Friday, May 19, 2017

जंगल जमीन के साथ जीने वाला समुदाय जनता है की हमारा बिकास का रास्ता कौन सा होगा



 ज़मीन  अधिग्रहण का जब हम लोग बिरोध करते हैं, तब सरकर और उनके लोग जमीन बचने वालों को बिकास बिरोधी  मानते हैं. जंगल जमीन के साथ जीने वाला समुदाय जनता है की हमारा बिकास का रास्ता कौन सा होगा, जमीन    देने के बाद हमारा क्या होगा, हमारा बिकास  बिनास होगा... इसलिए किसान अपनी जमीन नहीं छोड़ना चाहता है. प्रभात खबर ने किसानों के हित  में अपनी भूमिका निभाई है... प्रभात खबर को धन्यवाद। ...
5 फरवरी 2016 -प्रभात खबर
धनबाद-
62 लाख मुआवजा खा गये बिचैलिये---
गणेश मुरमू की 29.5 डिसमिल जमीन रिंग रोड में गयी। मिले सिर्फ 90 हजार रूपये-
जमीन अधिग्रहण के बदले सरकार जो मुआवजा देती है , वह रैयतों तक नहीं पहुंच पाता। विचैलिये खा जाते हैं। पूरा रैकेट है, अफसरों -दलालों की सांठगाठ ने गरीब आदिवासियों को सड़क परी ला दिया है। ऐसे तो यह पूरे राज्य में हो रहा है, लेकिन धनबाद में सबसे ज्यादा। धनबाद से सटा दुहाटांड गांव में सरकार ने रिंग रोड के लिए आदिवासियों की 269. 5 डिसमिल जमीन अधिग्रहणहीत की। कुल 4.46 करोड़ रूपये मुआवजा देना था, लेकिन इसका 10 फीसदी पैसा भी रैयतों को नहीं मिला। छोटे-छोटे दलाल-कर्मचारी तो पकड़े गये लेकिन असली सरगना अब तक पकड़ा नहीं गयां स्थिति यह है कि जिन्हें करोड़ मिलना चाहिए था, आज वह दाने-दाने के लिए तरस रहे हैं -
दुहाटांड के रहनेवाले गणेश मुरमू की 29.5 डिसमिल जमीन रिंग रोड के लिए अधिग्रहीत हुई। 63 लाख रूपये मुआवजा तय हुआ। मुआवजा राशि उसके नाम से बैंक के माध्यम से धनबाद के धनसार पैक्स में पहुंची। लेकिन बिचैलियों ने यहीं खेल कर दिया। मुआवजा की इस 63 लाख रूपये में उसके पटटीदारों को भी हिस्सा था। गणेश बताते ळें, विपिन राव नाम का आदमी बार-बार गांव आता था। एक दिन उसने कहा-कि तुम्हारी जमीन रिंग रोड़ में जा रही है। खाता खुलवाना होगा। सभी ने खुलवा लिया है। तुम भी खुलवा लो। हम पैसा दिलाने में मदद करेगें। वह बताते हैं कि एक दिन दो-तीन लोग आये औ मुझे धनसार लेकर चले गये। धनसार पैक्स में हमें चेक दिखाया और हस्ताक्षर करने को कहा। वह बताता है कि हम पैसा मांगते, तो कभी पांच हतार, कभी 10 हजार रूपये दिया जाता। 10-12 किस्तों में 90 हजार रूपये हमें दिया गयां ं। विपिन राव ने पैसे दिेये थे। गणेश बताते हैं, जब उसे मालूम चला कि उसके नाम से ज्यादा पैसे की निकासी हुई है, तो विचैलियों ने हाथ खड़ा कर लिया। कहने लगे कि जितना मिला था, उतना दे दिया। अब गणेश मुरमू लाचार है। इस बार धान की ख्ेती भी नहीं हुई है। धनबाद में मजदूरी कर पेट पाल रहा है। मुआवजा के पैसे में चाचा का भी हिस्सा था। चाचा सहदेव राम मुरमू बीमार है। पिछले कई महीनों से उनकी दवा भी नहीं चल रही हैं। पेट चलाये या बीमारी से लड़े, परिवार, समझ नहीं पा रहा है।
सहदेव का बेटा उमेश मुरमू मैट्रीक पास है। नौकरी की तलाश में भटक रहा है। सहदेव मुरमू की पत्नी अंजली का पूरा दिन पति की सेवा में गुजरता है। एक टूटे खाट में सहदेव बेसुध पड़े रहते हैं। करवट बदलने के लिए भी मदद की जरूरत है। पूरा शरीर लकवा ग्रस्त है। पहाड़ की तरह मुसीबत से जुझने के लिए इस परिवार की कर पहले ही बिचैलियों ने तोड़ दी है। अब जमीन भी नहीं बची है। थोड़ी बहुत खेती है, उससे परिवार का पेट चलना मुश्किल है।
गणेश मुरमू की जमीन व मुआवजा का फैक्ट शीट-
दुहाटांड मौजा-खाता सं0 108 व 89
प्लाट-896, 897, व 398
अधिग्रहीत जमीन का रकबा-21, 85
जोरा पोखर पैक्स में खाता सं0 200299 से एकांउट खुला।
खाता खुलवाने में पहचानकर्ता-विपिन राव, इसी ने गणेश मुरमु से संपर्क साधा था।
निकासी-गणेश मुरमू के पैक्स के खाते से राकेश कुमार के नाम नौ लाख, हयान महतो के नाम नौ लाख, राम सिन्हा के नाम 15 लाख और विपिन कुमार राव के नाम 30 लाख रूपये की निकासी हुई।
केस स्टडी -2
रसिक को मिलना था 27 लाख, मिले कुछ हजार मात्र-
रसिक मुरमू की 25 डिसमिल जमीन रिंग रोड़ में चली गयी। 27 लाख मुआवजा मिलना था। लेकिन मिला सिर्फ कुछ हजार। रिंग रोड में रसिक की जमीन जा रही है, उसे जानकारी भी नहीं थी। विपिन राव, आलोक बरिया रनाम के दो व्यक्ति उसके पास आये, उसे इन लोगों ने ही बताया की उसकी जमीन जा रही है इन लोगों ने कहा कि चिंता की बात नहीं है।, डीसी आॅफिस से खूब पैसा मिलेगा, हम तुम्हारा पैसा दिलाने में मदद करेगें। इन लोगों ने सादे कागज पर रसिक से अंगूठे का निशान व हस्ताक्षर कराया। जोरा पोखर पैक्स में रसिक का खाता भी इन लोगों ने ही खुलवाया। रसिक बताता है कि इन लोगों ने खुद को डीसी आॅफिस का आदमी बता कर चेक बुक पर भी हस्ताक्षर करया। ले लोग पैक्स ले गये। विपिन राव के घर ठहराया गया। 10 हजार रूपये दिये गये। रसिक को मालूम ही नहीं था कि उसके खाते में 27 लाख आये हैं। पैक्स से सारे पैसे बिचैलियों ने निकाल लिया। पैक्स से मिले कागजात के अनुसार आलोक बरियार, रोहित और काजल विश्वास के नाम से 27 लाख की निकासी की गयी है।
रसिक मुरमु मजदूरी कर अपने बच्चों का पेट पाल रहा है। वह बिचैलियों से जब कभी पैसा मांगने जाता, तो उसे दस-पांच हजार थमा दिया जाता। दुहाटांड में उसके पाके पास खेती की जमीन भी, उसके घर के बगल से निकलनेवाले रिंग रोड के लिए चिन्हित जमीन देख कर उसे इस बात का मलाल होता है कि पुरखों की उसकी जमीन भी चली गयी। लेकिन वह अपने परिवार के लिए कुछ भी नहीं पाया। टूटे-फूटे झार के एक कमरे में वह परिवार के साथ रहता है। मजदूरी मिलती है, तो चूही जलता है। पत्नी बसंती व परिवार के लोगों को भरोसा नहीं है कि पैसा मिलेगा।
रसिक मुरमू की जमीन और मुआवजा का फैक्ट शीट--
मौजा दुहाटांड-खाता सं0-32
प्लाट-700,709
 जमीन अधिग्रहण -20 डिसमिल 5 05 डिसमिल, जोरा पोखर पैक्स धनसार में खाता सं0-200300 से एकाउंट खुला।
खाता खुलवाने में पहचानकर्ता-विपिन राव
खाता खुलवाने और पहचानकर्ता की भूमिंका बिचैलियों ने ही निभायी। पैक्स के सादे चेक पर हस्तक्षार करा लिया।
पैक्स से निकासी करनेवाले-आलोक बरियार, रोहित व काजल विश्वास-तीनों नौ-नौ लाख निकाले।
 बिचैलियों के रैकेट ने कैसे किया खेल--
बिचैलियों के रैकेट ने तरीके से खेज किया। सबसे पहले भू-अर्जन कार्यालय के अधिकारी-कर्मचारी की मिलीभगत से बिचैलियों ने पता लगाया कि किस जगह की जमीन अधिग्रहीत होने वाली है। उसका पूरा रिकाॅर्ड हासिल किया। इसके बाद बिचैलिये गांव पहंुचे। विपिन राव नाम के बिचैलिये का पहले से उस गांव में आना जाना था। उसने ही सूचना दी कि गांव के किस-किस लोग की जमीन जा रही है। उसने गांववालों का भरोसा जीता। भरोसा दिलाया  िकवह उनको मुआवजा का पैसा दिला देगा। भाग दौड करने से गा्रमीण बच जायेंगे। इसके बाद विपिन राव कुछ लोंगों के साथ गांव पहुंचा। विपिन ने गांववालों को अंचल कार्यालय के दस्तावेज और सादे कागज पर हस्तक्षर करने को कहा-हालांकि गांव के कुछ लोगों ने उसका विरोध भी किया था, उसने किसी तरह उनको समझाया। जो हस्ताक्षर कर सकते थे। उनका हस्ताक्षर लिया। जिन्हें लिखना-पढ़ना नहीं आता, उपके अंगठे के निशान लिये, कुछ दिन बाद सभी बिचैलिये इनको जोरा पोखर के पैक्स ले गये। रैयतों की पूरा खातिरदारी की। होटल में खिलाना-पिलाना सबकुछ हुआ। पैक्स पहुंचने के बाद बिचोलियों ने इन आदिवासियों का खाता खुलवाया। दस्तावेज भी बताते है। कि ये लोंग खाता खुलवाने में पहचानकर्ता बने। खात खुलवाने के साथ ही इन लोगों ने रैयतों से सादे चेक पर हस्ताक्षर और जरूरत के हिसाब से अंगूठे के निशान लिये। इसके बाद पैसे की निकासी का खेल शुरू हुआ। प्रबंधन के हस्तक्षेप के बाद रैयतों के मुआवजा के चेक के पीछे इन बिचैलियों ने भी दस्तखत किये। कई बार इन बिचैलियों ने प्रबंधक को पटा भी लिया और बिना अपने हस्ताक्षर के केवल रैयतों के हस्ताक्षर वाले चेक जमा कर भी पैसे लिये। यही नहीं, चेक से पैसा अपने एकाउंट में भी टा्रंसफर कराया। अलग अलग चेक जमा कर किस्त में पैसे नकाले गये। रैयतों का चेक एकांउट पेइ था, इसलिए उनके हस्ताक्षर की जरूरत थी। सलिए बिचैलियोंने चेक के दोनों तरफ रैयतों के हस्ताक्षर या अंगूठा लगवा कर अपने पास रखे थ। पैक्स के लोग भी इस खेल में शामिल थे। उन्हें मालूम था कि ये सभी असली रैयत नहीं हैं, फिर भी भुगतान हुआ। एकाउंट ट्रांसफर पर भी रोक नहीं लगायी। इस तरह अंचल कार्यालय से लेकर पैक्स तक जाल बिछर की दलालो ने पूर पैसे हड़प  लिये।
बिचैलियों के साथ मिले थे अंचल कार्यालय के अधिकारी-कर्मचारी
ऐसे हुई अनदेखी-
अधिकारियों और कार्मयों की मिलीभगत का प्रमाण है कि रैयतों मुआवजा भूगतान के लिए भू-अर्जन अधिनियम की धारा 17-3 और न ही धारा 12-2 के तहत कोठ नोटिस नहीें दिया गया, इसकी सूचना रैयतों को बिचैलियों से मिली और अंचल कार्यालय में जाकर नोटिस लेने से लेकर सारी औपचारिकता हुई
भू-अर्जन अधिनियम के तहत आदिवाी और दलितों के मामले में मुआवजे का भुगतान शिविर लगा कर किया जाता है, इसमें जनप्रतिनिधि की उपस्थिति भी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
भुगतान की बीडियोग्राफी या फोटोग्राफी भी हो सकती थी, लेकिन नहीं हुआ।
बिचैलिये बहला-फुसलाकर आदिवासियों को खाता खुलवाने पैक्स ले गये। पैक्स में प्रबंधन ने किस आधार पर बिचैलियों को पहचानकर्ता बनाया
जांच के बाद इस बात का भी खुलासा हो गया है कि आदिवासियों को शराब के नशे में पैक्स लाया गया था तो फिर उन्हें प्रबंधक ने कैसे हस्ताक्षर और अंगुठे लिये। दरअसल यह काम बिचैलियों ने पहले ही कर लिया था
भू-अर्जन कार्यालय की ओर से यह सुनिश्चित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया कि मुआवजा रैयतों को मिल रहा है या नहीं


6 फरवरी 2016 -प्रभात खबर

69 डिसमिल जमीन गयी, मिले सिर्फ डेढ लाख--
शराब पिला देवराज से हड़पा 1.48 करोड़-
धनबाद भूंमि मुआवजा घोटाला-2
धनबाद रिंग रोड के निर्माण के लिए अधिग्रहित की गयी जमीन का मुआवजा गरीब आदिवासियों से हड़पने के लिए विचैलियों ने तरह-तरह के हथकंडे अपनाये। पूरा दुहाटांड गांव ठगा गया। गांव से बिचोलिये चार करोड़ से अधिक हड़प चुके हैं गांव के पढ़-लिखे नौजवानों को बहलाने-फुसलाने के लिए शराब का भी सहारा लिया। आदिवासियों को डेढ़ करोड़ तक मुआवजा मिलना था। पर इनकी जमीन भी चली गयी और पैसा भी नहीं मिला। कई स्तरों पर मुआवजा वितरण में हुई अनियमितता की जांच की गयी, लेकिन उन गरीब परिवारों को न्याय नहीं मिला। ये परिवार आज अपनी बदहाली को कोस रहे हैं। दुहाटांड के आदिवासी अफसर और दलालों के दगा-फरेब में सबकुछ लुटा चुके हैं। ग्रामीण बेबसह हैं।
देवराज मुरमू दुहाटंड के चंद पढ़े लिखे नौजवानों में एक हैं। एक समय वह बेहतर पेंटर भी था। रिंग रोड निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण और इससे मिलनेवाला मुआवजा ही उसके लिए अभिशाप बन गया। रिंग रोड में देवरा की जमीन गयी। और बिचैलियों ने उसे शिकंजे में ले लिया। इंपीरत ेह 69 डिसमिल जमीन अधिग्रहित हुई थी। इसके लिए उसे दो किस्तों में 1.48 करोड़ रूपये मिलने थे। देवराज ने बताया‘ विपिन कुमार राव मेरे पास भी आया था। गांव के सब लोग कागज पर अंगूठा लगा कर दे रहे थे, विपिन ने कहा था कि पैसे जल्द मिल जायेंगे। इसलिए मैंने भी कागजात पर हस्ताक्षर कर दिये। देवराज ने बताया-विपिन राव और दूसरे लोगों ने जब भी पैसे मांगता, तो मुझे धनबाद ले जाया जाता, होटल में खिलाया-पिलाया जाता और जाते समय कभी 10 हजार तो कभी 15 हजार रूपये दे देते। बिचैलियों ने अब तक उसे करीब डेढ लाख रूपये दिये। इस बीच उसे शराब की लत लग गयी। अ बवह हमेशा शराब पीकर बेसुध रहता है। यह पूछने पर कि क्या उम्मीद है कि पैसे मिलेगें, वह मिल्मी डायलाॅग बोलता है, कगजता अरे अब क्या, अब तो डेट और डेट पर डेट..यहां लोग आये। पुलिसवाले आये, निगरानी के लोग आये, लेकिन हमें उम्मीद नहीं । जिसको पैसे लेकर भगना था, भाग गया। देवराज की बेबसी देख कर गांववाले भी हताश हैं। उसके जैसा पढ़ा-लिखा नौजवान बेकार हो गया। यह पूछने पर कि उसने तो इंटर तक की पढ़ाई की है, कहीं नौकरी क्यों नहीं करता, देवराज बताता है नौकरी कहां है, बताइये, हम मजदूरी कर लेते हैं, यही ठीक है। देवराज के घर वालों के सपने ीाी बिचैलियों के काले-कारनामों के भेंट चढ गये। अब परिवार के सामने संकटों से जूझने के अलावा कुछ नहीं बचा।
देवराज मुरमू की जमीन व मुआवजा का फैक्ट शीट-
मौजा-दुहाटांड ध्नसार-खाता सं-108,83, प्लाॅट-893,894,895,1010
मुआवजा-पहला किस्त-4320000
दूसरा किस्त- 10584000
जोरापोखर पैक्स धनसार में खाता सं-200298 से एकांउट खुला
दलालों के चक्कर में---
दुहाटांड की सुरूमणी एक मात्र ऐसी महिला है जो दलालों की चक्कर में नहीं फंसी। सुरूमणी के पास भी बिचैलिये पहुंचे थे, उसे भी सादे कागज में अंगूठा लगाने को कहा गया। सुरूमणी के पति बेंगलुरू में मजदूर करता है। सुरूमणी बताती है-अरूण चंद महतो नाम का एक व्यक्ति मेरे पास आया था। उसने जमीन के कागजात की जेरोक्स काॅपी मांगी। सुरूमणी ने कहा कि वह सादे कागज या चेक पर कैसे अंगूठा लगा सकती है। दलालों को लग गया कि यहां दाल नहीं गलनेवाली है। इसके बाद दलालों ने उसके पटटीदारों को फंसाया। सीताराम मरांडी औ सुकलाल मरांडी दो पटटीदार हैं। इसके बाद सीताराम मरांडी और सुकलाल मरांडी के नाम 65 डिसमिल जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू करायी गयी। इसमे सुरूमणी की जमीन का भी हिस्सा था। दोनों ही लोगों का मुआवजा 1.19 करोड़ रूपया बना। सीताराम मरांडी और सुकलाल मरांडी के सारे चेक पर दलालों ने हस्ताक्षर कर पैक्स से पैसे उठा लिये। इसकी जानकारी सुरूमणी को मिली। वह भागी-भागी अंचल कार्यालय पह ुंची। उसे अंचल कार्यालय में बताया गया कि तुम्हारा पैसा उठा लिया गया है। सुरूमणी ने बताया कि उसने कभी चेक में हस्ताक्षर नहीं किया है, तो फिर पैसे कैसे उठा लिये गये। दरअसल बिचैलियों ने अंचल कार्यालय की सांठ-गांठ से अधिग्रहित जमीन की वशंावली सूची तैयार ही नहीं की थी। सुरूमणी कहती है कि पति को काम से बहुत कम पैसा मिलता है। हमें उम्मीद थी कि कुछ  पैसा मिलेगा तो घर बनाने के और बच्चों के पढ़ाई में खर्च करेगें।
सीताराम मरांडी और सुकलाल मरांडी की जमीन और मुआवजा का फैक्ट फाइल--
सीताराम मरांडी-खाता-127
प्लाॅट-667, 666
अधिग्रहित जमीन-385
मुआवजा मिला-तीन किस्त में-2376000, 3240000, 270000
जोरा पोखर पैक्स में खाता सं-20079 से एकाउंट खोला गया।
पहचानकार्ता बने-अनिल कुमार
पैक्स से सीताराम मरांडी के पैसे निकालने वालों का नाम-रोहित मिश्रा, मुकेश मिश्रा, सुनील कुमार, सौरभ कुमार, महेश राय, अशोक राय, गोपाल रजक, मोहन गुप्ता, राकेश गुप्ता, आलोक बरियार।
सुकलाल मरांडी -खाता सं-112, 70,
प्लाॅट-729,900
म्ुाआवजा दो किस्तों में -1296000,2376000
जोरा पोखर पैक्स में खाता सं-20016 से एकाउंट खुला
खाता खुलवाने वालेपहचानकर्ता-आलोक बरियार
पैक्स से सुकलाल मरांडभ् क्ै पैसे निकालने वालों का नाम-अनिल शर्मा, रवि दास, सुभाष मंडल, रविंद्र सिंह, आलोक बरियार, राजीव सिंह।
बिचैलिये व रकेट चलानेवाले पुलिस की पकड़ सह बाहर-धनबाद में दुहाटांड के गरीब आदिवासियों का चार करोड से ज्यादा मुआवजा हड़पने वाले बिचैलिये और रेके चलानेवाले माॅिफया पुलिस की पकड़ से बाहर है। आदिवासी रैयतों के मुआवजा घोटाले के मामले में जिला भू-अर्जन पदाधिकारी नारायाण विज्ञान प्रभाकर ने 18-4-15 को धनसार थाने में मामला दर्ज कराया। धारा 406,409,420,467,468,129 और अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा तीन और चार के तहत मामला दर्ज कराया गया। इस मामले में अब तक महत 14 छोटे बिचैलियों की गिरफतारी हुई है। 47 लोग अब भी पुलिस पकड़ से बाहर हैं।




प्रकृति-पर्यावणीय आदिवासी-मूलवासी गांवों का अस्तित्व खो जाएगा-

रघुवर सरकार कहते हैं-
सीएनटी, एसपीटी एक्ट को खत्म नहीं किया गया है, कानून को सिर्फ सरलीकरण किया गया है।
सरल हो गया-क्या क्या सरल (सहज) हुआ--
धारा-49,
सीएनटी एक्ट की धारा-49 में पहले जमीन सिर्फ दो काम से अधिग्रहण किया जाना था-क-उद्योग के लिए, ख-खदान के लिए। लेकिन अब -संशोधन में सभी तरह के काम के लिए जमीन अधिग्रहण को मंजुरी दिया गया। संशोधन  के बाद अब सभी उद्वेस्यों या परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण करना आसान हो गया है।
धारा 21-सीएनटी एक्ट की धारा 21, और स्ंताल परगना काश्तकारी अधिनियम -1949 के धारा 13 में कृर्षि भूमिं का गैर कृर्षि भूमिं उपयोग में परिर्वति या बदलने की इज्जाजत नहीं देता था। याने खेती की जमीन को सिर्फ खेती के लिए ही उपयोग किया जाना था। लेकिन-संशोधन में अब कृर्षि भूमिं का चरित्र गैर कृर्षि भूमिं में बदलने की इज्जाजत दिया। अब कृर्षि भूमिं में आसानी से व्यवसायिक संस्थान, उद्योग के अलावा जमीन का किसी भी तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। स्ंाशोधन के पहले- कृर्षि भूमिं में व्यवसायिक भवन आदि के लिए नाक्सा पास नहीं होता था-अब सभी रूकावट को खत्म कर दिया गया। रघुवर सरकार ने कानून में सरलीकरण की बात करते हैं-या एक छलावा है, जबकि आदिवासी समाज के जमीन के अधिकार को पूरी तरह खत्म कर दिया।
सरकार का यह दलील देना कि इन संशोधनों के बाद जमीन का व्यवसायिक उद्वेय के लिए हस्तांत्रण के बाद भी जमीन पर रैयत का मलिकाना हक बना रहेगा -यह तर्क सिर्फ आदिवासी मूलवासी सामाज को दिगभ्रमित करता है। व्यवहारिकता यह कताई संभव नहीं है।



स्थानीयता नीति-
30 साल से रह रहे लोगों को झारखंडी होने का गैरव प्रदान किया गया, जब कि झारखंड के भूमिं पूत्रों, आदिवासी, मूलवासी, किसानों, मेंहनतकसों को अपने जल-जंगल-जमीन से उखाड़ फेंकने की कानून बनायी गयी।
नौकरी में तीसरे और चर्तुथ श्रेणी में अनुसूचित क्षेत्रों के युवकों को सिर्फ दस साल तक पूरी नौकरी देने की बात कही गयी है।
लेकिन-इसके बाद इन इलाकों के युवा वर्ग का क्या होगा। यहां नौकरियां इनको शायद नहीं मिल सकती है, क्योंकि जो स्थानीयता नीति के तहत आज राज्य के शहरी क्षेत्रों में जिस तरह से गैर कानूनी तरीके से बने कमानों को धडले से सरकार छपरबंधी रसीद काट कर उन्हें कानूनी मान्यता दे रही है, ये आबादी आने वाले दिनों में निच्शित रूप से स्थानीय आदिवासी-मूलवासी आबादी पर हावी होगी। ये बाहरी आवादी आदिवासी मूलवासी सहित यहां के तमाम 32 जनजाति आबादी को को निगल जाएगा।
रांची शहर में ढाइ लाख गैर कानून मकानों को कानूनी मान्यता दिया है। यदि इन मकानों या परिवारों में प्रति परिवार 5 सदस्य होगें तो, ...........................कुल आबादी हो जाएगी।
जबकि झारखंड 24 जिलों का है। इसमें हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, जमशेदपुर, कोडरमा, रामगढ, गिरिडीह औधोगिक जिले हैं। यह बाहर से आयी आबादी भी अधिक है। तब स्थनीयता नीति के तहत अब ये भी झारखंडी माने जाएगें और यहां स्थनीय समुदाय को जो सुख-सुविधा राज्य और केंन्द्र सरकार द्वारा मिलता है, इन्हें भी मिलेगा। हां नौकरियों में आरक्षण राज्य की नयी आबादी के आधार पर ही निर्धारण होगा।  तब यहां की कुल आबादी में अब आदिवासी-मूलवासियों की आबादी का ग्राफ सबसे नीचे चला जाएगा। एैसे स्थिति में झारखंड के आदिवासी-मूलवासियों की पहचान स्वत ही खत्म हो जाएगी।
आने वाले जनगणना में आदिवासी-मूलवासी आबादी की जनसंख्या 27 प्रतिशत से घट कर 10-15 प्रतिशत में आ जाएगी।


आदिवासी-मूलवासी सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा
गांव के सीमा के भीतर या बाहर के गैर मजरूआ आम, गैरमजरूआ खास जमीन को भूमिं बैंक द्वारा आॅनलाईन किसी को भी हस्तांत्रित करने से, अब गांव की डेमोग्राफी, जियोलाॅजी, जैविक विविधता, विविधता में एकता वाली सामाजिक ताना-बाना, परंपारिक सामाजिक व्यवस्था-पड़हा व्यवस्था, राजी पड़हा, मानकी-मुण्डा, डोकलो-सोहोर, मांझी-परगना व्यवस्था सभी समाप्त हो जाएगा।
इसलिए एैसा होगा-क्योंकि गांव के बीच में, गांव-टोली-महला के आस पास, या किसानों के ख्.ोत-टांड, के बीच, या अगल-बगल जो भी गैर मजरूआ आम, खास जमीन है, को सरकार किसी भी जाति-समुदाय, या भाषा-संस्कृति के लोगों को जमीन हस्तांत्रित करेगी। इस तरह से एक भाषा-भाषी या जाति समुदाय के बीच अब कोई भी बाहरी समुदाय को बैठा सकता है।
प्रकृति-पर्यावणीय आदिवासी-मूलवासी गांवों का अस्तित्व खो जाएगा-
भूमिं बैंक के लिए -गांव के बीच, खेत-टांड के बीच, गांवों सीमाओं के जिन गैर मजरूआ आम, खास जमीन को चिन्हित किया गया है-उन जमीनों के हस्तांत्रण के बाद उस इलाके में पहले की स्थानीय आबादी केवल नहीं रहेगी, लेकिन बाहर से आने वाली आबाद स्थानीय आबादी से ताकतवर होगी। ऐसे परिस्थिति में उस गांव का परंपारिक भाषा-संस्कृति, रहन-सहन के साथ गांव का नाम भी बदल जाएगा। जैसे कि विकास के नाम पर पूरे झारखंड के गांव गायब होते गये, गांवों का नाम अब नगरों, बिहार,(जैसे अशोक बिहार, कुसुम बिहार, प्रेम नगर, नयन नगर आदि)  में तब्दील होता जा रहा है।
जबकि परंपारिक आदिवासी गांवों का नाम पेड़, पैधों, जंगली जनवरों, नदी, नालों, झरनों, पशु-पक्षियों के नाम से रखा गया है। साथ ही हजारों गांवों का नाम गांव के प्रधान याने गांव बसाने वाले पहला बुजूर्ग के नाम पर नामकरण किया गया है।
बडीबिरिंगा, कनारोंवा, लोवागड़ा, अंबाकोना, डाउकोना, जमटोली, करीमाटी, सिमडेगा, मयोमडेगा, लतापानी, सराईपानी, हेसलाबेड़ा, महाबुआंग, किरीबुरू, बाघलता, सारूबेड़ा, मेघाहातुबुरू, कोयोंगसेरा, बगीसेरा, रंगामाटी, टुटवापानी, जोकिपोखर, सेरेंदआ, सरजोमदआ, कहुपानी, जिलिंगसेरेंग, बिलसेरेंग, महुंवाटांड, कादोपानी, चंपाबहा, जोजोहातु, बुरूहातु, मरंगबुरू, बहाबुरू, गरूडपीडी, हेसो, निमडीह, जोजोसेरेंग, सरजोमडीह, बकाकेरा, लउाकेरा, महूंवाटोली, बांसटोली, जनुमपीडी, बंडआजयपुर, नामकुम, सियारटोली, आदि आदि.....

आदिवासी राज्य में आदिवासी-मूलवासी किसानों की आवाज सुनने वाला कोई नहीं-यदि हम भारतीय संविधान की बात करें, तो भारतीय संविधान ने देश के हर व्यत्कि, समाज, संगठन को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता दी है। अपनी बात कहने के तरीके भी अलग अलग हो सकते हैं-या तो सभा आयोजित कर, या रैली करक, या तो धरना-प्रर्दण के माध्यम से। हम भारत देश के नागरिक हैं-और भारतीय संविधान ने हमें किसी भी विषय पर, सरकार निर्णय पर अपनी सहमति या असहमति प्रकट करने की अभिव्यत्कि का अधिकार दिया है। लेकिन-दुभग्य की बात है-कि झारखंड अलग हम किये हैं-का दावा करने वाली बीजेपी की सरकार आज राज्य के आदिवासी-मूलवासी किसानों की किसी भी बात को सुनने को तैयार नहीं है। यदि आदिवासी -मूलवासी अपनी आवाज बुलंद करने की कोशिश कर रहे हैं-तब उन पर अंग्रजों के समय से भी ज्यादा कठोर करवाई की जा रही है। सरकार की गलत नीतियों पर सवाल उठाने वालों को छुठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है, जेल भेजा जा रहा है। आज आदिवासी समुदाय सवाल उठा रहें हैं-कि जिस बीजेपी ने अलग राज्य का पुनगर्ठन आदिवासी समाज के नायक वीर बिरसा मुंडा के जन्म दिन 15 नवंम्बर को किया था, बीजेपी भी स्वीकार किया था-कि यह आदिवासी राज्य है, और यह आदिवासियों के लिए बना है, इसीलिए बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर पूर्नगठित किया गया था। लेकिन आज आदिवासियों को अपने ही राज्य में अपने जल-जंगल-जमीन से उखाड फेंका जा रहा है। आदिवासियों को अपने ही राज्य में अभिव्यत्कि का अधिकार नहीं है। भारतीय लोकतंत्र में झारखंड के आदिवासी-मूलवासियों के लोकतंत्र की हत्या- सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट में संशोधन के विरोध उठ खड़ा हुए जनआंदोलनों का सरकार ने दमन कियां। सर्वविदित है-22 अक्टोबर 2016 को सीएनटी, एसपीटी संशोधन के विरोध आयोजित रैली मोराहबादी में भाग लेने से लोगों को रोका गया। रांची शहर को चारों से बैरेकेटिंग लगा कर घेरा गया, ताकि लोग मोराहबदी मैदान न पहुंच सकें। गांव गांव पुलिस द्वारा बैरेकेटिंग लगवाया गया ताकि गांव से कोई रैली में ना जा सके। 23 नोवेम्बर 2016 को विधानसभा में 2 मिनट 57 सेकेंड में संशोधन बिल पास किया गया। विरोध में 25 नोंबेमर 2016 को विपक्षी पार्टियों एवं जनआंदोलनों ने झारखंड बंद बुलाया। बंद सफल रहा। 2 दिसंबर 2016 को भी झारखंड बंद बुलाया गया था-इस दिन आंदोलन के अगुवों के दरवाजा में पुलिस बैठा दिया गया-ताकि लोग बंद कराने न निकलें। सीएनटी, एसपीटी एक्ट संशोधन के विरोध चले आंदोलन में 22 अक्टोबर को सोयको में पुलिस की गोली से अब्रहम मुंडू शहीद हो गया। इसके साथ चार लोग गंभीर रूप से घायल हो गये। पुलिस ने शहीद अब्रहम के साथ 10 लोगों पर नेमड एफआइआर तथा करीब 2 हजार पर अज्ञात एफआइआर किया। इसी घटना को लेकर 23 अक्टोबर को खूंटी नीचे चैक जाम किया था, इसमें 20 लोगों पर नेमड तथा 7 हाजार लोगों पर अज्ञात एफआइआर किया गया है।

आदिवासी राज्य में आदिवासी-मूलवासी किसानों की आवाज सुनने वाला कोई नहीं-यदि हम भारतीय संविधान की बात करें, तो भारतीय संविधान ने देश के हर व्यत्कि, समाज, संगठन को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता दी है। अपनी बात कहने के तरीके भी अलग अलग हो सकते हैं-या तो सभा आयोजित कर, या रैली करक, या तो धरना-प्रर्दण के माध्यम से। हम भारत देश के नागरिक हैं-और भारतीय संविधान ने हमें किसी भी विषय पर, सरकार निर्णय पर अपनी सहमति या असहमति प्रकट करने की अभिव्यत्कि का अधिकार दिया है।
लेकिन-दुभग्य की बात है-कि झारखंड अलग हम किये हैं-का दावा करने वाली बीजेपी की सरकार आज राज्य के आदिवासी-मूलवासी किसानों की किसी भी बात को सुनने को तैयार नहीं है। आदिवासी राज्य में आदिवासी-मूलवासी किसानों की आवाज सुनने वाला कोई नहीं-यदि हम भारतीय संविधान की बात करें, तो भारतीय संविधान ने देश के हर व्यत्कि, समाज, संगठन को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता दी है। अपनी बात कहने के तरीके भी अलग अलग हो सकते हैं-या तो सभा आयोजित कर, या रैली करक, या तो धरना-प्रर्दण के माध्यम से। हम भारत देश के नागरिक हैं-और भारतीय संविधान ने हमें किसी भी विषय पर, सरकार निर्णय पर अपनी सहमति या असहमति प्रकट करने की अभिव्यत्कि का अधिकार दिया है।
लेकिन-दुभग्य की बात है-कि झारखंड अलग हम किये हैं-का दावा करने वाली बीजेपी की सरकार आज राज्य के आदिवासी-मूलवासी किसानों की किसी भी बात को सुनने को तैयार नहीं है। यदि आदिवासी -मूलवासी अपनी आवाज बुलंद करने की कोशिश कर रहे हैं-तब उन पर अंग्रजों के समय से भी ज्यादा कठोर करवाई की जा रही है। सरकार की गलत नीतियों पर सवाल उठाने वालों को छुठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है, जेल भेजा जा रहा है।
आज आदिवासी समुदाय सवाल उठा रहें हैं-कि जिस बीजेपी ने अलग राज्य का पुनगर्ठन आदिवासी समाज के नायक वीर बिरसा मुंडा के जन्म दिन 15 नवंम्बर को किया था, बीजेपी भी स्वीकार किया था-कि यह आदिवासी राज्य है, और यह आदिवासियों के लिए बना है, इसीलिए बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर पूर्नगठित किया गया था। लेकिन आज आदिवासियों को अपने ही राज्य में अपने जल-जंगल-जमीन से उखाड फेंका जा रहा है। आदिवासियों को अपने ही राज्य में अभिव्यत्कि का अधिकार नहीं है।
भारतीय लोकतंत्र में झारखंड के आदिवासी-मूलवासियों के लोकतंत्र की हत्या- सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट में संशोधन के विरोध उठ खड़ा हुए जनआंदोलनों का सरकार ने दमन कियां।
सर्वविदित है-22 अक्टोबर 2016 को सीएनटी, एसपीटी संशोधन के विरोध आयोजित रैली मोराहबादी में भाग लेने से लोगों को रोका गया। रांची शहर को चारों से बैरेकेटिंग लगा कर घेरा गया, ताकि लोग मोराहबदी मैदान न पहुंच सकें।  गांव गांव पुलिस द्वारा बैरेकेटिंग लगवाया गया ताकि गांव से कोई रैली में ना जा सके।  23 नोवेम्बर 2016 को विधानसभा में 2 मिनट 57 सेकेंड में संशोधन बिल पास किया गया।
विरोध में 25 नोंबेमर 2016 को विपक्षी पार्टियों एवं जनआंदोलनों ने झारखंड बंद बुलाया। बंद सफल रहा। 2 दिसंबर 2016 को भी झारखंड बंद बुलाया गया था-इस दिन आंदोलन के अगुवों के दरवाजा में पुलिस बैठा दिया गया-ताकि लोग बंद कराने न निकलें।
सीएनटी, एसपीटी एक्ट संशोधन के विरोध चले आंदोलन में 22 अक्टोबर को सोयको में पुलिस की गोली से अब्रहम मुंडू शहीद हो गया। इसके साथ चार लोग गंभीर रूप से घायल हो गये। पुलिस ने शहीद अब्रहम के साथ 10 लोगों पर नेमड एफआइआर तथा करीब 2 हजार पर अज्ञात एफआइआर किया। इसी घटना को लेकर 23 अक्टोबर को खूंटी नीचे चैक जाम किया था, इसमें 20 लोगों पर नेमड तथा 7 हाजार लोगों पर अज्ञात एफआइआर किया गया है।
 है। सरकार की गलत नीतियों पर सवाल उठाने वालों को छुठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है, जेल भेजा जा रहा है।
आज आदिवासी समुदाय सवाल उठा रहें हैं-कि जिस बीजेपी ने अलग राज्य का पुनगर्ठन आदिवासी समाज के नायक वीर बिरसा मुंडा के जन्म दिन 15 नवंम्बर को किया था, बीजेपी भी स्वीकार किया था-कि यह आदिवासी राज्य है, और यह आदिवासियों के लिए बना है, इसीलिए बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर पूर्नगठित किया गया था। लेकिन आज आदिवासियों को अपने ही राज्य में अपने जल-जंगल-जमीन से उखाड फेंका जा रहा है। आदिवासियों को अपने ही राज्य में अभिव्यत्कि का अधिकार नहीं है।
भारतीय लोकतंत्र में झारखंड के आदिवासी-मूलवासियों के लोकतंत्र की हत्या- सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट में संशोधन के विरोध उठ खड़ा हुए जनआंदोलनों का सरकार ने दमन कियां।
सर्वविदित है-22 अक्टोबर 2016 को सीएनटी, एसपीटी संशोधन के विरोध आयोजित रैली मोराहबादी में भाग लेने से लोगों को रोका गया। रांची शहर को चारों से बैरेकेटिंग लगा कर घेरा गया, ताकि लोग मोराहबदी मैदान न पहुंच सकें।  गांव गांव पुलिस द्वारा बैरेकेटिंग लगवाया गया ताकि गांव से कोई रैली में ना जा सके।  23 नोवेम्बर 2016 को विधानसभा में 2 मिनट 57 सेकेंड में संशोधन बिल पास किया गया।
विरोध में 25 नोंबेमर 2016 को विपक्षी पार्टियों एवं जनआंदोलनों ने झारखंड बंद बुलाया। बंद सफल रहा। 2 दिसंबर 2016 को भी झारखंड बंद बुलाया गया था-इस दिन आंदोलन के अगुवों के दरवाजा में पुलिस बैठा दिया गया-ताकि लोग बंद कराने न निकलें।
सीएनटी, एसपीटी एक्ट संशोधन के विरोध चले आंदोलन में 22 अक्टोबर को सोयको में पुलिस की गोली से अब्रहम मुंडू शहीद हो गया। इसके साथ चार लोग गंभीर रूप से घायल हो गये। पुलिस ने शहीद अब्रहम के साथ 10 लोगों पर नेमड एफआइआर तथा करीब 2 हजार पर अज्ञात एफआइआर किया। इसी घटना को लेकर 23 अक्टोबर को खूंटी नीचे चैक जाम किया था, इसमें 20 लोगों पर नेमड तथा 7 हाजार लोगों पर अज्ञात एफआइआर किया गया है।

आज आदिवासियों को अपने ही राज्य में अपने जल-जंगल-जमीन से उखाड फेंका जा रहा है।

आदिवासी राज्य में आदिवासी-मूलवासी किसानों की आवाज सुनने वाला कोई नहीं-यदि हम भारतीय संविधान की बात करें, तो भारतीय संविधान ने देश के हर व्यत्कि, समाज, संगठन को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता दी है। अपनी बात कहने के तरीके भी अलग अलग हो सकते हैं-या तो सभा आयोजित कर, या रैली कर, या तो धरना-प्रर्दण के माध्यम से। हम भारत देश के नागरिक हैं-और भारतीय संविधान ने हमें किसी भी विषय पर, सरकार निर्णय पर अपनी सहमति या असहमति प्रकट करने की अभिव्यत्कि का अधिकार दिया है।
लेकिन-दुभग्य की बात है-कि झारखंड अलग हम किये हैं-का दावा करने वाली बीजेपी की सरकार आज राज्य के आदिवासी-मूलवासी किसानों की किसी भी बात को सुनने को तैयार नहीं है। यदि आदिवासी -मूलवासी अपनी आवाज बुलंद करने की कोशिश कर रहे हैं-तब उन पर अंग्रजों के समय से भी ज्यादा कठोर करवाई की जा रही है। सरकार की गलत नीतियों पर सवाल उठाने वालों को छुठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है, जेल भेजा जा रहा है।
आज आदिवासी समुदाय सवाल उठा रहें हैं-कि जिस बीजेपी ने अलग राज्य का पुनगर्ठन आदिवासी समाज के नायक वीर बिरसा मुंडा के जन्म दिन 15 नवंम्बर को किया था, बीजेपी भी स्वीकार किया था-कि यह आदिवासी राज्य है, और यह आदिवासियों के लिए बना है, इसीलिए बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर पूर्नगठित किया गया था। लेकिन आज आदिवासियों को अपने ही राज्य में अपने जल-जंगल-जमीन से उखाड फेंका जा रहा है। आदिवासियों को अपने ही राज्य में अभिव्यत्कि का अधिकार नहीं है।
भारतीय लोकतंत्र में झारखंड के आदिवासी-मूलवासियों के लोकतंत्र की हत्या- सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट में संशोधन के विरोध उठ खड़ा हुए जनआंदोलनों का सरकार ने दमन कियां।
सर्वविदित है-22 अक्टोबर 2016 को सीएनटी, एसपीटी संशोधन के विरोध आयोजित रैली मोराहबादी में भाग लेने से लोगों को रोका गया। रांची शहर को चारों से बैरेकेटिंग लगा कर घेरा गया, ताकि लोग मोराहबदी मैदान न पहुंच सकें।  गांव गांव पुलिस द्वारा बैरेकेटिंग लगवाया गया ताकि गांव से कोई रैली में ना जा सके।  23 नोवेम्बर 2016 को विधानसभा में 2 मिनट 57 सेकेंड में संशोधन बिल पास किया गया।
विरोध में 25 नोंबेमर 2016 को विपक्षी पार्टियों एवं जनआंदोलनों ने झारखंड बंद बुलाया। बंद सफल रहा। 2 दिसंबर 2016 को भी झारखंड बंद बुलाया गया था-इस दिन आंदोलन के अगुवों के दरवाजा में पुलिस बैठा दिया गया-ताकि लोग बंद कराने न निकलें।
सीएनटी, एसपीटी एक्ट संशोधन के विरोध चले आंदोलन में 22 अक्टोबर को सोयको में पुलिस की गोली से अब्रहम मुंडू शहीद हो गया। इसके साथ चार लोग गंभीर रूप से घायल हो गये। पुलिस ने शहीद अब्रहम के साथ 10 लोगों पर नेमड एफआइआर तथा करीब 2 हजार पर अज्ञात एफआइआर किया। इसी घटना को लेकर 23 अक्टोबर को खूंटी नीचे चैक जाम किया था, इसमें 20 लोगों पर नेमड तथा 7 हाजार लोगों पर अज्ञात एफआइआर किया गया है।