कल 25 अप्रैल 2013 को खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड के बिकवादाग में आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने सरहुल मिलन समारोह रखा था। मैं गाड़ी भाड़े में ले कर जा रही थी। रांची से 13 किमी की दूरी में पेट्रोल पंम्प में तेल 700 का भरे । पैसा देने के लिए बैग खोली। बैग में मात्र 50 ही रूपया था। मेंरे साथ और तीन साथी थे-सबसे पूछी आप के रूपया है तो अभी दे दीजिए। किसी के पास नहीं था। पेट्रोल पंम्प वाला -को बोले बाद में ला कर दे देगें, नहीं माना। बोला गाड़ी साईड में खड़ा कर दीजिए। मैं बहुत pareshan थी। अगर घर वापस लौटती हुं पैसा लेने तो आने-जाने में एक घंटा और समय लग जाएगा। गांव यहां से 100 किमी दूर जाना है। समारोह में दूर दूर गांव के लोग आऐगें। वहां भी समय से पहुंचना है। मैं इसी चितंा में गाड़ी में बैठी थी।
एक मोटर साईकिल में दो युवक आये, अपना मोटर साईकिल में तेल भरे और जाने लगे। जाते जाते जो चला रहा था-मुझ को देख कर गाड़ी स्लो किया, बोला आप को कहीं देखा देखा लग रहा है। मैं गाड़ी से उतरी, उनसे मिले। बोला कैसे हैं-दीदी? मैं ठीक हैं। पूछा आप यहां? मैं हां-जाना है गांव मिटिंग में। लेकिन एक समस्या में फंस गये। पैसा मेरा छुट गया घर में तेल भर लिए हैं और देने के लिए नहीं हो रहा है। अब सोच रहे हैं घर वापस लौटेगें और पैसा लेकर आऐंग।
युवक बोला-दीदी आप चिंता मत कीजिए हम पैसा दे दे रहे हैं यह कहते हुए वह पूछा पम्प वाले से, कितना देना है? 700, वह युवक पैसा पेमेंट कर दिया। मैं उनको सिर्फ देखते रही। कौन है? क्या नाम है? कहां का है? मन में दौड़ता रहा, लेकिन मैं कुछ पूछ नहीं सकी। मेरा गला भर गया, आंख नम हो गया। वह मेरे करीब आ कर बोला दीदी आप को रास्ता में और पैसा का जरूरत होगा इसको रखिये कहते हुए मेरे बैग में पैसा डाल दिया। मैं कुछ कहती तब तक डाल दिया और बोला-दीदी जा रहे हैं छोटा भाई को परीक्षा लिखवाने ले जा रहे हैं। मैं बोली-मुझ को आज अहसास हुआ कि जो सामाज के लिए काम करता है-सामाज उनके साथ होता है।
मैं उन से उसका मुबाईल ना0 मांगी लेकिन वह देना नहीं चाह रहा था, इंनकार करने लगा। लेकिन मेरे जिद्व करते हुए मेरा मोबाईल उनके हाथ में दी कि आप का नंम्बर सेभ कर दीजिए। तब वह अपना नंम्बर डायल किया मेरा मोबाईल से और बोला -दीदी यही है। मैं उनका नाम भी नहीं जान रही थी-इसलिए उनका नंम्बर को -पैसा दिया- के नाम से सेभ कर ली। वह चला गया।
इस घटना को पेट्राल पंम्प वाले भी देखे रहे थे। सभी के चेहरे में एक अजीब मुस्कान थी-उस युवक के बारे सोच रहे थे सभी। मेरे साथियों ने पूछा? वो कौन था? कहां का है? मैं बोली-नहीं जानती हुं कौन है? कहां का है? यह भी नहीं पता।
सभी उन दोनों लड़कों के बारे अपनी तरह से सोचने लगे। आखिर इन्होंने क्यों पैसा दिया? जाते जाते मैं अपना बैग देखी-कितना पैसा डाला है-मैं देख कर हैरान रही-1300 रूपया दृ मैं बार बार गिनने लगी। साथियों को दिखाई...1300 रूपया। अब सभी सोचने लगे-वह कौन है? जरूर कोई नौकरी करने वाला है। एक साथी बोली-नहीं वह कोई राजनीतिक पार्टी का होगा। मैं बोली नहीं-राजनीतिक पार्टी का होता तो-इतना रूपया नहीं देता। हम चारों गाड़ी में अपनी अपनी तरह से सोच रहे थे-बोल रहे थे।
गांव समय से पहले पहुंचे। मन में वही दोनो घुम रहे थे सवाल वही चल रहा था। कार्यक्रम शुरु हुआ। इसी बीच पायनियर अंग्रेजी अखबार के रिपोटर फोन किये-पूछे दीदी नगड़ी में फिर कुछ हुआ है क्या? खबर है चल रहा है वहां कुछ विवाद फिर खड़ा हुआ है। मैं बोली मुझ को नहीं पता-मैं अभी तो गांव में हुं। तब तक मुझे अपनी बात रखने के लिए बुला लिया गया। मैं अलोका को बोली-नगड़ी फोन करो-वहां क्या हुआ है पूछो।
मैं सभा में अपनी बात रखी इसी बीच अलोका नगड़ी नंदी कच्छप को फोन की पूछने के लिए कि -वहां क्या हुआ?ं नंदी बोली-नहीं कुछ तो नहीं हुआ है। तब नंदी जी बोली-आप लोग कर्रा गये हैं?
‘’ााम को सात बजे घर लौटे। मेरे मन में वहीं चल रहा था। मैं नंदी जी को फोन लगायी। हाल-चाल दोनों एक दुसरे से पूछे। नंदी बोली सरहुल के दिन आप को घर बुलाने के लिए मैं कई बार फोन की लेकिन लगा ही नहीं। तब वो पूछी कब लौटे दीदी कर्रा से? मैं पूछी आप को कैसे पता कि मैं कर्रा गयी थी? बोली शानियेल ल आया था -बोला दीदी से मुलाकात हुआ था-वो कर्रा जा रही थी।
मैं पूछी कौन शानियेल ? नंदी बतायी वह सतरंजी में रहता है। वहीं बताया कि आप कर्रा जा रहे थे। तब मैने नंदी जी को पूरा कहानी सुनाई-कि आज क्या हुआ था। हां शानियेल तिग्गां।
हां शानियेल जैसा लोग भी हैं-क्या मैं शानियेल जैसे लोगों का मेरे उपर जो भरोसा और प्यार है-क्या मैं खरा उतर सकती हुं???? आप लोगों का भरोसा और प्यार ही मेरी ताकत है।