झारखंड अलग राज्य की मांग न सिर्फ भौगालिक रूप से राज्य पूर्नगठन की मांग थी, न सिर्फ सरकारें बनाने की। लेकिन अलग राज्य की लड़ाई झारखंड के इतिहास, पहचान, जल-जंगल-जमीन, की रक्षा के साथ आदिवासी-मूलवासियों के भाषा-सांस्कृति के साथ कृर्षि-पर्यावरण, जलस्त्रोंतों, शिक्चा -स्वास्थ्य, मानव संसाधनों का विकास, विज्ञान-प्रावैधिकी की समुनत विकास के लिए था। झारखंड का दुरभग्य है-कि राज्य बनने के बाद राज्य में 9 मुख्यमंत्री बने, दर्जनों उप मुख्य मंत्री बने। सौकड़ों मंत्री और विधायक बने, लेकिन राज्य के जनमुखी -स्सटेनेबल डबलपमेंट के दिशा में राज्य को एक कदम भी नहीं बढ़ा सके। राज्य के जनअधिकारों, प्रकृतिक संसाधनों को लूटाने, लुटने, कमीशन बनाने के लिए बारी बारी से नेताओं ने एलांश करते रहे। लेकिन भ्रष्ट अपराधिक राजनीतिक-प्रशसनिक गंठजोड़ ने राज्य हित में न तो सोचा न ही काम किया। यह मैं नहीं बल्कि सरकार की आॅडिट रिपोर्ट बता रही है। विकास के नाम पर विभागों को जो राशी आबंटित की जा रही हैं उसको सरकार खर्च नहीं कर पा रही है। दूसरी ओर नेता, मंत्री राज्य में धन की कमी का रोना रोते हैं। जो धन रा’िा राज्य के विकास के नाम पर विभिन्न विभागों को आबंटित की गयी-उसको किस तरह खर्च किया जाए, इस पर नेता-मंत्रियों को कोई रूचि नहीं है। दूसरी ओर राज्य पिछड़ रहा है-विकास नहीं हो रहा है, यह दलील देते हुए नेता- मंत्री राज्य को विषेश दर्जा दिलाने का नाटक कर राज्य की जनता को गुमराह किया जा रहा है।
अलग झारखंड गठन के बाद से विगत 11 वर्षों में विभिन्न विभागों के पास विकास योजनाओं के 146.52 करोड़ रूपये पड़े हुए हैं। आॅडिट रिपोर्ट में 36 विभागों के पास पड़ी हुई इस राशी को ट्रेजरी में जमा करना जरूरी बताया गया है।
यह राशी ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, राजस्व, एवं भूमि सुधार, मानव संसाधन, पंयायती राज, उद्योग, पशुपालन, ग्रामीण कार्य, सूचना एवं जनसंपर्क, परिवहन, समाज कल्याण, कल्याण, वित, कृर्षि, गृह, खेलकूद, निबंधन, विज्ञान-प्रावैधिकी, कार्मिक प्रशासनिक सुधार, श्रम नियोजन, सांख्यिकी विभाग, खाद्य आपूर्ति, सहायता एवं पुनर्वास विभाग की ओर से कोषागार में जमा नहीं करायी गयी है।
जनकारी के अनुसार 11 सालों में 10 से अधिक विभागों में 15.46 करोड़ रूपये की गड़बडी का मामला भी उजागार हुआ हैं यह राशी योजनाओं को पूरा करने के लिए संबंधित विभागों को दी गयी थी। विभागों में की गयी वित्तीय अनियमितता के संदर्भ में 139.01 करोड़ रूपयें सरकार वसूल नहीं पायी है। यह आंकडे विभिन्न विभागों के अंकेछण प्रतिवेदन के आधार पर वित बिभाग की ओर से तैयार किये गये हैं।
जनकारों के अनुसार इस राशी से 58 हजार टयूबवेल और 45 हजार से अधिक इंदिरा आवास बनाये जा सकते थे।
वित विभाग की रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक राशी ग्रमीण विकास विभाग में पड़ी हुई है। सबसे कम राशी निबंधन विभाग की है।
ग्रामीण विकास विभाग के 73.98 करोड़ रूपये और श्रम विभाग के पास 500 रूपये पड़े हैं। सहायता एवं पुनर्वास विभाग का 23.70 करोड़, राजस्व एवं भूमिं सुधार विभाग का 12.44 करोड़, कल्याण विभाग का 12.99 करोड़, कृर्षि विभाग का 14.31 करोड़, मानव संसाधन विभाग का 4.66 करोड़ रूपय बेकार पड़े हैं।
अधिक वसूली योग्य राशी ग्रामीण विकास में
सरकार की ओर से गत 11 वर्षों में ग्रामीण विकास विभाग से सबसे अधिक वसूली योग्य राशी 35.89 करोड़, रूपये ली जाना है, इसी प्रकार कल्याण विभाग से 21.84 करोड़, मानव संसाधन विभाग से 17.25 करोड़, राजस्व एवं भूमिं सुधार विभाग से 24.06 करोड़, परिवहन विभाग से 9.31 करोड़, समाज कल्याण से 1.36 करोड़, गृह विभाग से 14.06 करोड, वन एवं पर्यावरण विभाग से 3.28 करोड़, पथ निर्माण से 2.74 करोड़, कार्मिक विभाग से सरकार को 3.28 करोड़ की वसूली की जानी है।
अधिक गड़बड़ी पंचायती राज विभाग में-
विगत 11 वर्षों में सबसे अधिक सरकारी रा’िा की गडबड़ी पंचायती राज विभाग में हुई है। वित विभाग की रिपोर्ट के अनुसार पंचायती राज विभाग में 13.42 करोड़, की गडबड़ी हुई है। इसके अलावा समाज कल्याण विभाग में 36.99 लाख, ग्रामीण विकास में 60.64 लाख, राजस्व एवं भूमिं सुधार विभाग में 28.88 लाख, वित विभाग में 33.92 लाख और कृर्षि विभाग में 24.41 लाख की गड़बड़ी है।
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