सेवा में,
महामहिम राज्यपाल महोदया,
झारखंड
द्वारा-प्रखंड विकास पदाधिकारी-तोरपा
महोदया , पत्रांक.....07.
दिनांक.....21 फरवरी 2019
विषय- आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसानों कें परंपारिक समुदायिक धरोहर जंगल-झाडी, चरागाह, सरना-मसना, अखड़ा, ससनदिरि, हड़गडी, जतराटांड, मंड़ा टांड, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई, नदी-नाला, पाईन-झरना सहित गैरमजरूआ आम एवं खास जमीन को भूमिं बैंक में शामिल किया गया है, को भूमिं बैंक से मुक्त करने, तथा पांचवी अनुसूचिं एवं सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू करने, तथा आॅनलाइन हो रही जमीन की हेरा-फेरी को रोकने के संबंध में।
महाशय,
सविनयपूर्वक कहना है कि-हमारे पूर्वजों ने सांप-बिच्छू, बाघ-भालू जैसे खतरनाक जानवरों से लड़कर इस झारखंड राज्य की धरती को आबाद किया है। इतिहास गवाह है-कि जब अंग्रेजों के हुकूमत में देश गुलाम था, और आजादी के लिए देश छटपटा रहा था तब आदिवासी समुदाय के वीर नायकों ने, सिदू-कान्हू, चांद-भैरव, सिंदराय-बिंदराय, तेंलेंगा खडिया, तिलका मांझी से लेकर वीर बिरसा मुंडा के अगुवाई में देश के मुक्ति संग्राम में अपनी शहादत दी। इन्हीं वीर नायकों के खून से आदिवासी-मूलवासियों के धरोहर जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काष्तकारी अधिनियक 1908 और संताल परगना काष्तकारी अधिनियम 1949 लिखा गया। जो राज्य के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत धरोहर जल-जंगल-जमीन का सुरक्षा कवच है।
हम आप को यह भी बताना चाहते हैं-कि भारतीय संविधान ने हम आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसान समुदाय को पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांव के सीमा के भीतर एवं गांव के बाहर जंगल-झाड़, बालू-गिटी, तथा एक -एक इंच जमीन पर, ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया है।
जमीन -जंगल पर समुदाय का परंपारिक मलिकाना हक से संबंधित जमीन का अभिलेख खतियान भाग दो में गैर मजरूआ आम एवं गैरमजरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला सहित सभी तरह के समूदायिक जमीन पर समुदाय का हक दर्ज है। इसके आधार पर सरकार इस तरह के जमीन का सिर्फ संरक्षक है ;बनेजवकपंदद्ध सरकार इस जमीन का देख-रेख करती है, लेकिन मालिक नहीं है, न ही सरकार इस तरह के जमीन को बेच सकती है।
लेकिन दुखद बात है कि-सरकार हम आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत हक-अधिकार को छीन के गैर मजरूआ आम एवं खास जमीन का भूमिं बैंक बना कर, पूजिंपतियों को आॅनलाईन हस्तांत्रण कर रही है। यदि एैसा होता है-तो ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी सहित प्रकृति एवं पर्यावरण पर निर्भर समुदाय पूरी तरह समाप्त हो जाएगें। समुदाय की सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, जीविका एवं पहचान अपने आप खत्म हो जाएगा।
हम यह भी बताना चाहते हैं-कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां के जंगल-झाड़, पेड़-पैधों, नदी-नाला, झरनों में आधारित है, इसी पर पूरी ग्रामीण अथव्यवस्था टिकी हुई है, जिसका मूल स्त्रोत किसानों के जोत के अलावे गैर मजरूआ आम और गैर मजरूआ खास जमीन ही है। राज्य की जनता को इन्हीं प्रकृतिक स्त्रोतों से शुद्व भोजन, शुद्व पानी और शुद्व हवा मिल रहा है।
आज आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूदायिक धरोहर तमाम तरह के जमीन को भूमिं बैंक में शमिल कर बाहरी लोगों को आॅनलाइन हस्तंत्रित किया जा रहा हेेे-जो आदिवासी-मूलवासी, किसान समुदाय को समूल उखाड़ फेंकने की तैयारी ही माना जाएगा। इससे आदिवासी -मूलवासी समुदाय खासे चिंतित हैं।
आप को यह भी बताना चाहते है कि 95 प्रतिषत ग्रामीण आबादी न तो कमप्युटर देखी है, न ही इंटरनेट ओपरेट कर सकती है। एैसे में जमीन संबंधी सभी तरह के कार्यों को आॅनलाईन संचालित होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है।
वर्तमान सरकार द्वारा जमीन का रसीद-मलगुजारी आॅनलाइन भुगतान किया जा रहा है, इस प्रकिया में किसानों का जमीन संबंधित रेकार्ड एवं कागजातों में हेरा-फेरी किया जा रहा है। अधिकांश किसानों का जमीन आॅनलाईन खो रहा है। इससे किसानों को अपने जमीन का मलगुजारी भुगतान करने में भारी कठिनाई हो रही है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानूून के लागू होने से-एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी-मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाट, धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को इस्तेमाल करने जा रहा है।
मंच भूमि बैंक से होन वाले खतरों की ओर आप का ध्यान खिचना चाहता है-
भूमि बैंक एवं के लागू होने से आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा मंडरा रहा है-
ऽ राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल-झाड, नदी-झील-झरनों के ताना-बाना के साथ जिंदा है, वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होना सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट में प्रावधान अधिकार समाप्त हो रहा है।
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा
भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूल, मांझी-परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा। जिसका प्रभाव निम्नलिखित स्तर पर पडेगा।
1-परंपारिक आदिवासी-मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा।
2-आदिवासी-मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीय, भूगर्भीय अवस्था जो यहां के परंारिक कृर्षि, पर्यावरणीय ताना-बाना, पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
3-परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेष से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्य, सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
4-जंगल-जमीन, जलस्त्रोंतों, जंगली-झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
5-स्थानीय आदिवासी-मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगी, तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
6-सामाजिक, आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
7-आदिवासी-मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए-हम आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच आप के सामने निम्नलिखित मांग रखते हैं-
1-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
2-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
3- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
4-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
5-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
6-5वीं अनुसूचि को कडाई्र से लागू किया जाए।
7-किसानों का लोन माफ किया जाए
9-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए मनरेगा मजदूरों का मजदूरी दर 159 रू से बढ़ा कर 500 रू किया जाए
10-आदिवासी-मूलवासी विरोधी वर्तमान स्थानीयता नीति को खारिज किया जाए तथा सदियों से जल-जंगल-जमीन के साथ रचे-बसे आदिवासी-मूलवासियों के सामाजिक मूल्यों, संस्कृतिक मूल्यों, भाषा-संस्कृति इनके इतिहास को आधार बना कर 1932 के खतियान को आधार बना कर स्थानीय नीति को पूर्नभाषित करके स्थानीय नीति बनाया जाए।
11-पंचायत मुख्यालयों, प्रखंड मुख्यलयों, स्कूलों, अस्पतालों, जिला मुख्यलयों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सभी तरह के नौकरियों में बहाली की जाए।
13-सरना कोड़ लागू किया जाए।
14-किसी भी तरह का जमीन अधिग्रहण गांव सभा की इजाजत के बिना, नहीं किया जाए।
निवेदक
आदिवासी-मूलवासी असित्व रक्षा मंच
तोरपा-खूंटी
संयोजक....-दयामनी बरला अध्याक्ष-तुरतन तांपनांे
उपाध्यक्ष-राजू लोहरा
सचिव -हादू तोपनो, उपसचिव-ऐनेम तोपनो
सेवा में,
भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग
झारखंड सरकार
द्वारा-प्रखंड विकास पदाधिकारी-तोरपा
, पत्रांक.....07..
दिनांक.....21 फरवरी 2019.
विषय- आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसानों कें परंपारिक समुदायिक धरोहर जंगल-झाडी, चरागाह, सरना-मसना, अखड़ा, ससनदिरि, हड़गडी, जतराटांड, मंड़ा टांड, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई, नदी-नाला, पाईन-झरना सहित गैरमजरूआ आम एवं खास जमीन को भूमिं बैंक में शामिल किया गया है, को भूमिं बैंक से मुक्त करने, तथा पांचवी अनुसूचिं एवं सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू करने, तथा आॅनलाइन हो रही जमीन की हेरा-फेरी को रोकने के संबंध में।
महाशय,,
सविनयपूर्वक कहना है कि-हमारे पूर्वजों ने सांप-बिच्छू, बाघ-भालू जैसे खतरनाक जानवरों से लड़कर इस झारखंड राज्य की धरती को आबाद किया है। इतिहास गवाह है-कि जब अंग्रेजों के हुकूमत में देश गुलाम था, और आजादी के लिए देश छटपटा रहा था तब आदिवासी समुदाय के वीर नायकों ने, सिदू-कान्हू, चांद-भैरव, सिंदराय-बिंदराय, तेंलेंगा खडिया, तिलका मांझी से लेकर वीर बिरसा मुंडा के अगुवाई में देश के मुक्ति संग्राम में अपनी शहादत दी। इन्हीं वीर नायकों के खून से आदिवासी-मूलवासियों के धरोहर जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काष्तकारी अधिनियक 1908 और संताल परगना काष्तकारी अधिनियम 1949 लिखा गया। जो राज्य के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत धरोहर जल-जंगल-जमीन का सुरक्षा कवच है।
हम आप को यह भी बताना चाहते हैं-कि भारतीय संविधान ने हम आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसान समुदाय को पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांव के सीमा के भीतर एवं गांव के बाहर जंगल-झाड़, बालू-गिटी, तथा एक -एक इंच जमीन पर, ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया है।
जमीन -जंगल पर समुदाय का परंपारिक मलिकाना हक से संबंधित जमीन का अभिलेख खतियान भाग दो में गैर मजरूआ आम एवं गैरमजरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला सहित सभी तरह के समूदायिक जमीन पर समुदाय का हक दर्ज है। इसके आधार पर सरकार इस तरह के जमीन का सिर्फ संरक्षक है ;बनेजवकपंदद्ध सरकार इस जमीन का देख-रेख करती है, लेकिन मालिक नहीं है, न ही सरकार इस तरह के जमीन को बेच सकती है।
लेकिन दुखद बात है कि-सरकार हम आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत हक-अधिकार को छीन के गैर मजरूआ आम एवं खास जमीन का भूमिं बैंक बना कर, पूजिंपतियों को आॅनलाईन हस्तांत्रण कर रही है। यदि एैसा होता है-तो ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी सहित प्रकृति एवं पर्यावरण पर निर्भर समुदाय पूरी तरह समाप्त हो जाएगें। समुदाय की सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, जीविका एवं पहचान अपने आप खत्म हो जाएगा।
हम यह भी बताना चाहते हैं-कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां के जंगल-झाड़, पेड़-पैधों, नदी-नाला, झरनों में आधारित है, इसी पर पूरी ग्रामीण अथव्यवस्था टिकी हुई है, जिसका मूल स्त्रोत किसानों के जोत के अलावे गैर मजरूआ आम और गैर मजरूआ खास जमीन ही है। राज्य की जनता को इन्हीं प्रकृतिक स्त्रोतों से शुद्व भोजन, शुद्व पानी और शुद्व हवा मिल रहा है।
आज आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूदायिक धरोहर तमाम तरह के जमीन को भूमिं बैंक में शमिल कर बाहरी लोगों को आॅनलाइन हस्तंत्रित किया जा रहा हेेे-जो आदिवासी-मूलवासी, किसान समुदाय को समूल उखाड़ फेंकने की तैयारी ही माना जाएगा। इससे आदिवासी -मूलवासी समुदाय खासे चिंतित हैं।
आप को यह भी बताना चाहते है कि 95 प्रतिषत ग्रामीण आबादी न तो कमप्युटर देखी है, न ही इंटरनेट ओपरेट कर सकती है। एैसे में जमीन संबंधी सभी तरह के कार्यों को आॅनलाईन संचालित होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है।
वर्तमान सरकार द्वारा जमीन का रसीद-मलगुजारी आॅनलाइन भुगतान किया जा रहा है, इस प्रकिया में किसानों का जमीन संबंधित रेकार्ड एवं कागजातों में हेरा-फेरी किया जा रहा है। अधिकांश किसानों का जमीन आॅनलाईन खो रहा है। इससे किसानों को अपने जमीन का मलगुजारी भुगतान करने में भारी कठिनाई हो रही है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानूून के लागू होने से-एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी-मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाट, धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को इस्तेमाल करने जा रहा है।
मंच भूमि बैंक से होन वाले खतरों की ओर आप का ध्यान खिचना चाहता है-
भूमि बैंक एवं के लागू होने से आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा मंडरा रहा है-
ऽ राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल-झाड, नदी-झील-झरनों के ताना-बाना के साथ जिंदा है, वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होना सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट में प्रावधान अधिकार समाप्त हो रहा है।
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा
भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूल, मांझी-परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा। जिसका प्रभाव निम्नलिखित स्तर पर पडेगा।
1-परंपारिक आदिवासी-मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा।
2-आदिवासी-मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीय, भूगर्भीय अवस्था जो यहां के परंारिक कृर्षि, पर्यावरणीय ताना-बाना, पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
3-परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेष से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्य, सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
4-जंगल-जमीन, जलस्त्रोंतों, जंगली-झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
5-स्थानीय आदिवासी-मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगी, तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
6-सामाजिक, आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
7-आदिवासी-मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए-हम आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच आप के सामने निम्नलिखित मांग रखते हैं-
1-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
2-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
3- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
4-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
5-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
6-5वीं अनुसूचि में प्रावधान कानून का पालन किया जाए
निवेदक
आदिवासी-मूलवासी असित्व रक्षा मंच
तोरपा-खूंटी
संयोजक....-दयामनी बरला अध्याक्ष-तुरतन तांपनांे
उपाध्यक्ष-राजू लोहरा
सचिव -हादू तोपनो, उपसचिव-ऐनेम तोपनो
सेवा में,
डपायुक्त महोदय
खूंटी
द्वारा-प्रखंड विकास पदाधिकारी-तोरपा
, पत्रांक.....07..
दिनांक.....21 फरवरी 2019.
विषय- आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसानों कें परंपारिक समुदायिक धरोहर जंगल-झाडी, चरागाह, सरना-मसना, अखड़ा, ससनदिरि, हड़गडी, जतराटांड, मंड़ा टांड, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई, नदी-नाला, पाईन-झरना सहित गैरमजरूआ आम एवं खास जमीन को भूमिं बैंक में शामिल किया गया है, को भूमिं बैंक से मुक्त करने, तथा पांचवी अनुसूचिं एवं सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू करने, तथा आॅनलाइन हो रही जमीन की हेरा-फेरी को रोकने के संबंध में।
महाशय,,
सविनयपूर्वक कहना है कि-हमारे पूर्वजों ने सांप-बिच्छू, बाघ-भालू जैसे खतरनाक जानवरों से लड़कर इस झारखंड राज्य की धरती को आबाद किया है। इतिहास गवाह है-कि जब अंग्रेजों के हुकूमत में देश गुलाम था, और आजादी के लिए देश छटपटा रहा था तब आदिवासी समुदाय के वीर नायकों ने, सिदू-कान्हू, चांद-भैरव, सिंदराय-बिंदराय, तेंलेंगा खडिया, तिलका मांझी से लेकर वीर बिरसा मुंडा के अगुवाई में देश के मुक्ति संग्राम में अपनी शहादत दी। इन्हीं वीर नायकों के खून से आदिवासी-मूलवासियों के धरोहर जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काष्तकारी अधिनियक 1908 और संताल परगना काष्तकारी अधिनियम 1949 लिखा गया। जो राज्य के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत धरोहर जल-जंगल-जमीन का सुरक्षा कवच है।
हम आप को यह भी बताना चाहते हैं-कि भारतीय संविधान ने हम आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसान समुदाय को पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांव के सीमा के भीतर एवं गांव के बाहर जंगल-झाड़, बालू-गिटी, तथा एक -एक इंच जमीन पर, ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया है।
जमीन -जंगल पर समुदाय का परंपारिक मलिकाना हक से संबंधित जमीन का अभिलेख खतियान भाग दो में गैर मजरूआ आम एवं गैरमजरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला सहित सभी तरह के समूदायिक जमीन पर समुदाय का हक दर्ज है। इसके आधार पर सरकार इस तरह के जमीन का सिर्फ संरक्षक है ;बनेजवकपंदद्ध सरकार इस जमीन का देख-रेख करती है, लेकिन मालिक नहीं है, न ही सरकार इस तरह के जमीन को बेच सकती है।
लेकिन दुखद बात है कि-सरकार हम आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत हक-अधिकार को छीन के गैर मजरूआ आम एवं खास जमीन का भूमिं बैंक बना कर, पूजिंपतियों को आॅनलाईन हस्तांत्रण कर रही है। यदि एैसा होता है-तो ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी सहित प्रकृति एवं पर्यावरण पर निर्भर समुदाय पूरी तरह समाप्त हो जाएगें। समुदाय की सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, जीविका एवं पहचान अपने आप खत्म हो जाएगा।
हम यह भी बताना चाहते हैं-कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां के जंगल-झाड़, पेड़-पैधों, नदी-नाला, झरनों में आधारित है, इसी पर पूरी ग्रामीण अथव्यवस्था टिकी हुई है, जिसका मूल स्त्रोत किसानों के जोत के अलावे गैर मजरूआ आम और गैर मजरूआ खास जमीन ही है। राज्य की जनता को इन्हीं प्रकृतिक स्त्रोतों से शुद्व भोजन, शुद्व पानी और शुद्व हवा मिल रहा है।
आज आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूदायिक धरोहर तमाम तरह के जमीन को भूमिं बैंक में शमिल कर बाहरी लोगों को आॅनलाइन हस्तंत्रित किया जा रहा हेेे-जो आदिवासी-मूलवासी, किसान समुदाय को समूल उखाड़ फेंकने की तैयारी ही माना जाएगा। इससे आदिवासी -मूलवासी समुदाय खासे चिंतित हैं।
आप को यह भी बताना चाहते है कि 95 प्रतिषत ग्रामीण आबादी न तो कमप्युटर देखी है, न ही इंटरनेट ओपरेट कर सकती है। एैसे में जमीन संबंधी सभी तरह के कार्यों को आॅनलाईन संचालित होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है।
वर्तमान सरकार द्वारा जमीन का रसीद-मलगुजारी आॅनलाइन भुगतान किया जा रहा है, इस प्रकिया में किसानों का जमीन संबंधित रेकार्ड एवं कागजातों में हेरा-फेरी किया जा रहा है। अधिकांश किसानों का जमीन आॅनलाईन खो रहा है। इससे किसानों को अपने जमीन का मलगुजारी भुगतान करने में भारी कठिनाई हो रही है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानूून के लागू होने से-एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी-मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाट, धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को इस्तेमाल करने जा रहा है।
मंच भूमि बैंक से होन वाले खतरों की ओर आप का ध्यान खिचना चाहता है-
भूमि बैंक एवं के लागू होने से आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा मंडरा रहा है-
ऽ राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल-झाड, नदी-झील-झरनों के ताना-बाना के साथ जिंदा है, वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होना सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट में प्रावधान अधिकार समाप्त हो रहा है।
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा
भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूल, मांझी-परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा। जिसका प्रभाव निम्नलिखित स्तर पर पडेगा।
1-परंपारिक आदिवासी-मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा।
2-आदिवासी-मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीय, भूगर्भीय अवस्था जो यहां के परंारिक कृर्षि, पर्यावरणीय ताना-बाना, पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
3-परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेष से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्य, सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
4-जंगल-जमीन, जलस्त्रोंतों, जंगली-झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
5-स्थानीय आदिवासी-मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगी, तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
6-सामाजिक, आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
7-आदिवासी-मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए-हम आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच आप के सामने निम्नलिखित मांग रखते हैं-
1-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
2-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
3- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
4-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
5-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
6-5वीं अनुसूचि को कडाई्र से लागू किया जाए।
7-किसानों का लोन माफ किया जाए
9-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए मनरेगा मजदूरों का मजदूरी दर 159 रू से बढ़ा कर 500 रू किया जाए
10-आदिवासी-मूलवासी विरोधी वर्तमान स्थानीयता नीति को खारिज किया जाए तथा सदियों से जल-जंगल-जमीन के साथ रचे-बसे आदिवासी-मूलवासियों के सामाजिक मूल्यों, संस्कृतिक मूल्यों, भाषा-संस्कृति इनके इतिहास को आधार बना कर 1932 के खतियान को आधार बना कर स्थानीय नीति को पूर्नभाषित करके स्थानीय नीति बनाया जाए।
11-पंचायत मुख्यालयों, प्रखंड मुख्यलयों, स्कूलों, अस्पतालों, जिला मुख्यलयों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सभी तरह के नौकरियों में बहाली की जाए।
13-सरना कोड़ लागू किया जाए।
14-किसी भी तरह का जमीन अधिग्रहण गांव सभा की इजाजत के बिना, नहीं किया जाए।
निवेदक
आदिवासी-मूलवासी असित्व रक्षा मंच
तोरपा-खूंटी
संयोजक....-दयामनी बरला अध्याक्ष-तुरतन तांपनांे
उपाध्यक्ष-राजू लोहरा
सचिव -हादू तोपनो, उपसचिव-ऐनेम तोपनो
सेवा में, पत्रांक--07
अंचल पदाधिकारी दिनांक--21 फरवरी 2019
तोरपा -खंूटी
, .
विषय- आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसानों कें परंपारिक समुदायिक धरोहर जंगल-झाडी, चरागाह, सरना-मसना, अखड़ा, ससनदिरि, हड़गडी, जतराटांड, मंड़ा टांड, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई, नदी-नाला, पाईन-झरना सहित गैरमजरूआ आम एवं खास जमीन को भूमिं बैंक में शामिल किया गया है, को भूमिं बैंक से मुक्त करने, तथा पांचवी अनुसूचिं एवं सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू करने, तथा आॅनलाइन हो रही जमीन की हेरा-फेरी को रोकने के संबंध में।
महाशय,,
सविनयपूर्वक कहना है कि-हमारे पूर्वजों ने सांप-बिच्छू, बाघ-भालू जैसे खतरनाक जानवरों से लड़कर इस झारखंड राज्य की धरती को आबाद किया है। इतिहास गवाह है-कि जब अंग्रेजों के हुकूमत में देश गुलाम था, और आजादी के लिए देश छटपटा रहा था तब आदिवासी समुदाय के वीर नायकों ने, सिदू-कान्हू, चांद-भैरव, सिंदराय-बिंदराय, तेंलेंगा खडिया, तिलका मांझी से लेकर वीर बिरसा मुंडा के अगुवाई में देश के मुक्ति संग्राम में अपनी शहादत दी। इन्हीं वीर नायकों के खून से आदिवासी-मूलवासियों के धरोहर जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काष्तकारी अधिनियक 1908 और संताल परगना काष्तकारी अधिनियम 1949 लिखा गया। जो राज्य के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत धरोहर जल-जंगल-जमीन का सुरक्षा कवच है।
हम आप को यह भी बताना चाहते हैं-कि भारतीय संविधान ने हम आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसान समुदाय को पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांव के सीमा के भीतर एवं गांव के बाहर जंगल-झाड़, बालू-गिटी, तथा एक -एक इंच जमीन पर, ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया है।
जमीन -जंगल पर समुदाय का परंपारिक मलिकाना हक से संबंधित जमीन का अभिलेख खतियान भाग दो में गैर मजरूआ आम एवं गैरमजरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला सहित सभी तरह के समूदायिक जमीन पर समुदाय का हक दर्ज है। इसके आधार पर सरकार इस तरह के जमीन का सिर्फ संरक्षक है ;बनेजवकपंदद्ध सरकार इस जमीन का देख-रेख करती है, लेकिन मालिक नहीं है, न ही सरकार इस तरह के जमीन को बेच सकती है।
लेकिन दुखद बात है कि-सरकार हम आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत हक-अधिकार को छीन के गैर मजरूआ आम एवं खास जमीन का भूमिं बैंक बना कर, पूजिंपतियों को आॅनलाईन हस्तांत्रण कर रही है। यदि एैसा होता है-तो ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी सहित प्रकृति एवं पर्यावरण पर निर्भर समुदाय पूरी तरह समाप्त हो जाएगें। समुदाय की सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, जीविका एवं पहचान अपने आप खत्म हो जाएगा।
हम यह भी बताना चाहते हैं-कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां के जंगल-झाड़, पेड़-पैधों, नदी-नाला, झरनों में आधारित है, इसी पर पूरी ग्रामीण अथव्यवस्था टिकी हुई है, जिसका मूल स्त्रोत किसानों के जोत के अलावे गैर मजरूआ आम और गैर मजरूआ खास जमीन ही है। राज्य की जनता को इन्हीं प्रकृतिक स्त्रोतों से शुद्व भोजन, शुद्व पानी और शुद्व हवा मिल रहा है।
आज आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूदायिक धरोहर तमाम तरह के जमीन को भूमिं बैंक में शमिल कर बाहरी लोगों को आॅनलाइन हस्तंत्रित किया जा रहा हेेे-जो आदिवासी-मूलवासी, किसान समुदाय को समूल उखाड़ फेंकने की तैयारी ही माना जाएगा। इससे आदिवासी -मूलवासी समुदाय खासे चिंतित हैं।
आप को यह भी बताना चाहते है कि 95 प्रतिषत ग्रामीण आबादी न तो कमप्युटर देखी है, न ही इंटरनेट ओपरेट कर सकती है। एैसे में जमीन संबंधी सभी तरह के कार्यों को आॅनलाईन संचालित होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है।
वर्तमान सरकार द्वारा जमीन का रसीद-मलगुजारी आॅनलाइन भुगतान किया जा रहा है, इस प्रकिया में किसानों का जमीन संबंधित रेकार्ड एवं कागजातों में हेरा-फेरी किया जा रहा है। अधिकांश किसानों का जमीन आॅनलाईन खो रहा है। इससे किसानों को अपने जमीन का मलगुजारी भुगतान करने में भारी कठिनाई हो रही है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानूून के लागू होने से-एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी-मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाट, धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को इस्तेमाल करने जा रहा है।
मंच भूमि बैंक से होन वाले खतरों की ओर आप का ध्यान खिचना चाहता है-
भूमि बैंक एवं के लागू होने से आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा मंडरा रहा है-
ऽ राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल-झाड, नदी-झील-झरनों के ताना-बाना के साथ जिंदा है, वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होना सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट में प्रावधान अधिकार समाप्त हो रहा है।
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा
भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूल, मांझी-परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा। जिसका प्रभाव निम्नलिखित स्तर पर पडेगा।
1-परंपारिक आदिवासी-मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा।
2-आदिवासी-मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीय, भूगर्भीय अवस्था जो यहां के परंारिक कृर्षि, पर्यावरणीय ताना-बाना, पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
3-परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेष से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्य, सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
4-जंगल-जमीन, जलस्त्रोंतों, जंगली-झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
5-स्थानीय आदिवासी-मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगी, तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
6-सामाजिक, आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
7-आदिवासी-मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए-हम आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच आप के सामने निम्नलिखित मांग रखते हैं-
1-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
2-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
3- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
4-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
5-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
6-5वीं अनुसूचि को कडाई्र से लागू किया जाए।
7-किसानों का लोन माफ किया जाए
9-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए मनरेगा मजदूरों का मजदूरी दर 159 रू से बढ़ा कर 500 रू किया जाए
10-आदिवासी-मूलवासी विरोधी वर्तमान स्थानीयता नीति को खारिज किया जाए तथा सदियों से जल-जंगल-जमीन के साथ रचे-बसे आदिवासी-मूलवासियों के सामाजिक मूल्यों, संस्कृतिक मूल्यों, भाषा-संस्कृति इनके इतिहास को आधार बना कर 1932 के खतियान को आधार बना कर स्थानीय नीति को पूर्नभाषित करके स्थानीय नीति बनाया जाए।
11-पंचायत मुख्यालयों, प्रखंड मुख्यलयों, स्कूलों, अस्पतालों, जिला मुख्यलयों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सभी तरह के नौकरियों में बहाली की जाए।
13-सरना कोड़ लागू किया जाए।
14-किसी भी तरह का जमीन अधिग्रहण गांव सभा की इजाजत के बिना, नहीं किया जाए।
निवेदक
आदिवासी-मूलवासी असित्व रक्षा मंच
तोरपा-खूंटी
संयोजक....-दयामनी बरला अध्याक्ष-तुरतन तांपनांे
उपाध्यक्ष-राजू लोहरा
सचिव -हादू तोपनो, उपसचिव-ऐनेम तोपनो
सेवा में, पत्रांक--07
प्रखंड विकास पदाधिकारी तोरपा दिनांक--21 फरवरी 2019
खूंटी
, .
विषय- आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसानों कें परंपारिक समुदायिक धरोहर जंगल-झाडी, चरागाह, सरना-मसना, अखड़ा, ससनदिरि, हड़गडी, जतराटांड, मंड़ा टांड, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई, नदी-नाला, पाईन-झरना सहित गैरमजरूआ आम एवं खास जमीन को भूमिं बैंक में शामिल किया गया है, को भूमिं बैंक से मुक्त करने, तथा पांचवी अनुसूचिं एवं सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू करने, तथा आॅनलाइन हो रही जमीन की हेरा-फेरी को रोकने के संबंध में।
महाशय,,
सविनयपूर्वक कहना है कि-हमारे पूर्वजों ने सांप-बिच्छू, बाघ-भालू जैसे खतरनाक जानवरों से लड़कर इस झारखंड राज्य की धरती को आबाद किया है। इतिहास गवाह है-कि जब अंग्रेजों के हुकूमत में देश गुलाम था, और आजादी के लिए देश छटपटा रहा था तब आदिवासी समुदाय के वीर नायकों ने, सिदू-कान्हू, चांद-भैरव, सिंदराय-बिंदराय, तेंलेंगा खडिया, तिलका मांझी से लेकर वीर बिरसा मुंडा के अगुवाई में देश के मुक्ति संग्राम में अपनी शहादत दी। इन्हीं वीर नायकों के खून से आदिवासी-मूलवासियों के धरोहर जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काष्तकारी अधिनियक 1908 और संताल परगना काष्तकारी अधिनियम 1949 लिखा गया। जो राज्य के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत धरोहर जल-जंगल-जमीन का सुरक्षा कवच है।
हम आप को यह भी बताना चाहते हैं-कि भारतीय संविधान ने हम आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसान समुदाय को पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांव के सीमा के भीतर एवं गांव के बाहर जंगल-झाड़, बालू-गिटी, तथा एक -एक इंच जमीन पर, ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया है।
जमीन -जंगल पर समुदाय का परंपारिक मलिकाना हक से संबंधित जमीन का अभिलेख खतियान भाग दो में गैर मजरूआ आम एवं गैरमजरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला सहित सभी तरह के समूदायिक जमीन पर समुदाय का हक दर्ज है। इसके आधार पर सरकार इस तरह के जमीन का सिर्फ संरक्षक है ;बनेजवकपंदद्ध सरकार इस जमीन का देख-रेख करती है, लेकिन मालिक नहीं है, न ही सरकार इस तरह के जमीन को बेच सकती है।
लेकिन दुखद बात है कि-सरकार हम आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत हक-अधिकार को छीन के गैर मजरूआ आम एवं खास जमीन का भूमिं बैंक बना कर, पूजिंपतियों को आॅनलाईन हस्तांत्रण कर रही है। यदि एैसा होता है-तो ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी सहित प्रकृति एवं पर्यावरण पर निर्भर समुदाय पूरी तरह समाप्त हो जाएगें। समुदाय की सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, जीविका एवं पहचान अपने आप खत्म हो जाएगा।
हम यह भी बताना चाहते हैं-कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां के जंगल-झाड़, पेड़-पैधों, नदी-नाला, झरनों में आधारित है, इसी पर पूरी ग्रामीण अथव्यवस्था टिकी हुई है, जिसका मूल स्त्रोत किसानों के जोत के अलावे गैर मजरूआ आम और गैर मजरूआ खास जमीन ही है। राज्य की जनता को इन्हीं प्रकृतिक स्त्रोतों से शुद्व भोजन, शुद्व पानी और शुद्व हवा मिल रहा है।
आज आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूदायिक धरोहर तमाम तरह के जमीन को भूमिं बैंक में शमिल कर बाहरी लोगों को आॅनलाइन हस्तंत्रित किया जा रहा हेेे-जो आदिवासी-मूलवासी, किसान समुदाय को समूल उखाड़ फेंकने की तैयारी ही माना जाएगा। इससे आदिवासी -मूलवासी समुदाय खासे चिंतित हैं।
आप को यह भी बताना चाहते है कि 95 प्रतिषत ग्रामीण आबादी न तो कमप्युटर देखी है, न ही इंटरनेट ओपरेट कर सकती है। एैसे में जमीन संबंधी सभी तरह के कार्यों को आॅनलाईन संचालित होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है।
वर्तमान सरकार द्वारा जमीन का रसीद-मलगुजारी आॅनलाइन भुगतान किया जा रहा है, इस प्रकिया में किसानों का जमीन संबंधित रेकार्ड एवं कागजातों में हेरा-फेरी किया जा रहा है। अधिकांश किसानों का जमीन आॅनलाईन खो रहा है। इससे किसानों को अपने जमीन का मलगुजारी भुगतान करने में भारी कठिनाई हो रही है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानूून के लागू होने से-एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी-मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाट, धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को इस्तेमाल करने जा रहा है।
मंच भूमि बैंक से होन वाले खतरों की ओर आप का ध्यान खिचना चाहता है-
भूमि बैंक एवं के लागू होने से आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा मंडरा रहा है-
ऽ राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल-झाड, नदी-झील-झरनों के ताना-बाना के साथ जिंदा है, वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होना सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट में प्रावधान अधिकार समाप्त हो रहा है।
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा
भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूल, मांझी-परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा। जिसका प्रभाव निम्नलिखित स्तर पर पडेगा।
1-परंपारिक आदिवासी-मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा।
2-आदिवासी-मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीय, भूगर्भीय अवस्था जो यहां के परंारिक कृर्षि, पर्यावरणीय ताना-बाना, पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
3-परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेष से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्य, सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
4-जंगल-जमीन, जलस्त्रोंतों, जंगली-झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
5-स्थानीय आदिवासी-मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगी, तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
6-सामाजिक, आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
7-आदिवासी-मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए-हम आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच आप के सामने निम्नलिखित मांग रखते हैं-
1-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
2-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
3- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
4-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
5-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
6-5वीं अनुसूचि को कडाई्र से लागू किया जाए।
7-किसानों का लोन माफ किया जाए
9-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए मनरेगा मजदूरों का मजदूरी दर 159 रू से बढ़ा कर 500 रू किया जाए
10-आदिवासी-मूलवासी विरोधी वर्तमान स्थानीयता नीति को खारिज किया जाए तथा सदियों से जल-जंगल-जमीन के साथ रचे-बसे आदिवासी-मूलवासियों के सामाजिक मूल्यों, संस्कृतिक मूल्यों, भाषा-संस्कृति इनके इतिहास को आधार बना कर 1932 के खतियान को आधार बना कर स्थानीय नीति को पूर्नभाषित करके स्थानीय नीति बनाया जाए।
11-पंचायत मुख्यालयों, प्रखंड मुख्यलयों, स्कूलों, अस्पतालों, जिला मुख्यलयों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सभी तरह के नौकरियों में बहाली की जाए।
13-सरना कोड़ लागू किया जाए।
14-किसी भी तरह का जमीन अधिग्रहण गांव सभा की इजाजत के बिना, नहीं किया जाए।
निवेदक
आदिवासी-मूलवासी असित्व रक्षा मंच
तोरपा-खूंटी
संयोजक....-दयामनी बरला अध्याक्ष-तुरतन तांपनांे
उपाध्यक्ष-राजू लोहरा
सचिव -हादू तोपनो, उपसचिव-ऐनेम तोपनो
जिला गुमला
सेवा में,
महामहिम राज्यपाल महोदया,
झारखंड
द्वारा-प्रखंड विकास पदाधिकारी-कमडारा
महोदया , पत्रांक.....07.
दिनांक.....22 फरवरी 2019
विषय- आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसानों कें परंपारिक समुदायिक धरोहर जंगल-झाडी, चरागाह, सरना-मसना, अखड़ा, ससनदिरि, हड़गडी, जतराटांड, मंड़ा टांड, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई, नदी-नाला, पाईन-झरना सहित गैरमजरूआ आम एवं खास जमीन को भूमिं बैंक में शामिल किया गया है, को भूमिं बैंक से मुक्त करने, तथा पांचवी अनुसूचिं एवं सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू करने, तथा आॅनलाइन हो रही जमीन की हेरा-फेरी को रोकने के संबंध में।
महाशय,
सविनयपूर्वक कहना है कि-हमारे पूर्वजों ने सांप-बिच्छू, बाघ-भालू जैसे खतरनाक जानवरों से लड़कर इस झारखंड राज्य की धरती को आबाद किया है। इतिहास गवाह है-कि जब अंग्रेजों के हुकूमत में देश गुलाम था, और आजादी के लिए देश छटपटा रहा था तब आदिवासी समुदाय के वीर नायकों ने, सिदू-कान्हू, चांद-भैरव, सिंदराय-बिंदराय, तेंलेंगा खडिया, तिलका मांझी से लेकर वीर बिरसा मुंडा के अगुवाई में देश के मुक्ति संग्राम में अपनी शहादत दी। इन्हीं वीर नायकों के खून से आदिवासी-मूलवासियों के धरोहर जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काष्तकारी अधिनियक 1908 और संताल परगना काष्तकारी अधिनियम 1949 लिखा गया। जो राज्य के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत धरोहर जल-जंगल-जमीन का सुरक्षा कवच है।
हम आप को यह भी बताना चाहते हैं-कि भारतीय संविधान ने हम आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसान समुदाय को पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांव के सीमा के भीतर एवं गांव के बाहर जंगल-झाड़, बालू-गिटी, तथा एक -एक इंच जमीन पर, ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया है।
जमीन -जंगल पर समुदाय का परंपारिक मलिकाना हक से संबंधित जमीन का अभिलेख खतियान भाग दो में गैर मजरूआ आम एवं गैरमजरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला सहित सभी तरह के समूदायिक जमीन पर समुदाय का हक दर्ज है। इसके आधार पर सरकार इस तरह के जमीन का सिर्फ संरक्षक है ;बनेजवकपंदद्ध सरकार इस जमीन का देख-रेख करती है, लेकिन मालिक नहीं है, न ही सरकार इस तरह के जमीन को बेच सकती है।
लेकिन दुखद बात है कि-सरकार हम आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत हक-अधिकार को छीन के गैर मजरूआ आम एवं खास जमीन का भूमिं बैंक बना कर, पूजिंपतियों को आॅनलाईन हस्तांत्रण कर रही है। यदि एैसा होता है-तो ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी सहित प्रकृति एवं पर्यावरण पर निर्भर समुदाय पूरी तरह समाप्त हो जाएगें। समुदाय की सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, जीविका एवं पहचान अपने आप खत्म हो जाएगा।
हम यह भी बताना चाहते हैं-कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां के जंगल-झाड़, पेड़-पैधों, नदी-नाला, झरनों में आधारित है, इसी पर पूरी ग्रामीण अथव्यवस्था टिकी हुई है, जिसका मूल स्त्रोत किसानों के जोत के अलावे गैर मजरूआ आम और गैर मजरूआ खास जमीन ही है। राज्य की जनता को इन्हीं प्रकृतिक स्त्रोतों से शुद्व भोजन, शुद्व पानी और शुद्व हवा मिल रहा है।
आज आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूदायिक धरोहर तमाम तरह के जमीन को भूमिं बैंक में शमिल कर बाहरी लोगों को आॅनलाइन हस्तंत्रित किया जा रहा हेेे-जो आदिवासी-मूलवासी, किसान समुदाय को समूल उखाड़ फेंकने की तैयारी ही माना जाएगा। इससे आदिवासी -मूलवासी समुदाय खासे चिंतित हैं।
आप को यह भी बताना चाहते है कि 95 प्रतिषत ग्रामीण आबादी न तो कमप्युटर देखी है, न ही इंटरनेट ओपरेट कर सकती है। एैसे में जमीन संबंधी सभी तरह के कार्यों को आॅनलाईन संचालित होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है।
वर्तमान सरकार द्वारा जमीन का रसीद-मलगुजारी आॅनलाइन भुगतान किया जा रहा है, इस प्रकिया में किसानों का जमीन संबंधित रेकार्ड एवं कागजातों में हेरा-फेरी किया जा रहा है। अधिकांश किसानों का जमीन आॅनलाईन खो रहा है। इससे किसानों को अपने जमीन का मलगुजारी भुगतान करने में भारी कठिनाई हो रही है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानूून के लागू होने से-एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी-मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाट, धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को इस्तेमाल करने जा रहा है।
मंच भूमि बैंक से होन वाले खतरों की ओर आप का ध्यान खिचना चाहता है-
भूमि बैंक एवं के लागू होने से आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा मंडरा रहा है-
ऽ राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल-झाड, नदी-झील-झरनों के ताना-बाना के साथ जिंदा है, वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होना सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट में प्रावधान अधिकार समाप्त हो रहा है।
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा
भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूल, मांझी-परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा। जिसका प्रभाव निम्नलिखित स्तर पर पडेगा।
1-परंपारिक आदिवासी-मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा।
2-आदिवासी-मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीय, भूगर्भीय अवस्था जो यहां के परंारिक कृर्षि, पर्यावरणीय ताना-बाना, पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
3-परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेष से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्य, सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
4-जंगल-जमीन, जलस्त्रोंतों, जंगली-झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
5-स्थानीय आदिवासी-मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगी, तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
6-सामाजिक, आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
7-आदिवासी-मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए-हम आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच आप के सामने निम्नलिखित मांग रखते हैं-
1-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
2-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
3- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
4-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
5-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
6-5वीं अनुसूचि को कडाई्र से लागू किया जाए।
7-किसानों का लोन माफ किया जाए
9-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए मनरेगा मजदूरों का मजदूरी दर 159 रू से बढ़ा कर 500 रू किया जाए
10-आदिवासी-मूलवासी विरोधी वर्तमान स्थानीयता नीति को खारिज किया जाए तथा सदियों से जल-जंगल-जमीन के साथ रचे-बसे आदिवासी-मूलवासियों के सामाजिक मूल्यों, संस्कृतिक मूल्यों, भाषा-संस्कृति इनके इतिहास को आधार बना कर 1932 के खतियान को आधार बना कर स्थानीय नीति को पूर्नभाषित करके स्थानीय नीति बनाया जाए।
11-पंचायत मुख्यालयों, प्रखंड मुख्यलयों, स्कूलों, अस्पतालों, जिला मुख्यलयों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सभी तरह के नौकरियों में बहाली की जाए।
13-सरना कोड़ लागू किया जाए।
14-किसी भी तरह का जमीन अधिग्रहण गांव सभा की इजाजत के बिना, नहीं किया जाए।
निवेदक
आदिवासी-मूलवासी असित्व रक्षा मंच
तोरपा-खूंटी
संयोजक....-दयामनी बरला अध्याक्ष-तुरतन तांपनांे
उपाध्यक्ष-राजू लोहरा
सचिव -हादू तोपनो, उपसचिव-ऐनेम तोपनो
सेवा में,
भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग
झारखंड सरकार
द्वारा-प्रखंड विकास पदाधिकारी-कमडारा
, पत्रांक.....02..
दिनांक.....22 फरवरी 2019.
विषय- आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसानों कें परंपारिक समुदायिक धरोहर जंगल-झाडी, चरागाह, सरना-मसना, अखड़ा, ससनदिरि, हड़गडी, जतराटांड, मंड़ा टांड, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई, नदी-नाला, पाईन-झरना सहित गैरमजरूआ आम एवं खास जमीन को भूमिं बैंक में शामिल किया गया है, को भूमिं बैंक से मुक्त करने, तथा पांचवी अनुसूचिं एवं सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू करने, तथा आॅनलाइन हो रही जमीन की हेरा-फेरी को रोकने के संबंध में।
महाशय,,
सविनयपूर्वक कहना है कि-हमारे पूर्वजों ने सांप-बिच्छू, बाघ-भालू जैसे खतरनाक जानवरों से लड़कर इस झारखंड राज्य की धरती को आबाद किया है। इतिहास गवाह है-कि जब अंग्रेजों के हुकूमत में देश गुलाम था, और आजादी के लिए देश छटपटा रहा था तब आदिवासी समुदाय के वीर नायकों ने, सिदू-कान्हू, चांद-भैरव, सिंदराय-बिंदराय, तेंलेंगा खडिया, तिलका मांझी से लेकर वीर बिरसा मुंडा के अगुवाई में देश के मुक्ति संग्राम में अपनी शहादत दी। इन्हीं वीर नायकों के खून से आदिवासी-मूलवासियों के धरोहर जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काष्तकारी अधिनियक 1908 और संताल परगना काष्तकारी अधिनियम 1949 लिखा गया। जो राज्य के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत धरोहर जल-जंगल-जमीन का सुरक्षा कवच है।
हम आप को यह भी बताना चाहते हैं-कि भारतीय संविधान ने हम आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसान समुदाय को पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांव के सीमा के भीतर एवं गांव के बाहर जंगल-झाड़, बालू-गिटी, तथा एक -एक इंच जमीन पर, ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया है।
जमीन -जंगल पर समुदाय का परंपारिक मलिकाना हक से संबंधित जमीन का अभिलेख खतियान भाग दो में गैर मजरूआ आम एवं गैरमजरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला सहित सभी तरह के समूदायिक जमीन पर समुदाय का हक दर्ज है। इसके आधार पर सरकार इस तरह के जमीन का सिर्फ संरक्षक है ;बनेजवकपंदद्ध सरकार इस जमीन का देख-रेख करती है, लेकिन मालिक नहीं है, न ही सरकार इस तरह के जमीन को बेच सकती है।
लेकिन दुखद बात है कि-सरकार हम आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत हक-अधिकार को छीन के गैर मजरूआ आम एवं खास जमीन का भूमिं बैंक बना कर, पूजिंपतियों को आॅनलाईन हस्तांत्रण कर रही है। यदि एैसा होता है-तो ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी सहित प्रकृति एवं पर्यावरण पर निर्भर समुदाय पूरी तरह समाप्त हो जाएगें। समुदाय की सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, जीविका एवं पहचान अपने आप खत्म हो जाएगा।
हम यह भी बताना चाहते हैं-कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां के जंगल-झाड़, पेड़-पैधों, नदी-नाला, झरनों में आधारित है, इसी पर पूरी ग्रामीण अथव्यवस्था टिकी हुई है, जिसका मूल स्त्रोत किसानों के जोत के अलावे गैर मजरूआ आम और गैर मजरूआ खास जमीन ही है। राज्य की जनता को इन्हीं प्रकृतिक स्त्रोतों से शुद्व भोजन, शुद्व पानी और शुद्व हवा मिल रहा है।
आज आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूदायिक धरोहर तमाम तरह के जमीन को भूमिं बैंक में शमिल कर बाहरी लोगों को आॅनलाइन हस्तंत्रित किया जा रहा हेेे-जो आदिवासी-मूलवासी, किसान समुदाय को समूल उखाड़ फेंकने की तैयारी ही माना जाएगा। इससे आदिवासी -मूलवासी समुदाय खासे चिंतित हैं।
आप को यह भी बताना चाहते है कि 95 प्रतिषत ग्रामीण आबादी न तो कमप्युटर देखी है, न ही इंटरनेट ओपरेट कर सकती है। एैसे में जमीन संबंधी सभी तरह के कार्यों को आॅनलाईन संचालित होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है।
वर्तमान सरकार द्वारा जमीन का रसीद-मलगुजारी आॅनलाइन भुगतान किया जा रहा है, इस प्रकिया में किसानों का जमीन संबंधित रेकार्ड एवं कागजातों में हेरा-फेरी किया जा रहा है। अधिकांश किसानों का जमीन आॅनलाईन खो रहा है। इससे किसानों को अपने जमीन का मलगुजारी भुगतान करने में भारी कठिनाई हो रही है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानूून के लागू होने से-एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी-मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाट, धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को इस्तेमाल करने जा रहा है।
मंच भूमि बैंक से होन वाले खतरों की ओर आप का ध्यान खिचना चाहता है-
भूमि बैंक एवं के लागू होने से आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा मंडरा रहा है-
ऽ राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल-झाड, नदी-झील-झरनों के ताना-बाना के साथ जिंदा है, वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होना सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट में प्रावधान अधिकार समाप्त हो रहा है।
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा
भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूल, मांझी-परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा। जिसका प्रभाव निम्नलिखित स्तर पर पडेगा।
1-परंपारिक आदिवासी-मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा।
2-आदिवासी-मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीय, भूगर्भीय अवस्था जो यहां के परंारिक कृर्षि, पर्यावरणीय ताना-बाना, पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
3-परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेष से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्य, सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
4-जंगल-जमीन, जलस्त्रोंतों, जंगली-झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
5-स्थानीय आदिवासी-मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगी, तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
6-सामाजिक, आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
7-आदिवासी-मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए-हम आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच आप के सामने निम्नलिखित मांग रखते हैं-
1-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
2-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
3- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
4-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
5-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
6-5वीं अनुसूचि में प्रावधान कानून का पालन किया जाए
निवेदक
आदिवासी-मूलवासी असित्व रक्षा मंच
तोरपा-खूंटी
संयोजक....-दयामनी बरला अध्याक्ष-तुरतन तांपनांे
उपाध्यक्ष-राजू लोहरा
सचिव -हादू तोपनो, उपसचिव-ऐनेम तोपनो
सेवा में,
डपायुक्त महोदय
गुमला
द्वारा-प्रखंड विकास पदाधिकारी-कमडारा
, पत्रांक.....07..
दिनांक.....22 फरवरी 2019.
विषय- आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसानों कें परंपारिक समुदायिक धरोहर जंगल-झाडी, चरागाह, सरना-मसना, अखड़ा, ससनदिरि, हड़गडी, जतराटांड, मंड़ा टांड, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई, नदी-नाला, पाईन-झरना सहित गैरमजरूआ आम एवं खास जमीन को भूमिं बैंक में शामिल किया गया है, को भूमिं बैंक से मुक्त करने, तथा पांचवी अनुसूचिं एवं सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू करने, तथा आॅनलाइन हो रही जमीन की हेरा-फेरी को रोकने के संबंध में।
महाशय,,
सविनयपूर्वक कहना है कि-हमारे पूर्वजों ने सांप-बिच्छू, बाघ-भालू जैसे खतरनाक जानवरों से लड़कर इस झारखंड राज्य की धरती को आबाद किया है। इतिहास गवाह है-कि जब अंग्रेजों के हुकूमत में देश गुलाम था, और आजादी के लिए देश छटपटा रहा था तब आदिवासी समुदाय के वीर नायकों ने, सिदू-कान्हू, चांद-भैरव, सिंदराय-बिंदराय, तेंलेंगा खडिया, तिलका मांझी से लेकर वीर बिरसा मुंडा के अगुवाई में देश के मुक्ति संग्राम में अपनी शहादत दी। इन्हीं वीर नायकों के खून से आदिवासी-मूलवासियों के धरोहर जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काष्तकारी अधिनियक 1908 और संताल परगना काष्तकारी अधिनियम 1949 लिखा गया। जो राज्य के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत धरोहर जल-जंगल-जमीन का सुरक्षा कवच है।
हम आप को यह भी बताना चाहते हैं-कि भारतीय संविधान ने हम आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसान समुदाय को पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांव के सीमा के भीतर एवं गांव के बाहर जंगल-झाड़, बालू-गिटी, तथा एक -एक इंच जमीन पर, ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया है।
जमीन -जंगल पर समुदाय का परंपारिक मलिकाना हक से संबंधित जमीन का अभिलेख खतियान भाग दो में गैर मजरूआ आम एवं गैरमजरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला सहित सभी तरह के समूदायिक जमीन पर समुदाय का हक दर्ज है। इसके आधार पर सरकार इस तरह के जमीन का सिर्फ संरक्षक है ;बनेजवकपंदद्ध सरकार इस जमीन का देख-रेख करती है, लेकिन मालिक नहीं है, न ही सरकार इस तरह के जमीन को बेच सकती है।
लेकिन दुखद बात है कि-सरकार हम आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत हक-अधिकार को छीन के गैर मजरूआ आम एवं खास जमीन का भूमिं बैंक बना कर, पूजिंपतियों को आॅनलाईन हस्तांत्रण कर रही है। यदि एैसा होता है-तो ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी सहित प्रकृति एवं पर्यावरण पर निर्भर समुदाय पूरी तरह समाप्त हो जाएगें। समुदाय की सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, जीविका एवं पहचान अपने आप खत्म हो जाएगा।
हम यह भी बताना चाहते हैं-कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां के जंगल-झाड़, पेड़-पैधों, नदी-नाला, झरनों में आधारित है, इसी पर पूरी ग्रामीण अथव्यवस्था टिकी हुई है, जिसका मूल स्त्रोत किसानों के जोत के अलावे गैर मजरूआ आम और गैर मजरूआ खास जमीन ही है। राज्य की जनता को इन्हीं प्रकृतिक स्त्रोतों से शुद्व भोजन, शुद्व पानी और शुद्व हवा मिल रहा है।
आज आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूदायिक धरोहर तमाम तरह के जमीन को भूमिं बैंक में शमिल कर बाहरी लोगों को आॅनलाइन हस्तंत्रित किया जा रहा हेेे-जो आदिवासी-मूलवासी, किसान समुदाय को समूल उखाड़ फेंकने की तैयारी ही माना जाएगा। इससे आदिवासी -मूलवासी समुदाय खासे चिंतित हैं।
आप को यह भी बताना चाहते है कि 95 प्रतिषत ग्रामीण आबादी न तो कमप्युटर देखी है, न ही इंटरनेट ओपरेट कर सकती है। एैसे में जमीन संबंधी सभी तरह के कार्यों को आॅनलाईन संचालित होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है।
वर्तमान सरकार द्वारा जमीन का रसीद-मलगुजारी आॅनलाइन भुगतान किया जा रहा है, इस प्रकिया में किसानों का जमीन संबंधित रेकार्ड एवं कागजातों में हेरा-फेरी किया जा रहा है। अधिकांश किसानों का जमीन आॅनलाईन खो रहा है। इससे किसानों को अपने जमीन का मलगुजारी भुगतान करने में भारी कठिनाई हो रही है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानूून के लागू होने से-एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी-मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाट, धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को इस्तेमाल करने जा रहा है।
मंच भूमि बैंक से होन वाले खतरों की ओर आप का ध्यान खिचना चाहता है-
भूमि बैंक एवं के लागू होने से आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा मंडरा रहा है-
ऽ राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल-झाड, नदी-झील-झरनों के ताना-बाना के साथ जिंदा है, वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होना सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट में प्रावधान अधिकार समाप्त हो रहा है।
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा
भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूल, मांझी-परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा। जिसका प्रभाव निम्नलिखित स्तर पर पडेगा।
1-परंपारिक आदिवासी-मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा।
2-आदिवासी-मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीय, भूगर्भीय अवस्था जो यहां के परंारिक कृर्षि, पर्यावरणीय ताना-बाना, पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
3-परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेष से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्य, सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
4-जंगल-जमीन, जलस्त्रोंतों, जंगली-झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
5-स्थानीय आदिवासी-मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगी, तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
6-सामाजिक, आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
7-आदिवासी-मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए-हम आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच आप के सामने निम्नलिखित मांग रखते हैं-
1-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
2-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
3- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
4-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
5-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
6-5वीं अनुसूचि को कडाई्र से लागू किया जाए।
7-किसानों का लोन माफ किया जाए
9-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए मनरेगा मजदूरों का मजदूरी दर 159 रू से बढ़ा कर 500 रू किया जाए
10-आदिवासी-मूलवासी विरोधी वर्तमान स्थानीयता नीति को खारिज किया जाए तथा सदियों से जल-जंगल-जमीन के साथ रचे-बसे आदिवासी-मूलवासियों के सामाजिक मूल्यों, संस्कृतिक मूल्यों, भाषा-संस्कृति इनके इतिहास को आधार बना कर 1932 के खतियान को आधार बना कर स्थानीय नीति को पूर्नभाषित करके स्थानीय नीति बनाया जाए।
11-पंचायत मुख्यालयों, प्रखंड मुख्यलयों, स्कूलों, अस्पतालों, जिला मुख्यलयों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सभी तरह के नौकरियों में बहाली की जाए।
13-सरना कोड़ लागू किया जाए।
14-किसी भी तरह का जमीन अधिग्रहण गांव सभा की इजाजत के बिना, नहीं किया जाए।
निवेदक
आदिवासी-मूलवासी असित्व रक्षा मंच
तोरपा-खूंटी
संयोजक....-दयामनी बरला अध्याक्ष-तुरतन तांपनांे
उपाध्यक्ष-राजू लोहरा
सचिव -हादू तोपनो, उपसचिव-ऐनेम तोपनो
सेवा में, पत्रांक--07
अंचल पदाधिकारी दिनांक--22 फरवरी 2019
कमडारा
, .
विषय- आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसानों कें परंपारिक समुदायिक धरोहर जंगल-झाडी, चरागाह, सरना-मसना, अखड़ा, ससनदिरि, हड़गडी, जतराटांड, मंड़ा टांड, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई, नदी-नाला, पाईन-झरना सहित गैरमजरूआ आम एवं खास जमीन को भूमिं बैंक में शामिल किया गया है, को भूमिं बैंक से मुक्त करने, तथा पांचवी अनुसूचिं एवं सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू करने, तथा आॅनलाइन हो रही जमीन की हेरा-फेरी को रोकने के संबंध में।
महाशय,,
सविनयपूर्वक कहना है कि-हमारे पूर्वजों ने सांप-बिच्छू, बाघ-भालू जैसे खतरनाक जानवरों से लड़कर इस झारखंड राज्य की धरती को आबाद किया है। इतिहास गवाह है-कि जब अंग्रेजों के हुकूमत में देश गुलाम था, और आजादी के लिए देश छटपटा रहा था तब आदिवासी समुदाय के वीर नायकों ने, सिदू-कान्हू, चांद-भैरव, सिंदराय-बिंदराय, तेंलेंगा खडिया, तिलका मांझी से लेकर वीर बिरसा मुंडा के अगुवाई में देश के मुक्ति संग्राम में अपनी शहादत दी। इन्हीं वीर नायकों के खून से आदिवासी-मूलवासियों के धरोहर जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काष्तकारी अधिनियक 1908 और संताल परगना काष्तकारी अधिनियम 1949 लिखा गया। जो राज्य के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत धरोहर जल-जंगल-जमीन का सुरक्षा कवच है।
हम आप को यह भी बताना चाहते हैं-कि भारतीय संविधान ने हम आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसान समुदाय को पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांव के सीमा के भीतर एवं गांव के बाहर जंगल-झाड़, बालू-गिटी, तथा एक -एक इंच जमीन पर, ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया है।
जमीन -जंगल पर समुदाय का परंपारिक मलिकाना हक से संबंधित जमीन का अभिलेख खतियान भाग दो में गैर मजरूआ आम एवं गैरमजरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला सहित सभी तरह के समूदायिक जमीन पर समुदाय का हक दर्ज है। इसके आधार पर सरकार इस तरह के जमीन का सिर्फ संरक्षक है ;बनेजवकपंदद्ध सरकार इस जमीन का देख-रेख करती है, लेकिन मालिक नहीं है, न ही सरकार इस तरह के जमीन को बेच सकती है।
लेकिन दुखद बात है कि-सरकार हम आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत हक-अधिकार को छीन के गैर मजरूआ आम एवं खास जमीन का भूमिं बैंक बना कर, पूजिंपतियों को आॅनलाईन हस्तांत्रण कर रही है। यदि एैसा होता है-तो ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी सहित प्रकृति एवं पर्यावरण पर निर्भर समुदाय पूरी तरह समाप्त हो जाएगें। समुदाय की सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, जीविका एवं पहचान अपने आप खत्म हो जाएगा।
हम यह भी बताना चाहते हैं-कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां के जंगल-झाड़, पेड़-पैधों, नदी-नाला, झरनों में आधारित है, इसी पर पूरी ग्रामीण अथव्यवस्था टिकी हुई है, जिसका मूल स्त्रोत किसानों के जोत के अलावे गैर मजरूआ आम और गैर मजरूआ खास जमीन ही है। राज्य की जनता को इन्हीं प्रकृतिक स्त्रोतों से शुद्व भोजन, शुद्व पानी और शुद्व हवा मिल रहा है।
आज आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूदायिक धरोहर तमाम तरह के जमीन को भूमिं बैंक में शमिल कर बाहरी लोगों को आॅनलाइन हस्तंत्रित किया जा रहा हेेे-जो आदिवासी-मूलवासी, किसान समुदाय को समूल उखाड़ फेंकने की तैयारी ही माना जाएगा। इससे आदिवासी -मूलवासी समुदाय खासे चिंतित हैं।
आप को यह भी बताना चाहते है कि 95 प्रतिषत ग्रामीण आबादी न तो कमप्युटर देखी है, न ही इंटरनेट ओपरेट कर सकती है। एैसे में जमीन संबंधी सभी तरह के कार्यों को आॅनलाईन संचालित होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है।
वर्तमान सरकार द्वारा जमीन का रसीद-मलगुजारी आॅनलाइन भुगतान किया जा रहा है, इस प्रकिया में किसानों का जमीन संबंधित रेकार्ड एवं कागजातों में हेरा-फेरी किया जा रहा है। अधिकांश किसानों का जमीन आॅनलाईन खो रहा है। इससे किसानों को अपने जमीन का मलगुजारी भुगतान करने में भारी कठिनाई हो रही है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानूून के लागू होने से-एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी-मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाट, धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को इस्तेमाल करने जा रहा है।
मंच भूमि बैंक से होन वाले खतरों की ओर आप का ध्यान खिचना चाहता है-
भूमि बैंक एवं के लागू होने से आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा मंडरा रहा है-
ऽ राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल-झाड, नदी-झील-झरनों के ताना-बाना के साथ जिंदा है, वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होना सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट में प्रावधान अधिकार समाप्त हो रहा है।
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा
भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूल, मांझी-परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा। जिसका प्रभाव निम्नलिखित स्तर पर पडेगा।
1-परंपारिक आदिवासी-मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा।
2-आदिवासी-मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीय, भूगर्भीय अवस्था जो यहां के परंारिक कृर्षि, पर्यावरणीय ताना-बाना, पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
3-परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेष से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्य, सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
4-जंगल-जमीन, जलस्त्रोंतों, जंगली-झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
5-स्थानीय आदिवासी-मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगी, तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
6-सामाजिक, आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
7-आदिवासी-मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए-हम आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच आप के सामने निम्नलिखित मांग रखते हैं-
1-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
2-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
3- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
4-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
5-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
6-5वीं अनुसूचि को कडाई्र से लागू किया जाए।
7-किसानों का लोन माफ किया जाए
9-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए मनरेगा मजदूरों का मजदूरी दर 159 रू से बढ़ा कर 500 रू किया जाए
10-आदिवासी-मूलवासी विरोधी वर्तमान स्थानीयता नीति को खारिज किया जाए तथा सदियों से जल-जंगल-जमीन के साथ रचे-बसे आदिवासी-मूलवासियों के सामाजिक मूल्यों, संस्कृतिक मूल्यों, भाषा-संस्कृति इनके इतिहास को आधार बना कर 1932 के खतियान को आधार बना कर स्थानीय नीति को पूर्नभाषित करके स्थानीय नीति बनाया जाए।
11-पंचायत मुख्यालयों, प्रखंड मुख्यलयों, स्कूलों, अस्पतालों, जिला मुख्यलयों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सभी तरह के नौकरियों में बहाली की जाए।
13-सरना कोड़ लागू किया जाए।
14-किसी भी तरह का जमीन अधिग्रहण गांव सभा की इजाजत के बिना, नहीं किया जाए।
निवेदक
आदिवासी-मूलवासी असित्व रक्षा मंच
तोरपा-खूंटी
संयोजक....-दयामनी बरला अध्याक्ष-तुरतन तांपनांे
उपाध्यक्ष-राजू लोहरा
सचिव -हादू तोपनो, उपसचिव-ऐनेम तोपनो
सेवा में, पत्रांक--07
प्रखंड विकास पदाधिकारी कमडारा दिनांक--22 फरवरी 2019
जिला-गुमलाा
, .
विषय- आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसानों कें परंपारिक समुदायिक धरोहर जंगल-झाडी, चरागाह, सरना-मसना, अखड़ा, ससनदिरि, हड़गडी, जतराटांड, मंड़ा टांड, भूतखेता, डालीकतारी, पहनाई, नदी-नाला, पाईन-झरना सहित गैरमजरूआ आम एवं खास जमीन को भूमिं बैंक में शामिल किया गया है, को भूमिं बैंक से मुक्त करने, तथा पांचवी अनुसूचिं एवं सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू करने, तथा आॅनलाइन हो रही जमीन की हेरा-फेरी को रोकने के संबंध में।
महाशय,,
सविनयपूर्वक कहना है कि-हमारे पूर्वजों ने सांप-बिच्छू, बाघ-भालू जैसे खतरनाक जानवरों से लड़कर इस झारखंड राज्य की धरती को आबाद किया है। इतिहास गवाह है-कि जब अंग्रेजों के हुकूमत में देश गुलाम था, और आजादी के लिए देश छटपटा रहा था तब आदिवासी समुदाय के वीर नायकों ने, सिदू-कान्हू, चांद-भैरव, सिंदराय-बिंदराय, तेंलेंगा खडिया, तिलका मांझी से लेकर वीर बिरसा मुंडा के अगुवाई में देश के मुक्ति संग्राम में अपनी शहादत दी। इन्हीं वीर नायकों के खून से आदिवासी-मूलवासियों के धरोहर जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर काष्तकारी अधिनियक 1908 और संताल परगना काष्तकारी अधिनियम 1949 लिखा गया। जो राज्य के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत धरोहर जल-जंगल-जमीन का सुरक्षा कवच है।
हम आप को यह भी बताना चाहते हैं-कि भारतीय संविधान ने हम आदिवासी-मूलवासी ग्रामीण किसान समुदाय को पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में गांव के सीमा के भीतर एवं गांव के बाहर जंगल-झाड़, बालू-गिटी, तथा एक -एक इंच जमीन पर, ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया है।
जमीन -जंगल पर समुदाय का परंपारिक मलिकाना हक से संबंधित जमीन का अभिलेख खतियान भाग दो में गैर मजरूआ आम एवं गैरमजरूआ खास, जंगल-झाडी, नदी-नाला सहित सभी तरह के समूदायिक जमीन पर समुदाय का हक दर्ज है। इसके आधार पर सरकार इस तरह के जमीन का सिर्फ संरक्षक है ;बनेजवकपंदद्ध सरकार इस जमीन का देख-रेख करती है, लेकिन मालिक नहीं है, न ही सरकार इस तरह के जमीन को बेच सकती है।
लेकिन दुखद बात है कि-सरकार हम आदिवासी-मूलवासी किसानों के परंपरागत हक-अधिकार को छीन के गैर मजरूआ आम एवं खास जमीन का भूमिं बैंक बना कर, पूजिंपतियों को आॅनलाईन हस्तांत्रण कर रही है। यदि एैसा होता है-तो ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी सहित प्रकृति एवं पर्यावरण पर निर्भर समुदाय पूरी तरह समाप्त हो जाएगें। समुदाय की सामाजिक मूल्य, भाषा-संस्कृति, जीविका एवं पहचान अपने आप खत्म हो जाएगा।
हम यह भी बताना चाहते हैं-कि राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां के जंगल-झाड़, पेड़-पैधों, नदी-नाला, झरनों में आधारित है, इसी पर पूरी ग्रामीण अथव्यवस्था टिकी हुई है, जिसका मूल स्त्रोत किसानों के जोत के अलावे गैर मजरूआ आम और गैर मजरूआ खास जमीन ही है। राज्य की जनता को इन्हीं प्रकृतिक स्त्रोतों से शुद्व भोजन, शुद्व पानी और शुद्व हवा मिल रहा है।
आज आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूदायिक धरोहर तमाम तरह के जमीन को भूमिं बैंक में शमिल कर बाहरी लोगों को आॅनलाइन हस्तंत्रित किया जा रहा हेेे-जो आदिवासी-मूलवासी, किसान समुदाय को समूल उखाड़ फेंकने की तैयारी ही माना जाएगा। इससे आदिवासी -मूलवासी समुदाय खासे चिंतित हैं।
आप को यह भी बताना चाहते है कि 95 प्रतिषत ग्रामीण आबादी न तो कमप्युटर देखी है, न ही इंटरनेट ओपरेट कर सकती है। एैसे में जमीन संबंधी सभी तरह के कार्यों को आॅनलाईन संचालित होने से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है।
वर्तमान सरकार द्वारा जमीन का रसीद-मलगुजारी आॅनलाइन भुगतान किया जा रहा है, इस प्रकिया में किसानों का जमीन संबंधित रेकार्ड एवं कागजातों में हेरा-फेरी किया जा रहा है। अधिकांश किसानों का जमीन आॅनलाईन खो रहा है। इससे किसानों को अपने जमीन का मलगुजारी भुगतान करने में भारी कठिनाई हो रही है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानूून के लागू होने से-एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी-मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाट, धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को इस्तेमाल करने जा रहा है।
मंच भूमि बैंक से होन वाले खतरों की ओर आप का ध्यान खिचना चाहता है-
भूमि बैंक एवं के लागू होने से आदिवासी-मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा मंडरा रहा है-
ऽ राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल-झाड, नदी-झील-झरनों के ताना-बाना के साथ जिंदा है, वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा
ऽ भूमि बैंक के लागू होना सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट में प्रावधान अधिकार समाप्त हो रहा है।
ऽ भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा
भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूल, मांझी-परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा। जिसका प्रभाव निम्नलिखित स्तर पर पडेगा।
1-परंपारिक आदिवासी-मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगा।
2-आदिवासी-मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीय, भूगर्भीय अवस्था जो यहां के परंारिक कृर्षि, पर्यावरणीय ताना-बाना, पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
3-परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेष से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्य, सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
4-जंगल-जमीन, जलस्त्रोंतों, जंगली-झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
5-स्थानीय आदिवासी-मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगी, तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
6-सामाजिक, आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
7-आदिवासी-मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए-हम आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच आप के सामने निम्नलिखित मांग रखते हैं-
1-सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
2-गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, जंगल-झाडी, सरना-मसना, अखड़ा , हडगड़ी, नदी-नाला, पाईन-झरना, चरागाह, परंपारिक-खेत जैसे भूत खेता, पहनाई, डाली कतारी, चरागाह, जतरा टांड, इंद-टांड, मांडा--टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया है, को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं-पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
3- भूमिं सुधार/भूदान कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है-उसे रदद नहीं किया जाए
4-जमीन अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
5-किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
6-5वीं अनुसूचि को कडाई्र से लागू किया जाए।
7-किसानों का लोन माफ किया जाए
9-ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए मनरेगा मजदूरों का मजदूरी दर 159 रू से बढ़ा कर 500 रू किया जाए
10-आदिवासी-मूलवासी विरोधी वर्तमान स्थानीयता नीति को खारिज किया जाए तथा सदियों से जल-जंगल-जमीन के साथ रचे-बसे आदिवासी-मूलवासियों के सामाजिक मूल्यों, संस्कृतिक मूल्यों, भाषा-संस्कृति इनके इतिहास को आधार बना कर 1932 के खतियान को आधार बना कर स्थानीय नीति को पूर्नभाषित करके स्थानीय नीति बनाया जाए।
11-पंचायत मुख्यालयों, प्रखंड मुख्यलयों, स्कूलों, अस्पतालों, जिला मुख्यलयों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सभी तरह के नौकरियों में बहाली की जाए।
13-सरना कोड़ लागू किया जाए।
14-किसी भी तरह का जमीन अधिग्रहण गांव सभा की इजाजत के बिना, नहीं किया जाए।
निवेदक
आदिवासी-मूलवासी असित्व रक्षा मंच
तोरपा-खूंटी
संयोजक....-दयामनी बरला अध्याक्ष-तुरतन तांपनांे
उपाध्यक्ष-राजू लोहरा
सचिव -हादू तोपनो, उपसचिव-ऐनेम तोपनो