Wednesday, April 24, 2013

हां शानियेल जैसा लोग भी हैं-क्या मैं शानियेल जैसे लोगों का मेरे उपर जो भरोसा और प्यार है-क्या मैं खरा उतर सकती हुं???? आप लोगों का भरोसा और प्यार ही मेरी ताकत है।


कल 25 अप्रैल 2013 को खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड के बिकवादाग में आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने सरहुल मिलन समारोह रखा था। मैं गाड़ी भाड़े में ले कर जा रही थी। रांची से 13 किमी की दूरी में पेट्रोल पंम्प में तेल 700 का भरे । पैसा देने के लिए बैग खोली। बैग में मात्र 50 ही रूपया था। मेंरे साथ और तीन साथी थे-सबसे पूछी आप के रूपया है तो अभी दे दीजिए। किसी के पास नहीं था। पेट्रोल पंम्प वाला -को बोले बाद में ला कर दे देगें, नहीं माना। बोला गाड़ी साईड में खड़ा कर दीजिए। मैं बहुत pareshan  थी। अगर घर वापस लौटती हुं पैसा लेने तो आने-जाने में एक घंटा और समय लग जाएगा। गांव यहां से 100 किमी दूर जाना है। समारोह में दूर दूर गांव के लोग आऐगें। वहां भी समय से पहुंचना है। मैं इसी चितंा में गाड़ी में बैठी थी। 
एक मोटर साईकिल में दो युवक आये, अपना मोटर साईकिल में तेल भरे और जाने लगे। जाते जाते जो चला रहा था-मुझ को देख कर गाड़ी स्लो किया, बोला आप को कहीं देखा देखा लग रहा है। मैं गाड़ी से उतरी, उनसे मिले। बोला कैसे हैं-दीदी? मैं ठीक हैं। पूछा आप यहां? मैं हां-जाना है गांव मिटिंग में। लेकिन एक समस्या में फंस गये। पैसा मेरा छुट गया घर में तेल भर लिए हैं और देने के लिए नहीं हो रहा है। अब सोच रहे हैं घर वापस लौटेगें और पैसा लेकर आऐंग। 
युवक बोला-दीदी आप चिंता मत कीजिए हम पैसा दे दे रहे हैं यह कहते हुए वह पूछा पम्प वाले से, कितना देना है? 700, वह युवक पैसा पेमेंट कर दिया। मैं उनको सिर्फ देखते रही। कौन है? क्या नाम है? कहां का है? मन में दौड़ता रहा, लेकिन मैं कुछ पूछ नहीं सकी। मेरा गला भर गया, आंख नम हो गया। वह मेरे करीब आ कर बोला दीदी आप को रास्ता में और पैसा का जरूरत होगा इसको रखिये कहते हुए मेरे बैग में पैसा डाल दिया। मैं कुछ कहती तब तक डाल दिया और बोला-दीदी जा रहे हैं छोटा भाई को परीक्षा लिखवाने ले जा रहे हैं। मैं बोली-मुझ को आज अहसास हुआ कि जो सामाज के लिए काम करता है-सामाज उनके साथ होता है।
मैं उन से  उसका मुबाईल ना0 मांगी लेकिन वह देना नहीं चाह रहा था, इंनकार करने लगा। लेकिन मेरे जिद्व करते हुए मेरा मोबाईल उनके हाथ में दी कि आप का नंम्बर सेभ कर दीजिए। तब वह अपना नंम्बर डायल किया मेरा मोबाईल से और बोला -दीदी यही है। मैं उनका नाम भी नहीं जान रही थी-इसलिए उनका नंम्बर को -पैसा दिया- के नाम से सेभ कर ली। वह चला गया। 
इस घटना को पेट्राल पंम्प वाले भी देखे रहे थे। सभी के चेहरे में एक अजीब मुस्कान थी-उस युवक के बारे सोच रहे थे सभी। मेरे साथियों ने पूछा? वो कौन था? कहां का है? मैं बोली-नहीं जानती हुं कौन है? कहां का है? यह भी नहीं पता। 
सभी उन दोनों लड़कों के बारे अपनी तरह से सोचने लगे। आखिर इन्होंने क्यों पैसा दिया? जाते जाते मैं अपना बैग देखी-कितना पैसा डाला है-मैं देख कर हैरान रही-1300 रूपया दृ मैं बार बार गिनने लगी। साथियों को दिखाई...1300 रूपया। अब सभी सोचने लगे-वह कौन है? जरूर कोई नौकरी करने वाला है। एक साथी बोली-नहीं वह कोई राजनीतिक पार्टी का होगा। मैं बोली नहीं-राजनीतिक पार्टी का होता तो-इतना रूपया नहीं देता। हम चारों गाड़ी में अपनी अपनी तरह से सोच रहे थे-बोल रहे थे। 
गांव समय से पहले पहुंचे। मन में वही दोनो घुम रहे थे सवाल वही चल रहा था। कार्यक्रम शुरु  हुआ। इसी बीच पायनियर अंग्रेजी अखबार के रिपोटर फोन किये-पूछे दीदी नगड़ी में फिर कुछ हुआ है क्या? खबर है चल रहा है वहां कुछ विवाद फिर खड़ा हुआ है। मैं बोली मुझ को नहीं पता-मैं अभी तो गांव में हुं। तब तक मुझे अपनी बात रखने के लिए बुला लिया गया। मैं अलोका को बोली-नगड़ी फोन करो-वहां क्या हुआ है पूछो।
मैं सभा में अपनी बात रखी इसी बीच अलोका नगड़ी नंदी कच्छप को फोन की पूछने के लिए कि -वहां क्या हुआ?ं नंदी बोली-नहीं कुछ तो नहीं हुआ है। तब नंदी जी बोली-आप लोग कर्रा गये हैं? 
‘’ााम को सात बजे घर लौटे। मेरे मन में वहीं चल रहा था। मैं नंदी जी को फोन लगायी। हाल-चाल दोनों एक दुसरे से पूछे। नंदी बोली सरहुल के दिन आप को घर बुलाने के लिए मैं कई बार फोन की लेकिन लगा ही नहीं। तब वो पूछी कब लौटे दीदी कर्रा से? मैं पूछी आप को कैसे पता कि मैं कर्रा गयी थी? बोली शानियेल ल आया था -बोला दीदी से मुलाकात हुआ था-वो कर्रा जा रही थी। 
मैं पूछी कौन शानियेल ? नंदी बतायी वह सतरंजी में रहता है। वहीं बताया कि आप कर्रा जा रहे थे। तब मैने नंदी जी को पूरा कहानी सुनाई-कि आज क्या हुआ था। हां शानियेल  तिग्गां।
हां शानियेल  जैसा लोग भी हैं-क्या मैं शानियेल   जैसे लोगों का मेरे उपर जो भरोसा और प्यार है-क्या मैं खरा उतर सकती हुं???? आप लोगों का भरोसा और प्यार ही मेरी ताकत है। 

Monday, April 22, 2013


Saturday April 20, 2013



ASSET- Supreme court says industrial ventures can’t be established without Gram Sabha’s nod.
New Delhi- With tribles being displaced due to industrialization and mining, the Supreme Court has held they have right to maintain relationship with their land, which is their most important asset.
The apex court said social, political and cultural rights of indigenous people must be protracted and any industrial venture cannot be established in their areas without approval of their Gram Sabha.
Land is their most important natural and valuable asset and imperishable endowment from which the tribal derive their sustenance, social status, economic and social equality, permanent place of abode, work and living. Consequently tribes have great emotional attachments to their lands. A bench handed by Justice Aftab Alam said.
Scheduled Tribes (STs) and other Traditional Forest Dweller (TFDs) residing in Scheduled Areas have a right to maintain their distinctive spiritual relationship with their traditionally owned or other wise occupied and used lands the beanch said.

Saturday, April 20, 2013

The apex court said social, political and cultural rights of indigenous people must be protracted and any industrial venture cannot be established in their areas without approval of their Gram Sabha.


Tribes can maintain relationship with land
Hindustan times Ranchi- Saturday April 20, 2013
ASSET- Supreme court says industrial ventures can’t be established without Gram Sabha’s nod.
New Delhi- With tribles being displaced due to industrialization and mining, the Supreme Court has held they have right to maintain relationship with their land, which is their most important asset.
The apex court said social, political and cultural rights of indigenous people must be protracted and any industrial venture cannot be established in their areas without approval of their Gram Sabha.
Land is their most important natural and valuable asset and imperishable endowment from which the tribal derive their sustenance, social status, economic and social equality, permanent place of abode, work and living. Consequently tribes have great emotional attachments to their lands. A bench handed by Justice Aftab Alam said.
Scheduled Tribes (STs) and other Traditional Forest Dweller (TFDs) residing in Scheduled Areas have a right to maintain their distinctive spiritual relationship with their traditionally owned or other wise occupied and used lands the beanch said.
Referring to Forest Rights Act, the apex court said the law intends to protect custom, usage, forms, practices and ceremonies, which are appropriate to the traditional practices of forest dwellers.
Of late, we have realized forests have the best chance to survive if communities participate in their conservation and regeneration measures. The Legislature also has addressed the long standing and genuine felf need to granting a secure and inalienable right to those communities whose right to life depends on right to forests and thereby strengthening the entire conservation region the bench said.  
The Court made the observation while adjudicating a case on mining in Nayamgiri hills of Odisha.
The apex court directed the state government to place issues concerning individual , commummity, cultural and religious claims of Sts and TFDs before the Gram Sabha which would take decision on the project.
Sustainable development is an integral part of the fundamental rights conferred on the citizens of India by the Constitution and cannot be allowed to get hampered with by the environmental degradation. The Supreme Court has said.
The satellite imageries placed before the court with regard to the environmental damage and destruction has shocked the judicial conscience” the bench said while referring to illegal mining in the state.”


Wednesday, April 3, 2013

2012 कई अर्था में मेरे लिए जीवन का bishesh वर्ष रहा। part---2


2012 कई अर्था में मेरे लिए जीवन का bishesh  वर्ष रहा। part---2
सामाजिक कार्यों में आज तक का अनुभव बहुत कम था। जंगल-जमीन-नदी-पहाड़, गांव समाज, भाषा-संस्कृति, इतिहास यही हमारा परंपरा और पहचान है। मैं जिस परविार से आती हुं उस परिवार में हम बच्चों से पहले न तो कोई लिखने जानता था, न ही पढ़ने जानता था। दादा पर दादा से आज तक इस परिवार या कहें इस खनदान में सिर्फ हल चलाने, बैल-भैंस चराने, खेत जोतने, खेती करने, जंगल-झाड़ साफ करने, नदी-नाला, झरनों से मच्छली पकड़ने, अन्न उपजाने, मंदर बचाने, गीत गाने-नाचने, पेड़ लगाने ही जानते थे। मेरा परिवार किसी भी राजनीतिक पार्टी के करीब नहीं रहा। हां मेरी मां मेरे बारे खुब बोलती थी-कि मेरी बेटी खुब पढ़ेगी लिखेगी और इंदिरा गांधी की तरह कुर्सी पर बैठ कर desh चलाएगी। जब मैं तीसरा क्लास में थी -मेरा गांव का जमींदार परिवार जिसको होदार के नाम से लोग जानते थे-ने कमडारा प्रखंड के सालेगुटू के साहू परिवार को मेरे गांव का मालिक बनाने के लिए मेरे पिताजी को सादा कागज पर अंगुठा का nishana लगवाया लिया। उस सादे कागज में बाद में लोगों ने क्या लिखा यह तो आज तक मेरा परिवार नहीं जानता है, लेकिन इसी सादा कागज पर मेरे पिताजी को लगवाये अंगुठा का nishana ने गुमला कोर्ट में मेरे परिवार का करीब 15 एकड़ जमीन का मालिक सालेगुटु का साहू को बना दिया। मेरा पिताजी -जो इस जमीन का मालिक था अब भूंमिहीन बन गया। 
mujhe याद है-इस जमीन को वापस पाने के लिए मेरा परिवार कोर्ट में अर्जी डाला। कोर्ट में दो-तीन साल तक मुकदमा चला। मुकदमा लड़ने के लिए मेरा परिवार ने घर में जितना मुर्गी चेंगना, गाय-बैल, सुवर, बकरी थें सबको बेच दिया। कुछ जमीन बचा था उसको भी बेच दिया केस लड़ने के लिए। ताकि साहू द्वारा कब्जा किया जा रहा जमीन वापस मिल जाए। पिताजी और बड़ा भाई गुमला कोर्ट हाजरी देने गांव से पैदल ही जाते थे। अपने साथ खाना बनाने के लिए डेगची, सोने के लिए फटा बोरा, चावल और दाल दो बेला के लिए छोला में ले जाते थे। सुबह निकलते थे। दिन भर चलते थे sham को गुमला पहुंचते थे। रात को कहीं किसी पेड़ के नीचे खिचड़ी बना कर खा कर सो जाते थें। लेकिन मेरे परिवार को न्याय नहीं मिला। मेरे पिता स्वा0 जूरा बरला और मा हिसिया बरला पूरी तरह भूमिंहीन हो गये थेंंंं ।
हमारे परिवार के पास अब जीने के लिए कुछ भी नहीं बचा। मेरे पिता जी दूसरे गांव के किसानों के घर में धांगर बना(मजदूर)। मेरा बड़ा भाई गांव के दूसरे किसानों के घर में मूजदूर बना। मां और मछिला बड़ा भाई रांची ‘’ाहर में दाई-नौकरानी बनीं। भाई कुली बना। मैं और मुझ से बड़ा भाई घर में रह गये। खाली घर कुछ भी नहीं। सोने के लिए एक फटा मुडुवा पत्ता का चटाई, और फटा लेदरा ही रह गया था। गांव के किसानों के खेत में धान रोपना, घांस निकाना, बिंडा उखाड़ना यही मजदूरी और जीवन का सहारा बना। गांव के सीमा के भीतर के तमाम पेड़-पौधे, घांस-फूस, साग-पात जिंदगी को थामने वाला आधार रहा। नदी-झरना, जंगल-पर्वत, सभी तरह के जीव-जंतु, pashu-पक्षि, जानवर जीवन के साथी बने।
जेठ का चिलचिलाती तापती धूप और सावन-भादो माह झमाझम बरसा के बीच कड़कते बिलजी जिंदगी में जीने के लिए लड़ने और बढ़ने को पे्ररित करता रहा। बिना मां-बाप, बिना परिवार के मार्ग दर्’ान के बावजूद अपना पढ़ाई जारी रखी। खाना-पिना नहीं मिला फिर भी मेरा कदम कभी नहीं रूका। कमडारा के ग्लो’ाोप मेमोरियल उच्चविद्यालय से आठवीं कक्षा पास कर स्वंय ही अपना सार्टिफिकेट निकाल कर रांची चली आयी। रांची मैं कोई ठौर ठिकाना नहीं था। बस मां पीपी कमपांउड में सरदार के घर में नौकरानी है और भाई कुली है ‘इसी सोच के साथ गांव से ’ाहर में आये । 
रांची shahar यहां खेत-टांड, जंगल-पेड़, नदी-झरना कुछ नहीं है। सिर्फ बड़ा बड़ा बिलडिंग है। रोड़ है जहां दिन-रात लोगों की भीड़ है। रोड़ में जिधर देखो-सरपट सिर्फ गाडियां गाडियां। डर के मारे रोड में चलना भी मु’िकल है। मेरी मां भी अपनी दुनिया यहां बना ली। उनके मियां-बीबी और उनका परिवार ही उनका अन्नदाता बन गया है। काम से थोड़ी फूरसत मिला तो-पीपी कमपांउड में अमीरों के घरों में काम करने वाले नौकर-चाकरों से मुलाकात किये। एक दूसरे से अपना दुख बांटें। भाई के दोस्त आस पास साथ में काम करने वाले कुली, माली, धोबी यही रिस्तेदार भी हैं। मेरे भी अब यही मेरे दोस्त और पड़ोसी भी बने।
स्कूल में नाम लिखाना था नौंवी कक्षा में। मेरी मां ले गयी नाम लिखवाने बेथेसदा बालिका उच्चविद्यालय में। यहां की प्रिंसिपल मुझे अपने घर में रखना चाहती थी और पढ़ना चाहती थी। लेकिन मेरी मां को लगा कि -मैं स्वंय नौकरानी हुं और मेरी बेटी भी नौकरानी बन जाएगी। ‘’ायद यही सोच कर मां ने मुझे प्रिंसिपल के साथ होस्टल में नहीं रखी। जब बात नहीं बना तो मां मुझको संतमग्र्रेट बालिका उच्चविद्यालय ले गयी। यहां मिस कोनगाड़ी मां का कहानी सुन कर मुझे स्कूल में रख ली। 
अब जिंदगी में नया मोड़ आया। shahari जीवन। सभी नया। बोली-भाषा, रहन-सहन सभी नया। स्कूल में तो नाम लिखवाये अब जीने का रास्ता भी तला’ाना था। हमारे ही गांव की एक महिला ने मुझे रांची मेन रोड़ के सुजाता सिनेमा हाल के सामने एक पुलिस चैकी में सुबह-sham वर्तन धोन-घर साफ करने का नौकरी लगा दी। पुलिस मैंने कभी नहीं देखी थी। छावनी के बाहर दिन-रात एक पुलिस बंदूक कंधा में ढ़ोकर कर खड़ा रहता था। बंदूक देख कर डर लगता था। पुलिस देख कर भी बहुत डर लगता था। रोड़ पार होने के लिए भी डर लगता था। हिंन्दी से बात करने के लिए भी डर लगता था। गांव के लोग काले काले होते हैं यहां तो सभी गोरे लोग हैं। 
जितने पुलिस यहां छावनी में थे एक भी हम लोग जैसा नहीं दिखता था। सभी गोर गोर थे। मैं डरती थी इसलिए भाई भी मेरे साथ में आता था। पुलिस वालों को दिन का बचा हुआ भोजन हमारे लिए रात को डीनर होता था। और उनका रात का बचा हुआ भोजन मेरे लिए स्कूल जाने के पहले आहार होता था। कभी खाना नहीं मिला तब छोटा सा टीन का डब्बा में उपला जला कर खाना बना लेती थी। रोटी खाने का मन होता था-तो टीन का ढ़कन में रोटी पका लेती थी। नौंवी क्लास पास किये। दसवीं क्लास पहुंचे। फीस अब पहले से ज्यादा देना है। खर्च भी बढ़ा। अब मैं स्कूल जाने के पहले और स्कूल से लौटकर तीन-चार घरों में वर्तन धोने की रौकरी कीं । एक लड़की जब कमजोर तबके से आती है तब उनको किन किन संकटों से गुजरना पड़ता है। यह भी नजदीक से महसूस करने का अवसर मिला। कई घटनाएं एैसे हैं जो मुझे hamesha  संघर्ष करने के लिए prerit करता है। अपने जीविका के लिए खुद ही रास्ता talashana , उस रास्ते पर बढ़ना, जिस रास्ते पर आप जा रहे हैं-यह बिकुल अनजान भी है। लेकिन जाना तो है ही। 
लोग मुझ से पूछते हैं-आप कैसे सामाज सेवा के क्षेत्र में आयी? मैं इस सवाल का जवाब एक shabad में नहीं दे सकती हूं। इस सवाल का जवाब मुझे देना न पड़े इसीलिए मैं इतनी लंबी यात्रा करवा रही हुं। स्कूली जीवन के बाद कांलेज की जिंदगी भी स्वंय ही अपना रास्ता talashna । कभी कभी लगता है-हर कदम में कांटे ही कांटे थें जितना कदम आगे बढ़ाती थी-पैर लहूलुहान हो जाता था। लेकिन हर कांटों ने जीना सिखाया। एम काॅम कैसे पास की। पता भी नहीं चला। मन में एक ही सोच था-मेरे अनपढ़ मां-बाप को लोगों ने सादा कागज पर अंगुठा का nishan लगवार कर, मेरा परिवार को बेघर कर दिया। मां बाप और तीन बड़े भाईयों के होते भी मैं अनाथ की तरह रही। न जिंदगी का disha निर्देsh  मिला और न ही प्यार ही। 
जब मैं एम काॅम पास की और नौकरी की talash कर रही थी 1995-96 में। इस समय कोयल करो हाईडल पावर प्रोजेक्ट को प्ररंभ्म करने की घोषणा बिहार सरकार ने की। विदित हो कि कोयल कारो प्रोजेक्ट का विरोध स्थानीय ग्रामीण 1956-57 से ही shuru कर दिया थी। कोयल कारो हाईडल पावर प्रोजेक्ट बनने से गुमला जिला और वर्तमान खूंटी जिला के लगभग 2.50 लाख ग्रामीण विस्थापित होते। 55 हजार एकड़ कृर्षि भूमिं पानी में डूब जाता। 27 हजार एकड़ जंगल डैम में समा जाता। करोडो पेड़-पौधे(जंगल के आलावे) पानी में डूब जाते। कोयलकारो जनसंगठन के बैनर तले कोयल और कारो क्षेत्र के ग्रामीण विस्थापन का विरोध किये। लोगों ने समझौता नहीं किया। जमीन किसी भी कीमत में नहीं देने का संकल्प लिया। जान देगें -जमीन नहीं देगें का संकल्प लिया। 2001 में राज्य बनने के बाद 2 फरवारी को जान देगें-जमीन नहीं देगें का संकल्प को पूरा भी किया। तत्कालीन झारखंड सरकार ने कोयलकारो जनसंगठन पर पुलिस फायरिंग किया। 8 आदिवासी-मूलवासियों ने shahadat दी और 33 लोग घायल हुए