सेवा में,
अध्यक्ष महोदय
अनुसुचित जनजाति आयोग केंन्द्र सरकार
महोदय , पत्रांक.....01..
दिनांक.....18 दिसंबर 2018
विषय- पांचवी अनुसूचि में प्रावधान अधिकारों की रक्षा करने एवं इससे शत्कि से लागू करने की मांग के संबंध में।
महाशय,
सविनयपूर्वक कहना है कि- भारती संविधान में हमारा झारखंड राज्य पांचवी अनुसूचि के अतंर्गत है। इस विषेश प्रावधान के तहत महामहिम राज्यपाल इस राज्य के आदिवासी -मूलवासी किसानों का विशेष संरक्षक हैं।
आप को बताना चाहते हैं कि-हमारे पूर्वजों ने सांप-बिच्छू, बाघ-भालू जैसे खतरनाक जानवरों से लड़कर इस झारखंड राज्य की धरती को आबाद किया है। इतिहास गवाह है-कि जब अंग्रेजों के हुकूमत में देश गुलाम था, और आजादी के लिए देश छटपटा रहा था, तब आदिवासी समुदाय के वीर नायकों ने, सिदू-कान्हू, चांद-भैरव, सिंदराय-बिंदराय, तिलका मांझी से लेकर वीर बिरसा मुंडा के अगुवाई में देश के मुक्ति संग्राम में अपनी शहादत दी। इन्हीं वीर नायकों के खून से आदिवासी-मूलवासियों के धरोहर जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियक 1908 और संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 लिखा गया। जो राज्य के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत धरोहर जल-जंगल-जमीन का सुरक्षा कवच है।
हम आप को यह भी बताना चाहते हैं-हमारा झारखंड पांचवी अनुसूचि के अंतर्गत है। इस कारण यहां के आदिवासी, मूलवासी, किसान सहित हम 32 तरह के आदिवासी समुदाय को जल, जंगल,जमीन की रक्षा, सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक, भाषा-संस्कृति की रक्षा, शैक्षणिक विकास, स्वस्थ्य की रक्षा, सरकारी सेवाओं सहित अन्य सेवाकार्यों में भी हमें विशेष आरक्षण का अधिकार प्राप्त है। ताकि यहां के 32 आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक स्तर पर भी सक्षम हों। इसके लिए विषेश अधिकारों का प्रावधान किया गया है।
भारतीय संविधान ने हम आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसान समुदाय को पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांव के सीमा के भीतर एवं गांव के बाहर जंगल-झाड़, बालू-गिटी, तथा एक -एक इंच जमीन पर, ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया है। यहां के माइनर मिनिरल्स, माइनर फोरस्ट प्रोडक्ट पर ही ग्राम सभा का अधिकार है। इसी पांचवी अनुसूचि में पेसा कानून 1996, वन अधिकार कानून 2006, का भी प्रावधान हैं। यहीं मानकी-मुंडा, पडहा व्यवस्था, मांझी-परगना, खूंटकटी आधिकार भी है।
जंगल-जमीन, पर समुदाय का परंपारिक मलिकाना हक से संबंधित जमीन का अभिलेख खतियान भाग दो में गैर मजरूआ आम एवं गैरमजरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला सहित सभी तरह के समूदायिक जमीन पर समुदाय का हक दर्ज है। ग्रामीणों का यह अधिकार विलेज नोट में ही दर्ज है। इस कानून के आधार पर सरकार इस तरह के जमीन का सिर्फ संरक्षक है ;बनेजवकपंदद्ध सरकार इस जमीन का देख-रेख करती है, लेकिन मालिक नहीं है, न ही सरकार इस तरह के जमीन को बेच सकती है।
आप को कहना चाहते हैं कि-पांचवी अनुसूचि में प्रावधान तमाम अधिकारों की रक्षा करना, अधिकारों को बहाल करनवाना राज्यपाल की जिम्मेदारी है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। यह झारखंड के लिए दुखद है।
सरकार ने अभी तक कुल चार मोमेंटम झारखंड का आयोजन कर हजारों कारपोट कंपनियों तथा पूंजि-पतियों के साथ झारखंड के आदिवासी-मूलवासी किसानों के जल-जंगल-जमीन को उनके हाथ देने का समझौता कर लिया है। जो पूरी तरह से पांचवी अनुसूचि तथा पेसा कानून में प्रावधान ग्रामीणों के अधिकारों पर हमला ही माना जाएगा। वर्तमान में चल रहे रिविजन सर्वे, जिसके पूर्ण होते ही, जिसके आधार पर नया खतियान बनेगा, इसके साथ ही 1932 का खतियान स्वतः निरस्त हो जाएगा। जिससे यहां के आदिवासी-मूलवासी किसानों सभी समुदाय के परंपरागत अधिकार समात्म होगें।
भूमि अधिग्रहण कानून 2017 के लागू होने तथा उपरोक्त तमाम कानूनों के लागू होने से राज्य की कृर्षि भूमि को गैर कृर्षि उपयोग के लिए तेजी से हस्तंत्रित किया जाएगा, फलस्वरूप राज्य की कृर्षि भूमि तेजी से घटगी तथा खद्यान संकट बढेगा। बीते एक साल में राज्य में भूख से 8 लोगों की मौत हो चुकी है, तब आने वाले समय में राज्य में भूखमरी और मौत भी अपना विक्रांत रूप लेकर आएगा।
आज विस्थापन के खतरों से पूरा राज्य भयभीत है। पलामू-लातेहार, गुमला जिला के ग्रामीण प्रस्तावित नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज से होने विस्थापन, व्यघ्र परियोजना, वाईल्ड लाईफ कोरिडोर, से होने वाले विस्थापन के खिलाफ जूझ रहा है। हजारीबाग के बड़गांव में कोयला परियोजना से होने विस्थापन के खिलाफ किसान संघर्षरत हैं। गोडडा में अडडानी पावर प्लांट द्वारा जबरन किसानों से जमीन छीन रही है। किसान विरोध कर रहे हैं उन्हें कहा जा रहा है-जमीन नहीं दोगे, तो इसी जमीन में गाड देगें, किसानों का लहलहाता धान खेत को बुलडोजर से रौंद दिया गया। राज्य के हर ईलाका में लोग विस्थापन के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। खूंटी-गुमला जिला के ग्रामीण पहले से ही मित्तल स्टील प्लांट, पूर्वी सिंहभूम के पोटका क्षेत्र में जिंदल स्टील प्लांट, भूषण स्टील प्लांट से होने वाले विस्थापन के खिलाफ संघर्षरत हैं। खूटी क्षेत्र में आदिवासी समुदाय के सामूहिक एकता को तोड़ने के कई सडयंत्र चलाया जा रहा है। जाति-धर्म के नाम पर सामाज को एक दूसरे से लड़ाया जा रहा है। जो जनता के अधिकारों के रक्षा की बात करते हैं, उन पर देशद्रोह के केस में फंसा दिया जा रहा है। धर्म मानने की आजादी, बोलने की आजादी भी खत्म किया जा रहा है। झारखंडी सामाज पर चारों तरफ से हमला हो रहा है। इन जनसंधर्षों के बीच रघुवर सरकार उपरोक्त जनविरोधी कानूनों को झारखंडी जनता के उपर थोपने का काम कर रही है।
भूमि बैंक-दुखद बात है कि-सरकार हम आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत हक-अधिकार को छीन के गैर मजरूआ आम एवं खास जमीन का भूमिं बैंक बना कर, पूजिंपतियों को आॅनलाईन हस्तांत्रण कर रही है। सरकार ने ग्रामीणों के सामूदायिक भूमिं को 21 लाख एकड से अधिक जमीन भूमि बैंक में शामिल कर चुका है। यदि एैसा होता है-तो ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी सहित प्रकृति एवं पर्यावरण पर निर्भर समुदाय पूरी तरह समाप्त हो जाएगें। समुदाय की सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, जीविका एवं पहचान अपने आप खत्म हो जाएगा।
हम यह भी बताना चाहते हैं-कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां के जंगल-झाड़, पेड़-पैधों, नदी-नाला, झरनों में आधारित है, इसी पर पूरी ग्रामीण अथव्यवस्था टिकी हुई है, जिसका मूल स्त्रोत किसानों के जोत के अलावे गैर मजरूआ आम और गैर मजरूआ खास जमीन ही है। राज्य की जनता को इन्हीं प्रकृतिक स्त्रोतों से शुद्व भोजन, शुद्व पानी और शुद्व हवा मिल रहा है।
सिंगल वींण्डों सिस्टम आदिवासी समुदाय को भूमिहीन बनाने के नया हथियार-आप सभी जानते हैं कि-गांव के 98 प्रतिषत किसान न तो कम्पुटर चलाने जानते हैं, और न ही इंटरनेट की जानकारी है। आज आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूदायिक धरोहर तमाम तरह के जमीन को भूमिं बैंक में शमिल कर बाहरी लोगों को आॅनलाइन हस्तंत्रित किया जा रहा हेेे-जो आदिवासी-मूलवासी, किसान समुदाय को समूल उखाड़ फेंकने की तैयारी ही माना जाएगा। आॅनलाइन जमीन का रसीद काटा जा रहा है, इसमें भारी गलतियां हो रही हैं। किसानों का जमीन भारी मात्रा में गायब किया जा रहा है। इस कारण किसान अपना जमीन मलगुजारी भूगतान नहीं कर पा रहे हैं। इससे आदिवासी -मूलवासी समुदाय खासे चिंतित हैं।
आप को यह भी बताना चाहते है कि 98 प्रतिषत ग्रामीण आबादी न तो कमप्युटर देखी है, न ही इंटरनेट ओपरेट कर सकती है। एैसे में जमीन संबंधी सभी तरह के कार्यों को आॅनलाईन संचालित होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानूून के लागू होने से-एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी-मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाट, धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को नइस्तेमाल करने जा रहा है।
वर्तमान स्थानीयता नीति आदिवासियों को केवल-चपरासी ही बनाएगा। क्योंकि इस नीति में आॅफसर ग्रेड में अवसर देने के लिए कोई कानून व्यवस्था नहीं है।
पांचवी अनुसूचि में टीएसी के प्रावधान को लागू नहीं किया जा रहा है-इसमें प्रावधान अधिकारों के तहत टीएसी का अध्यक्ष आदिवासी होना चाहिए-लेकिन वर्तमान में इसका उल्लंघन किया गया है। साथ ही राज्य के आदिवासियों क ेजल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए किसी तरह का नीतिगत फैसला नहीं है।
पेसा कानून 1996 को -कानूनी रूप आज तक नहीं दिया गया।
वर्तमान राज्य सरकार के भूमि बैंक से होन वाले खतरों की ओर आप का ध्यान खिचना चाहता है-
भूमि बैंक एवं के लागू होने से आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा मंडरा रहा है-
ऽ राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल-झाड, नदी-झील-झरनों के ताना-बाना के साथ जिंदा है, वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होना सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट पर हमला होगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूल, मांझी-परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा। जिसका प्रभाव निम्नलिखित स्तर पर पडेगा।
1-परंपारिक आदिवासी-मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा।
2-आदिवासी-मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीय, भूगर्भीय अवस्था जो यहां के परंारिक कृर्षि, पर्यावरणीय ताना-बाना, पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
3-परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेष से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्य, सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
4-जंगल-जमीन, जलस्त्रोंतों, जंगली-झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
5-स्थानीय आदिवासी-मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगी, तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
6-सामाजिक, आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
7-आदिवासी-मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए-जनआंदोलनों का संयुक्त मोर्चा, आप के सामने निम्नलिखित मांग रखते हैं-
1-5वीं अनुसूचि को कडाई्र से लागू किया जाए
2-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
3-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
4- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
5-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
6-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
7-ग्रामीण किसानों का जमीन संबंधित आॅनलाइन रसीद काटने की व्यवस्था को रोका जाए तथा इसकी पुरानी मेनुवली व्यवस्था को पुना लागू किया जाए।
8-भूमि अधिग्रहण कानून 2017 को रदद किया जाए
9-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए मनरेगा मजदूरों का मजदूरी दर 159 रू से बढ़ा कर 500 रू किया जाए
10-आदिवासी-मूलवासी विरोधी वर्तमान स्थानीयता नीति को खारिज किया जाए तथा सदियों से जल-जंगल-जमीन के साथ रचे-बसे आदिवासी-मूलवासियों के सामाजिक मूल्यों, संस्कृतिक मूल्यों, भाषा-संस्कृति इनके इतिहास को आधार बना कर 1932 के खतियान को आधार बना कर स्थानीय नीति को पूर्नभाषित करके स्थानीय नीति बनाया जाए।
11-गोडडा में अडाणी कंपनी द्वारा जबरन किसानों को जमीन अधिग्रहण किया जा रहा है-को रोका जाए।
12-पंचायत मुख्यालयों, प्रखंड मुख्यलयों, स्कूलों, अस्पतालों, जिला मुख्यलयों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सभी तरह के नौकरियों में बहाली की जाए।
13-ट्राइबल सबप्लान के तहत आबंटित राशि का दूसरे मदद में खर्च नहीं किया जाए।
15-आॅनलाईन जमीन का रसीद काटा जा रहा है, इसमें जमीन हेराफेरी भारी मात्रा में हो रही है। इसलिए आॅनलाइन रसीद काटना का व्यवस्था बंद किया जाए, और पुराना व्यवस्था लागु किया जाए।
16-आदिवासी समाज के परंपरागत व्यवस्था, पहचान की रक्षा के लिए सरना कोड़ लागू किया जाए।
निवेदक
दयामनी बरला
संयोजिका
आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
मो0 9431104386
अध्यक्ष महोदय
अनुसुचित जनजाति आयोग केंन्द्र सरकार
महोदय , पत्रांक.....01..
दिनांक.....18 दिसंबर 2018
विषय- पांचवी अनुसूचि में प्रावधान अधिकारों की रक्षा करने एवं इससे शत्कि से लागू करने की मांग के संबंध में।
महाशय,
सविनयपूर्वक कहना है कि- भारती संविधान में हमारा झारखंड राज्य पांचवी अनुसूचि के अतंर्गत है। इस विषेश प्रावधान के तहत महामहिम राज्यपाल इस राज्य के आदिवासी -मूलवासी किसानों का विशेष संरक्षक हैं।
आप को बताना चाहते हैं कि-हमारे पूर्वजों ने सांप-बिच्छू, बाघ-भालू जैसे खतरनाक जानवरों से लड़कर इस झारखंड राज्य की धरती को आबाद किया है। इतिहास गवाह है-कि जब अंग्रेजों के हुकूमत में देश गुलाम था, और आजादी के लिए देश छटपटा रहा था, तब आदिवासी समुदाय के वीर नायकों ने, सिदू-कान्हू, चांद-भैरव, सिंदराय-बिंदराय, तिलका मांझी से लेकर वीर बिरसा मुंडा के अगुवाई में देश के मुक्ति संग्राम में अपनी शहादत दी। इन्हीं वीर नायकों के खून से आदिवासी-मूलवासियों के धरोहर जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियक 1908 और संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 लिखा गया। जो राज्य के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत धरोहर जल-जंगल-जमीन का सुरक्षा कवच है।
हम आप को यह भी बताना चाहते हैं-हमारा झारखंड पांचवी अनुसूचि के अंतर्गत है। इस कारण यहां के आदिवासी, मूलवासी, किसान सहित हम 32 तरह के आदिवासी समुदाय को जल, जंगल,जमीन की रक्षा, सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक, भाषा-संस्कृति की रक्षा, शैक्षणिक विकास, स्वस्थ्य की रक्षा, सरकारी सेवाओं सहित अन्य सेवाकार्यों में भी हमें विशेष आरक्षण का अधिकार प्राप्त है। ताकि यहां के 32 आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक स्तर पर भी सक्षम हों। इसके लिए विषेश अधिकारों का प्रावधान किया गया है।
भारतीय संविधान ने हम आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसान समुदाय को पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांव के सीमा के भीतर एवं गांव के बाहर जंगल-झाड़, बालू-गिटी, तथा एक -एक इंच जमीन पर, ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया है। यहां के माइनर मिनिरल्स, माइनर फोरस्ट प्रोडक्ट पर ही ग्राम सभा का अधिकार है। इसी पांचवी अनुसूचि में पेसा कानून 1996, वन अधिकार कानून 2006, का भी प्रावधान हैं। यहीं मानकी-मुंडा, पडहा व्यवस्था, मांझी-परगना, खूंटकटी आधिकार भी है।
जंगल-जमीन, पर समुदाय का परंपारिक मलिकाना हक से संबंधित जमीन का अभिलेख खतियान भाग दो में गैर मजरूआ आम एवं गैरमजरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला सहित सभी तरह के समूदायिक जमीन पर समुदाय का हक दर्ज है। ग्रामीणों का यह अधिकार विलेज नोट में ही दर्ज है। इस कानून के आधार पर सरकार इस तरह के जमीन का सिर्फ संरक्षक है ;बनेजवकपंदद्ध सरकार इस जमीन का देख-रेख करती है, लेकिन मालिक नहीं है, न ही सरकार इस तरह के जमीन को बेच सकती है।
आप को कहना चाहते हैं कि-पांचवी अनुसूचि में प्रावधान तमाम अधिकारों की रक्षा करना, अधिकारों को बहाल करनवाना राज्यपाल की जिम्मेदारी है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। यह झारखंड के लिए दुखद है।
सरकार ने अभी तक कुल चार मोमेंटम झारखंड का आयोजन कर हजारों कारपोट कंपनियों तथा पूंजि-पतियों के साथ झारखंड के आदिवासी-मूलवासी किसानों के जल-जंगल-जमीन को उनके हाथ देने का समझौता कर लिया है। जो पूरी तरह से पांचवी अनुसूचि तथा पेसा कानून में प्रावधान ग्रामीणों के अधिकारों पर हमला ही माना जाएगा। वर्तमान में चल रहे रिविजन सर्वे, जिसके पूर्ण होते ही, जिसके आधार पर नया खतियान बनेगा, इसके साथ ही 1932 का खतियान स्वतः निरस्त हो जाएगा। जिससे यहां के आदिवासी-मूलवासी किसानों सभी समुदाय के परंपरागत अधिकार समात्म होगें।
भूमि अधिग्रहण कानून 2017 के लागू होने तथा उपरोक्त तमाम कानूनों के लागू होने से राज्य की कृर्षि भूमि को गैर कृर्षि उपयोग के लिए तेजी से हस्तंत्रित किया जाएगा, फलस्वरूप राज्य की कृर्षि भूमि तेजी से घटगी तथा खद्यान संकट बढेगा। बीते एक साल में राज्य में भूख से 8 लोगों की मौत हो चुकी है, तब आने वाले समय में राज्य में भूखमरी और मौत भी अपना विक्रांत रूप लेकर आएगा।
आज विस्थापन के खतरों से पूरा राज्य भयभीत है। पलामू-लातेहार, गुमला जिला के ग्रामीण प्रस्तावित नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज से होने विस्थापन, व्यघ्र परियोजना, वाईल्ड लाईफ कोरिडोर, से होने वाले विस्थापन के खिलाफ जूझ रहा है। हजारीबाग के बड़गांव में कोयला परियोजना से होने विस्थापन के खिलाफ किसान संघर्षरत हैं। गोडडा में अडडानी पावर प्लांट द्वारा जबरन किसानों से जमीन छीन रही है। किसान विरोध कर रहे हैं उन्हें कहा जा रहा है-जमीन नहीं दोगे, तो इसी जमीन में गाड देगें, किसानों का लहलहाता धान खेत को बुलडोजर से रौंद दिया गया। राज्य के हर ईलाका में लोग विस्थापन के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। खूंटी-गुमला जिला के ग्रामीण पहले से ही मित्तल स्टील प्लांट, पूर्वी सिंहभूम के पोटका क्षेत्र में जिंदल स्टील प्लांट, भूषण स्टील प्लांट से होने वाले विस्थापन के खिलाफ संघर्षरत हैं। खूटी क्षेत्र में आदिवासी समुदाय के सामूहिक एकता को तोड़ने के कई सडयंत्र चलाया जा रहा है। जाति-धर्म के नाम पर सामाज को एक दूसरे से लड़ाया जा रहा है। जो जनता के अधिकारों के रक्षा की बात करते हैं, उन पर देशद्रोह के केस में फंसा दिया जा रहा है। धर्म मानने की आजादी, बोलने की आजादी भी खत्म किया जा रहा है। झारखंडी सामाज पर चारों तरफ से हमला हो रहा है। इन जनसंधर्षों के बीच रघुवर सरकार उपरोक्त जनविरोधी कानूनों को झारखंडी जनता के उपर थोपने का काम कर रही है।
भूमि बैंक-दुखद बात है कि-सरकार हम आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत हक-अधिकार को छीन के गैर मजरूआ आम एवं खास जमीन का भूमिं बैंक बना कर, पूजिंपतियों को आॅनलाईन हस्तांत्रण कर रही है। सरकार ने ग्रामीणों के सामूदायिक भूमिं को 21 लाख एकड से अधिक जमीन भूमि बैंक में शामिल कर चुका है। यदि एैसा होता है-तो ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी सहित प्रकृति एवं पर्यावरण पर निर्भर समुदाय पूरी तरह समाप्त हो जाएगें। समुदाय की सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, जीविका एवं पहचान अपने आप खत्म हो जाएगा।
हम यह भी बताना चाहते हैं-कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां के जंगल-झाड़, पेड़-पैधों, नदी-नाला, झरनों में आधारित है, इसी पर पूरी ग्रामीण अथव्यवस्था टिकी हुई है, जिसका मूल स्त्रोत किसानों के जोत के अलावे गैर मजरूआ आम और गैर मजरूआ खास जमीन ही है। राज्य की जनता को इन्हीं प्रकृतिक स्त्रोतों से शुद्व भोजन, शुद्व पानी और शुद्व हवा मिल रहा है।
सिंगल वींण्डों सिस्टम आदिवासी समुदाय को भूमिहीन बनाने के नया हथियार-आप सभी जानते हैं कि-गांव के 98 प्रतिषत किसान न तो कम्पुटर चलाने जानते हैं, और न ही इंटरनेट की जानकारी है। आज आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूदायिक धरोहर तमाम तरह के जमीन को भूमिं बैंक में शमिल कर बाहरी लोगों को आॅनलाइन हस्तंत्रित किया जा रहा हेेे-जो आदिवासी-मूलवासी, किसान समुदाय को समूल उखाड़ फेंकने की तैयारी ही माना जाएगा। आॅनलाइन जमीन का रसीद काटा जा रहा है, इसमें भारी गलतियां हो रही हैं। किसानों का जमीन भारी मात्रा में गायब किया जा रहा है। इस कारण किसान अपना जमीन मलगुजारी भूगतान नहीं कर पा रहे हैं। इससे आदिवासी -मूलवासी समुदाय खासे चिंतित हैं।
आप को यह भी बताना चाहते है कि 98 प्रतिषत ग्रामीण आबादी न तो कमप्युटर देखी है, न ही इंटरनेट ओपरेट कर सकती है। एैसे में जमीन संबंधी सभी तरह के कार्यों को आॅनलाईन संचालित होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानूून के लागू होने से-एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी-मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाट, धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को नइस्तेमाल करने जा रहा है।
वर्तमान स्थानीयता नीति आदिवासियों को केवल-चपरासी ही बनाएगा। क्योंकि इस नीति में आॅफसर ग्रेड में अवसर देने के लिए कोई कानून व्यवस्था नहीं है।
पांचवी अनुसूचि में टीएसी के प्रावधान को लागू नहीं किया जा रहा है-इसमें प्रावधान अधिकारों के तहत टीएसी का अध्यक्ष आदिवासी होना चाहिए-लेकिन वर्तमान में इसका उल्लंघन किया गया है। साथ ही राज्य के आदिवासियों क ेजल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए किसी तरह का नीतिगत फैसला नहीं है।
पेसा कानून 1996 को -कानूनी रूप आज तक नहीं दिया गया।
वर्तमान राज्य सरकार के भूमि बैंक से होन वाले खतरों की ओर आप का ध्यान खिचना चाहता है-
भूमि बैंक एवं के लागू होने से आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा मंडरा रहा है-
ऽ राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल-झाड, नदी-झील-झरनों के ताना-बाना के साथ जिंदा है, वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होना सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट पर हमला होगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूल, मांझी-परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा। जिसका प्रभाव निम्नलिखित स्तर पर पडेगा।
1-परंपारिक आदिवासी-मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा।
2-आदिवासी-मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीय, भूगर्भीय अवस्था जो यहां के परंारिक कृर्षि, पर्यावरणीय ताना-बाना, पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
3-परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेष से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्य, सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
4-जंगल-जमीन, जलस्त्रोंतों, जंगली-झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
5-स्थानीय आदिवासी-मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगी, तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
6-सामाजिक, आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
7-आदिवासी-मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए-जनआंदोलनों का संयुक्त मोर्चा, आप के सामने निम्नलिखित मांग रखते हैं-
1-5वीं अनुसूचि को कडाई्र से लागू किया जाए
2-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
3-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
4- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
5-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
6-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
7-ग्रामीण किसानों का जमीन संबंधित आॅनलाइन रसीद काटने की व्यवस्था को रोका जाए तथा इसकी पुरानी मेनुवली व्यवस्था को पुना लागू किया जाए।
8-भूमि अधिग्रहण कानून 2017 को रदद किया जाए
9-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए मनरेगा मजदूरों का मजदूरी दर 159 रू से बढ़ा कर 500 रू किया जाए
10-आदिवासी-मूलवासी विरोधी वर्तमान स्थानीयता नीति को खारिज किया जाए तथा सदियों से जल-जंगल-जमीन के साथ रचे-बसे आदिवासी-मूलवासियों के सामाजिक मूल्यों, संस्कृतिक मूल्यों, भाषा-संस्कृति इनके इतिहास को आधार बना कर 1932 के खतियान को आधार बना कर स्थानीय नीति को पूर्नभाषित करके स्थानीय नीति बनाया जाए।
11-गोडडा में अडाणी कंपनी द्वारा जबरन किसानों को जमीन अधिग्रहण किया जा रहा है-को रोका जाए।
12-पंचायत मुख्यालयों, प्रखंड मुख्यलयों, स्कूलों, अस्पतालों, जिला मुख्यलयों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सभी तरह के नौकरियों में बहाली की जाए।
13-ट्राइबल सबप्लान के तहत आबंटित राशि का दूसरे मदद में खर्च नहीं किया जाए।
15-आॅनलाईन जमीन का रसीद काटा जा रहा है, इसमें जमीन हेराफेरी भारी मात्रा में हो रही है। इसलिए आॅनलाइन रसीद काटना का व्यवस्था बंद किया जाए, और पुराना व्यवस्था लागु किया जाए।
16-आदिवासी समाज के परंपरागत व्यवस्था, पहचान की रक्षा के लिए सरना कोड़ लागू किया जाए।
निवेदक
दयामनी बरला
संयोजिका
आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच
मो0 9431104386