अर्सेलर मित्तल कंपनी द्वारा जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच का संर्घष
्र मित्तल कंपनी-अर्सेलर मित्तल कंपनी परियोजना
झारखंड सरकार के साथ अर्सेलर मित्तल कंपनी ने 8 अक्टोबर 2005 को एमओयू किया। एमओयू के तहत कंपनी सालाना 1.2 करोड़ टन स्टील निर्माण कारखाना बनाना चाहता था। परियोजना में कैप्टिव पावर प्लांट, आयर ओर खदान, कोयला खदान, टाउनशिप, जलापूर्ति के लिए जलस्त्रोत सहित बुनियादी ढांचा, माल ढोने के लिए रोड़, एवं रेलवे ट्रेक्स आदि के लिए जमीन लेने का प्रावधान था। इस परियोजना में कंपनी 40,000 करोड रूपये निवेश करने जा रही है।
कंपनी 5000 हेक्टेयर कारखाना स्टील निर्माण के लिए, 3000 हेक्टेयर कैप्टिव पावर प्लांट के लिए, 2000 हेक्टेयर टाउनशीप के लिए, एंसिलरी इकाइयों के लिए भी जमीन चाहिए । इसके आलावे बिजली की पारेषण लाइनों, संडकों, रेलवे लिंक, जल और अन्य सेवाओं की जरूरतों के लिए भी जमीन चाहिए।
लौह अयस्क की खदानें-एक अरब टन लौह अयस्क के भंडार जो 50 वर्षों के लिए पर्याप्त हो।
कोयले की खदानें-1.28 अरब टन कोयले के भंडार जो 50 वर्षों के लिए पर्याप्त हो।
मैंगनीज अयस्क--6 करोड़ टन मैंगनीज अयस्क 50 वर्षों के लिए पर्याप्त हो।
पानी--10,000 घन मीटर प्रति घंटा 60 लाख टन सालाना क्षमता के लिए। पूर्ण क्षमता पर 20,000 घन मीटर प्रति घंटे की आवश्यकता होगी।
कैप्टिव पावर प्लांट--2500 मेगावाट उत्पादन की योजना है।
उद्योग जगत में अर्सेलर मित्तल कंपनी को विश्व का स्टील जाएंट माना जाता है। इसके साथ झारखंड सरकार के एमओयू के साथ ही सरकार ने कंपनी के लिए जमीन तलाशना शुरू कर दिया। सबसे पहले कंपनी ने स्टील निर्माण के लिए मनोहरुपुर के आदिवासी ईलाके को चयन करने की कोशिश की। लेकिन ग्रामीणों को इसका आहट लगते ही विरोध करना शुरू कर दिया। इसके बाद सरकार ने कंपनी के लिए रांची जिला के कर्रा प्रखंड, तोरपा प्रखंड एवं रनिया प्रखंड के कई गांवों, एवं गुमला जिला के कमडारा प्रखंड के कई गांवों के जमीन को चिन्हित करके प्लांट स्थापित करने के लिए नक्सा तैयार किया। इसके साथ ही जमीन पर उतरने की तैयारी करने लगा था।
इस दौरान नरेगा योजना को लेकर बसिया क्षेत्र में इंसाफ टीम के साथी मजदूरों के साथ हो रहे अन्याय को लेकर दलालों और सरकार अधिकारियों के विरोध लड़ रहे थे। इसी बीच पता चला कि अर्सेलर मित्तल कंपनी खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड, तोरपा प्रखंड, रनिया प्रखंड और गुमला जिला के कमडारा प्रखंड के 50-60 गांवों को हटा कर स्टील निर्माण कारखाना बनाने के लिए जमीन अधिग्रहण करने जा रही है। इसकी जानकारी कंपनी द्वारा चिन्हित गांवों को दी गयी। सभी ग्रामीणों ने एक स्वर में इसका विरोध करना शुरू किया। सबके सहमति से संभावित विस्थापन के विरोध जनगोबंदी आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच के बैनर से शुरू हुआ। मंच ने एक बड़ी रैली-सभा 29 मई 2008 को राजभवन के पास किया। ग्रामीणों की बड़ी संख्या इस रैली में पहुंची थी।
इस रैली के समीक्षा बैठक जो कुलडा में हुआ था, हमलोगों ने यह महसूस करते हुए कि -इस ईलाके के सभी जाति-समुदाय, सभी वर्ग के लोग इस परियोजना से विस्थापित होगें। इसलिए आंदोलन का बैनर आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच का नाम को आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच किया जाए, ताकि सभी समुदाय की भागीदारी हो सके। इस निर्माय के साथ ही मित्तल कंपनी के विरोध जनआंदोलन 2006 से लगातार 2010 तक जोरदार चलता रहा। 2010 के फरवरी माह में श्री लक्ष्मी निवास मित्तल के अपने मुख्य कार्यालय लग्लजमवार्ग से बयान दिया-खूंटी-गुमला ईलाके में जनआंदोलन बहंुत मजबूत है, वहां जमीन अधिग्रहण करना संभव नहीं है। इसलिए अब मैं अपना परियोजना का साईड बदलूंगा।
लेकिन आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच अपने संघर्ष के साथ मैदान में डटा हुआ है। कोयल कारो परियाजना के विरोध संघषर््ारत कोयलकारो जनसंगठन के आधार पर ही आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच का मनना है-कि हम अपने पूर्वजों का एक इंच जमीन नहीं देगें, हम विकास विरोधी नहीं हैं-लेकिन हमारे इतिहास मिटा कर, गांव उजाडकर, विस्थापित कर, जंगल-पर्यावारण नष्ट कर, भाषा-संस्कृति नष्ट कर किसी तरह का विकास स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हमारा अस्तित्व, पहचान, भासा-संस्कृति, जंगल-पर्यावारण को किसी मुआवजा राषि से भरा नहीं जा सकता है, और न ही पूवर्नवासित किया जा सकता है। आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच जाति-धर्म एवं राजनीति से उपर उठकर हिन्दु-मुसलिम, सरना-ईसाई के सामुहिक ताकत ही लाखों लोगों को विस्थापित होने से समाज को बचा पाया है।
आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने राजनीति, जाति, धर्म से उपर उठर कर इस ईलाके के सभी जाति-धर्म, समुदाय की रक्षा की है। हजारों सरना-ससनदीरी, मसना, कब्रिस्थान, मंदिर, मषजिद, गिरजा घर की रक्षा की है। आंदोलन के दौरन भी हमारी समुदायिक एकता तोड़ने की पूरजोर कोशिश कंपनी समर्थकों ने की थी, लेकिन अपने जल-जंगल-जमीन, भाषा, संस्कृति की रक्षा के प्रति गोलबंद एकता को तोड नहीं सका।
आदिवासी -मूलवासी अस्तितवा रक्षा मंच का गठन २००६ में , झारखण्ड में देलीमिटेशन लागु करने का केँद्र ने प्रस्ताव लाया था, इस प्रस्ताव के तहत झारखंड के बिधान सभा में आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित २८ सीट में सात सीट , लोकसभा -५ आरक्षित सीट में एक सीट घटने का प्रस्ताव था. आरक्षित आदिवासी सीटों को कम करने का मतलब आदिवासी राजनितिक ताकत को कमजोर करना था, इस खतरे को देखते सामाजिक संगठनों के साथ हम लोगों ने आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच का गठन किये. और डेमिलिटेशन के बिरोध संघर्ष तेज किये. जब केंद्रीय चुनाव आयोग के चेयरमेन ने घोषणा किया , बर्तमान ब्यवस्था २०१९ तक रहेगा , इसी ब्यवस्था के तहत बिधान सभा और लोकसभा का चुनाव २०१९ तक सम्पन किया जायेगा। इस घोषणा तक आदिवासी अस्तित्वा रक्षा मंच भी मैदान में रहा।
२००५ में झारखण्ड सरकार ने आर्सेलर मित्तल कंपनी के साथ जमीन देने का mou साइन किया , तब जम्में बचने के लिए आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच फिर से मैदान में सक्रिय हो गया. मित्तल कंपनी जिन बर्तमान खूंटी जिला के तोरपा , रनिया एवं कर्रा प्रखंड के गांव तथा गुमला जिला के कामडारा प्रखंड के करीब ३८ गाओं को बिस्थपित कर १२ मिलियन टन का स्टील प्लांट स्थापित करने की योजना थी. मूलबसि बिदित हो की इस इलाके में आदिवासी, दलित सभी समुदाल रहते हैं. यही नहीं सभी खेती-बरी , जंगल , जमीन से जुड़े हुए हैं। आंदोलन में सबकी भागीदारी सुनुश्चित करने के लिए आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच का नाम आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच किया। मंच आज भी किसानो के बिभिन्न सवालों को लेकर लगातार संघर्षरत
भूमि बैंक में शामिल गाव् की सामुदायिक जमीन गैर मजरुआ आम,खास ,नदी नाला , झाड़-भूमि को भूमि मुक्त करने की मांग को लेकर राजयपाल भवन के पास धरना। मांग पत्र राजयपाल को दिया गया.
्र मित्तल कंपनी-अर्सेलर मित्तल कंपनी परियोजना
झारखंड सरकार के साथ अर्सेलर मित्तल कंपनी ने 8 अक्टोबर 2005 को एमओयू किया। एमओयू के तहत कंपनी सालाना 1.2 करोड़ टन स्टील निर्माण कारखाना बनाना चाहता था। परियोजना में कैप्टिव पावर प्लांट, आयर ओर खदान, कोयला खदान, टाउनशिप, जलापूर्ति के लिए जलस्त्रोत सहित बुनियादी ढांचा, माल ढोने के लिए रोड़, एवं रेलवे ट्रेक्स आदि के लिए जमीन लेने का प्रावधान था। इस परियोजना में कंपनी 40,000 करोड रूपये निवेश करने जा रही है।
कंपनी 5000 हेक्टेयर कारखाना स्टील निर्माण के लिए, 3000 हेक्टेयर कैप्टिव पावर प्लांट के लिए, 2000 हेक्टेयर टाउनशीप के लिए, एंसिलरी इकाइयों के लिए भी जमीन चाहिए । इसके आलावे बिजली की पारेषण लाइनों, संडकों, रेलवे लिंक, जल और अन्य सेवाओं की जरूरतों के लिए भी जमीन चाहिए।
लौह अयस्क की खदानें-एक अरब टन लौह अयस्क के भंडार जो 50 वर्षों के लिए पर्याप्त हो।
कोयले की खदानें-1.28 अरब टन कोयले के भंडार जो 50 वर्षों के लिए पर्याप्त हो।
मैंगनीज अयस्क--6 करोड़ टन मैंगनीज अयस्क 50 वर्षों के लिए पर्याप्त हो।
पानी--10,000 घन मीटर प्रति घंटा 60 लाख टन सालाना क्षमता के लिए। पूर्ण क्षमता पर 20,000 घन मीटर प्रति घंटे की आवश्यकता होगी।
कैप्टिव पावर प्लांट--2500 मेगावाट उत्पादन की योजना है।
उद्योग जगत में अर्सेलर मित्तल कंपनी को विश्व का स्टील जाएंट माना जाता है। इसके साथ झारखंड सरकार के एमओयू के साथ ही सरकार ने कंपनी के लिए जमीन तलाशना शुरू कर दिया। सबसे पहले कंपनी ने स्टील निर्माण के लिए मनोहरुपुर के आदिवासी ईलाके को चयन करने की कोशिश की। लेकिन ग्रामीणों को इसका आहट लगते ही विरोध करना शुरू कर दिया। इसके बाद सरकार ने कंपनी के लिए रांची जिला के कर्रा प्रखंड, तोरपा प्रखंड एवं रनिया प्रखंड के कई गांवों, एवं गुमला जिला के कमडारा प्रखंड के कई गांवों के जमीन को चिन्हित करके प्लांट स्थापित करने के लिए नक्सा तैयार किया। इसके साथ ही जमीन पर उतरने की तैयारी करने लगा था।
इस दौरान नरेगा योजना को लेकर बसिया क्षेत्र में इंसाफ टीम के साथी मजदूरों के साथ हो रहे अन्याय को लेकर दलालों और सरकार अधिकारियों के विरोध लड़ रहे थे। इसी बीच पता चला कि अर्सेलर मित्तल कंपनी खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड, तोरपा प्रखंड, रनिया प्रखंड और गुमला जिला के कमडारा प्रखंड के 50-60 गांवों को हटा कर स्टील निर्माण कारखाना बनाने के लिए जमीन अधिग्रहण करने जा रही है। इसकी जानकारी कंपनी द्वारा चिन्हित गांवों को दी गयी। सभी ग्रामीणों ने एक स्वर में इसका विरोध करना शुरू किया। सबके सहमति से संभावित विस्थापन के विरोध जनगोबंदी आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच के बैनर से शुरू हुआ। मंच ने एक बड़ी रैली-सभा 29 मई 2008 को राजभवन के पास किया। ग्रामीणों की बड़ी संख्या इस रैली में पहुंची थी।
इस रैली के समीक्षा बैठक जो कुलडा में हुआ था, हमलोगों ने यह महसूस करते हुए कि -इस ईलाके के सभी जाति-समुदाय, सभी वर्ग के लोग इस परियोजना से विस्थापित होगें। इसलिए आंदोलन का बैनर आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच का नाम को आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच किया जाए, ताकि सभी समुदाय की भागीदारी हो सके। इस निर्माय के साथ ही मित्तल कंपनी के विरोध जनआंदोलन 2006 से लगातार 2010 तक जोरदार चलता रहा। 2010 के फरवरी माह में श्री लक्ष्मी निवास मित्तल के अपने मुख्य कार्यालय लग्लजमवार्ग से बयान दिया-खूंटी-गुमला ईलाके में जनआंदोलन बहंुत मजबूत है, वहां जमीन अधिग्रहण करना संभव नहीं है। इसलिए अब मैं अपना परियोजना का साईड बदलूंगा।
लेकिन आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच अपने संघर्ष के साथ मैदान में डटा हुआ है। कोयल कारो परियाजना के विरोध संघषर््ारत कोयलकारो जनसंगठन के आधार पर ही आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच का मनना है-कि हम अपने पूर्वजों का एक इंच जमीन नहीं देगें, हम विकास विरोधी नहीं हैं-लेकिन हमारे इतिहास मिटा कर, गांव उजाडकर, विस्थापित कर, जंगल-पर्यावारण नष्ट कर, भाषा-संस्कृति नष्ट कर किसी तरह का विकास स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हमारा अस्तित्व, पहचान, भासा-संस्कृति, जंगल-पर्यावारण को किसी मुआवजा राषि से भरा नहीं जा सकता है, और न ही पूवर्नवासित किया जा सकता है। आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच जाति-धर्म एवं राजनीति से उपर उठकर हिन्दु-मुसलिम, सरना-ईसाई के सामुहिक ताकत ही लाखों लोगों को विस्थापित होने से समाज को बचा पाया है।
आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने राजनीति, जाति, धर्म से उपर उठर कर इस ईलाके के सभी जाति-धर्म, समुदाय की रक्षा की है। हजारों सरना-ससनदीरी, मसना, कब्रिस्थान, मंदिर, मषजिद, गिरजा घर की रक्षा की है। आंदोलन के दौरन भी हमारी समुदायिक एकता तोड़ने की पूरजोर कोशिश कंपनी समर्थकों ने की थी, लेकिन अपने जल-जंगल-जमीन, भाषा, संस्कृति की रक्षा के प्रति गोलबंद एकता को तोड नहीं सका।
आदिवासी -मूलवासी अस्तितवा रक्षा मंच का गठन २००६ में , झारखण्ड में देलीमिटेशन लागु करने का केँद्र ने प्रस्ताव लाया था, इस प्रस्ताव के तहत झारखंड के बिधान सभा में आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित २८ सीट में सात सीट , लोकसभा -५ आरक्षित सीट में एक सीट घटने का प्रस्ताव था. आरक्षित आदिवासी सीटों को कम करने का मतलब आदिवासी राजनितिक ताकत को कमजोर करना था, इस खतरे को देखते सामाजिक संगठनों के साथ हम लोगों ने आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच का गठन किये. और डेमिलिटेशन के बिरोध संघर्ष तेज किये. जब केंद्रीय चुनाव आयोग के चेयरमेन ने घोषणा किया , बर्तमान ब्यवस्था २०१९ तक रहेगा , इसी ब्यवस्था के तहत बिधान सभा और लोकसभा का चुनाव २०१९ तक सम्पन किया जायेगा। इस घोषणा तक आदिवासी अस्तित्वा रक्षा मंच भी मैदान में रहा।
२००५ में झारखण्ड सरकार ने आर्सेलर मित्तल कंपनी के साथ जमीन देने का mou साइन किया , तब जम्में बचने के लिए आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच फिर से मैदान में सक्रिय हो गया. मित्तल कंपनी जिन बर्तमान खूंटी जिला के तोरपा , रनिया एवं कर्रा प्रखंड के गांव तथा गुमला जिला के कामडारा प्रखंड के करीब ३८ गाओं को बिस्थपित कर १२ मिलियन टन का स्टील प्लांट स्थापित करने की योजना थी. मूलबसि बिदित हो की इस इलाके में आदिवासी, दलित सभी समुदाल रहते हैं. यही नहीं सभी खेती-बरी , जंगल , जमीन से जुड़े हुए हैं। आंदोलन में सबकी भागीदारी सुनुश्चित करने के लिए आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच का नाम आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच किया। मंच आज भी किसानो के बिभिन्न सवालों को लेकर लगातार संघर्षरत
भूमि बैंक में शामिल गाव् की सामुदायिक जमीन गैर मजरुआ आम,खास ,नदी नाला , झाड़-भूमि को भूमि मुक्त करने की मांग को लेकर राजयपाल भवन के पास धरना। मांग पत्र राजयपाल को दिया गया.