए कि राज्य के अनुसूचित क्षेत्र के अधिकारों को नकारा गया है। स्थानीयता का मतलब सिर्फ नौकरी में बहाली नहीं है। स्थानीयता का मतलब, यहां का गैरवशाली इतिहास, आदिवासी-मुलवासी समुदाय के जीवन मूल्य, इनकी भाषा-सांस्कृतिक चेतना और पहचान है। एक शिक्षक का स्थानीय स्तर पर नौकरी का मतलब सिर्फ एक पद विषेश पर सेवा देना नहीं है, बल्कि जहां वो पदस्थापित होगा, वहां के समुदाय के जीवन शैली, भाषा-सांस्कृति से रूबरू हो, बच्चों को शिक्षा से जोड़ना है। जब हम ़़क्षेत्रीय आदिवासी भाषाओं का विकसित करने की वाकालत करते हैं, क्षेत्रीय भाषा -सहित्य को संरक्षित और विकसित करने की बात करते है, तब निश्चित तौर पर शिक्षकों की बहाली स्थानीय स्तर पर होना चाहिए। 

झारखंड को भाषा-सास्कृति के आधार पर अलग-अलग क्षेत्रों में बंाटा गया है। झारखंड में 32 आदिवासी समुदाय (अनुसूचित जनजाति) और 22 अनुसूचति जाति समुदाय हैं। सबकी अपनी बोली-भाषा है। क्षेत्र के आधार पर कुछ भाषा कोमन बोली-संर्पक भाषा बोली जाती है जैस नागपुरी। जनजातियों की बोली जानी वाली मूल भाषाएं हैं-उरांव, मुंण्डारी, खडिया, हो, संताली, खेरवारी, सदानी, खोरठा, कुडमाली, मालती, पंचपरगानिया और नागपुरी आदि है। यदि प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने के लिए उरांव भाषी का संथाली भाषा क्षेत्र में पदास्थापित किया जाता है, तब निश्चित तौर पर एक संथाली भाषी शिक्षक के तुलना में उरांव भाषी शिक्षक को बच्चों को शिक्षा से जोडने में कठिनाई होगी। इसी तरह मुंण्डारी भाषा क्षेत्र में कुडमाली भाषा को पदस्थापित किया जाए, तो उन्हें भी वहीं दिक्कदें होगी। इन बुनियादी जरूरतों के आधार पर स्थानीयता महत्वपूर्ण है। सिर्फ एक व्यक्ति की नौकरी या उनके मौलिक अधिकार का सवाल नहीं है, बल्कि राज्य के समग्र विकास के साथ सामुदायिक मौलिक अधिकार का सवाल जुड़ा हुआ है। 

ठसी तरह स्थानीय जीवनशैली, बोली-भाषा, सास्कृतिक मूल्यों पर सभी सेवाओं को सुनिश्चित करने की जरूरत है। 1995-96 के दशक में सरकार ने एक सरकुलर जानी किया था, उसमें कहा गया था कि जो अधिकार जिस क्षेत्र में पदास्थापित किया जाएगा, उस क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा की जानकारी जरूरी है। इस निर्देश साथ सभी अंचल से लेकर जिलास्तर के पदाधिकारी जहां पदास्थापित हैं, वहां का भाषा सिखने लगे। आखिर एैसा क्यों निर्देश दिया गया, इसके पिछे उद्वेश्य था। कारण की अधिकारी जिस क्षेत्र में नौकरी करते हैं, वहां के लोगों के परंपरागत अधिकारों, सामाजिक मान्यओं को समझते हुए प्रशासनिक सेवा बेहतर तरीके से दे सकें। 

2016 में बनी नियोजन नीति में अनुसूचित जिलों के लिए इन्हीें मान्याओं के आधार पर पदों को आरक्षित किया गया था। यह मांग पूरे झारखंड के 24 जिलों के लिए किया जा रहा था। झारखंडियों के लिए बेहतर स्थानीयता नीति की मांग की गयी थी। लेकिन भाजपा सरकार ने राज्य को दो भागों में मांट दिया। अनुसूचित 13 जिलों के लिए 10 वर्षों तक वर्ग तीन और चार श्रीणी के सभी पदों को आरक्षित कर दिया, और 11 गैर अनुसूचित जिलों के वर्ग तीन और चार श्रीणी के पदों को खुला रख दिया, यहां कोई भी, कहीं से भी आकर नौकरी ले सकता है। यह राज्य के स्थानीय समुदाय के अधिकारों की अनदेखी कर दी गयी। यह राज्य के लिए दुभग्यपूर्ण रहा। 

10 हजार पदों पर नियुक्ति के लिए चल रही प्रक्रिया, इसपर लग सकता हैं ग्रहण

झारखंड की नियोजन नीति 2016 के तहत राज्य के विभिन्न विभागों के विभिन्न पदों के लिए 10 हजार नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही थी। जा नियोजन नीति रदद होने के कारण इस पर भी रोक लग सकता हैै। 

राज्य सरकार की नियोजन नीति झारखंड हाइकोर्ट से निरस्त होने के बाद लगभग 10,000 पदों पर नियुक्ति के लिए पूर्व स ेचल रही चयन प्रक्रिया पर संकट पैदा हो गया है। झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की ओर से तृतीय व चतुर्थ वर्ग के विभिन्न पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गयी थीं इसमें से संयुक्त पुलिस अवर निरीक्षक, पुलिस अवर निरीक्षक प्रतियोगिता परीक्षा, पुलिस रेडिया आॅपरेटर, इंडिया रिजर्व बटालियन, कारा चालक प्रतियोगिता परीक्षा, झारखंड उत्पाद सिपाही की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। जबकि इंटरमीडिएट स्तरीय संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा, एएनएम प्रतियोगिता परीक्षा, सामान्य योग्यताधारी स्ताक स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षा आदि की प्रक्रिया जारी है स्नातक प्रशिक्षित हाइस्कूल शिक्षक प्रतियोगिता परीक्षा की प्रक्रिया भी जारी है। इतिहास, संस्कृत, हिदीं संगीत आदि विषयों में कई जिलों में अभी नियुक्ति नहीं हो पायी है। हाइकोर्ट में नियोजन नीति का मामला लंबित रहने के कारण नियुक्ति प्रक्रिया  भी आगे नहीं बढ़ पा रही थी। इधर झारखंड कर्मचारी चयन आयोग का कहना है कि आदेश की प्रति अभी नहीं मिली है। आदेश की प्रति मिलने के बाद आयोग उस पर विचार करेगा, जरूरत पड़ेगी तो सरकार से मार्गदर्शन लिया जाऐगा।