संघर्ष संकल्प गोष्ठी
9 जुलाई 2022 एसआरडीसी-रांची
आइए मिल कर झारखंड को बचाएंगें। आप सभी जानते हैं कि हमारे पूर्वजों ने संाप, भालू, बाघ, बिच्छू जैसे खुंखार जंगली जानवरों से लड़कर झारखंडी की धरती को आबाद किया है। एक नजर में अपने राज्य को देखें-झारखंड-कुल आबादी-3 करोड,, 29 लाख, 88 हजार, 134 है। कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 79,71,400 वर्ग किमी है। इसकं 30 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि है, इसका 22.6 प्रतिशत क्षेत्र में बोया गया क्षेत्र है। 29.3 प्रतिशत वन क्षेत्र है । जितना खाद्यान्न की जरूरत है, उतना उत्पादन नहीं कर रहा है। इसमें खेती योग्य जमीन 2039000 हेक्टेयर है, जिसमें 1795000 हेक्टेयर में फसल लगायी जाती है। खेती की जाने वाली जमीन में मात्र 195000 हेक्टेयर पर ही सिंचाई होती है। बाकी जमीन में पानी रहते हुए भी सरकार सिंचाई का व्यवस्था नहीं रही है।
विकास के नाम पर 2 लाख एकड़ से अधिक जमीन अधिग्रहण हो चुका है। खेती की जमीन तेजी से घटते जा रही है। 2 करोड़ से अधिक लोग बडे परियोजनाओं और शहरीकरण से विस्थापित हो चुके है। राज्य में बड़ी संख्या में विस्थापितों की संख्या हैं, जिनका सामाजिक, आर्थिक स्थिति बिकुल खाराब है। 2 लाख से अधिक लोग दूसरे राज्यों में रोजगार की तालाश में पलायन कर गये हैं। राज्य के आदिवासी, मूलवासी, किसानों की जनसंख्या तेजी से घटते जा रही है। दूसरी और बाहर आबादी के आने से राज्य में दूसरे समुदाय की आबादी तेजी से बढ़ते जा रही है।
झारखंड आखिर किनके लिये बना है?
आज राज्य बनने के बाद लगातार आदिवासी, मूलवासी समुदाय के उपर चारों ओर से हमला हो रहा है, राज्य बनने के बाद आज तक राज्य और केंन्द्र में जितने भी संवैधानिक कानूनांे में संशोधन या फेर-बदल किया गया, सीएनटी एक्ट 1908, एसपीटी एक्ट 1949, पांचवी अनूसूचि, पेसा कानून 1996, सभी को तकनीकी रूप से अधिकार को कमजोर करने का काम किया है।
केंन्द्र सरकार और पिछली राज्य सरकार ने भूमि बैंक बनाया, और 21 लाख एकड़ से अधिक समुदायिक संपत्ति/जमीन को भूमि बैंक में शामिल कर दिया। आज धड़ले से जमीन पर गैरकानूनी कब्जा का धंधा चरम पर है। जमीन का दस्तावेज आॅनलाइन होने के बाद रातों-रात जमीन का असली मालिक का नाम हटा कर किसी दूसरा व्यक्ति का नाम दर्ज किया जा रहा है। जमीन के खतियान जैसे मूल दस्तावेजों में भारी छेड-छोड किया जा रहा है। सरकार द्वारा नित नये कानून लाकर आदिवासी, मूलवासी, किसानों के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारों का क्षरण और कमजोर करके पूुजिपतियों और कारपोरेट उद्वोगों के हित को पूरा करने जा रही है।
आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटी अधिकार, 5वीं अनुसूचि के अधिकारों सहित 1932 के खतियान में प्रावधान अधिकारों का कड़ाई से पालन करने की मांग, साथ ही पांचवी अनूसूचि क्षेत्र, एवं सीएनटी एक्ट क्षेत्र के आदिवासी बहुल खूंटी जिला में ग्राम सभा को योजना को सही जानकारी दिये बिना, एवं ग्राम सभा की सहमति के बिना जबरन संपति कार्ड बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र की जमीन का ड्रोन सर्वेक्षण किया जा रहा था, का लगातार जून 2022 से ही विरोध किया जा रहा है। इस विरोध के बीच ही बागोदर के माले विधायक श्री विनोद सिंह ने 10 मार्च को विधान सभा में सवाल उठाए थे। श्री विनोद सिंह जी के सवाल का जवाब स्वंय मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने कहा-खूंटी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वामित्व योजना के तहत संपत्ति और जमीन का डिजिटल सर्वे डा्रेन के जरिए हो रहा था। यह काम केन्द्र सरकार द्वारा किया जा रहा था। इसको लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में संशय की स्थिति है, इसलिए राज्य सरकार इसे फिलहाल होल्ड करने का आदेश देता है। इन्होनें कहा-इस संबंध में जांच करायी जाएगी। बजट सत्र में सीएम के आदेश के तुरंत बाद ड्रोन सर्वे को होल्ड कर दिया गया है। लेकिन यह स्थायी रूप से नहीं।
आज आदिवासी समुदाय स्वामित्व योजना के तहत बनने वाली संपत्ति/प्रोपाॅटी कार्ड क्यों नहीं चाहती है, इस पर बहस होनी चाहिए, साथ ही देश के पांचवी अनुसूचि एवं छठी अनुसूचि क्षेत्र में आदिवासी, मूलवासी, दलित, किसान समुदाय के परंपरागत समुदायिक अधिकारों पर चर्चा करने की जरूरत है। साथ ही झारखंड के आदिवासी समुदाय के जंगल, जमीन से संबंधित सुरक्षा कवच सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंण्डारी खूंटकटी अधिकार, विलकिनसन रूल, पेसा कानून जैसे संवैधानिक अधिकारों पर भी चर्चा होनी चाहिए। इसके लिए झारखंड के इतिहास को आदिवासी समुदाय के एतिहासिक दृष्टिकोण से समझना होगा।
पांचवी अनुसूचि, पेसा कानून, सीएनटी एक्ट, एसपीटी सक्ट का कोई जिक्र नहीं है-
वर्तमान समय में केंन्द्र सरकार द्वारा लायी जा रही पयलट प्रोजेक्ट स्वामित्व योजना भी इसका हिस्सा है। जिसके तहत प्रोपाॅटी कार्ड देने के नाम पर आदिवासी समुदाय के समुदायिक जमीन को सरकार अपने हाथ में लेने की योजना बनायी है। वर्तमान में लाया जा रहा स्वामित्व योजना इसी उद्वेश्य का एक हिस्सा है। इससे सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, 5वीं अनूसूचि, पेसा कानून, मुंडारो खूुटकटटी अधिकार, हो आदिवासी समुदाय के विल किनसन रूल में प्रावधान परंपरागत समुदायिक अधिकार पूरी तरह समाप्त हो जाएगा।
आप सभी जानते हैं कि झारखंड में सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं 5वीं अनुसूचि क्षेत्र के आदिवासी बहुल जिला खूंटी में प्राॅपटी कार्ड बनाने के लिए ड्रोन से जमीन का सर्वे किया जा रहा था, आदिवासी सामाजिक संगठन लगातार इसका विरोध कर रहे हैं। बगोदर के माले विधायक श्री विनोद कुमार सिंह जी ने 10 मार्च को इस संबंध में विधान खूटी जिला 5वीं अनूसूचि क्षेत्र में आता है, बावजूद इसके ग्राम सभा की सहमति के बिना ही स्वामित्व योजना के तहत संपत्ति/जमीन का ड्रोन से सर्वे किया जा रहा है। इसके जवाब में स्वंय मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने कहा-खूंटी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वामित्व योजना के तहत संपत्ति और जमीन का डिजिटल सर्वे डा्रेन के जरिए हो रहा था। यह काम केन्द्र सरकार द्वारा किया जा रहा था। इसको लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में संशय की स्थिति है, इसलिए राज्य सरकार इसे फिलहाल होल्ड करने का आदेश देता है। इन्होनें कहा-इस संबंध में जांच करायी जाएगी। बजट सत्र में सीएम के आदेश के तुरंत बाद ड्रोन सर्वे को होल्ड कर दिया गया है। लेकिन यह स्थायी रूप से नहीं।
ऐसे समय में कल्याणकारी राज्य के नागरिकों, मानवधिकार के शुभचितकों और आम लोगों की जिम्मेदारी है कि सामाजिक न्याय और राज्य हित में जनविरोधी नितीयों पर चिंतन करके हस्तक्षेप करें।
स्वामित योजना के तहत जमीन मालिकों के जमीन का प्राॅपटी /संपत्ति कार्ड बनायी जाएगी। जिस जमीन का दस्तावेज लोग पेस कर पायेगें, उसी जमीन का संपत्ति कार्ड बना कर गांव वालों को दिया जाएगा। बाकी जमीन का क्या होगा? उसका कोई जिक्र नहीं है।
लैंण्ड रेकार्ड डिजिटालाइजेशन हो रहा है
डिजिटल इंडिया लैंण्ड रिकाडर्ड अधुनीकिरण कार्याक्रम के संबंध में सभी जानते हैं, फिर भी आप को सादर जानकारी दी जाती है कि अप्रैल 2020 को केंन्द्र सरकार द्वारा घाषित स्वमि
त्व योजना के तहत डिजिटल इंण्डिया लैंड रिकाॅर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम के तहत ड्रोन से गांवों की संपति का सवेक्षेण कर जीअईएस मानचित्र बनाये जाऐगें। साथ ही जमीन मालिको को प्राॅपटी कार्ड बना कर दिया जाएगा। ये जीआईएस नक्से और स्थानीय डेटाबेस ग्राम पंचायतों और और राज्य सरकार के अन्य विभागों द्वारा विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग किये जाएगें। इस स्वमित्व योजना का कई उदद्यों के साथ मूल उद्वेश्य एक राष्ट्र एक साॅफटवेयर (Digital Land Record, Digital Map ka ka Software ) व्यवस्था करना है।
इससे कई बड़े सवाल उभर कर आ रहे हैं-
1-आदिवासी सामुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक संपत्ति/धरोहर -जल, जंगल, जमीन जैसे भूईहारी खेत, डालीकतारी खेत, भूत खेता, पहनाई खेत, चरागल, सरना, मसना, ससनदीरी, हड़गड़ी, कब्रिस्तान, जहिरा, जाहेरस्थान, देवस्थान, अखड़ा, बांध, पोखरा, जतरा टांड जैसे बेलगान जमीन है। यह समाज की सामुदायिक संपत्ति है। सवाल है- स्वामित्व योजना के तहत इस धरोहर का प्राॅपटी कार्ड किसके नाम से बनेगा?
2- आदिवासी-मूलवासी समुदाय के सामुदायिक जमीन, जो खतियान पार्ट दो में, वीलेज नोट में, सीएनटी, एसपीटी एक्ट में, पेसा कानून में सामुदायिक स्वामित्व का प्रावधान है। ग्रामीण आदिवासी, मूलवासी, किसान समुदाय का जीवनशैली इसी ताना-बाना के साथ जीवांत है, इसमें गैर मजरूआ आम, गैरजरूआ खास, गैर मजरूआ जंगल-झाड़ी, नदी-नाला, सरना, मसना, हडगडी, जाहेर, देशाउली, ससनदीरी, अखड़ा, हड्रगडी, खेल मैदान, जतरा टांड आदि का भूमि बैंक में शामिल किया गया है। यह जमीन गांव का सामुदायिक संपत्ति है-इसका संपति/स्वामित्व कार्ड किसके नाम से बनेगा?
3- आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद 1932 के खतियान में भारी छेड़छाड़ हुआ है, जिसमें खतियान धारियों का नाम गलत दर्ज किया गया है। किसी में खाता संख्या गलत दर्ज है, किसी में असली जमीन मालिक को हटा कर दूसरे लोगों का नाम दर्ज कर दिया गया है । आॅनलाइन गलत अपडेट होने के कारण जमीन मालिक जमीन का रसीद नहीं काट पा रहे हैं। स्वामित्व योजना के तहत इस तरह के जमीन का प्राॅपर्टी /स्वामित्व कार्ड किसके नाम से बनेगा?
4-सीएनटी, एसपीटी एक्ट, पेसा कानून 1996, 1932 के खतियान में प्रावधान अधिकार,ं वन अधिनियम कानून 2006 एवं 5 वीं अनूसचित क्षेत्र में आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, जमीन पर इनके परंपरागत अधिकारों का प्रावधान किया गया है। के जंगल-जमीन, सामाजिक-संस्कृतिक मूल्यों पर प्रतिकूल असर होगा।
5-ये सभी गंभीर सवाल हैं-जमीन का आॅनलाइन व्यवस्था होने के बाद भारी संख्या में आॅनलाइन जमीन का लूट, नजायज कब्जा चल रहा है। इसको ठीक करने लिए आदिवासी, मूलवासी, किसान प्रज्ञा केंन्द्र से सीओ कार्यालय, सीओ कार्यलाय से अमीन के पास दौडतें दौड़ते दो-तीन साल बित गया, लेकिन गलती ठीक नहीं हो रहा है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
प्राॅपटी कार्ड-मकान के साथ, उनके सभी जमीन को एक में लिंक किया जाएगा, तब इसका संपति कार्ड बनेगा। (जिस जमीन पर ग्रामीण अपना मालिकाना हक साबित कर सकेगें, जिस जमीन का मालिकाना हक साबित नहीं कर पाऐगें उस जमीन को सरकार अपने नाम कर लेगी), जो डिजिटल नक्सा में रखा जाएगा।
स्ंापति कार्ड/प्राॅपटी कार्ड लागू होने से आदिवासी इलाके को निम्नलिखित खतरों का सामना भविष्य में करना होगा।
1-परंपरागत आदिवासी इलाके का डेमोग्राफी -भौगोलिक स्थिति पूरी तरह से बदल जाएगा।
2-5वीं अनुसूचि, सीएनटी, एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी एवं विलकिनसन रूल्स में प्रावधान गांव के सीमा के भीतर के गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाड़ी, परती-झारती, नदी-नाला आदि सामुदायिक जमीन पर बाहरी समुदाय का प्रावेश एवं कब्जा होगा।
3-प्रकृतिक जीवनशैली से जुड़े आदिवासी-मूलवासी, किसान, दलित समुदाय का परंपरागत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, आधार ध्वस्त हो जाएगा।
4-ड्रोन सर्वे पूरा होने के साथ ही गांव का डिजिटल नक्सा बनेगा, नक्सा डिजिटल होगा, तब खतियान भी डिजिटल होगा। तब सवाल है कि-आदिवासी-मूलवासी समुदाय को सामुदाचिक अधिकार देने के साथ ऐतिहासिक पहचान देने वाला 1932 (जिससे आधार माना जाता है) खतियान का अस्तित्व बना रहेगा? या स्वतः निरस्त हो जाएगा?
5-ड्रोन से सर्वे के बाद जमीन मालिकाना हक क्लेम या दावा करने के लिए ग्रामीणों से कहा जाएगा, तब जिस जमीन का मजगुजारी रसीद काटा जा रहा है, उस जमीन का फ्रूफ या सबूत पेस करेगें, लेकिन ग्रामीणों का सामुदायिक जमीन जिसका रसीद नहीं काटा जाता है, उसका क्या होगा?
6-ग्रामीण इलाके में बढ़ते शहरी, आबादी के कारण ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था, परंपरागत जलस्त्रोतों, वन व्यवस्था, जैव विविधता, एवं पर्यावरणीय व्यवस्था पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ेगा।
7-प्राॅपटी कार्ड योजना के तहत ग्रीमीण आदिवासी इलाके में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश होने से, राज्य में आदिवासी आबादी तेजी से घटेगी। परिणाम स्वरूप आदिवासी समुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति स्वतःकमजोर होगा।
आॅनलाइन खतियान में गलती के कारण बहुत से जमीन मालिक 4-5 वर्षों से जमीन का रसीद नहीं कटवा पा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ खतियान से परंपरागत रैयातों का नाम हटाकर रातों-रात पांजी टू में में जमीन मालिक का नाम बदल दिया जा रहा है। कम पढ़े-लिखे सीधे, साधे आदिवासी किसानों को नहीं समझ में आ रहा कि ये क्या हो रहा है? बड़ा सवाल है कि आखिर इसके लिए कौन जिम्मेवार है?।
इस तरह से आदिवासी-मूलवासी किसान, समुदाय से जमीन, जंगल निकलते जा रहा है। साथ ही समुदाय का सुरक्षा कवच सीएनटी, एसपीटी एक्ट, कमजोर होता जा रहा है। अब जमीन का लूट बढ़ेगा, परिवार और समाज में अशांति बढ़ेगा। इससे उत्पन्न परिस्थियों से विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी, भूख, गरीबी, भूमिहीन, अस्वस्थ्य, सूखा-आकाल एवं पर्यावरण प्रदूषण जैसे महामारी का सामना करना होगा।
हमारी मांगें-
1-केंन्द्र सरकार द्वारा काॅरपोरेट घराणों एवं पूंजिपतियों के लिए लायी जा रही स्वामित्व योजना के तहत प्राॅपटी/ संपत्ति कार्ड योजना का लागू नहीं किया जाए।
2-झारखंड में सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, ं 5वीं अनुसूचि एवं पेसा कानून में प्रावधान अधिकारों को कड़ाई से लागू किया जाए।
3-आदिवासी बहुल खूंटी जिला में प्राॅपटी कार्ड बनाने के लिए ड्रोन से जमीन /संपत्ति का सर्वे किया जा रहा था को होल्ड किया गया है, इसको पूरी तरह स्थायी रूप से रोका जाए।
4-रघुवर सरकार ने गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाड़ी जमीन को भूमि बैंक में शामिल किया है, इस भूमि बैंक को रदद किया जाए।
5-राज्य के सभी जलस्त्रोंतों, नदी-नाला, झील-झरना का पानी लिफट ऐरिगेशन के तहत पाइप द्वारा किसानों के खेतों तक कृषि विकास के लिए पहुंचाया जाए।
6-आॅनलाइन जमीन के दस्तावेजों का हो रहा ़क्षेड़-छाड़ एवं जमीन ko roka jayA
Niwedak -आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच,
मुंडारी खूंटकटी परिषद। संपर्क -दयामनी बरला-9431104386
तुरतन तोपनो-7091128043, फूलचंद मुंण्डा, हादु तोपना-9801705283, राजू लोहरा-6202988865, दयाल कोनगाड़ी-8797772125,