कुम्हारी बाजार (वर्तमान में गुमला जिला के बसिया प्रखंड के )
मेरे क्ला में एमलेन तोपनो, प्यारी बरला, हन्ना तोपनो, रेलन तोपनो, ऐसरन तोपना सभी मुझ से बड़ी थी। શિलवंती और मैं एक जोड़ी की हैं। શિलवंती को बिफे दिन को ही स्कूल में बोल दी , कल मैं नहीं आ सकती हॅं कल सर खिलवाऐगें तो हमको देना तेरा कोपी। बिफे रात को ही सुबह के लिए भात बना दिये। सुबह जल्दी उठे। तीन बार कुंआ से पानी लायी। घर-आंगन का काम जल्दी खत्म करके बिजय दादा के साथ कुम्हारी बाजार के लिए निकल गये। मैं पहली बार रायबा, सेमरटोली गांव देखी। सेमरटोली के बाद जंगल શુરુ हो गया। हाफंु गांव पूरी तरह गांव में ही है। जंगल जंगल करीब तीन-चार घंटा तक चलने के बाद कुम्हारी पहुंचे। बाजार अभी भरा नहीं है। जाते ही सीधे गाय-बकरी जहां दुकान लगाते हैं वहीं गये। वहां बैल -गाय भी बंेचने वालों ने बांध कर रखे थे। बकरी भी हैं लेकिन अभी बहुत कम हैं। दादा बोला रूको थोड़ा इंतजार कर लेते हैं, लोग और भी बकरी लेकर आऐंगे।
थोड़ी देर के बाद लोगों ने बकरी लेकर आये। हम दोनों को तो पालने के लिए बकरी बच्चा लेना था। इसलिए ज्यादा इंतजार करना पड़ा। पेषेवार खरीददार लोग जहां खस्सी देखे, यह बकरी दौड़ कर पहुंच जाते हैं। ताकि दूसरा खरीददार उसको न पटा ले। एक बुजूर्ग दो बड़ा बड़ा खस्सी लेकर आम पेड़ के नीचे बैठा है। उनके पास कई खरीद दार आये और फिर चले गये। बड़ा वाला खस्सी का दाम लोग पूछ रहे थे-बुजूर्ग दाम बताया-तीन कोरी। दो लोग फिर उसके पास आये। बोले-ठीक से बोल। देवेक-लेवे नीयर। ये 40 रू़ देवा थी। बुजूर्ग नहीं तीन कोरी से एको रूप्या कम नी होवी। मोल-तोल आगे बढ़ता जा रहा है। के्रता-नहीं उतनो तो केउे नीं देबायें। उतना कर खस्सी नी लगें। के्रता-अच्छा तोरो नहीं-मोरो नहीं , चल आखरी 50 रूप्या देवा थी। बुजूर्ग-नहीं नी होवी उतना में। बात बढ़ते जा रहा है। अंत में के्रता बोला-ठीक अहे 60 रूप्या देवी थी। बुजूर्ग-नहीं इतना में नी देबुं, तीन कोरी से एक को कचिया कम नहीं। के्रता हा ना-60 रूप्या तो देवा थी, ले। बुजूर्ग -नीही- तीन कोरी से एको रूप्या कम में नी देबुं। अब देखते ही देखते यहां कई लोग पहुंच गये। के्रता -बुजूर्ग को समझाने लगा-जेतना तोंय मांगाथिस उतना तो देवा थों।फिर भी बुजूर्ग तैयार नहीं हो रहा है। तब वहां खडें लोंगों ने बुजूर्ग को समझाने लगे-तीन कोरी के ही 60 रूप्या कहेनां। तब जा कर बुजूर्ग देने को राजी हुआ। बात पक्का करने के लिए बगल से दूब घांस तोड़कर खरीद दार ही लाया और बुजूर्ग को दिया। दूब घांस देने के खरीद-बिक्री पक्का हो गया। मैं ये सब खड़ा होकर देख रही थी।
मेरे क्ला में एमलेन तोपनो, प्यारी बरला, हन्ना तोपनो, रेलन तोपनो, ऐसरन तोपना सभी मुझ से बड़ी थी। શિलवंती और मैं एक जोड़ी की हैं। શિलवंती को बिफे दिन को ही स्कूल में बोल दी , कल मैं नहीं आ सकती हॅं कल सर खिलवाऐगें तो हमको देना तेरा कोपी। बिफे रात को ही सुबह के लिए भात बना दिये। सुबह जल्दी उठे। तीन बार कुंआ से पानी लायी। घर-आंगन का काम जल्दी खत्म करके बिजय दादा के साथ कुम्हारी बाजार के लिए निकल गये। मैं पहली बार रायबा, सेमरटोली गांव देखी। सेमरटोली के बाद जंगल શુરુ हो गया। हाफंु गांव पूरी तरह गांव में ही है। जंगल जंगल करीब तीन-चार घंटा तक चलने के बाद कुम्हारी पहुंचे। बाजार अभी भरा नहीं है। जाते ही सीधे गाय-बकरी जहां दुकान लगाते हैं वहीं गये। वहां बैल -गाय भी बंेचने वालों ने बांध कर रखे थे। बकरी भी हैं लेकिन अभी बहुत कम हैं। दादा बोला रूको थोड़ा इंतजार कर लेते हैं, लोग और भी बकरी लेकर आऐंगे।
थोड़ी देर के बाद लोगों ने बकरी लेकर आये। हम दोनों को तो पालने के लिए बकरी बच्चा लेना था। इसलिए ज्यादा इंतजार करना पड़ा। पेषेवार खरीददार लोग जहां खस्सी देखे, यह बकरी दौड़ कर पहुंच जाते हैं। ताकि दूसरा खरीददार उसको न पटा ले। एक बुजूर्ग दो बड़ा बड़ा खस्सी लेकर आम पेड़ के नीचे बैठा है। उनके पास कई खरीद दार आये और फिर चले गये। बड़ा वाला खस्सी का दाम लोग पूछ रहे थे-बुजूर्ग दाम बताया-तीन कोरी। दो लोग फिर उसके पास आये। बोले-ठीक से बोल। देवेक-लेवे नीयर। ये 40 रू़ देवा थी। बुजूर्ग नहीं तीन कोरी से एको रूप्या कम नी होवी। मोल-तोल आगे बढ़ता जा रहा है। के्रता-नहीं उतनो तो केउे नीं देबायें। उतना कर खस्सी नी लगें। के्रता-अच्छा तोरो नहीं-मोरो नहीं , चल आखरी 50 रूप्या देवा थी। बुजूर्ग-नहीं नी होवी उतना में। बात बढ़ते जा रहा है। अंत में के्रता बोला-ठीक अहे 60 रूप्या देवी थी। बुजूर्ग-नहीं इतना में नी देबुं, तीन कोरी से एक को कचिया कम नहीं। के्रता हा ना-60 रूप्या तो देवा थी, ले। बुजूर्ग -नीही- तीन कोरी से एको रूप्या कम में नी देबुं। अब देखते ही देखते यहां कई लोग पहुंच गये। के्रता -बुजूर्ग को समझाने लगा-जेतना तोंय मांगाथिस उतना तो देवा थों।फिर भी बुजूर्ग तैयार नहीं हो रहा है। तब वहां खडें लोंगों ने बुजूर्ग को समझाने लगे-तीन कोरी के ही 60 रूप्या कहेनां। तब जा कर बुजूर्ग देने को राजी हुआ। बात पक्का करने के लिए बगल से दूब घांस तोड़कर खरीद दार ही लाया और बुजूर्ग को दिया। दूब घांस देने के खरीद-बिक्री पक्का हो गया। मैं ये सब खड़ा होकर देख रही थी।