Saturday, June 22, 2013



KENAOUR  ME  BAH  RAHI  SATLUJ  NADI  KE  KINARE  PAHAD  KO  KAT  KAR  ROAD  BANA  DIYA  GAYA  HAI...
SATLUJ  NADI  ME  JAGAH  JAGAH  DAM  BANA  DIYA  GAYA  HAI...DAM  KA  PANI  KO 25-30 KILOMITAR  LAMBI  SURANGON  SE  BIJLI  PLANT  TAK  LE  JAYA  JATA  HAI...IS  DAM  BE  AAP  SURANG  KO  DEKH  SAKTE  HAIN..

MAI  2010 KO  BISWA PARYAWARAN  DIWAS  ME  GAYI  THI...WANHA  SE  WAPAS  LAOUT  KAR  YE  REPORT  LIKHI HUN..

सतलुज नदी के दोनों किनारों की तीब्र ढलानों पर स्थित है। यह हिमाचल के उतरपूर्व में स्थित चटटानी ढ़लान वाला क्षेत्र है। इस का कुल क्षेत्रफल 6401 वर्ग किलोमीटर है। इस क्षेत्र के गांवों की उंचाई समुद्रतल से 7000 सें 12000 फुट तक है। वांगतु से उपर वर्षा बहुत कम होती है। मौनसून हवाएं यहां तक नहीं पहंच पाती है। वर्षा न होने के कारण यहां पर वनसपतिक आवरण न के बराबर है। इसलिए वांगतु से उपर के क्षेत्र को शीत मरूस्थल कहा जाता है। पहाड़ी मरूस्थल कितना नाजुक होता है इस का अंदाजा यहां के हर कदम पर भूस्खलन बिंन्दुओं से लगाया जा सकता है। एक ओर तो किनौर का समूचा क्षेत्र पहले से ही अत्यत संवेदनशील है वहीं दूसरी ओर 21वीं सदी के पदार्पण के साथ ही इस जिले के सामने अनेक प्राकृतिक संसांधनों के अंधाधुध दोहन से यहां का पर्यावरण खतरे में है। किनौर जिल में एक के बाद एक लगातार कई निर्माणाधीन एवं प्रस्तावित जलविद्युत परियोजनाओं के कारण इस क्षेत्र का अस्तित्व संकट में हैं। किनौर में स्थित सतलुज जल संग्रहण क्षेत्र इस इलाके की पर्यावरणीय जीवनशैली के लिए अभिशाप बन चुका है। सतलुज जल संग्रहण क्षेत्र में नाथपा-झाखडी-15 मेगावाट, संजय परियोजना-120 मेगावाट, बास्पा-2-300 मेगावाट, रूकती-1-5 मेगावाट पहले से ही क्रियान्वित है और करछम-वांगतु-1000 मेगावाट, काशा ग-1, 66 मेगावाट, शोंरांग 100 मेगावाट, ओर टिडोंग-100 मेगावाट परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। चांगो-यंगथंग-140 मेगावाट, यंगािंग-खाब 261 मेगावाट, खाब-’यासो 1020 मेगावाट, जंगी-ठोपन 480 मेगावाट, ठोपन-पवारी-480, कगठोंग-करछम 402 मेगावाट तथा टिडोंग 2-60 मेगावाट  शुरू होने को है।  इस के अतिरिक्त ‘’यासो-स्पिलो 500 मेगावाट, काशाग 2-48 मेगावाट, काशाग 3-130 मेगावाट, बासपा 1-128 मेगावाट, रोपा 60 मेगावाट प्रस्तावित है।  12 हाईड्रो प्रोजक्ट प्रस्तावित -पाईपलाइन में है, जिससे लगभग 4000 मेगावाट बिजली पैदा करने की योजना है। इसके साथ ही कई अन्य कंपानियां परियाजना के लिए जमीन सर्वे का काम रही हैं।
 
जलस्त्रोत, जंगल-पहाड़, पर्यावरण पर उद्वोगपतियों का कब्जा बढ़ता जा रहा है। जनता के समुदायिक-बुनियदी आधिकार पर चैरफा हमला हो रहा है। 
250 किमी तक हिमाचल की वादियों में किलकारियां भरते हुए भारत की भूमिं को सिंच रही है। लगभग 150किमी किनौर की धरती को सिंचते हुए बखड़ा डैम तक पहुंच रही है। दुखद बात यह है कि इस नदी पर सौकड़ों परियाजनाएं प्रस्तावित हैं। कई दर्जन तैयार हो चुके है। नदी का पानी सुरंगों से दूसरी ओर बहा कर ले जाया जर रहा है। नदी  में  हजारों सुरंग बने  हैं इसी  सुरंगों  से  बिजली  कारखानों  तक  पानी  पहुँचाया  जाता  है, इसे पूरा पहाड़ खोखला हो चुका है . वह दिन दूर नहीं जब बहता सतलुज पूरी तरह से गायब हो जाएगा। सतलुज नदी शिमला, कुल्लू, मांडी और बिलाशपुर जिले में बहते हुए बखड़ा डैम तक पहुंचती है। यहां से करीब 100 किमी दूर तय कर केनल-नहर से पानी, पंजाब, हिरयाणा, चांडिगढ़, राजस्थान और दिल्ली भेजी जाती है। बखडा डैम बनने के बाद नदी अपना स्वाभाविक बहाव खो चुका है। साठ के दशक में बखड़ा डैम बना-जिसमें 20,290 एकड़ वनभूमिं, 23,863 एकड़ कृर्षि भूमिं जलमग्न हो गया। इस परियोजना से उन्ना तथा मांड़ी जिला की जमीन भी डूब गयी। 371 गांव जलमग्न हुए। बिलासपुर शहर जहां 7,206 परिवारों की 36,000 आबादी भूमिहीन हो गयी। इसी तरह बासी परियोजना से भी लोग विस्थापित हुए। साठ साल के बाद भी इन विस्थापितों का पूनर्वास और पर्नास्थापन नहीं किया गया है। दूसरी ओर बखड़ा परियोजना से 2,850 मेगावाट, तथा बासी परियोजना से 960 मेगावाट बिजली उत्पादित कर सरकार देश  को विकसित देश  होने का परिचय दे रहा है। सतलुज में और भी परियोजनाओं को उतारा जा रहा है। एक बृहद परियोजना बखड़ा के उतरी भाग पर निर्माणधीन है। एनटीपीसी हाईड्रो प्रोजेक्ट, काॅल डैम 1000 मेगावाट जल्दी ही शुरू होने वाला है। रामपुर में हाईड्रो प्रोजेक्ट 800 मेगावाट एसजेवीएन भी निर्माणधीन है। वहीं लाहिरी हाईड्रो परियाजना भी शुरूआती दौर में है। 
इन परियोजनाओं के कारण किनौर में सतलुज व बासपा नदी पूर्ण रूप से भूमिगत हो जाएगी। भूमिगत सुरंगों के  उपर स्थित सम्पूर्ण क्षेत्र जर्जर हो जाएगा जिस से यहां का पर्यावरण संतुलन डगमगा जाएगा। सतलुज जल संग्रहण क्षेत्र का 90 फीसदी भाग ’ाीत मरूस्थलीय होने के कारण यह जल संग्रहण क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील व जोखिम भरा है। पूजिपतियों तथा कारपोरेट घरानों ने  किनौरवासियों से सतलुज के पानी का अधिकार छीना चुका है। जिनती परियोजनाएं इस जलसंग्रहण +क्षेत्र में बनाये जा रहे हैं नदियों के बुंद-बंुद पानी कंपानियों के कब्जे में होता जा रहा है।
 पहाड़ पर रोड़ बनाने की प्रक्रिया जारी है-पहाड़ पर अब जंगल-झाड़, पर्यावरण नहीं, अब यहां कंपनियों की गाडि़यां दौडेगीं 

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