Friday, May 29, 2020

हम लड़ेंगे -जीतेंगे हम जमीन की लूट के खिलाफ लड़ेंगे -जीतेंगे , भूख के खिलाफ लटेंगे -जीतेंगे , पानी की रक्षा के लिए लड़ेंगे-जीतेंगे , जंगल की रक्षा के लिए लड़ेंगे -जीतेंगे , भोजन के अधिकार के लिए लड़ेंगे -जीतेंगे , पर्यावरण की रक्षा के लिए लड़ेंगे -जीतेंगे , महामारी के खिलाफ लड़ेंगे-जीतेंगे , कोरोना को रोकने के लड़ाई लड़ेंगे -जीतेंगे। . हम लोगों जिंदगी में हर लड़ाई लड़ रहे हैं, जीते भी हैं, आज करना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. वादा है ---हम सभी लड़ाई जीतेंगे

 खूंटी जिला के तोरपा प्रखंड के आमा पंचायत के किसान , अपने गांव के बाजार में अपने खेत की उपज बेजते।  किसान अपने खेत में जून -जुलाई में गोड़ा  धान , मडुवा , गोंदली, गंगाई , बादाम , सकरकंद , पिचकी , शरू , जैसे बरसाती फसल लगते हैं, बरसाती फसल के बाद जनवरी माह से गरमा फसल लगने की तैयारी में जुटते हैं. २००६ से अब तक इस इलाके के किसान ,  हम अपने पूर्वाकों का एक इंच जमीन नहीं देंगे , आदिबासी-मूलवासियों का बिस्थापन बंद करो, किसानों का जमीन लूटना बंद करो, हमारी कृषि भूमि मत लूटो, लड़ेंगे -जीतेंगे का नारा के साथ मित्तल कंपनी दावरा जमीन अधिग्रहण के खिलाप संघर्ष करते रहे।  लम्बे कठिन संघर्ष के बाद किसान जमीन बचा पाने में सफल रहे हैं.
 झारखंडी आदिवासी -मूलवासी , किसान,दलित , मेहनतकशों का नारा  है --
हम लड़ेंगे -जीतेंगे
हम जमीन की लूट के खिलाफ लड़ेंगे -जीतेंगे , भूख के खिलाफ लटेंगे -जीतेंगे ,  पानी की रक्षा के लिए लड़ेंगे-जीतेंगे , जंगल की रक्षा के लिए लड़ेंगे -जीतेंगे , भोजन के अधिकार के लिए लड़ेंगे -जीतेंगे , पर्यावरण की रक्षा के लिए लड़ेंगे -जीतेंगे , महामारी के खिलाफ लड़ेंगे-जीतेंगे , कोरोना को रोकने के लड़ाई लड़ेंगे -जीतेंगे। . हम लोगों  जिंदगी में हर लड़ाई लड़ रहे हैं, जीते भी हैं, आज करना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. वादा है ---हम सभी लड़ाई जीतेंगे
 धरती ने हमें बहुत कुछ दिया है, केवल समझने -पहचानने की जरुरत है।  धरती की हम रक्षा करेंगे , पर्यावरण का संरक्षण करेंगे ये हमारा वादा है, धरती की रक्षा करेंगे , धरती हमारी रक्षा करेगी , यही जिंदगी का मूल मंतर है। 
 वह देश सबसे कमजोर और गरीब है जिस देश ने अपने किसानो को अन्न पैदा करने के लिए दो बीघा जमीन नहीं दे सका।  वह देश गरीब है , जंहा के नदी,झील ,झरने अपने देशवासियों की प्यास बुझा नहीं सका। 
 हम बिकास की जितनी ऊंचाई पैर पहुँच जाएँ---लेकिन हमारी पेट आग तो यही किसानों के खेत की उपजाये आनाज से बुझेगी , हमारी प्यास , धरती ही बुझाएगी।
                               प्रकृति साथ है, पर्यावरण साथ है --तो हम सबसे लड़ेंगे और जीतेंगे
                                        प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है-हम भी उसको देने सीखें
                                 यह हमारा गरीबी और पिछड़ापन नहीं है-यह हमारे अमीरी का प्रतीक है  

Saturday, May 23, 2020

आज झारखंड सरकार, झारखंडियों सहित राज्य में वापस आये प्रवासी मजदूरों को कड़ा नीतिगत निर्णय लेना होगा। खेत, खहिलान, जंगल, माटी, नदी-नाला हमारा, तो यहां का नौकरी, रोजगार भी हमारा हो। चाकोंड़, सिलयारी साग, माडं-भात खाकर रहें, लेकिन स्वाभिमान के साथ झारखंड की माटी में जीयेगें-मरेंगें।

झारखंडियों ने कोरोना संकट से बचने के सारे उपाय जो भी सरकार ने बताये थे, उसे बिना किसी विरोध के अक्षरसा  पालन किया है। वहीं प्रवासी झारखण्डी मजदूर जो दुसरे राज्यों में हैं पहली और दुसरी लाॅकडाउन को जैसे तैसे पार कर दिये पर तिसरे मे न तो उनके पास खाना था, न ही पैसा बचा, मकान का किराया सबसे कठीन था, तब निरास हो  जीवन संकट में डाल हजारों मील पैदल चलने का निर्णय लिया। ’जीवन में प्रवासी मजदूरों की भयावह स्थिति शयद हमने पहले देखी नहीं थी। सरकारों को धन्यबाद कि प्रवासी मजदूरों को अपने राज्य में लाने का पहल किया, अभी तक कई हजार आ चुके। सरकारी अंकड़ों के अनुसार करीब सढे नौ लाख मजदूरों का अभी आना बाकी है। राज्य में बेरोजगारों की संख्या बहुत बड़ी है। इन सभी बेरोजगारों के लिए राज्य में रोजगार सृजन और स्वस्थ्य सुविधा को दुरूस्त करना आसान नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं है। बस कुछ जरूरी नीतिगत फैसला लेने की जरूरत है। 

दुर्भाग्य झारखण्ड का, कि अलग राज्य बनने के बाद भी तीनमसीया और छहमसीया के लिये हमारे भाई बहन मजबूर हैं, जिनका शरीरिक ,, मानसिक आर्थिक शोषण की खबरें आती रही।  पर इस बार प्रवासी मजदूरों की भयावह स्थिति सामने आया। प्ंजाब-हरियाणा के खेतो में दिन-रात सोना उपजाने वाले हमारे ही राज्य के बेटे-बेटियां, भाई-बहन हैं। जो रोटी की तलाश में प्रवासी मजदूर बन कर गये हैं। विकास के नाम पर विकसित रियलस्टेट का व्यवसाय का रीढ हमारे ही प्रवासी भाई-बहन जो देश  भर के ईंट भठों में उनके खून-पसीना से सने ईटों से रियलस्टेट की इमारातें उंची की जाती हैं। देश  के हर इलाके में लघु उद्योग, कुटीर उद्योर,, सहित लाखों उद्योग, व्योपार इन्हीं मैनपावर के बदौलत देश  को अपनी सेवाये दे रहा है। प्रवासी मजदूर भले ये नीति निर्धारक नहीं हो सकते, लेकिन इस राज्य की तकदीर बदलने में अहम भूमिका निभा सकते  हैं।

जिस शहर  को मजदूरों ने अपने खून-पसीना से सिंच कर खड़ा किया, सजाया, संवारा, वही शहर इन्हें दो वक्त की रोटी और सर छिपाने के लिए छत का कोना नहीं दे सका। जिन छोटे, बड़े उद्योंग संचालकों का मुनाफा बढ़ाया, देश  का जीडीपी बढ़या, उन्हीं प्रवासी मजदूरों को हजार, 2 हाजार किमी पैदल चलने को विवश  हुए। आखिर हमने कैसा देश  बनाया, विकास का कैसा माॅडल खड़ा किया, जहां गरीब, मजदूरों को न्याय नहीं दे पाया।

आज झारखंड सरकार, झारखंडियों सहित राज्य में वापस आये प्रवासी मजदूरों को कड़ा नीतिगत निर्णय लेना होगा। खेत, खहिलान, जंगल, माटी, नदी-नाला हमारा, तो यहां का नौकरी, रोजगार भी हमारा हो। चाकोंड़,  सिलयारी साग, माडं-भात खाकर रहें, लेकिन स्वाभिमान के साथ झारखंड की माटी में जीयेगें-मरेंगें। 

गांव को आत्मरिभर बनाने के लिए गांवों की सीमाओं के भीतर-बाहर जो भी प्रकृतिक संसाधन हैं, पर स्थानीय आबादी एवं ग्राम सभा को नियंत्रित, संचालित एवं कारोबार करे, यह नीति बने। लघु, माझोले उद्योग सहित लघु वनोपज एवं लघु खनिजों के प्रबंधन एवं व्यवसाय के लिए स्थानीय ग्राम सभा इकाईयों को पंजिकरण कर लाइसेंस देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ करना होगा। घरेलू कृषि उद्योग एवं पर्यावरण संरक्षण को प्रथमिकता देकर सस्टनेबल डवलपमेंट को माॅडल बनाना होगा। 

शिक्षित और स्वस्थ्य मैनपावार से राज्य को उन्नतशील बनाया जा सकता है। वर्तमान कमजोर शीक्षा और स्वस्थ्य व्यवस्था को सुदृढ करना सरकार की पहली प्रथमिकता हो। राज्य के सभी जिला मुख्यालयों में एवं प्रखंड मुख्यालयों, स्कूलों, अस्पतालों एवं पंचायत मुख्यलयों मेै स्थानीय बेरोजगारों को पीयोन, चपरासी, क्लर्क  से लेकर कम्पुयटर ओपरेटर तक की नियुक्ति की नीति बने। इन सेवाओं के लिए आउटसोरसिंग बहाल बंद किया जाए।

राज्य में पानी की उपलब्धता के लिए तिलैया बांध, कोनार बांघ, मैथन बांध, पंचेत पहाड़ी बांध, दुर्गापुर अवरोध बांध, स्वर्ण रेखा बहुउद्वेषीय परियोजना, अजय बराज सहित 50 से अधिक छोटे जलाषय बन चुके हैं। इन बडे़ डैमों का पानी सिर्फ औद्योगों के लिये केवल उपयोग नही हो, बाल्कि पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाए, ताकि खेतों में दो-तीन बार खेती संभव हो।  

पानी पुरूष  पदमश्री श्री सिमोन उरांव के नेतृत्व में एक कमेटी बनायी जाए जो बरसाती पानी को तलाब, आहर, नालों, कुओं, पोखर, सीरीज डैम द्वारा संचय करने की परंपारिक तकनीकी का विकसित हो। टिकाउ विकास के लिए राज्य में उपलब्ध जंगल-जमीन, पानी सहित तमाम प्रकृकि संसाधनों का मूल्यंकन करने की जरूरत है। कितना जमीन विभिन्न योजनाओं में खपत हो चुका है, कितना वर्तमान में है। कितना जमीन, कृषि कार्यों के लिए, उद्योगों के लिए, षिक्षा, स्वस्थ्य के बुनियादी ढंचों के लिए, कितना पर्यावरण के लिए उपयोग किया जाना चाहिए, इसका रोडमेप बने। 

राज्य में वनोपज की कमी नहीं है, इस पर आधारित सोटटार्म और लाॅंगंटर्म रोजगार सृजन की बुनियाद खड़ा किया जाना चाहिए। बांस, कुसुम, पलाश , बेर, आम, इमली, महुआ, डोरी, चार, केउंदू, जामुन, करंज, कटहल, लीची, बरहरड जैसे सौकड़ों पेड़-पौधे हैं, जो लाह खेती, मधुमक्खी पालन, बकरी, सुकर पालन, बत्तक पालन के साथ अन्य खाद्य उत्पादन के लिए फूड प्रोसेसिंग यूनिट तथा लाह उद्योग स्थापित कर लाखों रोजगार के अवसर पैदा किया जा सकता है। 


झारखंड अलग राज्य का आंदोलन सिर्फ 24 जिलों के भौगोलिक क्षेत्र को राज्य का दर्जा दिलाने के लिए नहीं था, बाल्कि आदिवासी-मूलवासी, किसान, दलित मेहनतकश  सामुदाय के जंगल-जमीन, भाषा-संस्कृति, अस्तित्व, पहचान एवं इतिहास को संरक्षित-विकसित करने का संघर्ष था। आज राज्य के कला-संस्कृति, आदिवासी सहित्या, भाषाओं के लिपि, लोकगीतों, नाटक-रंगकर्मीयों एवं स्थानीय फिल्मकारों के कलाओं को विकसित करने के लिए नीति निर्धारण जरूरी है।  

औद्योगिकीकरण-षहरीकरण का विस्तार से ग्रामीण किसानों की जिंदगी तेजी से शहरी मजदूरों में तब्दील हो रहा है। इससे बड़ी संख्या में स्थानीय किसान भूमिहीन, घर विहिन, एवं बेराजगारों की फौज बढ़ रही है। ये शहरी बेरोजगार रोटी के दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। इनका सुधी लेगें, तभी झारखंडी होने का गौरव सहसूस करेगेें। 

बिश्वा  महामारी कोरोना के चेन तोड़ने को लेकर लाॅकडाउन सषत्क उपाय माना गया। लाॅकडाउन को लेकर विभिन्न देशों  की  अपनी राय रही। यूरोप शुरूआती दौर में माना, बाद में इसका विरोध किया। इंग्लौंड में तो माना ही नहीं। अमेरिका में विरोध में लोग बंदूक लेकर संडक पर निकल गये। भारत में सरकार ने जो भी निर्णाय सुनाया, हम सभी ने सह्दय स्वीकारे,  हमसभी ने थाली बजाये, घंटा बजाए, फाटेका फोड़े, मोम बतियां भी जलाये। प्रवासी मजूदरों की अंतहीन दुर्रदशा   तो शब्दों में बांया करना संभव नहीं है। पिछले दो वर्ष में राज्य में भूख से 22 मौतें हो चुकी है, अभी लतेहार में एक लड़की की मौत हुई।  अपने राज्यों में पहुंचने के लिए मजदूरों ने रजिस्ट्रेशन कराया, स्वस्थ्य जांच के लिए जगह-जगह भटकना पड़ा। पहले मजदूर ट्रेन से आये, बाद में ट्रको से। बोकारों के 11 मजदूरों की मौत ट्रक से आने के क्रम में हुई। अब मजदूर ओटो से भी आ रहे हैं। इतना धन राशि   इनके नाम से आता हैै, फिर ये मर क्यों रहे हैं। क्या ये भारत के नागरिक नहीं हैं? इनके  लिए संविधान है या नहीं? ये भवनात्मक हो सकता है, लेकिन संवैधानिक अहम सवाल भी है। 


Wednesday, May 6, 2020

प्रवासी मजदूर भले ये नीति निर्धारक नहीं हो सकते, लेकिन इस राज्य और देश की तकदीर बदलने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। यदि ये अपनी सेवाएं देना बंद कर दें, तो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ ध्वस्त हो जाएगी।

कोरोना महामारी के कारण देश  भर में हुए लाॅकडान ने पहली बार देश  के राजनीतिक ं गलियारे में चर्चा हो रही है। इन मजदुरों के महत्व, अहमियत को कभी राज्यकीय व्यवस्था और समृद्व सामुदाय ने नहीं समझ पाया । ये प्रवासी मजदूर, सिर्फ मजदूर नहीं हैं, यह हमारे राज्य और देश  को सजाने-संवारने वाले कस्तकार, और राज्य के निमार्ण करने वाले मजबूत पिलर हैं। ये अपनी क्षमता-दक्षता अनुसार विभिनन क्षेत्रों में अपनी सेवायें दे रहे हैं। याद है एक गीत-जब मैं छोटी थी तो, सुनती थी-रांची शहर को कौन? कौन बनाया? सरकार नहीं बनाया, रेजा-कुली बनाया,.... सरकार नहीं बनाया...रेजा-कुली बनाया। पंजाब -हरियाणा के खेतो में दिन-रात हरियाली, सोना उपजाने वाले हमारे ही राज्य के बेटे-बेटियां, भाई-बहन हैं। जो रोटी की तलाष में प्रवासी मजदूर बन कर गये हैं। विकास के नाम पर विकसित रियलस्टेट का अर्थव्यस्था एवं व्यवसाय का रीढ हमारे ही प्रवासी भाई-बहन जो देश  भर के ईंट भठों में उनके खून-पसीना से सने ईटों से रियलस्टेट की इमारातें उंची की जाती हैं। जिंन्हें निर्माण मजदूर कहा जाता हैै। देश  के हर क्षेत्र   में लघु उद्योग, कुटीर उद्योर, जुट मिल, कपड़ा मिल, से लेकर ईट भठा, पत्थर खदान, भवन निर्माण सहित सौंकड़ो छोटे-मझोले उद्योग, व्योपार इन्हीं मेनपावर के बदौलत देश  की अर्थव्यवस्था टिका है। प्रवासी मजदूर भले ये नीति निर्धारक नहीं हो सकते, लेकिन इस राज्य और देश  की तकदीर बदलने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। यदि ये अपनी सेवाएं देना बंद कर दें, तो देश  की अर्थव्यवस्था की रीढ़ ध्वस्त हो जाएगी।