टिचरजी सबको बोल दी थी-26 जनवरी तक जिसके पास ड्रेस नहीं है, बनवा लो। मां को प्रति माह 25 रू0 तनखा मिलता था। मां इस पैसा को हमदोनों को, जोलेन दादा और बिजय दादा सबको बांट देती थी। पुलिस वाले हमदोनों को खाना के साथ 15 रू महिना देते थें। मां के मलकीन के घर के बगल वाले घर में फुलमनी आया का काम करती थी। फूलमनी बोली हमको एक परिवार वाले सुबह शाम वर्तन, कपड़ा, घर झाडू-पोछा करने के लिए आया खोजने के लिए बोले हैं। एक दिन फुलमनी मुझ को लेकर उस परिवार से बात करायी। मैं काम करने के लिए तैयार हो गयी। सुबह सुबह दादा के साथ दोनों मिलकर पुलिस चैकी का काम जल्दी से निपटा लेते थे। इसके बाद मैं उस नया घर में काम करने निकल जाती। इस परिवार में तीन बच्चे और पति-पत्नि रहते थे। यह बंगाली परिवार था। बीबीजी मेरा नाम-दयामुंई पुकारती था।
पुलिस चैकी में पहले वाले कुछ पुलिस दूसरा जगह चले गये। उनके जगह नये आये हैं। हवलदार तो वही है। एक लंबा सा आया -साधु सिंह नाम था। व्योहार से बहुत अच्छे थें। चैकी में पहुंचते ही आवाज देते थें-बरला.....
तब सब ठीक है नू...। जो भी नया आदमी आता, सबको बताते थे-ये हम लोगों की दाई हैं। दोनों भाई-बहन पढ़ते हैं। बरला जरा.....पानी पिलाओ....आया हुआ व्यत्कि मुस्कुराता हुआ चेहरा देखता। जितने पुलिस पुराने थ,े वो हमदोनों के खाने का ख्याल रखते थे। नया आते,ं ये पहले वालों की तरह नहीं होतें।
अब ज्यादातर दिन हमदोनों के लिए खाना नहीं बच रहा था। हमदोनों साधु सिंह को ही बोल पाते ं-आज खाना नहीं है। रविकांत दूसरा जगह चला गया। मरांडी भी गया। अब हमदोनों को अधिकांश दिन अपने ही डेरा में भात-रोटी बनाना पड़ रहा था, उसी डिबा और टिना में ।
जिस बंगाली परिवार में काम पकडी थी- उनकी बड़ी बेटी मेरी ही उम्र की थी। उनकी एक छोटी बहन और एक बड़ा भाई भी था। घर पोछने के समय उसका बडा बेटा मेरे पीछे पीछे घुमते रहता था। मुझको अजीब सा लगता -लेकिन चुप रहती। एक दिन उसकी मां बाजार गयी थी। उसकी बहन दोनों भी नहीं थे घर में। उनकी मां बोल कर गयी--वह बगल पडोसी के घर जा रही है, तंुरत आएगी। जब मैं घर पोछा करने लगी-बड़ा लडका मुझे पीठ तरफ से मेंरे दोनों कांख के नीचे से हाथ पार कर छाती तक हाथ पहुुुचाने की कोशिश करने लगा। मैं हड़बडा कर खड़ी हो गयी और विरोध करते बोली--देखो घर में सबको बता दुंगी। तब वह नहीं -नहीं मत बताना-दूबारा ऐसा नहीं करेगें कहते हुए दूसरे कमरा में गया। तब से पुरूषों को देखकर मन में असुरक्षित सा महसूस होने लगता था।
स्कूल में 26 जनवरी का परेट जारों से चल रहा था। क्लास में मुदित देमता से नयी मुलाकात थी। निलम कच्छप भी मुदित के साथ ही रहती थी, इसलिए मेरी दोस्ती दोनों से ही हो गयी। पिछला साल तो मैं एलो हाउस में थी। इस साल मुझे ग्रीण हाउस मिला । मुदित ब्लू हाउस और निलम मेरून हाउस में थी। याद है पिछले साल गणतंत्र दिवस बहुत धुमधाम से मनाया गया था।
देखते देखते 26 जनवरी आ गया। सभी तरफ चहल-पहल था। आज पुलिस चैकी में भी दूसरे दिनों से अलग ही लग रहा है। और दिन कुछ सिपाही हमदोनों के आते तक सोते रहते थे। आज सभी उठ गये हैं। कोई नहाने की तैयारी में है, कोई मुंह साफ कर रहा है। दो सिपाही बैरक प्रंगण में लाल बिच्छी ईंटों पर फूलों से कुछ बना रहे हैं। एक-दो अपने बेड पर बैठ कर अपना ड्रेस ठीक कर रहे हैं। दादा के साथ हमदोनों जल्दी जल्दी चैकी का काम निपटाने की कोशिश में जुट गये। हम दोनों को सात बजे तक स्कूल पहुंचना है।
चैकी का काम निपटा कर डेरा लौटे और हड-बड तैयार हुए और स्कूल के लिए निकल गये। स्कूल आंगन में सभी क्लास की लड़कियां जमा हुई। तिरंगा झंण्डा के नीचे गुलाम फुल की लाल-गुलाब पंखूडियों से भारत बना हुआ था। सभी लड़कियां बहुत खूस नजर आ रही थीं। स्कूल की प्रिंसिपल से लेकर सभी शिक्षिकाएं आसमानी नीला रंग की साडी और सफेद ब्लाउज में थीं। संस्कृत सर हमेशा की तरह धोती कुरता में।ं, लेकिन आज सफेद कुरता के जगह हल्का ब्राउन रंग का कुरता में हैं। गणित सर दोनों हमेशा की तरह सफेद कमीज और सफेद पैंट पहने में।
आठ बजे सभी झंण्डा के नीचे थे। स्कूल की लीडर -परेड सावधान, परेड-बिसराम, परेड........। स्कूल की प्रिंसिपल आगे आयी और झंण्डा का डोर पकडं ली ....देखते ही देखते फूलों की पंखुडियां और फूल आसामन से झरने लगा, तब....जन...गण....मन.....गान के साथ तिरंगा झंण्डा को गाइड की लडकियों ने बैंड बाजा के साथ सलामी दी। 8 बजे तिरंगा झंडा फहराने के बाद मैदान में कार्याक्रम शुरू हुआ। रिले रेस, नाटक, घडा फोड़, कुर्सी दौंड़, साई-धागा रेस, आदि दिन भर चला। जो प्रतियोगिता में जीते थे-उनको पुरस्कार दिया गया।
प्रतिदिन क्लास शुरू करने के पहले बाईबल क्लास होती थी। क्लास में सबके पास बाईबल थी, मेरे पास नहीं था। एक दिन मैंने क्लास रूम में रखे लकड़ी के अलमीरा से बाईबल चोरी करने की सोची। मैं आज हिम्मत नहीं जुटा सकी। दूसरे दिन मैं टिफिन के समय जब क्लास रूम में कोई नहीं था ,अलमीरा के पास गयी। अलमीरा खोलकर बाईबल को निकाल ली। थोड़ी देर अपने डेस्क में रखी, लेकिन मन बोला-नहीं चोरी मत करो। मैं बाईबल वापस रख दी।
जनवरी के बाद अब पढ़ाई टाईट से होने लगा। इस साल पढ़ने में कोई कठिनाई नहीं हो रही थी, पिछले साल तो शहरी वातावरण में अपने को अडजस्ट करने मेे भी दिक्कत हो रहा था।
स्कूल से लौट कर बंगाली बीबीजी के घर काम करने जाती थीं तो आशा लगा रहता था, कि सब काम निपटाने के बाद चाय के साथ दो अंटा रोटी मिलेगा। इनके घर से दो घर पहले एक छोटा मकान था। इस घर में एक ही जवान रहता था। वह हमेशा बंगाली परिवार में आता जाता था। एक दिन बीबीजी बोली-दयामुंई ये न अकेला रहता है, तुम इसके घर का दो वर्तन धो देना और पोझा लगा देना, तुमको कुछ पैसा देगा...चलेगा? मैं ने हामीं भर दी।
अब कल से इनका घर का काम भी देखना है। इसलिए भी काम करने को तैयार हो गयी, क्योंकि पैसों की जरूरत थी। स्कूल फीस के रूप में 3 रू प्रतिमाह देना था। पिछले साल जो किताब नहीं खरीद सके थे-सुशील दादा के साथ हमदोनों गुदड़ी के पास पुराना किताबों का दुकान था वहां से जाकर खरीद लिए। जोलेन दादा पिछले साल तक गांव में था। अब वो भी रांची आ गया। जोलेन दादा गांव के बगल कुदा स्कुल में 8वीं क्लास में पढ़ रहा था। अब बिजय दादा केवल घर में रह जाएगा। बिजय दादा गांव में ही दूसरों के खेत-टांड में मेहनत-मजदूरी कर अपना रोटी जुगाड़ कर ले रहा था। बाबा कोटबो छपर टोली में 8 साल से धांगर है। साल में एक-दो बार एक-दो दिन के लिए आते थे। हर साल पूस महिना में बाबा को साल भर का धंगराई का मेहनतना 3 काठ धान मिलता था। पहनने के लिए एक पढ़िया करेया और एक पेछाउडी। धान लाने बिजय दादा अपने साथ, एक -दो लड़कों को लेकर जाता । जिस दिन धान लेकर आते थें, सबको दाल-भात खिलाते थे।
स्कूल से लौट कर मैं बंगाली बीबीजी के घर काम करने के बाद बीबीजी उस दूसरे घर में वर्तन साफ करने ले जाती थी जहां अकेले एक युवक रहता था। एक दिन बीबीजी बाजार गयी, तब मुझे उनका घर अकेले काम करने जाना पड़ा। वर्तन धो ली, अब घर में झाडू मारना और पोछा लगाना था। मैं डरे सहमंे मन से अपना काम पूरा की और निकल कर सीधे बंगाली बीबीजी के घर आगयी। मेरा दो रोटी और चाय खा कर पुलिस चैकी काम करने निकल गयी। मेरे जाने के पहले सुशील दादा पहुंच कर मसाला पीस रहा था। जैसे मैं चैकी में पहुंची, बरला....इधर आओ, दरोगा ने आवाज दिया। मैं गयी, वहां चार-पांच सिपाही लाईन से खड़े थे। दरोगा पूछा....इसमें से तुम को कोई कुछ बोलता है? कुछ भी गलत बात बोलता है? एक बार के लिए मैं सकपका गयी। वहां रमानंदजी भी मौजूद थे, जो एक दिन मेरे उपर हाथ डाला था, लेकिन मैं....जी नहीं.....बोलते सिर झुका ली।
हम लोगों को संस्कृत पंडित सर पढ़ाते थे। हम लोग 4-5 लड़कियां होम वर्क करके नहीं लाए, सर डंटते हुए बोले......दहीना हाथ बढ़ाओ.....हाथ बढ़ाते ही , तलहथी पर सरट-सरट तीन छडी पड़ा। शरम से सिर छुक गया। दो-तीन मिनट बाद सर बोले.....तुम लोगों को मां-बाप पढ़ने के लिए भेजते हैं, बढ़िया से पढ़ो.......आगे होम वर्क जो करके नहीं आएगा....मेरा क्लास में नहीं रहेगा....वो बाहर रहेगा। जिस दिन जिस विषय का होमवर्क पूरा नहीं कर पाती थी, क्लास में मुदित से उनका होमवर्क कापी लेकर जल्दी से उतार लेती थी। क्लास में दूसरे लड़कियों को देखते रहती थी-सोचती थी, ये सभी बड़े घर की बेटियां हैं, मैं इनके सामने तो कुछ भी नहीं हुं.......................।
क्लास सिलाई में हम लोगों को रूमाल का किनारा, उस पर फूल बनाना, थैला पर फूल बना कर थैला सिलाई करना था। मां से रूमाल कपड़ा के लिए मरकिन खरीदने के लिए पैसा लिये, उसी को क्लास सिलाई बना ली। हमारे क्लास को मैडम बेला तिग्गा भूगोल पढ़ाती थी, स्वथ्य विज्ञान मिस भेंगरा पढ़ाती थी। गांव से जितनी नयी लड़कियां आती हैं, सबकों समझाती हैं--गांव से पढ़ने आयी हो, अवसर मिला है मेहनत करो, रिजल्ट अच्छा करो.....तब आगें बढ़ोगे।
पीपी कमपाउंड में एक धोबी परिवार था। उसकी बेटी मेरा ही क्लास में पढ़ती थी। इसके साथ हम दोनों की बढ़िया दोस्ती थी। छुटी के दिन कभी वो मेरे पास आती थी, कभी मैं उनके डेरा में जाती। उनके मां-बाबा पीपी कमपाउंड के एक गली में टेबल लगा कर लोगों का कपड़ा अयरन करते थे। साथ ही जो लोग कपड़ा धाने के लिए देते थे, उनका कपड़ा भी धोते थे। ये लोग भी एक पंजाबी परिवार के छोटा सा कमरा में रहते थे। मां बोलती थी-तुम जो-सो के साथ जल्दी घुलमिल जाती हो, एैसा ठीक नहीं है। तब लगता था मां मना कर रही है। बोलती थी कौन कौसा आदमी क्या है-तुम नहीं जनती हो।
परिवार में छह सदस्य थे-पांच जगह रहते थे
बाबा कमडरा प्रखंड के सुरवा गांव में लोखन पाहन के घर धांगर.....था। मां --जयफर स्टूडियों के मालिक के घर रांची के पीपी कमपांउड में आया का काम करती थी।...
जेलेन दोदा--(मुझ से बड़ा)--थड़पखना रांची के कबाड़ी दुकान मे दिहाडी मजदूरी का काम करता था। वहीं पुराना लोहा लकड के ढेर के बीच रात गुजारता था।.
स्ुाशील दादा और मैं- टहेलसिंह के बगान में एक आउट हाउस में रांची ...में असियाना मिला।.
बिजय दादा--(सबसे बड़ा भाई)--अपने घर अरहरा में, कमडारा, गुमला में किसानों के खेत में मजदूरी कर रोजी-रोटी चलाता था। .
हाथ में चुड़ी का दाग आज भी
परिवार में छह सदस्य थे। पर सभी अलग अलग जगहों पर। तीन बहनों की सबसे छोटी बहन, मेरे लंम्बे घने बाल थे। स्कूल में बाल बांधने के लिए काला फीता का प्रयोग किया जाता था। स्कूल के बाहर कभी कभी मैं लाल फीता से बाल बांधती थी। एक दिन मैं लाल फीता बांधकर मां के पास उनके मलकिन के घर गयी थीै। मेरा बाल देखकर मां बोली-तुम्हारा बाल एैसे ही बहुत सुंदर है, तुम लाल फीता मत बांधना, अच्छा नहीं दिखता है। मैं वहीं अपने बाल की चोटी से लाल फीता को खोल दी। साथियों को देख कर हाथ में चुडी पहनने का मन होता था। एक बार चुडी पहनकर गांव गयी थी। बिजय दादा काड़ा चराने गया हुआ था। मैं रात का खाना बनाने के लिए सिलोट पत्थर पर हलदी, धनिया पीस रही थी। मेरा हाथ की चुडियां झनर झनर आवाज कर रही थी। दादा काड़ा घर ला रहा था। कड़ा को गोहाल में भीतार कर घर घुसे। मैं तबतक दूसरा काम में व्यस्त थी। दादा अंदर आकर पींडा पर बैठते हुए बोला-हम तो सोच रहे थे-कौन तेलीन जनी आयी है, चुडी बज रहा है। हम दोनों खूब हंसे। लेकिन मैं समझ गयी कि-दादा को मेरा चुडी पहनना अच्छा नहीं लगता है। तब से चुडी नहीं पहनी। रमटहल का मकान----पीपी कमपाउंड-----
बड़ा सा होला का गेट। अंदर में एक छोटा कमरा। कमरा में एक टुटा पुराना लकड़ी का बंेच। फर्स पर कच्चा सिमेंट का पसल्टर। आंगननुमा छोटा सा ईंटा का घेरा। गेट के सामने जमीन से थोड़ा बाहर निकला पानी का नल। नल का मुंह को एक नटनुमा ढकन से बंद करते हैं। बगान का पूरा जमीन गरमी में भी गीला रहता है। बगान के चारों ओर उंचा घेरा है। बगान के पूरब पंजाबी परिवार का दो तल्ला मकान है। इसके यहां रिक्सा का बोडी बनता है। अरहारा का सिमोन दादा यहीं रिक्सा बोडी बनाता है। बगान के उत्तर ओर भी मकान है। कमान के बगल में एक छोटा मंदिर भी है। वहीं एक आम का पेंड भी हैं-जिसका डाली बगान की ओर झुका हुुआ है। बगान के पश्चिमी ओर हिंन्दपीडी जाने वाला रोड़ हैं। यहीं दिवाल से सटा एक बड़ा सतालू का पेड है।
पुलिस वालों के यहां रोज-रोज खाना नहीं बचता है। कभी कभी पुलिस चैकी में उनके दोस्त-यार आते हैं, तो खाना नहीं बचता है। जिस दिन खाना नहीं बचता है-पुलिस वाले 10-15 रूपया हम दोनों को धरा देते हैं। इसे चावल या आंटा खरीदते हैं। हम दोनों के पास रांेटी बनाने के लिए ताई नहीं था।
बगान में ही एक बड़ा टिना का मुंह काट कर निकाला गया-टिन का टुकड़ा पड़ा मिला। इसको बढिया से धोये और इसी पर रोटी बनाने लगे। भात पकाने के लिए डेगची और कड़ाही भी नहीं था। बगान में ही एक छोटा दूध का पुराना जंग लगा डिबा मिला। उसको मिटी से रगड-रगड़ कर साफ किये। जब-जब हम दोनों के पुलिस वालों के पास भात-रोटी नहीं बचता था, तब-तब इसी डिबा में भात पकाते थे। खाना बनाने के लिए हम दोनों लकड़ी खरीद नहीं सकते थे। सुजाता सिनुेमा हाॅल के बगल एक पंजाबी परिवार भैंस पाल रखा था।
उनके यहां करीब 7-8 भैसें थी। हर सुबह हिंन्दपीडी की मिहलाएं भैंस का गोहाल से गोबर उठा कर ले जाती थी। मुझको भी शांति वहां ले गयी थी दिखाने कि तुम भी उपला बनाने के लिए उठा लाओ। मां अपने मलकिन से फटा टीना मांगी थी। जिसका पेंदी -नीचला भाग सही थी। इसी को काट कर टोकरी बना लिये। सुबह चार ही बजे उठते थे, देर होने पर सौच के लिए जगह नहीं मिलता थां, उजियाला होने पर। सौच से निपट कर सीधे टीना पकड़ कर सरदारजी के भैंस गोहाल जाती और गोबर उठा कर लाती थी। हाथ-मुंह धो कर रात को खाना लाया वर्तन लेकर सुजाता पुलिस चैकी जाती। बसन-वर्तन करन कर वापस डेरा में आकर पहले गोबर का उपला बगान के घांस में जहां खाली था डाल देती थी। इसके बाद स्कूल के लिए निकलती थी।
जब-जब भात बनाना होता था, ईंटा का चुल्हा बिलकुल छोटा -जिस पर डिबा बैठा सकते थें और नीचे गोबर का उपला डाल सकें, बना लिये थे। डिबा में तीन ही मुठी चावल पकता था। जब भात डबकता था, तो पूरा चुल्हा में पानी और चावल साथ गिरने लगता था। आंटा रोटी बनाने के लिए एक कांच का बोतल को साफ कर लिये थे। आंटा का गुंधा गुलिया को अलमुनियम का थाली को उलाट कर उस पर बोतल से बेल कर गोल करते थे। ताई तो टिना का टुकड़ा.........।
अक्टोबर महिना में स्कूल में नमाही परीक्षा था। लगातार आठ दिनों से झिमिर झिमिर पानी बरस रहा था। मेरे पास छाता नहीं था। पीपी कमपांड से बिना छाता के लिए अपना किताब-कोपी को एक प्लाटिक में डाल कर अपने छाती से चिपका कर, दुपटा का एक छोर से किताब को ढंक कर स्कल जाते थे। आते समय भी एैसा ही लपेट कर आती थी। परीक्षा करीब था इसलिए मैं स्कूल नागा नहीं करती थी। आज भी पानी पानी ही मैं घर जाने लगी। दूसरी लडकियों के पास छाता और बरसाती हैं, तो वे अपने साथियों के साथ निकल गयी। पानी ज्यादा गिराने लगा, मैं बचने के लिए स्कूल से थोड़ा दूर आकर छोटानागपुर किताब दुकान के पास रूक गयी। पानी कम किया तो मैं जाने लगी। थोडी दूर गयी थी, तभी एक बरसाती पहिना, सिर भी ढंका एक व्यक्ति मुझ को पार कर आगे निकला।
चर्च रोड़ छोड़ कर बरनाबस अस्पताल घेरा के बगल से होकर पिलगर्ल लाईन होकर आते थे। जैसे ही मैं पिलगर्ल लाईन पार की बरसाती वाला आदमी वहां रूका हुआ मिला। मैं बेथेसदा गल्र्स हाई स्कूल के पिछवाड़े जैसे ही पहुंची बरसाती पहना आदमी मेरे पास पहुंच गया। मैं कुछ समझती-तब तक वह मुझको दोनों हाथों से जकड़ के पोटर लिया और रोड के पार लीची बगीचा के बीच झाडियों के तरफ खींच कर ले जाने लगा। मैं जोर लगा रही थी-अपने को छुड़ाने के लिए...मेरा किताब जमीन पर गिर कर बिखर गया। पैर का चप्पल खुल गयां । मैं संभलने की कोशिश की। जमून पेड़ का छोटा सूखा लकड़ी टूटकर सामने जमीन पर पड़ा था। मैंने उसे उठा ली और उस आदमी को मारने के लिए दौड़ाने लगी। तब तक बेथेसदा स्कुल गेट के सामने कुंआ से कुछ लड़कियां पानी भर रही थी, वो मुझ को देख ली। उन लोगों को समझते देर नहीं लगी और दो-तीन लड़कियां मेरी तरफ दौड़ कर आने लगी। लड़कियों को देख कर वह सीधे गोस्सनर मिडिल स्कूल के पीछवाड़े से होते हुए खजूर तालाब वाले मिशन के खेत वाले रास्ते पर आगे जाने लगा, जिस रास्ते से मुझे घर जाना था।
लड़कियों को मैंने पूरी बात बतायी। लडकियां पूछी-तुम कहां रहती हो? मैं बतायी-पीपी कमपांड में। तब लड़कियां बोली-तब तुम को तो उसी रास्ता से जाना हैं-जिस रास्ता से वो बदमाश जा रहा है। तब उन लोगों ने तय की कि-वे मुझे मेन रोड़ तक पहुंचा देगें। मेन रोड़ के बाद तो बहुत लोग मिलेगें। तब लड़कियों ने मुझे मेन रोड़ तक पहुचा दी। मेन रोड़ पार कर अपना बाजार वाले रास्ते से पीपी कमपाउंड में मैं घुस गयी। सबसे पहले में मां के पास उनके बीबीजी के घर ही मिलने गयी। मां को पूरी घटना बता दी। मां बोली-आगे से ख्याल रखना-जब रास्ता में साथी सब मिलेगें तब उन्हीं के साथ आना-जाना करना
पुलिस चैकी में पहले वाले कुछ पुलिस दूसरा जगह चले गये। उनके जगह नये आये हैं। हवलदार तो वही है। एक लंबा सा आया -साधु सिंह नाम था। व्योहार से बहुत अच्छे थें। चैकी में पहुंचते ही आवाज देते थें-बरला.....
तब सब ठीक है नू...। जो भी नया आदमी आता, सबको बताते थे-ये हम लोगों की दाई हैं। दोनों भाई-बहन पढ़ते हैं। बरला जरा.....पानी पिलाओ....आया हुआ व्यत्कि मुस्कुराता हुआ चेहरा देखता। जितने पुलिस पुराने थ,े वो हमदोनों के खाने का ख्याल रखते थे। नया आते,ं ये पहले वालों की तरह नहीं होतें।
अब ज्यादातर दिन हमदोनों के लिए खाना नहीं बच रहा था। हमदोनों साधु सिंह को ही बोल पाते ं-आज खाना नहीं है। रविकांत दूसरा जगह चला गया। मरांडी भी गया। अब हमदोनों को अधिकांश दिन अपने ही डेरा में भात-रोटी बनाना पड़ रहा था, उसी डिबा और टिना में ।
जिस बंगाली परिवार में काम पकडी थी- उनकी बड़ी बेटी मेरी ही उम्र की थी। उनकी एक छोटी बहन और एक बड़ा भाई भी था। घर पोछने के समय उसका बडा बेटा मेरे पीछे पीछे घुमते रहता था। मुझको अजीब सा लगता -लेकिन चुप रहती। एक दिन उसकी मां बाजार गयी थी। उसकी बहन दोनों भी नहीं थे घर में। उनकी मां बोल कर गयी--वह बगल पडोसी के घर जा रही है, तंुरत आएगी। जब मैं घर पोछा करने लगी-बड़ा लडका मुझे पीठ तरफ से मेंरे दोनों कांख के नीचे से हाथ पार कर छाती तक हाथ पहुुुचाने की कोशिश करने लगा। मैं हड़बडा कर खड़ी हो गयी और विरोध करते बोली--देखो घर में सबको बता दुंगी। तब वह नहीं -नहीं मत बताना-दूबारा ऐसा नहीं करेगें कहते हुए दूसरे कमरा में गया। तब से पुरूषों को देखकर मन में असुरक्षित सा महसूस होने लगता था।
स्कूल में 26 जनवरी का परेट जारों से चल रहा था। क्लास में मुदित देमता से नयी मुलाकात थी। निलम कच्छप भी मुदित के साथ ही रहती थी, इसलिए मेरी दोस्ती दोनों से ही हो गयी। पिछला साल तो मैं एलो हाउस में थी। इस साल मुझे ग्रीण हाउस मिला । मुदित ब्लू हाउस और निलम मेरून हाउस में थी। याद है पिछले साल गणतंत्र दिवस बहुत धुमधाम से मनाया गया था।
देखते देखते 26 जनवरी आ गया। सभी तरफ चहल-पहल था। आज पुलिस चैकी में भी दूसरे दिनों से अलग ही लग रहा है। और दिन कुछ सिपाही हमदोनों के आते तक सोते रहते थे। आज सभी उठ गये हैं। कोई नहाने की तैयारी में है, कोई मुंह साफ कर रहा है। दो सिपाही बैरक प्रंगण में लाल बिच्छी ईंटों पर फूलों से कुछ बना रहे हैं। एक-दो अपने बेड पर बैठ कर अपना ड्रेस ठीक कर रहे हैं। दादा के साथ हमदोनों जल्दी जल्दी चैकी का काम निपटाने की कोशिश में जुट गये। हम दोनों को सात बजे तक स्कूल पहुंचना है।
चैकी का काम निपटा कर डेरा लौटे और हड-बड तैयार हुए और स्कूल के लिए निकल गये। स्कूल आंगन में सभी क्लास की लड़कियां जमा हुई। तिरंगा झंण्डा के नीचे गुलाम फुल की लाल-गुलाब पंखूडियों से भारत बना हुआ था। सभी लड़कियां बहुत खूस नजर आ रही थीं। स्कूल की प्रिंसिपल से लेकर सभी शिक्षिकाएं आसमानी नीला रंग की साडी और सफेद ब्लाउज में थीं। संस्कृत सर हमेशा की तरह धोती कुरता में।ं, लेकिन आज सफेद कुरता के जगह हल्का ब्राउन रंग का कुरता में हैं। गणित सर दोनों हमेशा की तरह सफेद कमीज और सफेद पैंट पहने में।
आठ बजे सभी झंण्डा के नीचे थे। स्कूल की लीडर -परेड सावधान, परेड-बिसराम, परेड........। स्कूल की प्रिंसिपल आगे आयी और झंण्डा का डोर पकडं ली ....देखते ही देखते फूलों की पंखुडियां और फूल आसामन से झरने लगा, तब....जन...गण....मन.....गान के साथ तिरंगा झंण्डा को गाइड की लडकियों ने बैंड बाजा के साथ सलामी दी। 8 बजे तिरंगा झंडा फहराने के बाद मैदान में कार्याक्रम शुरू हुआ। रिले रेस, नाटक, घडा फोड़, कुर्सी दौंड़, साई-धागा रेस, आदि दिन भर चला। जो प्रतियोगिता में जीते थे-उनको पुरस्कार दिया गया।
प्रतिदिन क्लास शुरू करने के पहले बाईबल क्लास होती थी। क्लास में सबके पास बाईबल थी, मेरे पास नहीं था। एक दिन मैंने क्लास रूम में रखे लकड़ी के अलमीरा से बाईबल चोरी करने की सोची। मैं आज हिम्मत नहीं जुटा सकी। दूसरे दिन मैं टिफिन के समय जब क्लास रूम में कोई नहीं था ,अलमीरा के पास गयी। अलमीरा खोलकर बाईबल को निकाल ली। थोड़ी देर अपने डेस्क में रखी, लेकिन मन बोला-नहीं चोरी मत करो। मैं बाईबल वापस रख दी।
जनवरी के बाद अब पढ़ाई टाईट से होने लगा। इस साल पढ़ने में कोई कठिनाई नहीं हो रही थी, पिछले साल तो शहरी वातावरण में अपने को अडजस्ट करने मेे भी दिक्कत हो रहा था।
स्कूल से लौट कर बंगाली बीबीजी के घर काम करने जाती थीं तो आशा लगा रहता था, कि सब काम निपटाने के बाद चाय के साथ दो अंटा रोटी मिलेगा। इनके घर से दो घर पहले एक छोटा मकान था। इस घर में एक ही जवान रहता था। वह हमेशा बंगाली परिवार में आता जाता था। एक दिन बीबीजी बोली-दयामुंई ये न अकेला रहता है, तुम इसके घर का दो वर्तन धो देना और पोझा लगा देना, तुमको कुछ पैसा देगा...चलेगा? मैं ने हामीं भर दी।
अब कल से इनका घर का काम भी देखना है। इसलिए भी काम करने को तैयार हो गयी, क्योंकि पैसों की जरूरत थी। स्कूल फीस के रूप में 3 रू प्रतिमाह देना था। पिछले साल जो किताब नहीं खरीद सके थे-सुशील दादा के साथ हमदोनों गुदड़ी के पास पुराना किताबों का दुकान था वहां से जाकर खरीद लिए। जोलेन दादा पिछले साल तक गांव में था। अब वो भी रांची आ गया। जोलेन दादा गांव के बगल कुदा स्कुल में 8वीं क्लास में पढ़ रहा था। अब बिजय दादा केवल घर में रह जाएगा। बिजय दादा गांव में ही दूसरों के खेत-टांड में मेहनत-मजदूरी कर अपना रोटी जुगाड़ कर ले रहा था। बाबा कोटबो छपर टोली में 8 साल से धांगर है। साल में एक-दो बार एक-दो दिन के लिए आते थे। हर साल पूस महिना में बाबा को साल भर का धंगराई का मेहनतना 3 काठ धान मिलता था। पहनने के लिए एक पढ़िया करेया और एक पेछाउडी। धान लाने बिजय दादा अपने साथ, एक -दो लड़कों को लेकर जाता । जिस दिन धान लेकर आते थें, सबको दाल-भात खिलाते थे।
स्कूल से लौट कर मैं बंगाली बीबीजी के घर काम करने के बाद बीबीजी उस दूसरे घर में वर्तन साफ करने ले जाती थी जहां अकेले एक युवक रहता था। एक दिन बीबीजी बाजार गयी, तब मुझे उनका घर अकेले काम करने जाना पड़ा। वर्तन धो ली, अब घर में झाडू मारना और पोछा लगाना था। मैं डरे सहमंे मन से अपना काम पूरा की और निकल कर सीधे बंगाली बीबीजी के घर आगयी। मेरा दो रोटी और चाय खा कर पुलिस चैकी काम करने निकल गयी। मेरे जाने के पहले सुशील दादा पहुंच कर मसाला पीस रहा था। जैसे मैं चैकी में पहुंची, बरला....इधर आओ, दरोगा ने आवाज दिया। मैं गयी, वहां चार-पांच सिपाही लाईन से खड़े थे। दरोगा पूछा....इसमें से तुम को कोई कुछ बोलता है? कुछ भी गलत बात बोलता है? एक बार के लिए मैं सकपका गयी। वहां रमानंदजी भी मौजूद थे, जो एक दिन मेरे उपर हाथ डाला था, लेकिन मैं....जी नहीं.....बोलते सिर झुका ली।
हम लोगों को संस्कृत पंडित सर पढ़ाते थे। हम लोग 4-5 लड़कियां होम वर्क करके नहीं लाए, सर डंटते हुए बोले......दहीना हाथ बढ़ाओ.....हाथ बढ़ाते ही , तलहथी पर सरट-सरट तीन छडी पड़ा। शरम से सिर छुक गया। दो-तीन मिनट बाद सर बोले.....तुम लोगों को मां-बाप पढ़ने के लिए भेजते हैं, बढ़िया से पढ़ो.......आगे होम वर्क जो करके नहीं आएगा....मेरा क्लास में नहीं रहेगा....वो बाहर रहेगा। जिस दिन जिस विषय का होमवर्क पूरा नहीं कर पाती थी, क्लास में मुदित से उनका होमवर्क कापी लेकर जल्दी से उतार लेती थी। क्लास में दूसरे लड़कियों को देखते रहती थी-सोचती थी, ये सभी बड़े घर की बेटियां हैं, मैं इनके सामने तो कुछ भी नहीं हुं.......................।
क्लास सिलाई में हम लोगों को रूमाल का किनारा, उस पर फूल बनाना, थैला पर फूल बना कर थैला सिलाई करना था। मां से रूमाल कपड़ा के लिए मरकिन खरीदने के लिए पैसा लिये, उसी को क्लास सिलाई बना ली। हमारे क्लास को मैडम बेला तिग्गा भूगोल पढ़ाती थी, स्वथ्य विज्ञान मिस भेंगरा पढ़ाती थी। गांव से जितनी नयी लड़कियां आती हैं, सबकों समझाती हैं--गांव से पढ़ने आयी हो, अवसर मिला है मेहनत करो, रिजल्ट अच्छा करो.....तब आगें बढ़ोगे।
पीपी कमपाउंड में एक धोबी परिवार था। उसकी बेटी मेरा ही क्लास में पढ़ती थी। इसके साथ हम दोनों की बढ़िया दोस्ती थी। छुटी के दिन कभी वो मेरे पास आती थी, कभी मैं उनके डेरा में जाती। उनके मां-बाबा पीपी कमपाउंड के एक गली में टेबल लगा कर लोगों का कपड़ा अयरन करते थे। साथ ही जो लोग कपड़ा धाने के लिए देते थे, उनका कपड़ा भी धोते थे। ये लोग भी एक पंजाबी परिवार के छोटा सा कमरा में रहते थे। मां बोलती थी-तुम जो-सो के साथ जल्दी घुलमिल जाती हो, एैसा ठीक नहीं है। तब लगता था मां मना कर रही है। बोलती थी कौन कौसा आदमी क्या है-तुम नहीं जनती हो।
परिवार में छह सदस्य थे-पांच जगह रहते थे
बाबा कमडरा प्रखंड के सुरवा गांव में लोखन पाहन के घर धांगर.....था। मां --जयफर स्टूडियों के मालिक के घर रांची के पीपी कमपांउड में आया का काम करती थी।...
जेलेन दोदा--(मुझ से बड़ा)--थड़पखना रांची के कबाड़ी दुकान मे दिहाडी मजदूरी का काम करता था। वहीं पुराना लोहा लकड के ढेर के बीच रात गुजारता था।.
स्ुाशील दादा और मैं- टहेलसिंह के बगान में एक आउट हाउस में रांची ...में असियाना मिला।.
बिजय दादा--(सबसे बड़ा भाई)--अपने घर अरहरा में, कमडारा, गुमला में किसानों के खेत में मजदूरी कर रोजी-रोटी चलाता था। .
हाथ में चुड़ी का दाग आज भी
परिवार में छह सदस्य थे। पर सभी अलग अलग जगहों पर। तीन बहनों की सबसे छोटी बहन, मेरे लंम्बे घने बाल थे। स्कूल में बाल बांधने के लिए काला फीता का प्रयोग किया जाता था। स्कूल के बाहर कभी कभी मैं लाल फीता से बाल बांधती थी। एक दिन मैं लाल फीता बांधकर मां के पास उनके मलकिन के घर गयी थीै। मेरा बाल देखकर मां बोली-तुम्हारा बाल एैसे ही बहुत सुंदर है, तुम लाल फीता मत बांधना, अच्छा नहीं दिखता है। मैं वहीं अपने बाल की चोटी से लाल फीता को खोल दी। साथियों को देख कर हाथ में चुडी पहनने का मन होता था। एक बार चुडी पहनकर गांव गयी थी। बिजय दादा काड़ा चराने गया हुआ था। मैं रात का खाना बनाने के लिए सिलोट पत्थर पर हलदी, धनिया पीस रही थी। मेरा हाथ की चुडियां झनर झनर आवाज कर रही थी। दादा काड़ा घर ला रहा था। कड़ा को गोहाल में भीतार कर घर घुसे। मैं तबतक दूसरा काम में व्यस्त थी। दादा अंदर आकर पींडा पर बैठते हुए बोला-हम तो सोच रहे थे-कौन तेलीन जनी आयी है, चुडी बज रहा है। हम दोनों खूब हंसे। लेकिन मैं समझ गयी कि-दादा को मेरा चुडी पहनना अच्छा नहीं लगता है। तब से चुडी नहीं पहनी। रमटहल का मकान----पीपी कमपाउंड-----
बड़ा सा होला का गेट। अंदर में एक छोटा कमरा। कमरा में एक टुटा पुराना लकड़ी का बंेच। फर्स पर कच्चा सिमेंट का पसल्टर। आंगननुमा छोटा सा ईंटा का घेरा। गेट के सामने जमीन से थोड़ा बाहर निकला पानी का नल। नल का मुंह को एक नटनुमा ढकन से बंद करते हैं। बगान का पूरा जमीन गरमी में भी गीला रहता है। बगान के चारों ओर उंचा घेरा है। बगान के पूरब पंजाबी परिवार का दो तल्ला मकान है। इसके यहां रिक्सा का बोडी बनता है। अरहारा का सिमोन दादा यहीं रिक्सा बोडी बनाता है। बगान के उत्तर ओर भी मकान है। कमान के बगल में एक छोटा मंदिर भी है। वहीं एक आम का पेंड भी हैं-जिसका डाली बगान की ओर झुका हुुआ है। बगान के पश्चिमी ओर हिंन्दपीडी जाने वाला रोड़ हैं। यहीं दिवाल से सटा एक बड़ा सतालू का पेड है।
पुलिस वालों के यहां रोज-रोज खाना नहीं बचता है। कभी कभी पुलिस चैकी में उनके दोस्त-यार आते हैं, तो खाना नहीं बचता है। जिस दिन खाना नहीं बचता है-पुलिस वाले 10-15 रूपया हम दोनों को धरा देते हैं। इसे चावल या आंटा खरीदते हैं। हम दोनों के पास रांेटी बनाने के लिए ताई नहीं था।
बगान में ही एक बड़ा टिना का मुंह काट कर निकाला गया-टिन का टुकड़ा पड़ा मिला। इसको बढिया से धोये और इसी पर रोटी बनाने लगे। भात पकाने के लिए डेगची और कड़ाही भी नहीं था। बगान में ही एक छोटा दूध का पुराना जंग लगा डिबा मिला। उसको मिटी से रगड-रगड़ कर साफ किये। जब-जब हम दोनों के पुलिस वालों के पास भात-रोटी नहीं बचता था, तब-तब इसी डिबा में भात पकाते थे। खाना बनाने के लिए हम दोनों लकड़ी खरीद नहीं सकते थे। सुजाता सिनुेमा हाॅल के बगल एक पंजाबी परिवार भैंस पाल रखा था।
उनके यहां करीब 7-8 भैसें थी। हर सुबह हिंन्दपीडी की मिहलाएं भैंस का गोहाल से गोबर उठा कर ले जाती थी। मुझको भी शांति वहां ले गयी थी दिखाने कि तुम भी उपला बनाने के लिए उठा लाओ। मां अपने मलकिन से फटा टीना मांगी थी। जिसका पेंदी -नीचला भाग सही थी। इसी को काट कर टोकरी बना लिये। सुबह चार ही बजे उठते थे, देर होने पर सौच के लिए जगह नहीं मिलता थां, उजियाला होने पर। सौच से निपट कर सीधे टीना पकड़ कर सरदारजी के भैंस गोहाल जाती और गोबर उठा कर लाती थी। हाथ-मुंह धो कर रात को खाना लाया वर्तन लेकर सुजाता पुलिस चैकी जाती। बसन-वर्तन करन कर वापस डेरा में आकर पहले गोबर का उपला बगान के घांस में जहां खाली था डाल देती थी। इसके बाद स्कूल के लिए निकलती थी।
जब-जब भात बनाना होता था, ईंटा का चुल्हा बिलकुल छोटा -जिस पर डिबा बैठा सकते थें और नीचे गोबर का उपला डाल सकें, बना लिये थे। डिबा में तीन ही मुठी चावल पकता था। जब भात डबकता था, तो पूरा चुल्हा में पानी और चावल साथ गिरने लगता था। आंटा रोटी बनाने के लिए एक कांच का बोतल को साफ कर लिये थे। आंटा का गुंधा गुलिया को अलमुनियम का थाली को उलाट कर उस पर बोतल से बेल कर गोल करते थे। ताई तो टिना का टुकड़ा.........।
अक्टोबर महिना में स्कूल में नमाही परीक्षा था। लगातार आठ दिनों से झिमिर झिमिर पानी बरस रहा था। मेरे पास छाता नहीं था। पीपी कमपांड से बिना छाता के लिए अपना किताब-कोपी को एक प्लाटिक में डाल कर अपने छाती से चिपका कर, दुपटा का एक छोर से किताब को ढंक कर स्कल जाते थे। आते समय भी एैसा ही लपेट कर आती थी। परीक्षा करीब था इसलिए मैं स्कूल नागा नहीं करती थी। आज भी पानी पानी ही मैं घर जाने लगी। दूसरी लडकियों के पास छाता और बरसाती हैं, तो वे अपने साथियों के साथ निकल गयी। पानी ज्यादा गिराने लगा, मैं बचने के लिए स्कूल से थोड़ा दूर आकर छोटानागपुर किताब दुकान के पास रूक गयी। पानी कम किया तो मैं जाने लगी। थोडी दूर गयी थी, तभी एक बरसाती पहिना, सिर भी ढंका एक व्यक्ति मुझ को पार कर आगे निकला।
चर्च रोड़ छोड़ कर बरनाबस अस्पताल घेरा के बगल से होकर पिलगर्ल लाईन होकर आते थे। जैसे ही मैं पिलगर्ल लाईन पार की बरसाती वाला आदमी वहां रूका हुआ मिला। मैं बेथेसदा गल्र्स हाई स्कूल के पिछवाड़े जैसे ही पहुंची बरसाती पहना आदमी मेरे पास पहुंच गया। मैं कुछ समझती-तब तक वह मुझको दोनों हाथों से जकड़ के पोटर लिया और रोड के पार लीची बगीचा के बीच झाडियों के तरफ खींच कर ले जाने लगा। मैं जोर लगा रही थी-अपने को छुड़ाने के लिए...मेरा किताब जमीन पर गिर कर बिखर गया। पैर का चप्पल खुल गयां । मैं संभलने की कोशिश की। जमून पेड़ का छोटा सूखा लकड़ी टूटकर सामने जमीन पर पड़ा था। मैंने उसे उठा ली और उस आदमी को मारने के लिए दौड़ाने लगी। तब तक बेथेसदा स्कुल गेट के सामने कुंआ से कुछ लड़कियां पानी भर रही थी, वो मुझ को देख ली। उन लोगों को समझते देर नहीं लगी और दो-तीन लड़कियां मेरी तरफ दौड़ कर आने लगी। लड़कियों को देख कर वह सीधे गोस्सनर मिडिल स्कूल के पीछवाड़े से होते हुए खजूर तालाब वाले मिशन के खेत वाले रास्ते पर आगे जाने लगा, जिस रास्ते से मुझे घर जाना था।
लड़कियों को मैंने पूरी बात बतायी। लडकियां पूछी-तुम कहां रहती हो? मैं बतायी-पीपी कमपांड में। तब लड़कियां बोली-तब तुम को तो उसी रास्ता से जाना हैं-जिस रास्ता से वो बदमाश जा रहा है। तब उन लोगों ने तय की कि-वे मुझे मेन रोड़ तक पहुंचा देगें। मेन रोड़ के बाद तो बहुत लोग मिलेगें। तब लड़कियों ने मुझे मेन रोड़ तक पहुचा दी। मेन रोड़ पार कर अपना बाजार वाले रास्ते से पीपी कमपाउंड में मैं घुस गयी। सबसे पहले में मां के पास उनके बीबीजी के घर ही मिलने गयी। मां को पूरी घटना बता दी। मां बोली-आगे से ख्याल रखना-जब रास्ता में साथी सब मिलेगें तब उन्हीं के साथ आना-जाना करना
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